नीचे दिए लेख की भाषा से लेखक का विदेशी प्यार झलकता है .जहां सरल हिंदी शब्द भी हैं वहां अंग्रेज़ी शब्दोंका प्रयोग एक मानसिकता का द्योतक है . तिस पर बड़े लोगों पर अश्लील टिप्पणी छापना कितनी उपयुक्त है यह पाठक स्वयं निर्णय कर लें . सोनिया / कांग्रेस काल मैं एक अति नारीवाद प्रचलित हो गया जिसका नैतिक मूल्यांकन कभी नहीं हुआ.
प्रश्न है की अति नारीवाद ने पश्चिम को क्या दिया. आज अमरीका मे पचीस साल मैं आधी शादियाँ टूट जाती हैं . कुंवारी माएं किसका आदर्श हैं ? इससे उस देश को क्या मिला. नारी की स्वतंत्रता व् उच्छ्रिन्क्लता मैं कितना फर्क है यह पाठक स्वयं सोचें .मैं एक बार स्पेन गया जहां हर शहर मैं एक गाइड मिलती थी . पांच मैं से चार गाइड अकेली रह रहीं थी . उनका जीवन स्तर शादी शुदा औरतों से निम्न था. परन्तु उन्हें अपने स्वाबलंबन का अभिमान था . इस स्वाबलंबन की कीमत किसने चुकाई , उनकी संस्कृति ने जो पचास साल मैं लुप्तप्राय हो जायेगी .ऐसा नहीं है की पिछले पचास वर्षों मैं शैक्षिक समानता के बावजूद भी नारी किसी क्षेत्र कोई विशेष उपलब्धि नहीं पा सकी . परन्तु आर्थिक स्वतन्त्रता ने आज यह स्थिति उत्पन्न कर दी है की पश्चिम की सभ्यता इस्लामिक होती जा रही है क्योंकि नारी बच्चे पैदा नहीं करना चाहती . जनसंख्या घट रही है . आबादी बूढ़ी होती जा रही है .यह कहना की नारी भारत मैं दुःखी थी गलत है . आज भी मातृत्व का सुख नारी को प्रिय है . बूढ़े तो सब होंगे .बूढ़े मा बाप को आदर पूर्वक घर मैं रखना अपना ही इंश्युरेंस है .सिर्फ आधुनिकता का दंभ है . कुछ वर्ष नौकरी करने मैं कोई बुराई नहीं है .परन्तु अंत मैं पुरुष का कमाना और नारी का परिवार संभालना उचित है .
प्रश्न यह भी है की अब मा बाप क्यों सही मार्ग दर्शन नहीं कर पा रहे . हमने अति नारीवाद के सामने बिना लादे पराजय मान ली है .इसका मुख्य कारण पश्चिम का आधुनिकता मान लेना है . हमें जापान की तरह उन्नति और सांस्कृतिक विरासत को संभाल कर रखना चाहिए .
नारी मुक्ति आन्दोलन का सामाजिक मूल्यांकन आवश्यक है . नयी पीढी का सही मार्गदर्शन आवश्यक है की भारतीय सांस्कृतिक मूल्य , परिवार को प्राथमिकता , किफायत से अपनी आमदनी मैं रहना आज भी उतने सही हैं जितने पचास साल पहले . इस मूल्यांकन के अभाव मैं
हम अपनी अनमोल पारिवारिक स्थिरता खो बैठेंगे .हाँ यदि इन सब के साथ हम आर्थिक प्रगति की रफ़्तार बढ़ा सकें तो सोने मैं सुहागा है .
न्यू इंडिया में लड़कियों को शादी की जल्दी नहीं, बदल रहा है यूथ का मूड
नरेंद्र नाथ, नवभारत टाइम्स
न्यू इंडिया में देश के युवाओं की सोच में बड़ा बदलाव आ रहा है। शादी से लेकर करियर तक को लेकर उनकी राय अब विकसित देशों के युवाओं जैसी होने लगी है। केंद्र सरकार की यूथ इन इंडिया 2017 नाम की एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। यूथ पर रिसर्च व सर्वे पर आधारित यह रिपोर्ट सांख्यिकी मंत्रालय ने तैयार की है। इसमें 15 से 29 साल तक के युवाओं को शामिल किया गया है। इस रिपोर्ट से नैशनल यूथ पॉलिसी को अमल में लाने में मदद मिल सकेगी।
अधिक उम्र में शादी
पूरे देश में लड़कियों के शादी करने की औसत उम्र 2015 में 22.3 हो गई जो 1995 में 19 थी। शहर में यह औसत 23.2 का है तो ग्रामीण इलाकों में यह 21.8 का है। मतलब पूरे देश में इसमें बड़ा बदलाव आया है। सबसे अधिक उम्र में शादी करने का ट्रेंड केरल में है जबकि पश्चिम बंगाल में सबसे जल्दी शादी करने का ट्रेंड है।
दो बच्चों का ट्रेंड
लड़कियां ही बदल रही हैं, लड़के तो लड़कियों के चक्कर में ही थोड़ा पढ़ लेते हैं। सबसे कमाल तो वो खूँशठ बुढ़ऊ हैं जो वियाग्रा खाकर, सनी लियोन देखकर मरी टूटी में जान डालते हैं और नौजवानों को नैतिकता के भाषण देते हैं। ये मत पहनो वो मत करो। हमारे जमाने में ये…हमारे जमाने में वो…. घाघरे के नीचे चड्ढी, धोती क…
देश में 2015 में प्रति महिला बच्चे करने का औसत 2.3 आ गया। तीस साल पहले प्रति महिला बच्चे का औसत 5 बच्चों का था। इस तरह यह रेशियो अब विकसित देशों की कैटिगरी में आ जाएगा। पूरे देश में 76 फीसदी महिलाएं दो बच्चों के बाद तीसरा बच्चा नहीं चाहतीं।
यूथ की टेंशन
युवाओं के सामने रोजगार, शिक्षा, सामाजिकता, पलायन सबसे बड़े चिंता के मुद्दे हैं। वे सबसे अधिक इन्हीं मुद्दों पर परेशानी में घिरे हैं। युवाओं में सुसाइड करने की प्रवृत्ति बहुत चिंताजनक है। रिश्ते या पढ़ाई में विफलता इसके सबसे बड़े कारण उभरकर आए। इस दिशा में भी सरकार को बड़ी पहल करने की जरूरत है जिससे इस स्थिति पर काबू पाया जा सके।
अमेरिका का क्रेज
देश के युवाओं में अमेरिका जाने का क्रेज सबसे अधिक है, जहां 2015 में 97,613 स्टूडेंट गए। दूसरे नंबर पर ऑस्ट्रेलिया और तीसरे नंबर पर इंग्लैंड है।
समस्या खत्म नहीं
रिपोर्ट में 2011 के ही जनगणना आंकड़ों के हवाले से बताया गया कि 2001 से 2011 के बीच 5,96,588 पुरुषों और 7,22,898 महिलाओं की 10 से 11 उम्र के बीच शादी हुई।
युवाओं का देश नहीं रहेगा
यूथ इन इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार 2014 में कुल आबादी का लगभग 35 फीसदी हिस्सा 15 से 24 साल के बीच था। 2020 तक इसके 34 फीसदी और 2030 तक इसके 31 फीसदी तक चले जाने की उम्मीद है। यानी आने वाले दिनों में जनसंख्या नियंत्रण का असर युवा आबादी पर दिखने लगेगा।