सन २०५० के समृद्ध भारत को मीर जाफर व् जयचंदो से पुनः विभाजन व् गुलामी के खतरे : अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्रकारियों की संभावित चालें
राजीव उपाध्याय
भारत पर सबसे अधिक विदेशी आक्रमण तभी हुए जब हम बहुत समृद्ध थे . मोहम्म्द गौरी से लेकर अंग्रेजों तक सभी ने हमारी दौलत को लूटने के लिए ही हमले किये थे . हमारी समृद्धि ही हमारी गुलामी का कारण बनी . ठीक भी है क्योंकि गरीब की झोंपड़ी में डाका डाल के क्या मिलेगा . चिंता की बात यह है की सन २०५० तक हम पुनः एक समृद्ध देश बन जायेंगे और विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था बन जायेंगे . चीन व् अमरीका ही हमसे आगे होंगे . यूरोप के बड़े देश अब बहुत धीमी रफ़्तार से विकसित हो रहे हें . ग्रीस जैसे कई अन्य देश बहुत उधार तले दबे हें जिनमें इटली , स्पेन इत्यादि बड़े देश भी हें. परन्तु टेक्नोलॉजी में यह देश अगले सौ साल तक आगे ही रहेंगे . अफ्रीका न तो इतना समृद्ध हो सकेगा और न ही यूरोप की तकनीकी आवश्यकताएं पूरी कर सकेगा . रूस व् चीन में पश्चिमी राष्ट्र घुस नहीं पायेंगे . अरब देश सिर्फ तेल ही बेच रहे होंगे जिसकी मांग धीरे धीरे कम हो जायेगी . ऐसे में कोई न कोई देश व् समाज पुनः भारत को पुनः उपनिवेश बनाने का सपना अवश्य देखने लगेगा .
भारत तब तक एक शक्तिशाली देश बन चुका होगा और उसकी सेना भी विश्व की तीसरी प्रमुख सेना होगी . शांति पूर्ण भारत किसी देश को ऐसा अवसर नहीं देगा की वह भारत पर सीधा आक्रमण करने की सोचे . इसलिए यह नव उपनिवेश के प्रयास परोक्ष व् छद्म ही होंगे . इनमें भारत की कम निर्यात कर पाने वाली वाली अर्थव्यवस्था , जातियों , भाषाओं व् धर्मों में बंटा समाज , मीरजाफर सरीखे लालची व् भ्रष्ट व् स्वार्थी नेता व् पैसे के दीवानी आदर्शहीन जनता सब के सन इस प्रयास में बड़े सहायक होंगे .
पाकिस्तान आई एस आई के दिवंगत प्रमुख श्री हमीद गुल जिन्हें पंजाब की दुखद घटनाओं का प्रणेता भी माना जाता है अकसर गर्वोक्ति देते रहते थे की भारत को तो कभी भी तोड़ा जा सकता है . उनकी गर्वोक्ती को हलके में लेना उचित नहीं होगा क्योंकि पकिस्तान ने १९४७ में कश्मीर , १९६५ मैं कच्छ पर हमला , मुंबई काण्ड , संसद पर हमला , कारगिल इत्यादि कर के सिद्ध कर दिया है की उसे भारत से कोई डर नहीं है. इमरान खान की बडबोले बयान भी यही सिद्ध करते हें.
भारत तो मुंबई काण्ड करने की सोच ही नहीं रखता न ही वह आज तक उसका बदला ले पाया है . अब सोचिये की एक जहाज के सौ यात्रियों को बचाने के लिए झुका राष्ट्र भारत क्या भविष्य में छोटे परमाणु बमों की दिल्ली व् अन्य बड़े शहरों मैं हमले की धमकी से निपटने के लिए तैयार है . क्या हमारे यहाँ कोई स्टॅलिन या चर्चिल है जो स्वत्न्र्ता के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने के लिए तैयार हो ?
अब एक और चीज़ सोचिये . प्रधान मेंत्री इंदिरा गाँधी व् राजीव गांधी की ह्त्या धर्म व् भाषा को सर्वोपरि मानने वालों भारतियों ने की थी . स्वरण मंदिर के संग्रहालय मैं आदरपूर्वक रखे रखे गए इंदिरा गाँधी के कातिलों के चित्र यही दर्शाते हैं की उनको आज भी अपने किये का कोई दुःख नहीं है . ऐसे ही हाल की महाराष्ट्र की कोरेगाओं की हिंसा को लीजिये . सन १८१८ में पेशवाओं के खिलाफ अंग्रेजों का साथ देने वालों की जयंती मनाने पर सन २०१८ मैं व्यापक हिंसा का क्या औचित्य है ? इतनी छोटी लड़ाई में क्या अभिमान की बात थी और उसकी जयंती मनाने लायक क्या विषय था ? बर्मा ( म्यानामार ) मैं रोहिंग्या मुसलामानों के साथ जो हुया उस पर मुंबई मैं आज़ाद मैदान की हिंसा या बोध गया मैं बम विस्फोट का क्या औचित्य था?
अब चीन मैं तो कोई यह नहीं कर सकता . वहां तो इमाम सड़कों पर नचाये जाते हैं और सब चुप हैं .इसी लिए अमरीका व् ब्रिटेन भी ताकतवर व् एकजुट चीन से अब नहीं उलझते . परन्तु हमारे विभाजित समाज ने भारत को गरीब की लुगाई बना दिया है जिसे सब ही भौजाई बनाए फिरते हैं . क्या अंतर्राष्ट्रीय ताकतें मात्र एक बिलियन डॉलर मैं देश को तोड़ नहीं सकते ?
अब तीसरी भयावह स्थिति देखिये .
बिना इन्टरनेट या ट्विटर के , २१ सितम्बर १९९५ को गणेश की मूर्ती के दूध पीने की खबर समस्त विश्व के हिन्दू समाज मैं फैल गयी और लोग मंदिरों मैं जा जा कर श्रद्धापूर्वक मूर्तियों को दूध पिलाने लगे . ऐसी ही झूटी खबर पर हज़ारों पूर्वोत्तर के नागरिक बंगलौर छोड़ कर भागने लगे . स्वर्ण मंदिर में हर मंदिर साहिब के टूटने की झूठी खबर पर रांची के पास रामगढ के सिख सैनिक अपने ब्रिगेडियर को गोली मार ट्रक लेकर पंजाब के लिए निकल पड़े . कश्मीरी पंडितों को निकलने पर चुप रहने वाले पैगम्बर के कार्टून पर लाखों मैं सड़कों पर निकल पड़े . विभिन्न वर्गों के देश के प्यार की सीमाएं जानना भी जरूरी है क्योंकि यह सर्वविदित हैं और अँगरेज़ इनका फायदा उठा चुके हैं. उन सीमाओं का अतिक्रमण किसी भी झूठी अफवाह से किया जा सकता है .
हमारी प्रेस व् मीडिया का बिकाऊ चरित्र तो गोधरा व् अन्य घटनाओं में इतना उजागर हो चुका है की उसपर चर्चा व्यर्थ है .
अब अंतिम भयंकर स्थिति देखिये .
नेपाल के राजवंश की किसने ह्त्या की यह तो नहीं पता पर उसके बाद से वहां इसाई धर्म का बेहद प्रसार हो रहा है .अरुणांचल में भी हिन्दू समर्थक मुख्य मंत्रि दोरजी खंडू की हेलीकाप्टर दुर्घटना मैं मृत्यु आज भी रहस्य है . परन्तु उनकी मृत्यु के बाद धर्म परिवर्तन बिना रोक टोक हो रहा है और उत्तर पूर्व को इसाई व् असम को मुसलमान बाहुल्य बनाने का काम बे रोकटोक चल रहा है. कब इसका उपयोग भारत को तोड़ने के लिए होगा पता नहीं ?
ईरान की तरह भारत को आर्थिक रूप से घुटने पर आना बहुत आसान है . यदि अमरीका व् अरब देश विदेशी मुद्रा को भारत भेजने पर प्रतिबन्ध लगा दें तो हमारी अर्थ व्यवस्था चरमरा जायेगी . हमारे निर्यात बहुत कम हें. इन्टरनेट सेवा पश्चिम पर आश्रित है और उसके अनेक दुरूपयोग संभव हैं .
इन सबसे भारत को रूस की तरह बिना युद्ध के छिन्न भिन्न किया जा सकता है .
इसलिए भारत को अभी से परोक्ष व् छद्म युद्ध से अपनी रक्षा करने की तैय्यारी करनी चाहिए क्योंकि २०५० में हमारी समृद्धि ही हमारी दुश्मन बन सकती है .
One Response to “सन २०५० के समृद्ध भारत को मीर जाफर व् जयचंदो से पुनः विभाजन व् गुलामी के खतरे : अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्रकारियों की संभावित चालें”