आर्थिक मंदी : घमंडी बाबुओं व् दूकानदारों सरकार नोट्बंदी व् जीएसटी के दुष्परिणाम क्यों नहीं समझ पा रही है
वित्त मंत्रि निर्मला सीतारमन की स्थिति पर कभी कभी दया आती है . इतने बड़े देश की इतनी बिगड़ी अर्थव्यवस्था को सुधरने की जिम्मेवारी उन पर है और देश की जनता उनके पहले इतने दिनों से किये अदृश्य व् झूठे विकास के दावों से बहुत नाराज है . सब तरफ नौकरियां गायब हो चुकी हैं और सरकार है की फिर भी झूठे विकास के दावों की अफीम खा कर पडी हुयी है . बहु शिक्षित परन्तु नोट व् वोट विहीन मध्यम वर्ग का तो इस बाबुओं व् दूकानदारों की सरकार मैं कोई खैरख्वाह है ही नहीं सो उसकी तो पिसना ही नियति है . पर अब बड़े उद्योग पतियों माल तो क्या पारले जी के पाँच रूपये के बिस्कुट के पैकेट भी नहीं बिक रहे . इस दीवाली पर भी बाज़ार सुनसान ही रहेंगे . इस सब पर भी वित्त व्यवस्था बिगाड़ने वाले दोषी बाबु अब भी दनदनाते घूम रहे हैं . बैंकों को मिला कर क्या तीर मार लिया ? अर्थ व्यवस्था बिगाड़ने वाले बाबुओं पर क्यों नहीं कार्यवाही होती ? सरकार से देश व् जनता की नाराजगी जायज है पर उसमें इस वित्त मंत्रि का कोई हाथ नहीं है . दोषी मंत्रि तो इस दुनिया मैं नहीं रहे परन्तु घमंडी व् अज्ञानी बाबु तो अब भी मुटीया रहे हैं .परन्तु नयी वित्त मंत्रि भी बजट तक इस भयंकर मंदी से अनभिग्य थीं और बजट तक जोर शोर से विकास के दावे कर रही थीं . अचानक जब पाँच लाख बिन बिकी कारों , मोटर साइकलों व् लाखों बिना बिके घरों का बम फूटा तो सरकार को कानों मैं वास्तविकता की जूं रेंगी .
सामान्य्तः सहनशील व् विनम्र वित्त मंत्रि भी पूना मैं एक चार्टर्ड अकाउंटेंट के प्रश्न पर झुंझला कर बिफर पडीं . पर उन्हें बिगडैल टीम के लीडर होने की कीमत तो चुकानी पड़ेगी. आर्थिक रूप से निकम्मी सरकार तो वही है चाहे वित्त मंत्रि नयी हों . उनका कथन की दोषारोपण के बदले समाधान सुझाएँ सैधांतिक रूप से सही है . परन्तु कितने लोग पूरी अर्थ व्यवस्था को जानते हैं . इस लिए अधकचरे समाधानों से वित्त मंत्रि का क्या फायदा होगा .
सरकारी बाबु , लोग व् मीडिया भी डर रहे हैं . हर कोई इस सच को बोलने से कतरा रहा है कि कभी गुजरात मैं आर्थिक प्रगति के पर्याय रहे , प्रधान मंत्रि की आर्थिक नीतियाँ व् उनका राजनितिक व् चुनावी फायदे वाले अच्छे परन्तु छोटे छोटे प्रोजेक्टों पर पूरा ध्यान केन्द्रित करना, देश को महँगा पड़ रहा है .देश की चीन सरीखी आर्थिक प्रगति के लिए जिस गहन चिंतन व् साहस की आवश्कता है वह कोई नहीं कर रहा . प्रधान मंत्रि पूरी तरह बाबुओं पर आश्रित हैं जिनमें न तो नए चिंतन के लिए विशेष ज्ञान होता है न ही साहस . वह तो फाइलों पर पुराने अनुभवों पर आधारित सरकार चलाना जानते हैं . वह प्रधान मंत्रि को नयी दिशा नहीं बतला सकते . मनमोहन सरीखा कोई आर्थिक सलाहकार नहीं है जो देश की रूप रेखा बदल सके .प्रधान मंत्रि का व्यक्तित्व पूरे मंत्रि मंडल व् सरकार पर इतना छाया हुआ है और कोई नयी बात नहीं कह सकता न ही नए काम करने का साहस कर सकता है . ईमानदारी के भूत ने सरकार , उद्योगों व् पूरे देश को को सीबीआई , सीवीसी , ई डी व् इनकम टैक्स से डरा रखा है .ऐसे मैं कौन सच कहे ?
परन्तु फिर भी क्योंकि वित्त मंत्रि बार बार कह रहीं हैं हम एक बार फिर कहने का साहस कर सकते हैं .
सरकार की काले धन की पूरी मुहीम आर्थिक विकास के लिए व्यर्थ है . काले धन के नुक्सान तो जगत विदित हैं पर अर्थ व्यवस्था के लिए उसके बहुत फायदे थे . काले धन के निवेश के फैसले तुरंत होते हैं . फिल्म जगत सरीखे लोग खतरे ज्यादा उठा लेते हैं .काले धन को आदमी से अधिक आसानी से विलासिता की वस्तुओं पर खर्च कर देता था . नोट बंदी के बाद जो सारा पैसा बैंकों मैं जमा हो गया वह पूरा तो अभी मिला भी नहीं है . और जिसने उसे बैंकों व् अकाउंट वालों से सफ़ेद भी करवा लिया वह अब उसे आसानी से नहीं खर्च रहा है क्योंकि सफ़ेद करवाने मैं बहुत खर्च हो गया है . चुनावों के चंदे बहुत ज्यादा थे . सरकारी बाबुओं का रिश्वत का बाज़ार तो अब भी उतना ही गर्म है . इन सब के कारण काले धन को पकड़ने की मुहीम कोई फायदा नहीं पहुंचा सकती जैसा हम नोटबंदी मैं देख चुके हैं. इस लिए नोट बंदी का बुरा असर अभी तीन चार साल और रहेगा .सरकार को अब वास्तविकता को समझ कर ही अगला कदम उठाना चाहिए . इसी तरह बिना विकास के पुराने उद्योगपतिओं व् टैक्स दाताओं से बहुत ज्यादा टैक्स वसूलना महँगा पड़ गया क्योंकि हज़ारों अमीर लोग टैक्स आतंक से दुःखी होकर देश छोड़ कर चले गए जिससे देश को बहुत नुक्सान होगा .
जीएसटी मैं भी पुराने सेल्स टैक्स बचाने वाले बिचौलिए आ चुके हैं जो एक तिहाई या आधा जीएसटी बचने के फोर्मुले बेच रहे हैं . एक तो जीएसटी की प्रक्रिया अभी भी बहुत जटिल है और कुछ चीज़ों के रेट बहुत ज्यादा हैं . प्रक्रिया को सरल करना व् रुके पैसे को वापिस देना बहुत आवश्यक है .इसी तरह सरकार का खर्च कम दिखने के लिए बहुत बिल रोकना भी बेहद घातक है .रुका पैसा उद्योगपतियों को तुरंत वापिस करवाया जाय.
इसी तरह चुप रहने वाले मनमोहन व् खुले दिल के वाजपेयी की सरकार मैं अफसर नए काम मैं असफलता से डरते नहीं थे . उन्हें कानूनी संरक्षण भी प्राप्त था . जितने नए सुझावों पर मोदी जी ने काम किया है वह पुरानी सरकार के ही थे . बड़े लोग जैसे सैम पित्रोदा , नंदन नीलकेनी अपने विलक्षण सुझाव भी दे सकते थे . अब प्रधान मंत्रि के बिना कहे लोग चुप्पी ज्यादा पसंद करते हैं .प्रधान मंत्रि की देश भक्ति व् इमानदारी सर्वविदित है पर लोग उनसे डरते हैं . सरकारी बाबुओं को लम्बे समय तक डरा कर रखने से या सत्ता के बहुत केन्द्रीयकरण से नुक्सान ही ज्यादा होता है .
मध्यम वर्ग की क्रय शक्ति बहुत घट चुकी है . इसलिए तीस साल पुराने टैक्स स्लैब्स को बदलना बहुत आवश्यक है . स्टॉक मार्किट के लाभ को इंडेक्सिंग का बेनिफिट देकर सरकार बहुत कम खर्च मैं जनता की खर्चने लायक आय बढ़ा देगी . नए निवेश की प्रक्रिया राज्यों मैं आज भी दुरूह है और वहां बहुत ज्यादा रिश्वत मांगी जाती है . नए उद्योगों को पूर्णतः एकाकी केंद्र के संरक्षण मैं लाना बहुत लाभ दायक होगा . इसके लिए राज्यों को केंद्र शासित उद्योग पार्क लगाने के लिए कहना चाहिए . इसकी पहल बीजेपी वाले राज्यों से हो सकती है . इन क्षेत्रों मैं विदेशी पूंजी जमीन व् लेबर व् कंपनी कानूनों को भी हटाया जा सकता है .
अकसर चीन की अलोकतांत्रिक व्यवस्था को विकास के लिए लाभदायक बताया जाता है . परन्तु यदि जनता को चुनावी चंदों व् बाबुशाई से मुक्त कर दिया जाय और जापान सरीखी मित्रता पूर्ण सरकार हो तो भारत मैं भी चीन से ज्यादा विकास दर संभव है .बंगलादेश यह कर कर दिखा चुका है अब तो हमें उससे सीखने की जरूरत है .
आशा है की वित्त मंत्रि यथासंभव प्रयास करेंगी .
Arrogance or decisiveness? Nirmala Sitharaman chides accountant, sparks debate
Nirmala Sitharaman answer to an industry expert during a meeting over GST in Pue has sparked a debate on internet over her conduct.
Finance Minister Nirmala Sitharaman on Friday lashed out at a delegate at a meeting with businessmen, entrepreneurs, CAs and others in Pune.
In a video shared by the news agency ANI, Nirmala Sitharaman is chiding a delegate for “being harsh on GST”.
The man, representing the Cost Accountant Association from Pune, was addressing Nirmala Sitharaman over public concerns with regards to the Goods and Services Tax (GST) when the finance minister stopped him mid-sentence “to correct him”.
“We know with GST you want to [increase] ease of doing business, decrease complexity of the law, reduce corruption, litigation and smooth administration; and of course the government is interested in increasing the revenue,” the speaker said, adding that sometimes the suggestions give (by the industry) are not taken as such.
The delegate said he had five suggestions to give on the “real problem makers” in the GST. He also claimed that the finance minister was not likely to take the suggestions in the “right perspective” because the officers did not.
It is when he said that the government was being cursed by every stakeholder that Nirmala Sitharaman interrupted him.
GST cannot be dammend: Sitharaman
Nirmala Sitharaman argued that the GST law was passed after long deliberation and with the cooperation of various actors. “In this country after a long time, with so many parties in the parliament, with all state governments working together, we have come up with something. Suddenly, sorry to say this, but we can’t say what a God damn structure is this,” she said.
She said that the Goods and Services Tax, even if faulty, cannot be damned as it has been passed by Parliament and in all state assemblies.
“It might have flaws, it might probably give you difficulties but I am sorry, it’s the ‘kanoon’ of the country now,” the finance minister said while interacting with businessmen, entrepreneurs, CAs and others in Pune.
The finance minister said that rather than complaining, the various stakeholders in the GST structure must come up with solutions to increase compliance, “It’s been only two years. I wish it met with your expectations from Day 1. But I am sorry it is not so. But you all are a party to it, let’s own it up. On GST, I want all of us to give solutions for better compliance.”
In a second video shared by the ANI, Nirmala Sitharaman asked the Cost Accountant Association representative to come and meet her in New Delhi on October 23 with a delegation.
Arrogance or decisiveness?
Nirmala Sitharaman’s conduct at the meeting immediately came under opposition scanner as Karnataka Congress leader Srivatsa YB slammed her for being ” arrogant & condescending”.
“Even after more than two years, you haven’t been able to fix GST. Collections of GST are at an19 month low! And you reply arrogantly to businessmen who are facing issues daily. Ma’am, it’s high time you take a break and join anger management classes (sic),” the Congress leader said in a series of tweets.
Hitting back at the Congress, newly-elected Bengaluru South MP Tejasvi Surya said that it was firmness and decisiveness of the finance minister and not arrogance.
“I have met Smt @nsitharaman on multiple occasions & even argued when I haven’t been in agreement with her position. She has always been extremely polite, listened intently & explained her PoV. Let’s learn to respectfully disagree,” the BJP MP said in a tweet.
Shortly after the video was shared by the news agency ANI, Twitter exploded with posts backing or slamming the finance minister.
Nirmala Sitharaman clarifies
To clarify her stand, Nirmala Sitharaman’s office tweeted: “Few important things to note here: 1) Smt @nsitharaman asks the man to meet her with his delegation and put forward his suggestions regarding improving the GST framework. She also promises to do all she can to hear everyone’s views.
“2) The man asking the question himself says later that it was the perception regarding GST among some people which was causing issues and not GST per se.”
Her official handle also claimed that the agency has not shared the full video where the minister is seen hearing all his suggestions.
“@ANI has not shown where I have heard all his suggestions & there & then also gave him 23 Oct 19 for him & his delegation to meet me, as desired. #GST is no curse even if he has said so 3 times. Work is on, in response to suggestions being received as & when, to fine tune it,” another post said.
One Response to “आर्थिक मंदी : घमंडी बाबुओं व् दूकानदारों की सरकार नोट्बंदी व् जीएसटी के दुष्परिणाम क्यों नहीं समझ पा रही”