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इंग्लैंड में स्त्री व् पुरुष का साथ रहने का सिविल कॉन्ट्रैक्ट कानून बना : भारत मैं भी आवश्यक है।

इंग्लैंड मैं रेबेका व् चार्ल्स पहले दम्पत्ती बने जिन्होंने नए कानून के तहत अपने साथ रहने की सिविल कॉन्ट्रैक्ट मैं शर्तें तय की हैं।  ईसाई धर्मं की शादी भी हिन्दू धर्म के समान पूरे जीवन का साथ होती थी।  फिर बहुत दिनों उसमें स्वेच्छा से तलाक़ का प्रावधान आया। पहले जब बहुत बच्चे होते थे तो पारम्परिक शादी सब के लिए उपयोगी होती थी।  परन्तु दुसरे विश्व युद्ध के बाद नौकरी की आदि होने पर शादी स्त्रियों के लिए दूभर होने लगी और उन्हें परिवार मैं बंद होने से घुटन होने लगी।  आने के बाद तो बच्चों की मज़बूरी भी खत्म हो गयी.इसकी बाद न्यायालयों ने शादी पुरुष के लिए इतनी दूभर बना दी की उसकी शादी करने की इच्छा ही  समाप्त होने लगी। इसी तरह   अपनी  जिंदगी अलग तरह से बिताने की इच्छुक स्त्रियों को शादी एक बड़ा बंधन लगने लगा। पहले पुरुषों का विवाह मैं  स्वाभाविक वर्चस्व था और स्त्री स्वेच्छा से घर का काम काज व् बच्चे देखने लगी। परन्तु जब दोनों ने नौकरी करनी शुरू कर दी तो स्त्रियों ने घर का काम बांटना चाहा जिसका पुरुषों ने मानसिक विरोध किया।  इसका अंत कभी कभी  आपस के झगड़ों मैं होने लगा। परिवारों मैं मार पीट की समस्या भी होने लगी। भारत मैं पहले बहु पर अत्याचार होते थे अब बहुओं ओं ने बूढ़े माँ बाप की पूरी अवहेलना करनी शुरू कर दी जिससे बहुत से माँ बाप बुढ़ापे तक अलग रहना ही पसंद करने लगेऔर बच्चे पालने के  सपने  टूटते देखने को मज़बूर हैं। ।  तिस पर अलग रहने पर भी दहेज़ कानून की चपेट मैं  आने लगे।  निरे निर्दोष बूढ़े माँ बाप जेल मैं हैं क्योंकि बहुओं ने एक तरफ़ा कानून का दुरूपयोग कर पोलिस मैं दहेज़ का केस कर रखा है। इससे डर कर अब बहूत  धनवान लोग तो शादी से ही बचने लगे।  फेसबुक के मालिक मार्क ने तो शादी के शुरू मैं ही तलाक की शर्तें भी तय कर कीं।  सुष्मिता सेन जैसी हेरोइन ने बच्चे गोद  ले लिए पर विवाह  नहीं किया। अन्य बॉलीवुड के सितारे भी इस राह पर चल पड़े हैं।

बढ़ते तलाक़ तलाक़ स्त्रियों की इस बढ़ती असहिष्णुता व् परिवर्तन की चाह का ही परिणाम था. पुरुष सामन्यतः पारम्परिक शादी चाहते हैं न्यायालयों वाली शादी नहीं।  स्त्रियां जब चाहें तो तुरंत तलाक चाहती हैं पर पुरुष से मोटी रकम ऐठना चाहती हैं। मुसलामानों मैं तो निकाह कॉन्ट्रैक्ट है और हक़्क़े मेहर मेहर शुरू मैं ही लिख दिया जाता है। हिन्दुओं के मुकाबले इस प्रथा से मुसलामानों की शादी अभी भी बरकरार है जब की हिन्दू शादियां अब ज्यादा टूटने लगी हैं।  अमरीका मैं यह अनुमान है की अट्ठारह वर्ष की आयु तक सिर्फ आधे बच्चे ही माँ बाप को साथ पाएंगे। इन बातें हुए परिवारों की बच्चों के पलने की अपनी समस्या होती है।बच्चों के लिए माँ बाप आदर्श होते हैं और उनकी अलग रहना बहुत बुरा लगता है। इस समस्या का समाधान भी जरूरी है। अमीर देशों ने तो ऐसे बच्चों की देख रेख के घर खोल दिए हैं।

शारीरिक रूप से कम शक्तिशाली स्त्री को न्यायालयों ने संवेदना वश कानूनी रूप से बहुत शक्तिशाली बना दिया और यह प्रक्रिया अब भी चालू है। । धीरे धीरे पुरुष का शादी मैं दोहन शुरु हो गया है । न्यायलयों के  दखल के चलते तलाक इतनी जटिल प्रक्रिया बना दी गयी है की आज गुजरात के लोग ‘मैत्री करार जैसी अवैध परम्परा को अपनाने लगे हैं।  यहां तक की बिना शादी के ‘ लिव इन ‘जैसी वयवस्था मैं भी  अब न्यायलय दखल देने लगे हैं।पुरुष क्यों किसी काम काजी स्त्री का भार उठाये ?

मनुष्य अकेला प्राणी होता है।  उसका किसी के साथ रहना या न रहना उसका निजी फैसला होना चाहिए। विवाह कोई जरूरी व्यवस्था नहीं है बल्कि एक सामाजिक रूप से उपयोगी व्यवस्था है जो विशेषतः बच्चों व् बूढ़ों के लिए बहुत उपयोगी है। कामेच्छा इसको और मज़बूत करती है। स्त्री पुरुष भी यदि अपने कर्तव्य निभाते रहें तो जीवन बहुत सुख दाई हो जाता है। परन्तु आज आधुनिकता की दौड़ मैं लडकियां घर के काम को हे दृष्टि  से देखने लगी हैं और थोड़े से पैसों वाली सही पर बाहर कोई नौकरी करना चाहने लगी हैं। पुरुष यदि समर्थ हो तो पारम्परिक पत्नी ही चाहता  है जो घर की , बच्चों व् बूढ़े माँ बाप की देखभाल कर सके । इसी तरह अब स्त्रियां सोचती हैं की यदि बराबर कमाते हैं तो घर बच्चों के काम को आधा आधा बांटना न्यायोचित है।

इन सबका इलाज़ शादी को सिविल कॉन्ट्रैक्ट मानने  मैं है। हर स्त्री पुरुष को  स्वतन्रता  होनी चाहिए  की शादी से पहले अपनी शर्तें स्पष्ट कर दें। शर्त तोड़ने वाले को आर्थिक दंड का प्राविधान भी शुरू मैं ही लिखवा लिया जाय। पोलिस व् नय्यालयों का इसमें कोई दखल नहीं होना चाहिए। बच्चों के भविष्य का फैसला भी आपस मैं शुरू से ही मान्य होना चाहिए।  इसके अलावा जो चाहे उसके लिए पुरानी हिन्दू विवाह पद्यति को  माना जाय।  आधुनिकाएं पहले तो प्रेम विवाह खोजती हैं और फिर पति पर हिन्दू कानूनी फायदों से  हावी होने लगती हैं। उन्हें कॉन्ट्रैक्ट मैरिज से अपनी पसंद व् शर्तों को मैंने वाला पति ढूंढ लेना  चाहिए। निरे लोग अपनी स्टेनो व् सेक्रेटरी से शादी कर लेते हैं।  ऐसे उच्चाधिकारी महिलाओं को अपनी शर्तों पर अपने स्टेनो या चपरासी से शादी कर लेनी चाहिए। वह उनकी सब शर्तों को मानने को मज़बूर होगा और दोनों सुखी जीवन बिताएंगे। यही  बात पुरुषों पर भी लागू होती है।

इंग्लैंड ने जो पहल की है इसे भारत मैं भी मान्यता मिलनी चाहिये क्योंकि शादी एक सुखद अनुभव होना चाहिए कोई हव्वा  नहीं। ।

Heterosexual couples form 1st civil partnerships in England

The groundbreaking case had been brought by Rebecca Steinfeld and Charles Keidan, who were among the first to form a civil partnership under the new rules.

sex-and-relationships Updated: Jan 01, 2020 13:22 IST

Press Trust of India
England and Wales have marked a new era in which heterosexual couples can choose to have a civil partnership instead of a marriage.
England and Wales have marked a new era in which heterosexual couples can choose to have a civil partnership instead of a marriage. (Unsplash)

England and Wales have marked a new era in which heterosexual couples can choose to have a civil partnership instead of a marriage. The change, mandated by Britain’s Supreme Court last year, took effect Tuesday.

The groundbreaking case had been brought by Rebecca Steinfeld and Charles Keidan, who were among the first to form a civil partnership under the new rules.

They were joined by their two children for the partnership formed at the Kensington and Chelsea Register Office in central London.

Steinfeld, 38, called it “a unique, special and personal moment for us” that had been “rooted in our desire to formalise our relationship in a more modern way, focus on equality and mutual respect.” The new rules means that mixed-sex couples can opt for a civil partnership that will give them similar rights as married couples, including marriage allowance tax relief, inheritance tax exemption, and joint parental responsibility for children.

It is expected to be an attractive option for couples who believe marriage gives men the upper hand and also by couples who don’t want any religious element in their union.

The Supreme Court ruling means that civil partnerships, which have been available to same-sex couples since 2005, will be available to everyone.

Advocates of the change argued successfully in court that to deny heterosexual couples the same options available to same-sex couples amounted to discrimination.

Steinfeld and Keidan lost their bid in a lower court, but triumphed at the Supreme Court.

“Against all odds, we succeeded in a legal battle against the government and then, they did what we asked for all along,” said Keidan, 43.

He said the long legal battle had taken its toll on the couple’s mental health and strained their relationship.

Same-sex couples have been allowed to marry in England, Scotland and Wales since 2014. Same-sex marriages will be allowed for the first time in Northern Ireland early next year.

(This story has been published from a wire agency feed without modifications to the text)

Filed in: Articles, संस्कृति

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