2050 के समृद्ध भारत की अंतर्राष्ट्रीय छद्म युद्ध व् प्रपंचों से रक्षा
यह आशा की जा रही है की सन २०५० मैं जब भारत अपने गणतंत्र की शताब्दी मना रहा होगा तो वह विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था बन चुका होगा .भारत का सकल घरेलु उत्पादन पूरे यूरोप से अधिक होगा . चीन विश्व अर्थ व्यवस्था का बीस प्रतिशत हो कर सबसे आगे होगा . भारत प्राइस वाटर हाउस कूपर के अनुसार दूसरा देश होगा जिसकी भागीदारी पंद्रह प्रतिशत होगी .और पूरेयूरोपे की भागीदारी नौ प्रतिशत मात्र रह जायेगी . हालाँकि अधिकाँश अन्य रिपोर्ट भारत को अमरीका के पीछे ही प्रदर्शित करती हैं . हमारी डेढ़ से करोड़ की आबादी की प्रति व्यक्ति आय तो शायद आज के रूस के बराबर ही होगी और गरीबी भी पूरी तरह समाप्त नहीं हुई होगी . भारत के लिए समृद्धि कोई नयी बात नहीं है . औरंगजेब के काल तक हम सारे विश्व की अर्थव्यवस्था का चौथा हिस्सा थे .
परन्तु इतिहास गवाह है की हमारी समृद्धि ही हमारी ऊपर हुए अनेकों आक्रमणों का कारण बनी .मुहम्मद बिन कासिम के समय तो हम विश्व की अर्थ व्यवस्था का एक तिहाई होते थे . इसी लिए गौरी, गजनी, बाबर , नादिरशाह , अब्दाली व् अँगरेज़ सदैव हमारी और खींचे चले आये .
२०५० तक यूरोप की ग्रीस स्पेन जैसे अनेकों देशों की अर्थ व्यवस्थाएं चरमरा रही होंगी . ऐसे मैं भारत की समृद्धि अनेकों की आँखों मैं लालच उत्पन्न कर सकती है . पर भारत की सैन्य शक्ति के चलते कोई देश २०३० के बाद भारत पर सीधा आक्रमण नहीं करेगा .परन्तु क्लाइव की तरह छद्म युद्ध करके हमें परास्त कर टुकड़ों में बाँटने की साज़िश चलती रहेगी .
इन्हीं संभावनाओं को चिह्नित कर आकलन करने के लिए पेट्रियट फोरम ने २० जनवरी को दिल्ली में एक सेमिनार का आयोजन किया था . जिसमें श्री के एन गोविन्दचार्या , डा. भरत कर्नाड , राजीव उपाध्याय व् शुभंकर बासु ने अपने विचारों व् आकलन को प्रस्तुत किया . इनमें भारत की वर्तमान कमजोरियों व् विश्व की कुछ सामयिक घटनाओं का मूल्याङ्कन किया गया .
निम्न लिंक पर क्लीक कर उन भाषणों को सुन कर पूर्ण विषय को समझा जा सकता है.