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शिक्षा व् औद्योगिक विकास में स्थिरता व् जड़ता : देश बड़े विचारकों के अभाव में रेंग रहा है ; चाणक्य बिना चन्द्रगुप्त असरहीन

शिक्षा व् औद्योगिक विकास में स्थिरता व् जड़ता : देश बड़े विचारकों के अभाव में रेंग रहा है ; चाणक्य बिना चन्द्रगुप्त असरहीन

RKURajiv Upadhyay

तीन साल किसी नीति की गहन समीक्षा के लिए काफी होते हैं .यदि पिछले तीन वर्षों को देखें तो बिजली व् सड़कों की उन्नति तो दीखती है परन्तु औद्योगिक विकास व् शिक्षा मैं मानों लकवा मार गया हो और इन क्षेत्रों मैं एक दिशाहीन जड़ता आ गया गयी है . अब साफ़ चुका है की देश मैं बड़े चिंतकों का अभाव है जो इन क्षेत्रों को अभूत पूर्व प्रगति की ओर ले जा सकें . इनको छोटी छोटी तुरंत परिणाम दिखाने की चाहत इनके विकास के लिए आवश्यक बड़े चिंतन को रोक रही है .सरकारी बाबु व् मंत्री तीन साल मैं कोई नया विचार देश के समक्ष नहीं रख सके . यहाँ तक की पूर्व शिक्षा मंत्री कपिल सिब्बल द्वारा जो परीक्षाओं को हटा कर माध्यमिक शिक्षा का सत्यानाश किया था उसे भी पूरी तरह से ठीक नहीं कर सके है . भारत की उच्च शिक्षा के स्तर को विश्व स्तरीय बनाने के लिए जिस दिमागी क्षमता की आवश्यकता है वह अक्षम मंत्रियों से आशा करना व्यर्थ है . बूढ़े बाबु तो देश की दिशा नहीं बदल सकते .उन्होंने तो जो तीस वर्षों मैं सीखा है उसी को नए तरीके से पेश कर सकते हैं . यही शिक्षा के क्षेत्र मैं हो रहा है . एक दिशाहीन जड़ता है जिसे स्थिरता का नाम दे कर अपनी क्रियात्मक नवीन चिंतन की क्षमता की कमी को छुपाया जा रहा है .

देश मैं सृजनता का अभाव है . शिक्षा रट्टू व् किताबी है . कोचिंग हमारे परीक्षाओं को प्रतिभा शाली नवयुवकों से दूर ले जा रही है .स्किल टेस्टिंग दोषपूर्ण है इसलिए हमारे कारीगर निचले स्तर के हैं .हमारी यूनिवर्सिटी अधिकांशतः निम्न स्तर की हैं . इन सब को कौन ठीक करेगा और कब करेगा . शिक्षा को विकास के लिए राजनीती से अलग करना होगा और एक बड़े व् अनुभवी प्रखर चिन्तक को ऊपर बिठाना होगा जिस का अनुभव देश की शिक्षा को दिशा दे सके .

औद्योगिक विकास की स्थिरता तो बहुत दुर्भाग्य पूर्ण है .इसमें तो दिग्गज चन्द्रगुप्त तो शीर्ष्स्थ हैं जो कुछ साल पहले तक गुजरात के जादूगर कहलाते थे . तो फिर उद्योग क्यों तीन साल से डूबे हुए हैं . सच कहने से लोग डर रहे हैं . औद्योगिक विकास पर चुनावी राजनीती व् बाबुई अहंकार हावी हो गया है .बाबुओं ने जिस तरह देश की औद्योगिक प्रगति का बंटाधार किया है वह अत्यंत शर्मनाक व् खेदजनक है. चीन समक्ष औद्योगिक प्रगति के लिए चीन सरीखे बड़े फैसले लेने होंगे . बड़े फैसलों मैं बड़ी गलतियां भी होंगी . जिस तरह देश को इमानदारी की चद्दर पहनाई उसने गंदगी छुपा तो दी पर दूर करना उससे संभव नहीं है . इस बात को देश को समझना होगा की छत पर खड़े हो कर इमानदारी का राग अलापने से इमानदारी नहीं आती है पर खतरे से खेलने का ज़ज्बा व् हिम्मत जरूर टूट कर भाग जाती है .सारी नौकरशाही सिर्फ समय बिता रही है . प्रधान मंत्री ने हिम्मत दिखाई और लाहोर चले गए . उन्होंने हिम्मत दिखाई और जरूरत पड़ने पर पर सीमा पार हमले भी होने दिए . उस हिम्मत के सुखद परिणाम भी आये .

औद्योगिक प्रगति को चीन समक्ष करने क्षेत्र मैं देश ने क्या हिम्मत दिखाई ?

जब बोये पेड़ बबूल के तो आम कहाँ से खाय !

जो बाबु अपनी पर्छाइयों से डर कर काम कर रहे हों वह क्या ख़ाक उन्नती करायेंगे . हाँ चुनाव जीतने के समाजवादी हथकंडे जो इंदिरा गाँधी जी के समय चल चुके थे उन्हीं को नयी बोतल मैं डाल कर परोस दिया है . जी एस टी या नोट बंदी से औद्योगिक प्रगति तो नहीं होगी . इनसे हमारी उद्योगों की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों मैं बहुत कमी नहीं आयेगी न ही गुणवत्ता बढ़ेगी . अभी तक किसी बड़े परिवर्तन को नहीं लागू किया गया है और उद्योगों की मुश्किलें वैसी की वैसी हैं . भेड़ें कम गदडीये ज्यादा हैं . न्यायालयों ने जिस तरह डीजल व् अन्य कारों के उद्योगों को प्रदुषण व् जनहित के नाम पर जिस तरह बर्बाद किया है उसकी विश्व मैं कोई मिसाल नहीं है .नीतियाँ बनाना न्यायलयों का काम नहीं होता उनका अर्थशास्त्र का इतना गहन ज्ञान नहीं होता. जनहित याचिकाएं उद्योग हित को नहीं देखतीं .यदि डीजल कार बंद करनी हैं तो सरकार को समय सीमा निर्धारण कर उद्योगों का घाटा बचाना चाहिए . पर उद्योगों का तो कोई माई बाप है ही नहीं वह तो सिर्फ दुधारी गाय हैं . यदि सरकार गैस नहीं दिला पाई तो झूठे दिये आश्वासनों के कीमत चुकाए गैस से बिजली के कारखानों पर निवेश करने वाले क्यों हर्जाना भरें ? गैस टरबाइन मिटटी हो गए .सरकार इमानदार दीखने के लिए उद्योगपतियों से जो दूरी दिखाना चाह रही है उसने नौकर शाही विशेषतः टैक्स विभाग को को उच्छ्रिन्कल कर दिया है .

सरकार को यदि भारतीय उद्योगों को बचाना है तो यह लुका छुपी अब बंद करनी होगी और देश को औद्योगिक प्रगति के लिए आवश्यक कदम सहने के लिए तैयार करना होगा . पूँजी निवेश वहीँ होगा जहां लाभ होगा . भारत को पूँजी निवेश को लाभदायक बनाना होगा . इतनी सी बात तो सब जानते हैं पर उस को मानने से डर रहे हैं .

इसलिए देश को अगले दो वर्षों मैं पूँजी निवेश को लाभदायक बनाने पर बड़े समाधानों पर चिंतन कर अमल करना होगा .

अब चन्द्रगुप्त को भारत मैं चीन समक्ष औद्योगिक विकास करने के लिए नए चाणक्य की आवश्यकता है .

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