२०१९ चुनाव – लंका विजय पश्चात रामराज्य की स्थापना की चुनौती : भारतीय समाज में आदर्शों की पुनर्स्थापना और उन्हें प्रेरणा स्रोत बनाना कहीं बड़ी चुनौती है : कैसे करें ?
२०१९ के चुनाव परिणामों ने राष्ट्र व् सरकार को एक नयी चुनौती दी है . अब सरकार के पास कोई बहाना नहीं बचेगा .शीघ्र ही लोक सभा व् राज्य सभा में बीजेपी का बहुमत हो जाएगा . इस प्रकार नेहरु जी व् इंदिरा गाँधी जी के समान सरकार पूर्ण रूप से शक्तिशाली हो जायेगी . हो सकता है की बाद में कुछ चुनावों के पश्चात राज्य सभा मे यह बहुमत कम भी हो जाए .
१९४७ से नेहरु जी ने जैसा देश बनाना चाहा वैसा बनाया . निस्संदेह शिक्षा , विज्ञान व् टेक्नोलॉजी की प्रगति में उनका बहुत योगदान है . देश के प्रजातांत्रिक ढांचे को मजबूत करने में भी उनका बहुत योगदान है . इंदिराजी ने बांग्लादेश , सिक्किम , टेलीविज़न के विस्तार व् परमाणु , अंतरिक्ष व् मिसाइल के क्षेत्र मैं देश को बहुत सक्षम बनाया . वाजपेयी जी ने मोबाइल, सड़क व् इंफ्रास्ट्रक्चर मैं बहुत आगे बढाया . राजीव गाँधी जी के समय में कंप्यूटर और औद्योगिक प्रगति हुयी . परन्तु पिछले सत्तर वर्षों में विशेषतः लाल बहादुर जी की मृत्यु के उपरान्त देश में आदर्श हीनता बहुत बढ़ गयी . विशेषतः यूपीए के शासन के दौरान आर्थिक प्रगति के बावजूद कुछ ‘लूट मिले सो लूट ’ की स्थिती बन गयी थी .
भारत की आत्मा , जिस में राजा हरीशचंद्र का सत्य प्रेम, दधिची का त्याग , राजा मोरध्वज का बलिदान , राम का पिता के दिए वचन को इतने त्याग से निभाना और कर्ण की दान वीरता हुआ करती थी, वह असीमित स्वार्थ , लालच व् आदर्श हीनता के एक कुत्सित नागपाश में बन्ध गयी थी . देश मैं कोई भी आदर्श व् प्रेरणाप्रद व्यक्तित्व नहीं था . हमारे यहाँ आदर्शों का स्रोत धर्म था जिसे तथा कथित छद्म धर्म निरपेक्षता की बीमारी ने समाप्त कर दिया .
तो नयी सरकार पिछली सरकारों से किस तरह बेहतर है ? क्या चुनावी लंका विजय के उपरान्त यह देश में राम राज्य की स्थापना में सक्षम है ? देश को एक वैरागी प्रधान मंत्री से ऐसी आशा रखने का अधिकार तो है .
इस लिए यह आवश्यक है की इस समय का उपयोग देश मैं लगभग लुप्त हुए आदर्शों को पुनर्स्थापित करने के लिए भी उपयोग किया जाय . इसके अलावा सत्तर वर्षों से जिस आदर्शवादी व् राष्ट्रवादी सरकार के जिस विकल्प की प्रतीक्षा थी उसे पूरा करने का समय आ गया है .
आज भी भारत की मूल भूत समस्या आर्थिक, वैज्ञानिक व् तकनीकी पिछड़ेपन की है . यह सच है कि जब तक हर भारत वासी को आवश्यक न्यूनतम रोटी कपड़ा और मकान नहीं मिल जाता तब तक कोई सरकार सार्थक नहीं हो सकती .परन्तु जिस तरह बच्चे को भोजन व् भविष्य के लिए शिक्षा देना दोनों बराबर आवश्यक हें उसी तरह देश का आर्थिक विकास व् गरीबी उन्मूलन तथा नैतिक आदर्शों का पुनर्स्थापन दोनों बराबर आवश्यक हें .
प्रश्न है कि कैसे इन आदर्शों को पुनर्स्थापित किया जाय ? क्या इन आदर्शों से भारतीय मानस की जीवन की मूल भूत समस्यायों का बेहतर समाधान निकल सकता है ? क्या देश फिर सोने की चिड़िया बन सकता है .इन प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए इतिहास को समझने की आवश्यकता है .
१९४७ में स्वतंत्रता संग्राम की कसौटी से निकला हुआ हर बड़ा नेता कुंदन था . परन्तु जब बख्शी गुलाम मुहम्मद व् प्रताप सिंह कैरों का भ्रष्टाचार उजागर हुआ तो नेहरु जी कठोर दंड देने की अग्नि परीक्षा में फ़ैल हो गए . उनकी बेटी इंदिरा गाँधी को जब सिंडिकेट के नेताओं व् कुछ उद्योगपतियों ने पैसे के लिए मोहताज़ करना चाहा तो उन्होंने रक्षार्थ देश के रक्षा सौदों मैं रिश्वत की परम्परा शुरू की जो बाद में एक बड़ी बीमारी बन गयी जो उनके पुत्र राजीव की सरकार को भी डुबो गयी .इसी तरह बॉम्बे डाईंग के मुकाबले धीरू भाई अम्बानी के जहाज़ को ड्यूटी में एक दिन की छूट देकर एक डंके की चोट पर खुले भ्रष्टाचार कि परम्परा शुरू करी . उनके पुत्र संजय गाँधी ने अनैतिकता की पराकाष्ठा कर दी .प्रधान मंत्री नरसिम्हा राव पुत्रमोह मैं फंस कर लखु भाई व् हर्षद मेहता जैसे छोटे व्यापारियों के आरोपों की गिरफ्त में आ गए और भारत की अर्थव्यवस्था को सुधरने के बावजूद जीवन के अंतिम काल में बहुत बदनाम हुए .इसी समय जे एम् एम् काण्ड से राजनीती मे संसद के वोट के लिए रिश्वत का प्रारम्भ हुआ जो रक्षा सौदों के भ्रष्टाचार की तरह लम्बी बीमारी बन गया .सोनिया काल में जनता को वोट के लिए व्यापक रूप से पैसे बाँटने की शुरुआत ने चुनावी खर्चे को आसमान पर पहुंचा दिया जिसके चलते सत्ता का दुरूपयोग व् खुला भ्रष्टाचार हर पार्टी की आवश्यकता बन गया . डाकू फूलन देवी को टिकट दे कर मुलायम सिंह ने व् सरकारी तिजोरी से सीधे पैसा चुरा कर लालू ने तथा मायावती के अफसरों के पोस्टिंग व् ट्रान्सफर पर रिश्वत लेने ने भ्रष्टाचार को एक सरकारी आवश्यकता बना दिया .राजीव गाँधी काल का नारा गली गली में शोर है राजीव गाँधी चोर है हमारे लोकतंत्र की बुनियाद हिला गया .जयललिताने सिद्ध कर दिया की भर्ष्टाचार में भी महिलायें पुरुषों की समकक्ष हें .समाज के बाकि सभी वर्गों का यही हाल है.
तीन सौ करोड़ की सम्पत्ती के मालिक यू पी के चीफ सेक्रेटरी अखंड प्रताप सिंह और नोइडा की नीरा यादव ने आई ए एस की भी पोल खोल दी .
पिछले चालीस साल के सर्वव्यापी सरकारी भ्रष्टाचार ने इसे जनता में सर्वमान्य बना दिया .अब भ्रष्टाचारी समाज में प्रतिष्ठित जीवन बिता रहा है . इसी के साथ लालच जन्य अन्य कुकर्म भी बढ़ गए हैं . पैसे का लोभ समाज के हर आदर्श को समाप्त कर रहा है . पाश्चात्य प्रभाव से पति पत्नी व् संतान का पावन रिश्ता भी अब टूट रहा है .इन सब का कारण गीता का ‘ यथा राजा तथा प्रजा ही है ‘ . इस पतन की जिम्मेवार राजनीती व् सरकार है और इससे छुटकारा भी राजनीति व् सरकार ही दिला सकती है .
पिछली सरकार बहुत अच्छी होते हुए भी सत्यवादी युधिष्टिर के छोटे से अश्वत्थामा के कथन की तरह राफेल व् व्यापम जैसे कांडों से व्यर्थ दाग लगवा बैठी .
परन्तु भारतीय समाज में आदर्शों के पुनर्स्थापन की बहुत आवश्यकता है और जनता वैरागी प्रधान मंत्री से इसके लिए सशक्त प्रयासों की आशा रखती है. परन्तु बिना चुनाव हारे इसे कैसे किया जाय एक बहुत बड़ी चुनौती है. इसके लिए धर्म की सच्ची व्यख्या करना आवश्यक है . आदर्शों को जीवन में आत्मसात किये बिना , सिर्फ पूजा या तीर्थ यात्रा , गो रक्षा , वैमनस्य य अन्य अवैज्ञानिक धारणाओं से मुक्त कर समाज को धर्म के सच्चे मार्ग पर लाना होगा .आज के भौतिक प्रधान युग में यह कठिन अवश्य है परन्तु पश्चिम में दैनिक जीवन में आदर्श अधिक हैं . भारत को भी इमानदारी , त्याग ,सामाजिक बंधनों का आदर इत्यादि को फिर से स्थापित करना होगा .