कोरोना केस बढ़ेंगे पर दिल्ली जैसे घर पर इलाज़ सुगम व् सस्ता बनायें : अर्थ व्यवस्था बचाना अब अत्यंत आवश्यक है
बहुत दिनों बाद दिल्ली सरकार ने एक बड़ी पहल की है जिसे पूरे देश को लागू करना चाहिए .यह देश तो अनेको वर्षों से चेचक , हैजा व् अन्य संक्रमण वाली महामारियां झेल चुका है . दिल्ली सरकार को तो अब यह समझ आ गया है . कोरोना के साधारण केसों का इलाज़ घर पर मरीज़ को अकेला रख कर ही होना चाहिए . इलाज़ को सुगम व् सस्ता व् सब जगह उपलब्ध बनाने की आवश्यकता है . डॉक्टरों से मरीज़ के विडियो कांफ्रेंसिंग से संतोष बढेगा . परिवार वालों की सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था की जानी चाहिए . छोटे कस्बों के डोक्टरों को भी इसका इलाज़ आना चाहिए . अस्पतालों मैं सिर्फ गंभीर मरीजों को दाखिल करना चाहिए . दिल्ली सरकार ने जो विशेष मार्ग दर्शन की नीतियाँ घोषित की हैं वह स्वागत योग्य हैं और ठीक दिशा मैं हैं . जैसे जैसे अर्थ व्यवस्था खुलेगी कोरोना के केस बढ़ेंगे . अब दिल्ली की सब्जी मंडी, खारी बाओली य भागीरथ प्लेस जैसे छोटे व् भीड़ भाड वाले बाजारों के केस बढ़ेंगे .पर अब जनता को अपनी सुरक्षा की जिम्मेवारी लेनी होगी . देश को अनंत काल के लिए बंद नहीं किया जा सकता . रेल ,बस व् मेट्रो के बिना अर्थ व्यवस्था पटरी पर नहीं आ सकती . रोग का इलाज़ अभी तक नहीं मिला है और वैक्सीन अगर बन भी गयी तो भी रोग का इलाज भी नहीं है .रोग की दवा अभी खोजी जा रही है .सरकार को टेस्टिंग व् नए उपचार की खोज को पूरा बढ़ावा देते रहना चाहिए क्योंकि यही देश की आस व् इसका राम बाण हैं . इस लिए अब जनता को सुरक्षा की गाइड लाइन बता कर इनको भी सामान्य करना होगा . जनता को पूरी तरह शिक्षित कर अब मीडिया को कोरोना कमेंटरी बंद कर अर्थ व्यवस्था को सुचारू बनाने की मुहीम चलानी चाहिए . पिछले छः साल से भारतीय अर्थ व्यवस्था व् सच्ची विकास दर घटती जा रही है . २०१९-२० मैं ४.२ प्रतिशत की विकास दर थी जो की पुराणी ३.० प्रतिश्हत के बराबर है.यह पिछले ग्यारह साल की सबसे कम दर थी जबकी लॉक डाउन तो मार्च के अंतिम सप्ताह मैं शुरू हुआ था . २०२०-२१ की तो बात ही न करें तो अच्छा है क्योंकि उस दुर्गति का तो अंदाज लगाना भी मुश्किल है .
ऐसी परिस्थिति मैं जब करोड़ों लोगों का रोज़गार छीन गया हो और सब फक्ट्रियों को शुरू करना दुहर हो रहा हो सरकार को फक्ट्रियों को दीवालिया नहीं होने देना चाहिए .इसे लिए प्राइवेट सेक्टर की भी खुल कर सहायता करने की आवश्यकता है .खेती ठीक है इसलिए अब किसानों से ज्यादा मजदूरों पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है .पर गरीब तो इस वर्ष कितना भी प्रयास कर लें वह तो सिर्फ खाने का सामान खरीदेगा .उसके बैंक अकाउंट मैं पैसा डालने से अर्थ व्यवस्था नहीं सुधरेगी . उसकी दशा अर्थ व्यव्स्था के पटरी पर आने पर ही सुधरेगी .इसलिए उद्योगों की मांग बढाने के लिए मध्यम वर्ग को खरीदने के लिए प्रोत्साहन देना होगा . दूकानदार गरीब नहीं हैं इसलिए उनको इतनी सहायता की जरूरत नहीं है .इनकम टैक्स को देख कर तो सरकार वेतन भोगी वर्ग से सदा से वैमनस्य सा रखती प्रतीत होती है . उसका मंहगाई भत्ता भी रोक लिया है . हर कंपनी मैं छटनी हो रही है .अगर संभव हो तो वेतन घटा कर छटनी कम करना बेहतर होगा . होटल , माल , सिनेमा , रेस्टोरेंट सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं . एयरलाइन , रेलवे , बस , मेट्रो भी सब बड़े घाटे मैं जायेंगे . सरकार को सिर्फ उद्योगों को मरने से बचाना चाहिए विशेषतः छोटे व् मध्यम उद्योग . २००८ मैं अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने बहुत साहसिक फैसले लेकर अर्थ व्यवस्था को बचा लिया था .इस सरकार मैं अर्थ व्यवस्था को सुचारू चलाने की क्षमता व् ज्ञान कम है और वोट बैंक पर नज़र रखने की प्रवृति अधिक है जो विकास को कम कर रही है .इसलिए इसे अच्छे मार्ग दर्शक की जरूरत है . पर वह मार्ग दर्शक चापलूस सरकारी बाबु नहीं होना चाहिए और प्रधान मंत्रि को उनके अर्थ शास्त्र के सीमित ज्ञान को समझा बुझा कर आगे बढना चाहिए . लोग अभी डरे हुए हैं और वह घूमने, सिनेमा या रेस्टोरेंट नहीं जायेंगे . कार, घर, टीवी इत्यादि भी फ़ौरन नहीं खरीदेंगे . बढ़िया कपडे गहने इत्यादि भी अभी नहीं खरीदे जायेंगे . बिना लोगों के सामान्य हुए अर्थ व्यवस्था नहीं सुधर सकती .अतः इसके लिए बहुत गंभीर चिंतन की आवश्यकता है की कैसे लोगों का मनोवैज्ञानिक डर समाप्त कर स्थिति को सामान्य बनाया जाय .
सरकार कश्मीर , पाकिस्तान व् विदेशों मैं बहुत सफल रही है .यह दुखद है की कोरोना को निकाल भी दें तो भी इतने वर्षों मैं हमारा पूरा ध्यान शौचालय जैसे छोटे छोटे प्रोजेक्ट को सफल बना कर ढिढोरा पीटने मैं लगा रहा .अज्ञानी , चाटुकार व् दम्भी बाबु अर्थ व्यवस्था पर अब भी हावी हैं और डुबो रहे हैं .अर्थ शास्त्रियों को तो निकाल ही दिया गया है और बचे हुए डरे व् प्रभाव हीं हैं . मैक्रो इकोनॉमिक्स के सक्षम जान कार कोई नहीं है . जब तक डा स्वामी या डा मनमोहन सिंह सरीखे मैक्रो इकोनॉमिक्स के विशेषग्य अर्थ व्यवस्था को नहीं चलाएंगे और हम बड़े बाबुओं को वित्त मंत्रालयों से नहीं निकालेंगे , इसी तरह पाँच वर्ष और निकल जायेंगे .कोई चीन या अमरीका हमें अपनी आर्थिक शक्ति से डराता रहेगा .
इसलिए सरकार को अधिक ज्ञान व् साहस दिखाने की बहुत आवश्यकता है .