भयंकर आर्थिक मंदी व् विकास अवरुद्ध क्यों हुआ ? चुनावी खर्चों व् टैक्स बढाने की दौड़ : बजट बदलना आवश्यक है

rp_RKU-263x300.jpgभीषण आर्थिक मंदी व् अवरुद्ध विकास से देश को बचाने के लिए बिना कमाए टैक्स बढाने को दौड़ छोड़ बजट बदलना आवश्यक है

राजीव उपाध्याय

आज जब सारे विश्व की आर्थिक विकास दर तेजी से बड़ी है वहां भारत मैं क्यों इतनी भयंकर मंदी आ गयी है ( चीन की बात अलग है ) . क्यों लोगों ने अचानक कार य घर खरीदना बंद कर दिया ? जो लोग कल तक कार खरीद रहे थे उन्हें अचानक क्या हो गया ? बाजारों मैं बिकवाली क्यों इतनी कम हो गयी ?

चुनावों से पहले तो ऐसी हालत नहीं थी . तो सिर्फ चुनावों ने ऐसा क्या काला जादू कर दिया की भारतीय अर्थ व्यवस्था चरमरा गयी ?

यह सब अनाड़ियों के हाथ भारत की अर्थव्यवस्था सौंपने  के दुष्परिणाम  हैं .

अब एक बात स्पष्ट होकर समझ मैं आ गयी है कि बालाकोट की वजह से चुनाव जीती सरकार स्वयं अपने झूठे आर्थिक विकास के आंकड़ों मैं विश्वास कर के फंस गयी थी .अज्ञानी , दम्भी व् अनाड़ी बाबु वर्ग अपने आकाओं को खुश करने के लिए झूठे विकास के दावों को सच मान पुराने कर दाताओं पर टैक्स वसूली बेइंतिहा बढाता जा रहा था . उसे अंदाज़ नहीं था की सोने की मुर्गी का पेट काटने से कभी फायदा नहीं होता . चुनावी लालच ने सरकार से सोने की अंडे देने वाली मुर्गी का पेट कटवा दिया . जब से सोनिया गाँधी की कांग्रेस ने गरीबों को वोट के लिए पैसा देने की परम्परा शुरू की है देश की राजनीती बहुत कुत्सित हो गयी है. कहा जा रहा है कि  इस चुनाव में पिछले सब चुनावों से अधिक पैसा खर्च हुआ है . कोई लोग तो इसका अनुमान ६०००० करोड़ लगा रहे हैं . सच्ची राशि  तो कोई नहीं जानता परन्तु यह सारे खर्चे उसी गिने चुने उद्योगपतियों व् व्यापारियों से वसूले गए हैं जिन पर पहले से जीएसटी टैक्स के मारा मारी थी . यदि एक चाँदनी चौक के व्यापारी से आप पाँच लाख रूपये चन्दा ले लेंगे तो वह नयी कार नहीं खरीदेगा . उच्च आय वर्ग भी सीमित राशि चंदे में दे सकता है पर मांगें असीमित हें  . फिर नोत्बंदी मैं जो पैसा बैंकों मैं जमा हुआ वह कोई रिश्वत या स्मगलिंग  का नहीं था .वह अधिकांशतः शायद व्यापारियों संचित अघोषित आय थी जिस पर टैक्स  नहीं दिया गया था . परन्तु वह किसी की मेहनत  की कमाई ही थी . उस  के जाने का दुःख भी होता ही है . हालाँकि किसी को न तो जेल भेजा गया न ही किसी का पैसा जब्त किया गया . परन्तु आय कर बाबुओं से लेकर् राजनितिक  दलों ने जम कर दुहा अवश्य होगा . मध्यम वर्ग को तो सरकार बेकार मानती है क्योंकि  उसके पास न देने के लिए वोट है न पैसा . उस पर अप्रत्यक्ष करों का बोझ बढ़ रहा है और सरकार को उसकी कोई परवाह नहीं है . उसे टैक्स मैं कोई छूट नहीं दे रही इसलिए उसकी क्रय शक्ति भी घट रही है . गरीब जिसे चुनाव मैं वोट के लिए पाँच सौ रूपये मिले वह तो उसी दिन शराब पी लेगा या घर का राशन ले आयेगा . वह कुछ खरीदने नहीं जा रहा .

शेयर मार्किट एक आय का स्रोत था . सरकार ने उस सोने की मुर्गी का भी पेट काट दिया . पहले तो फायदे पर दस प्रतिशत टैक्स लगाया फिर विदेशी निवेशकों पर भी यह टैक्स लगा दिया .वह रूपये की गिरते भाव से त्रस्त थे और भारत से पूंजी निकाल कर भाग खड़े हुए . तिस पर सब कंपनियों के लाभ मैं बहुत गिरावट आ गयी . इसलिए मोदी की सरकार दुबारा आने का उत्साह घोर निराशा में बदल गया . तिस पर सरकार के जीडीपी के झूठ पकड़ लिए गए और उस के बड़े रिज़र्व बैंक व् अर्थशास्त्री अधिकारी नौकरी से त्याग पात्र दे कर घर जाने को मजबूर हो गए .देश के आर्थिक जगत मैं घोर निराशा का वातावरण छा गया है जो राहुल बजाज सरीखे साढ़े हुए उद्योगपति भी बता चुके हैं  .

इस सब का प्रभाव बाज़ार मैं  मांग घटाने पर हुआ .पर सरकारी बाबु अभी भी अपने घमंड व् अज्ञान के लोक मैं सो रहा है . उसे अभी भी नहीं समझ आ रहा है की विकास की गाडी भारत छोड़ कर आगे बढ़ गयी है .

सरकार को स्थिति  की गंभीरता को समझ कर बाबुओं को देश को और न डुबोने दिया जाय . इस बजट को पास करने से पहले सब बड़ी कंपनियों का टैक्स भी  पच्चीस प्रतिशत कर देना चाहिए . शेयर मार्किट का दस प्रतिशत टैक्स मंहगाई की  इंडेक्सिंग के बाद लगना चाहिए . विदेशी निवेश पर भी टैक्स मंहगाई या  पूंजी दर बदलाव के असर के बाद लगाना चाहिए . सब सरकारी कर्मचारियों व् मध्यम वर्ग की टैक्स स्लैब को पाँच प्रतिशत कम करना चाहिए . विदेशी बांड के पैसे सिर्फ आयात कम करने पर खर्च करना चाहिए जैसे सौर ऊर्जा का उत्पादन बढाने मैं .

इन सबसे अधिक जरूरी है की सरकार समझे की बिना कमाए वह गरीबों मैं पैसा नहीं बाँट सकती . सच्चे कृषि व् औद्योगिक विकास से ही देश की प्रगति संभव है . झूठे आंकड़ों की दुनिया से अब उसे बाहर आना चाहिए और समृद्ध वर्ग से दुश्मनी समाप्त करनी चाहिए . नहीं तो चुनावी समाजवादी अंधी दौड़ से भारत पुनः तीन प्रतिशत की हिन्दू विकास दर पर आ जाएगा और जो इतनी मुश्किल से पायी थी वह सदा के लिए समाप्त हो जायेगी .

वित्त विभाग को बाबुओं के कुप्रभाव से मुक्त करना अत्यंत आवश्यक है उन्होंने ने ही अपने अज्ञान से देश को बर्बाद किया है . अब मोदी जी को अपना मनमोहन सिंह खोजना होगा . इस बजट को इसी साल बदलना भी बहुत आवश्यक है .

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