कुछ अमरीकी हथियारों के लिए रूस की पुरानी मित्रता खोना भारत के हित में नहीं है
रूस ने कथित रूप से एस ४०० मिसाइल रक्षा प्रणाली देने मैं तीन वर्षों का विलम्ब करने की बात की है क्योंकि भारत ने इसकी पहली किश्त देर से दी थी . यह घटना रूस के भारत के प्रति गुस्से का प्रदर्शन है. इसके पहले गोवा की २०१६ की ब्रिक्स मीटिंग में रूस ने सिर्फ पाकिस्तान को आतंकवादी देश कहने पर खुले आम आपत्ति जताई थी . गत वर्षों में रूस को भारत उतना महत्व नहीं दे रहा जितना हमारी लम्बी मित्रता के लिए अपेक्षित है .रूस ने हमें सुरक्षा परिषद् मैं सौ बार वीटो का प्रयोग कर बचाया है . कश्मीर पर रूस सदा भारत का समर्थन करता आया है हालाँकि हमारी अमरीका से घनिष्ता व् चीन के प्रभाव मैं गत वर्षों मैं वह पाकिस्तान की तरफ भी झुकने लगा है . रूस ने पकिस्तान को एम् आई – १७१ ई हेलीकाप्टर भी बेचें हैं और वह पकिस्तान मैं बड़े निवेश की बात सोच रहा है . रूस अब भारत पर इतना विश्वास नहीं कर पा रहा जितना पहले था . गोर्बाचोव से राष्ट्रपति पुटिन के आने तक रूस ने स्वयं भारत को कम महत्व देना शुरू कर दिया था क्योंकि उसे अमरीकी व् यूरोप की मदद की आशा थी . अंततः जब अमरीका व् यूरोप ने रूस को शत्रु ही माना और तब जा कर रूस को चीन व् भारत का महत्व दुबारा समझ आया . जब क्रिमीआ व् उक्रेन के कारण पश्चिमी देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिए तो रूस ने चीन से गैस की बड़ी डील कर ली . रूस व् चीन का व्यापार लगभग सौ बिलियन डॉलर का है जब की भारत व् रूस का व्यापार मात्र दस बिलियन डॉलर का है .कुछ डील तो मात्र अमरीका को खुश करने के लिए की गयी थीं जैसे राष्ट्रपति ओबामा के २०१० के दौरे पर ५.८ बिलीयन डॉलर की बोइंग ग्लोब मास्टर ट्रांसपोर्ट हवाई जहाज की डील . रूस के हवाई जहाज इससे कहीं सस्ते थे और उतने ही उपयोगी थे . रूस व् भारत का व्यापार बहुत चाह कर भी यह बढ़ नहीं रहा है . दूसरी और भारत व् अमरीका का व्यापार लगभग सौ बिलियन डॉलर का हो गया है जिसकी और बहुत बढ़ने की उम्मीद है . यह भारत के लिए बहुत आवश्यक है . विगत कुछ वर्षों मैं भारत ने अमरीका से सत्रह बिलियन डॉलर के हथियार खरीदे हैं . रूस को यह अच्छा नहीं लग रहा है .
रूस से भारतीय उदासीनता की पराकाष्ठा रक्षा मंत्रि निर्मला सीता रमण का 2018 की चेन्नई प्रदर्शनी में रूस के स्टाल पर न जाना था जब की वह इजराइल के स्टाल पर गयीं थी . प्रश्न है की रूस को क्यों भारत उदासीनता दिखा रहा है . अमरीका ने हमें कोई विशेष नयी टेक्नोलॉजी नहीं दी है . यहाँ तक की पोस्सिदोंन पनडुब्बी विनाशक हवाई जहाज तो दिए हैं पर उसके साथ के मिसाइल नहीं दिए . मिसाईलों के अभाव मैं ये हवाई जहाज मात्र पनडुब्बी टोही जहाज रह जाते हैं . ऐसे ही अमरीका हमें ऍफ़ ३५ जहाज नहीं दे रहा जब की जापान समेत अनेकों देशों को यह दिए हैं . भारत के लिए अब दो नावों पर चलना दूभर होता जा रहा है . भारत अब चीन से वास्तविक खतरा मान रहा है . रूस ने सुखोई ३५ , एस ४०० पहले चीन को दिए फिर भारत को . इसलिए चीन से युद्ध मैं भारत रूस की मदद की अपेक्षा नहीं रख रहा है विशेषतः जब रूस की चीन पर आर्थिक आश्रितता हमें डरा रही है. परन्तु रूस और चीन का 1969 में सीमा पर युद्ध भी हो चुका है . रूस भी चीन को भविष्य मैं अपने से बड़ी शक्ति के रूप मैं देख रहा है और इस लिए भारत का साथ भी नहीं छोड़ना चाहता है .
भारत को भी यह सोचना चाहिए की कभी तो उसे भी वैश्विक ताकत बनना होगा . उस दिन पश्चिम के देश उसे रूस व् चीन की तरह ही दुत्कारेंगे .मानवाधिकार , समलैगिकों को बराबरी , ईसाईयों को धर्म बदलने देने की आजादी इत्यादि अनेक मुद्दे हैं जिन मैं पश्चिम भारत आर्थिक प्रतिबंधों से घेरेगा . पाकिस्तान व् सऊदी अरेबिया ने बीस वर्षों तक अमरीका की सेवा की आज वह कहाँ है ? जिस दिन हमने हाईड्रोजन बम व् १५००० किलोमीटर की मिसाइल व् दूर के सटेलाईट गिराने वाली मिसाईल टेस्ट कीं उस दिन हमें अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना करना पडेगा . उस समय रूस ही हमारी मदद को आयेगा क्योंकि तब तक अति शक्तिशाली चीन उसके लिए भी खतरा बन जाएगा . यूरोप व् अमरीका मैं चीन से लड़ने की इच्छा शक्ति व् ताकत का अभाव है . उसे हमें स्वयं ही झेलना होगा . विश्व चीन के विरुद्ध हमारे कंधे पर से बन्दूक चलाना चाहता है !हमें रूस की तब आवश्यकता पड़ेगी .
अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प के २४-२५ फरवरी के दौरे पर अमरीकी १.९ बिलियन डॉलर की मिस्सईल शील्ड ओबामा के दौरे के समय की गयी ग्लोब मास्टर की डील की तरह ही अनुपयोगी है . रूस का एस ५०० रक्षा प्रणाली भी आने वाली है . उसके आते ही चीन वह भी तुरंत खरीद लेगा और भारत के लिए बड़ा खतरा बन जाएगा . अमरीका की मिसईल रक्षा प्रणाली इतनी अच्छी नहीं है और बेहद मंहगी है . इसके अलावा इससे रूस के हितों को गहरी चोट पहुंचेगी .भारत ने अभी तक रूस के हेलीकाप्टर कमोव का समझाता साइन नहीं किया है जो की २०१६ मैं माना गया था .इसके अलावा रूस की राय बरेली की कलाश्निकोव राइफल की फैक्ट्री से डील नहीं हुयी है और ७२००० अमरीकी असाल्ट राइफल खरीद लीं हैं जिससे भी रूस बहुत नाराज है . रूस ने जिस तरह हमें परमाणु पनडुब्बी दी है और अन्तरिक्ष मैं सहयोग के लिए तैयार है वह कोई पश्चिमी देश नहीं देगा .जब भविष्य में हम पर प्रतिबन्ध लगेंगे तो रूस को छोड़ कोई हमारी मदद को नहीं आयेगा .हर किसी की तरह रूस भी हथियारों में हमसे फायदा लेता है पर वह हमारा सबसे अधिक विश्वसनीय मित्र है .
भारत को रूस की मित्रता को कम नहीं आंकना चाहिए और अपने ही हित में रूस व् अमरीकी हितों की बराबर रक्षा करनी चाहिए .
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