Divorce Rate in India Increasing HT: पश्चिम सरीखा नारी मुक्ति आन्दोलन भारत को बर्बाद कर देगा – राजीव उपाध्याय
अन्तः पश्चिमसे एड्स सरीखी तलाक की बीमारी भारत मैं आ गयी जिसके लिए हमारी पश्चिमकी संस्कृति को अन्धाधुन्ध अपनाने की ललक जिम्मेवार है .पश्चिम के नारी मुक्ति आन्दोलन के अन्धानुकरण ने भारतीय मा बापों को भी दिग्भ्रमित कर दिया है .अब किसी लड़की को स्कूल मैं यह नहीं पढ़ाया जा रहा है उसका संतान व् परिवार के प्रति क्या दायित्व है . गृह विज्ञान जैसे विषय तो अब गायब हो गए परन्तु मा बाप भी लड़की को कॉलेज भेजने को ही सर्वस्व मानने लगे हैं . उनके मीडिया मैं बड़ी संख्या मैं आने से उनके उच्छ्रिन्कल मंतव्य ही अखबारों मैं छाये रहते है . राजनीतिग्य उनको नया वोट बैंक बना रहे हैं .इसलिए खूब जो शोर से नारी सशक्तिकरण की बातें करते हैं . नारी कब सशक्त नहीं थी .द्रोपदी खली केश खुले रख कर कितनी सशक्त थी ? घर का आधार नारी ही थी . पैसा कमाना पुरुष का काम था और घर चलाना नारी का . इसको तोड़ कर कोई वैकल्पिक विधा पश्चिमी समाज आज तक नहीं बना पाया. अमरीका मैं अठ्ठारह साल की उम्र तक आधे बच्चे अपने मा बाप ओ साथ नहीं देख पाते क्योंकि अमरीका मैं आज सौ मैं से पचास शादियाँ टूट जाती हैं . जो जीवन की सबसे सुखद वास्तु पारिवारिक ख़ुशी थी उस हीरे को हम कौड़ियों के भाव बेच रहे हैं . वैकल्पिक परिवार न बना है न बनेगा . बल्कि पश्चिमी देश अपने बच्चों के बिना अरब राष्ट्रों के विस्थापितों को देश सौंप चुके हैं .भारत भी उसी तरफ अग्रसर हो रहा है .
आज आवश्यकता है की हम पुनर्विचार करें की क्या हम अपने समाज को इस अमरीकी रोग से ग्रस्त करना चाहते हैं ? अभी समय है . हमें साहस कर नारी मुक्ति आन्दोलन के इस भूत को देश से निकाल देना चाहिए व् अपने समाज की सबसे बड़ी ख़ुशी परिवार की दीर्घायु को बचाना चाहिए . जो अजीबो गरीब एक तरफ़ा कानून बनाये हैं उनको दुबारा देखें . लड़कियों के पारम्परिक संस्कार को दकियानूसी कहना बंद करें .उनको गृह कार्य के लिए तैयार करें .उन्हें सहिष्णुता व् परिवार मैं मिल जल के रहना सिखाएं. यह सोचना की भारत यदि पश्चिम की रह पर चलेगा तो पश्चिम के दुष्परिणाम नहीं आयेंगे संभव नहीं है. जो
बोओगो वाही तो काटोगे . आज भारतीय समाज मैं तलाक की दर पहले से तेरह गुनी बढ़ गयी है . इसके खतरे को समझ कर नारी मुक्ति के गानों को बंद करना परम आवश्यक है . बुद्धिमान व् परिवार मैं सुखी नारियों को आगे आ कर इन बल्कतियों के दुष्प्रचार को समाप्त करना चाहिये .
Divorce Rate in India Increasing
This is an unusual trend in a country where the divorce rate was just 1 in 1,000 ten years ago, and is still a relatively low 13 per 1,000 – as compared to the US average of 500 per 1,000. While India has no central or even state-wise registry of divorce data, family court officials say the number of divorce applications has doubled and even tripled in cities such as Mumbai, Delhi, Bengaluru, Kolkata and Lucknow over the past five years
The reasons are
the waning influence of the family and joint family; the growing psychological and financial independence of women; late marriages resulting in a greater reluctance to compromise or change set ways and lifestyles.
These are some facts about the increasing divorce rate in India
1,667 cases of divorce were filed in Mumbai in 2014(till November 30, up from 5245 cases in 2010
8347 Divorce cases were filed in Kolkata in 2014 ( till November 30), a 350% increase from the 2,388 divorce cases in 2003
About 2000 Divorce Cases were filed in the Lucknow family court in 2014. Of these about 900 were filed by young couples married less than a year. In 2009, the number of the cases filed by young couples married less than a year was 300.
3 more family courts were opened in Bengaluru in 2013, to cater to demand to the total number increasing to six. There are 8,600 cases pending in the courts and 500 new cases are added every year.
Source: Hindustan Times
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