बॉलीवुड जिहाद शायद आई एस आई व् दावूद इब्राहीम का नया पैंतरा है .

बॉलीवुड जिहाद शायद आई एस आई व् दावूद इब्राहीम का नया पैंतरा है .
 सिंग्हम २
एक समय था जब कई महान कलाकारों ने  जैसे दिलीप कुमार ने अपना फ़िल्मी
नाम अपने असली नाम युसूफ से अलग रख लिया जिससे भारत मैं उन्हें सम्मान मिल सके . यही मधुबाला व् मीना कुमारी ने किया . फिर एक युग आया जिसमें लोगों को समझ आ गया की हिन्दू उदार है और उन्होंने अपना नाम बदलना आवश्यक नहीं समझा . स्वतंत्रता के समय से ही कला मैं अनेक मुसलमान आगे थे . परन्तु उनका  सम्मान इस लिए भी था की आज तक नौशाद का संगीत , रफ़ी की आवाज़ व् शकील बुदयुनी के बोल वाला ‘ मन तडपत हरी दर्शन को आज ‘ से अच्छा भजन कोई नहीं बना पाया . वह कलाकार हिन्दू जीवन का आदर करते थे और उसकी गहराई तक समझते थे .
पर देशभक्ति की फिल्में भारत के प्रति कोई अनादर नहीं व्यक्त करती थीं . फिल्म ग़दर या वीर जारा मैं पाकिस्तान  का चित्रण वास्तविक भावनाओं को प्रदर्शित  करता है .ऐसे ही अन्य  फिल्में बनती थी . महाभारत मैं कुंती नाजनीन है कोई नहीं बता सकता. फिल्म ब्लैक वेनस डे मैं नस्रीदीन शाह ने आतंकवाद का बड़े सहस से खुला विरोध किया. सलमान खान की एक था टाइगर मैं भी पाकिस्तानी आई एस आई को जोकर सा ही चित्रित किया गया था .
 समय बदलता रहा और सिनेमा मैं ब्लैक के पैसे का वर्चस्व इतना बढ़ गया की वास्तव मैं डावूद इब्राहीम युग का प्रारंभ हो गया . मंदाकनी व् मोनिका बेदी  दवूद के गुर्गों के साथ फंस के अपना जीवन गंवा बैठीं .
दवूद सरीखों का साहस और बढ़ गया . उन्हें महेश भट्ट सरीखों का साथ मिल आया .
फिल्म ‘ माई नाम इज  खान ‘  एक लैंडमार्क फिल्म थी जिसमें इस्लामिक भावनाओं का अमरीका विरोधी प्रदर्शन खुल के किया . उस फिल्म मैं आतंकवाद का जिम्मा मुसलमानों को झूठे केस मैं फंसाने पर मढ  दिया.शिव सेना ने रोकने की कोशिश की पर कांग्रेस सरकार के चलते वह असफल रही . शिव सेना की असफलता से  उसकी हिम्मत और बढ़ गयी . गवली के जेल जाने से मुंबई पूरी तरह दवूद के कब्ज़े मैं चली गयी.
इस के बाद फिल्मों मैं हिदू भावनाओं को आहत करने  का प्रचलन इतना बढ़ गया की ‘ओह् माई  गोड ‘ , स्वयं भगवान् कृष्ण का चित्रण अत्यंत फूअड व् आपत्ती जनक ढंग से किया गया . सुनते हैं आमिर खान ने ‘ पीके ‘ फिल्म की एक शूटिंग मैं शिवजी को रिक्शा खींचते शूट कर लिया .परेश रावल ने ‘एक मोटे पेट वाला कृष्णा देना’ जैसे संवाद कांजीलाल के रोल मैं बोले व् कमंडल से तीर्थ यात्रियों को शराब पिलाई .
फिल्मों के खलनायक   साधू होने लगे . फिल्म सिंग्हम रिटर्न का देश व्यापी विरोध हो रहा है क्योंकि उसमें हिन्दू ड्रम गुरुओं पर लांछन लगाये हैं .इसके ट्रेलर मैं हिन्दू पोलिस ऑफिसर को मस्जिद मैं नमाज़ दिखाया  पढता गया है व् बहुत अनादरपूर्ण भाषा का प्रयोग किया गया है.
सारी हदें   तो अब पार हो गयीं जब एक फिल्म मैं एक हिन्दू पोलिस अफसर हिन्दू आतंकवादियों को बचाने के लिए मुसलमान पर झूटा दोष मढ  देता है . पोलिस से भी मुसलमानों का विश्वास हटाने का षड्यंत्र है.  ‘ रामलीला ‘ फिल्म का नाम कुछ और  भी हो सकता था .  शाहरुख़ की फिल्म ‘ मैं हूँ न ‘   मैं भी पाकिस्तान को ज्यादा अच्छा दिखाया है.हर तीसरी फिल्म मैं कुछ न कुछ हिन्दू विरोधी होता है क्योंकि फिल्म दवूद सरीखों के ब्लैक के पैसे से बनती  है.
इस बदलाव का कारण   .कुछ तो कांग्रेस सरकार को जाता है जिसने सदा तुष्टिकरण की नीती अपनाई परन्तु वास्तव मैं यह एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा प्रतीत होता है .
पाकिस्तान बहुत समय से अपने खलनायक रोले से चिढ़ता रहा है . क्योंकि ‘गांधी’ से ‘वीर जारा ‘ तक भारतीय फिल्मों मैं पाकिस्तान का चित्रण खलनायक देश के रूप मैं ही होता रहा है और हिंदी फिल्में अब अंतर्राष्ट्रीय हो गयी हैं .
 इसलिए दवूद सरीखे लोगों से मिलके भारतीय फिल्मों को एक नयी  ‘ बॉलीवुड जिहाद’  का हिस्सा बना लिया है .फिल्मों को भारत व् विश्व  मैं हिन्दुओं के अनादर व् देश द्रोह फैलाने का माध्यम बना लिया है .
देश दिलीप कुमार के नाम बदलने से शाह रुख खान की ‘माई नाम इज खान ‘ तक एक जीवन काल मैं कितना बदल गया हैइसका  किसी को अंदेशा नहीं था .
इस अवांछनीय बदलाव का कारण   सरकार की तुष्टिकरण की  नीती व् हिन्दुओं का असंघटित व् अपने धर्म के अपमान धर्म के प्रति  उदासीन होना ही है जिसे तुरंत बदलने की आवश्यकता है .
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