महिला दिवस : क्या मेनकाएँ राजा राम मोहन रॉय , दयानंद महात्मा गाँधी पैदा कर सकती हैं : अबला का सबला नारियों द्वारा दुरूपयोग
राजीव उपाध्याय
इस महिला दिवस पर भारतीय नारियों को कुछ अलग सोचने की आवश्यकता है .
नारी उत्पीडन व् बलात्कार , पैत्रिक व्यवस्था के औचित्य पर बहुत वर्षों से बहस हो ली . जो सरकार को करना था वह उससे कहीं अधिक है कर चुकी जिसका अब घोर दुरूपयोग हो रहा है . आज अब समर्थ पुरुष ही एक शोषित वर्ग है और सबला महिलायें उसका, अबलाओं की रक्षा के लिए बनाए गए सब कानूनों का दुरुपयोग कर, अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए उपयोग कर रही हैं .उनकी इस बराबरी की अन्याय पूर्ण मुहीम ने समाज को विशेषतः हिन्दू समाज की वर्षों से बचाव करने वाली परम्पराओं को भंग कर को सदा के लिए पतन के रास्ते पर धकेल दिया है . सदियों के प्रयास से बनी पारिवारिक व्यवस्था यदि टूट गयी तो इस समाज में उसे दुबारा बनाने का सामर्थ्य नहीं है .स्वभाव से स्वार्थी व् छोटी सोच वाली महिलाओं में अपवाद स्वरुप कुछ विदुषी महिलायें भी सब जानते हुए भी इस बराबरी की होड़ में पहाड़ से भिसलती गाड़ी को रोकने का साहस नहीं कर पा रही . क्योंकि आज सबला महिलाओं में एक भी पुरुषों के ऊपर हो रहे अन्याय को खुल कर रोकने आवाज़ उठाने वाली राजा राम मोहन रॉय , दया नन्द सरस्वती या महात्मा गाँधी जैसी साहसी महिला नहीं है .
इस महिला दिवस पर इन सबला नारियों को यह दिखाना है की क्या वह अपने मैं मौजूद मेनकाओं को विश्वामित्र की तपस्या भंग करने से रोक सकती हैं . क्या मेनका जैसी नारियों द्वारा सेक्स का एक समर्थ पुरुष को फंसाने के लिए दुरूपयोग एक जघन्य अपराध नहीं है . इस फंसाने मैं जवानी के बेमेल विवाह भी शामिल है .क्या नारी किसी पुरुष का अपमान कर बदले में अपने अपमान को समस्त नारी जाती का अपमान कह सकती है . क्या कोई प्रीती जैन फ़िल्मी रोल के लालच वश स्वेछा से बनाए गए सेक्स संबंधों को बलात्कार घोषित कर सकती है . यदि बलात्कार का दंड मृत्यु ठीक है तो उसकी रक्षा के लिए भी तो नारी को अपने प्राणों की बाजी नहीं लगानी चाहिए . सौदे वश देह समर्पण को बलात्कार कैसे कह सकते हें. कँगना रनौत शादी न करने पर हृतिक रोशन को अपशब्द कह सकती है पर यदि हृतिक रोशन उसे पलट कर वैश्या कह दे तो तो यह नारी का अपमान है ? इस अन्याय का संज्ञान न लेने से महिला आयोग य मंत्रालय मात्र एक महिलाओं की स्वार्थ सिद्धि के लिए ट्रेड यूनियन प्रतीत होते हैं .
बलात्कार ही नहीं हिन्दू विवाह की विशेषतः उपयोगी परम्परा का भी अब दुरूपयोग हो रहा है .
सदा दहेज़ व् घरेलू हिंसा पर भाषण देने वाली महिलायें यह भूल जाती कि हिन्दू विवाह की परम्परा की धारणाओं की रक्षा के लिए बनाए गए कानून जो अधिकार देते हैं वह बराबरी से ज्यादा हैं. वह नारी तभी पा सकती है जब वह हिन्दू रीतियों का पूर्ण रूप से पालन करे . यदि नारी स्वतंत्र जीवन बिताना चाहती है तो उसे पारम्परिक हिन्दू विवाह से उपलब्ध सुविधाओं को भी छोड़ना होगा . उसे विवाह को एक कॉन्ट्रैक्ट मानना होगा .जवानी मैं ब्याही अमेज़न य फेसबुक के मालिक की पत्नी ने कंपनी के बढ़ने मैं कोई ऐसा योगदान नहीं दिया जिससे इसे करोड़ों की जायदाद तलक से मिले . ज्यादा से ज्यादा उसे एक घर और साधारण जीवन के लायक पेंशन पाने का अधिकार है .नारी का देह पालन उसकी जिम्मेवारी है पुरुष की नहीं . हिन्दू विवाह के अधिकार हिन्दू धर्म द्वारा परिभाषित कर्तव्यों के पालन तक ही हें.
इसी तरह एक सामान्य परिवार मैं पुरुष व् नारी दोनों अपना जीवन बच्चों की भलाई व् एक दुसरे के सुख को समर्पित कर देते हैं . नारी कोई ज्यादा त्याग नहीं करती है . यदि मेहनती पुरुष दौलत कमाता है तो उसका सब परिवार उपभोग करता है जैसे स्त्री के बनाए गए स्वादिष्ट खाने का सब परिवार आनंद लेता है .यदि पत्नी द्वारा पारिवारिक जिम्मेवारी , जिसमें बूढ़े माँ बाप की देख भाल भी शामिल है , न निभाने से पति तलाक ले तो कर्तव्यचुत नारी को कोई मुआवजा नहीं मिलना चाहिए क्योंकि हर अधिकार की बुनियाद एक कर्तव्य होता है . आज जो मा बाप बड़े अभिमान से विवाह के समय कहते हैं की मेरी देर से उठने वाली लड़की सिर्फ चाय व् मेगी बनाना जानती है वह अपनी जिम्मेवारी नहीं निभा पाने के घोर अपराधी हैं.जो लडकियां विवाह के बाद करियर को प्राथमिकता देना चाहती हैं उनके लिए अलग विवाह के कानून होने चाहिए जिसमें उनको बराबरी के अधिकार ही मिलने चाहिए . पुरुष की कमाई पर उनका कोई अधिकार नहीं होना चाहिए न ही तलाक पर उन्हें कोई मुआवजा मिलना चाहिएक्योंकि सेक्स दोनों की आवश्यकता है .घरेलु हिंसा या दहेज़ या बलात्कार के मात्र आरोप पर कोई गिरफ्तारी तब तक नहीं होनी चाहिए जब तक आरोप की प्राथमिक जांच से सच्चाई सिद्ध न हो . यदि पुरुष नारी पर हाथ नहीं उठा सकता तो पुरुष के अपमान को भी बराबर की घरेलु हिसा मना जाना चाहिए .
प्रश्न यह है की आज बहुत पढी लिखी महिलायें इन बातों से सहमत हैं परन्तु वह खुल कर बोलने का साहस नहीं कर पा रहीं . उनको भी सोचना चाहिए की नारी मुक्ती आन्दोलन से सदियों पहले राजा राम मोहन रॉय , दयानंद सरस्वती , महात्मा गाँधी जो उनके लिए कर गए उनको भी उसका ऋण चुकाना है .
इस महिला दिवस पर महिलाओं में एक नयी सोच का प्रारम्भ आवश्यक है.
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