हिंदी फिल्मों में बदलता होली चित्रण १९४० – २०२० – राजीव उपाध्याय
होली भारतीय संस्कृति का एक अति आनंद दायक पहलु का त्यौहार है . इस लिए मनोरंजन के लिए बनी फिल्मों में सदा से होली का गाना एक माहौल बदलने के लिए जादू का काम करता था . परन्तु गाँव में साथ रहने पर हर एक का पारिवारिक रिश्ता हो जाता था जिसमें सब शालीनता की कड़ियों से जुड़े रहते थे . संयुक्त परिवार थे और सब बड़े छोटे की सीमा रेखा के अन्दर ही रहते थे .परन्तु एक होली ऐसा त्यौहार था जिस मैं शालीनता की जकड़ ढीली कर दी जाती थी .परन्तु वह ढील की मात्रा ही अस्सी सालों मैं बहुत बदल गयी .दूसरी तरफ राग रागनियों पर आधारित पुराने होली के गाने आधुनिक संगीत की ओर चल पड़े . परन्तु वह आधुनिकता भी नौशाद के युग तक बहुत सीमित रही सिवाय होली के बोलों को रसियों से निकाल कर सामाजिक गीतों मैं बाँध दिया . परन्तु नौशाद युग की समाप्ति के बाद कोई बंदिश नहीं रही और होली स्वच्छन्दता की ओर चल पडी . दूसरी तरफ ब्लैक एंड वाइट फिल्मों में होली की रंगों की विविधता नहीं दीख पाती थी . रंगीन फिल्मों ने होली के दृश्यों को बहुत निखार दिया .
आज होली के पुराने गानों मैं सबसे पहले महबूब खान की मदर इंडिया फिल्म का शमशाद बेगम का गाया हुआ गाना ‘ होली आयी रे कन्हाई ‘ ही सबसे अधिक प्रख्यात है . परन्तु महबूब खान होली के गानों के राज कपूर थे . उनकी १९४० की फिल्म ‘ औरत ‘ मैं होली का गाना ‘ जमुना तट शाम खेलें होली , जमुना तट ‘ बहुत सफल रहा .
उसके बाद उन्हीं की दूसरी फिल्म १९५२ में आयी ‘ आन ‘जो होली गाने के रंगीन चित्रण की पहली फिल्म थी . उसका गाना ‘ खेलो रंग हमारे संग भी बहुत सफल हुआ . निम्मी व् दिलीप की जोड़ी भी पसंद की गयी .
होली के मास्टर महबूब खान ने १९५७ में तीसरी फिल्म मदर इंडिया के गाने ‘होली आयी रे कन्हाई ‘ को अमर कर दिया . हिंदी फिल्मों के इतिहास में ‘मदर इंडिया’ सर्वोत्तम फिल्मों में से थी और यह गीत भी उसी मापदंड का था .
वी शांताराम की’ नवरंग ‘ अगले साल बनी जिसमें शास्त्रीय संगीत व् नृत्य पर आधारित गाना ‘ अरे जा रे हट नटखट ‘ और गोदान का गाना ‘ बिरज में होली खेलत नंदलाल ‘होली के पारम्परिक गीतों के युग का अंत था .
होली के गानों मैं नए युग की शुरुआत हुई राजेश खन्ना के ‘ आज न छोड़ेंगे हम तुम्हें रसिया खेलेंगे हम होली’ से हुई जिसमें नए युग की छेड़ छाड़ दर्शायी गयी और गाने का फिल्मांकन व् धुन दोनों बहुत लोक प्रिय हुए .
https://www.youtube.com/watch?v=7z_33lMboxk
इसकी बाद आया अमिताभ का सिलसिला का गाना ‘ रंग बरसे ‘ जिसने होली के गीतों की लोकप्रियता की ऐसी मिसाल दी जिसे पार कर पाना बहुत सालों तक संभव नहीं है . रेखा अमिताभ की लोक लज्जा को तोडती नाचती जोड़ी व् असहाय जया व् संजीव का दिखाने के लिए खुश होना भी एक अमिट छाप छोड़ गया . यह गीत आज तक का सबसे अधिक लोक प्रिय होली गीत है. अमिताभ ने बढ़ती उम्र की होली की मस्ती को फिर चित्रित किया हेमा मालिनी के साथ ‘ होली खेलें रघुबीरा ‘मैं जो भी एक बहुत श्रेष्ठ गीत है .
पर समय तो अनवरत रूप से चलता रहता है और समय के साथ लोगों की चाहतें व् व्यक्त करने के ढंग भी बदल जाते हैं . इसी बदले समय की नयी अभिव्यक्ति थी दीपिका व् रणवीर कपूर का फिल्म ‘ यह जवानी दीवानी ‘ का गाना ‘ बलम पिचकारी ‘ जिसे इन्टरनेट पर चौदह करोड़ लोग देख चुके हैं . बदलते युग को अगर कोसें नहीं तो यह गाना भी एक ऐतहासिक गाना है.
२०२० मैं मौनी व् वरुण का गाना ‘ होली मैं रंगीली ‘देखा जा रहा है पर उसमें वह बात नहीं है
तो अस्सी साल मैं आनंद की अभिलाषा तो वैसी ही रही पर उसे पाने के ढंग बदलते रहे जिन्हें हिंदी फिल्मों ने बहुत सजीव रूप से चित्रित किया है .