महिला दिवस २ – रज़िया , नूरजहाँ , रानी झाँसी व् अहिल्या बाई होलकर – सबसे सफल कौन और क्यों ?
राजीव उपाध्याय
भारतीय इतहास की चार बहु चर्चित नारियों मैं रज़िया , नूर जहाँ ,रानी झाँसी व् कुछ कम जानी रानी अहल्या बाई होलकर हैं .
इनमें तुर्की रज़िया दिल्ली के सुल्तान इल्त्मुश की पुत्री थी जिसने दिल्ली पर चार साल शासन किया ( १२३६-४०) .पहले तो दरबारियों ने महिला शासक के नीचे काम करने से मना कर दिया और इल्त्मुश के छोटे लड़के को सुल्तान बनाया . परन्तु उसके भोगी व् निकम्मा होने का कारण कुछ महीनों में मान समेत ह्त्या कर दी और रज़िया को सुल्तान बना दिया . रज़िया को एक गुलाम याकूब से प्यार हो गया और उसे घुडसाल का अधिकारी बना दिया . इस पर भटिंडा के गव्र्नोर ने विद्रोह कर रज़िया को परस्त कर दिया . रज़िया ने जान बचाने के लिए उससे शादी भी की . इस धकापेल मैं रज़िया के छोटे भाई ने सिंहासन हथिया लिया . रज़िया और उसके पति को दिल्ली छोडनी पड़ी . दोनों बाद मैं युद्ध मैं मरे गए . उसके भाई को भी सुलतान से हटा दिया गया . रज़िया भी कुशल प्रशासक थी और युद्ध कलाओं में पारंगत थी पर वह उसके बहुत काम नहीं आये .
इसके विपरीत नूर जहां एक अफ़ग़ानिस्तान मूल की सुन्दरी थी जिसकी शादी एक सामान्य मुग़ल दरबारी से हुयी . जहाँगीर को उससे प्यार हो गया और उसने उसके पति की ह्त्या करवा दी .ह्त्या के तीन साल बाद बच्चों वाली विधवा नूर जहां ने जहाँगीर से शादी की और वह उसकी बीसवीं और आखिरी पत्नी थी . जहाँगीर की अफीम की लत व् अपनी सुन्दरता से उसने जहाँगीर को पूरी तरह वश मैं कर लिया . वह दरबार में भी जहाँगीर के साथ बैठने लगी . उसने अपने को सुरक्षित करने के लिए अपने पिता व् भाई को ऊँचे पदों पर बिठा दिया . जहंगिर के पुत्र खुर्रम ( शाहजहाँ) का विवाह अपने भाई की लडकी मुमताज़ से करवा दिया . वह कलाओं के अलावा धनुर्विद्या मैं भी प्रवीण थी.पर इन सब के बावजूद खुर्रम ने उसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया. उसके भाई ने शाहजहाँ का साथ दिया क्योंकि उसकी लडकी राजकुमार की पत्नी थी. नूरजहाँ का राज जहाँगीर के मरने के बाद समाप्त हो गया और शेष जीवन उसने लाहोर में निर्वासित हो कर बिताया .
रानी झाँसी की कहानी भी हम सब जानते हैं . वह भी पुरुषों सामान जीवन बिताती रही . पति के मरने के बाद उसे महल से निष्कासित कर दिया. १८८५७ के विद्रोह में उसने झाँसी लेनी चाही और अंत मैं युद्ध में बहादुरी से लडती हुयी मारी गयी.
अहल्या बाई होलकर इन्दोर के मराठा सूबेदार मल्हार राव के पुत्र खंडेराव की पत्नी थी. पति की मृत्यु पर सती होने से उसके ससुर ने रोका. मल्हार राव की मृत्यु के बाद उसने राज भगवान् शिव को सौंप दिया और अपने को मात्र संचालक घोषित कर दिया . उसने तीस वर्ष एक आदर्श प्रजापालक रानी के रूप मैं शांति पूर्वक राज किया और इंदौर की चहुँ दिशाओं में प्रगति हुयी . राजस्व बहुत बढ़ गया . उसने अनेकों धर्मशालाएं , तालाब , कुँए मंदिर इत्यादि बनवाये . गरीबों को भेड बकरी पालने के लिए ऋण दे देकर प्रोत्साहित किया .काशी विश्वनाथ समेत अनेक मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया .
सत्तर वर्ष की आयु में सबसे अधिक प्रेरणास्पद रानी का देहांत हुआ जिसने सारी प्रजा को दुःख में डुबो दिया.
प्रश्न है की पुरुषों से प्रतिस्पर्धा करने वाली वीर रानिओं जैसे रज़िया या झाँसी रानी या अति सुन्दर परन्तु षड्यंत्रकारी नूर जहां के मुकाबले नारी गुणों से भरपूर अहल्या बाई का जीवन सबसे अधिक श्रद्धेय व् प्रेरणास्पद है .
आज जो स्त्रियाँ कर्तव्य भूल कर मात्र अधिकारों के लिए लड़ रहीं हैं उनमें से कोई भी अहल्या बाई नहीं बनेगी और सब अंत मैं रजिया व् नूरजहाँ की तरह दुखी अंत पाएंगी .
कर्तव्य परायण , सहनशील , प्रेम , मातृत्व व् वात्सल्य से भरी नारी ही सबसे सुखी व् सफल जीवन बिताएगी .
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