सावधान देशद्रोही मीडिया का दुष्प्रचार फिर आरम्भ हो गया है !
देश की जनता को एक बार लगा था की इस चुनाव मैं पड़ी लात से शायद विदेशियों से प्रेरित देश द्रोही मीडिया विशेषकर अंग्रेजी मीडिया को ठीक सबक मिल गया होगा . उन्होंने दस वर्ष तक मोदी के गोधरा काण्ड को दुहा और समझ आ गया की बैल को कितना भी दुहो वह दूध नहीं दे सकता .पर या तो पैसे के लालच मैं या आने वाले राज्यों के चुनावों के चलते अंग्रेज़ी मीडिया फिर अपने दुष्प्रचार मैं लग गया है . क्या आज तक किसी ने नयी सरकार का साप्ताहिक मुल्यांक सूना है ? इतने बड़े देश की समस्यायों को सुनने व् पूरी तरह जानने मैं चार महीने तो लग ही जाते हैं . फिर उनका समाधान सोचने व् क्रियान्वन मैं एक साल लग जाता है . एक से डेढ़ साल बाद कहीं परिणाम आने शुरू होते हैं . हम सब जिन्होंने प्रशासनिक पदों पर काम किया है जानते हैं की नीतिगत फैसलों से डेढ़ साल; से पहले कोई परिणाम नहीं मिलता. फिर कुछ समस्याएं ऐसी होती हैं जिनके समाधान विपरीत होतें हैं . जैसे मंगाई रोकने से विकास व् नौकरियां भी कम हो जातीं है . इनमें से किसी एक को पहले चुनना होगा . विकास ज्यादा लम्बी प्रक्रिया है . एक ही साधे सब साढ़े सब साधे सब जाय . देश प्रेमी जानते हैं की किसी सरकार के कठिन फैसले लेने की क्षमता जनता के विश्वास व् समर्थन पर टिकी होती है . इस लिए इनका बना रहना आवश्यक है .
किन्तु टी वी चैनल हैं की मानते ही नहीं !
वह एक महीने मैं महंगाई न रोक पाने की बात करने लगे हैं मानों मोदी सरकार के पास कोई जादू की छड़ी है या अलादीन का चिराग है .
देश की जनता को एक बार लगा था की इस चुनाव मैं पड़ी लात से शायद विदेशियों से प्रेरित देश द्रोही मीडिया विशेषकर अंग्रेजी मीडिया को ठीक सबक मिल गया होगा . उन्होंने दस वर्ष तक मोदी के गोधरा काण्ड को दुहा और समझ आ गया की बैल को कितना भी दुहो वह दूध नहीं दे सकता .पर या तो पैसे के लालच मैं या आने वाले राज्यों के चुनावों के चलते अंग्रेज़ी मीडिया फिर अपने दुष्प्रचार मैं लग गया है . क्या आज तक किसी ने नयी सरकार का साप्ताहिक मुल्यांक सूना है ? इतने बड़े देश की समस्यायों को सुनने व् पूरी तरह जानने मैं चार महीने तो लग ही जाते हैं . फिर उनका समाधान सोचने व् क्रियान्वन मैं एक साल लग जाता है . एक से डेढ़ साल बाद कहीं परिणाम आने शुरू होते हैं . हम सब जिन्होंने प्रशासनिक पदों पर काम किया है जानते हैं की नीतिगत फैसलों से डेढ़ साल; से पहले कोई परिणाम नहीं मिलता. फिर कुछ समस्याएं ऐसी होती हैं जिनके समाधान विपरीत होतें हैं . जैसे मंगाई रोकने से विकास व् नौकरियां भी कम हो जातीं है . इनमें से किसी एक को पहले चुनना होगा . विकास ज्यादा लम्बी प्रक्रिया है . एक ही साधे सब साढ़े सब साधे सब जाय . देश प्रेमी जानते हैं की किसी सरकार के कठिन फैसले लेने की क्षमता जनता के विश्वास व् समर्थन पर टिकी होती है . इस लिए इनका बना रहना आवश्यक है .
किन्तु टी वी चैनल हैं की मानते ही नहीं !
वह एक महीने मैं महंगाई न रोक पाने की बात करने लगे हैं मानों मोदी सरकार के पास कोई जादू की छड़ी है या अलादीन का चिराग है .
जिस देश मैं अपराधों की भरमार हो और ३२००० हत्याएं व् ३३००० बलात्कार सालाना होते हों किसी दिन भी किसी हत्या या बलात्कार पर संवेदनहीनता और नारी सुरक्षा की विफलता का गाना गया जा सकता है . मंहगाई तो मंनरेगा बेतहाशा फिजूलखर्ची से आयी है .उसे फिजूलखर्ची रोके बिना ख़तम करना संभव नहीं है . इसे रोकने के लिए व्यापक जन अभियान की जरूरत है जो एक दम नहीं शुरू किया जा सकता . मीडिया का काम देश की जनता को सही जानकारी देने का है . पर विदेशियों के हाथ बिका भारतीय मीडिया देश मैं फिर निराशा का वातावरण बनाना चाहता है . उसका उद्देश्य मोदी सरकार को इतनी जल्दी विफल साबित करना है . क्योंकि वह दो वर्षों मैं देश तो बदलना शरू करही देगी. इसलिए उससे पहले प्रक्रिया को शुरू ही मत होने दो .
पर मोदी सरकार को भी इसे गंभीरता से लेना होगा व् जनता तक अपनी बात रोज़ पहूँचानी होगी विशेषतः कठिन फैसलों के कारणों को जनता को अच्छी तरह बताना होगा . अब तक सरकार चुप है पर विदेशियों के पुनः सक्रीय हो जाने से उसे पहले की तरह ही सक्रीय होना होगा .
अच्छे दिन तो आयेंगे ही पर तब तक आशा व् जनसमर्थन का ज़िंदा रहना भी आवश्यक है .
Rajiv Upadhyay
पर मोदी सरकार को भी इसे गंभीरता से लेना होगा व् जनता तक अपनी बात रोज़ पहूँचानी होगी विशेषतः कठिन फैसलों के कारणों को जनता को अच्छी तरह बताना होगा . अब तक सरकार चुप है पर विदेशियों के पुनः सक्रीय हो जाने से उसे पहले की तरह ही सक्रीय होना होगा .
अच्छे दिन तो आयेंगे ही पर तब तक आशा व् जनसमर्थन का ज़िंदा रहना भी आवश्यक है .
Rajiv Upadhyay
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