खरी खरी एपिसोड ५ — क्या फ्लिप कार्ट व् अमेज़न पर मोबाइल व् टीवी की फ़्लैश सेल पर रोक एक टाँगे वालों के लिए बस पर रोक लगाने के समान है, जो वास्तव मैं सामान्य जनता पर परोक्ष सरकारी नोट बैंक टैक्स है .

खरी खरी एपिसोड ५ — क्या फ्लिप कार्ट व् अमेज़न पर मोबाइल व् टीवी की फ़्लैश सेल पर रोक एक टाँगे वालों के लिए बस पर रोक लगाने के समान है, जो वास्तव मैं सामान्य जनता पर परोक्ष सरकारी नोट बैंक टैक्स है .

सरकार का फ्लिप कार्ट व् अमेज़न पर मोबाइल फ़ोन बेचने पर प्रस्तावित प्रतिबन्ध  जन हित मैं नहीं है . इस पर विशेष विडियो देखें .

यदि समय का अभाव है तो इंटरव्यू की ट्रांसक्रिप्ट पढ़ लें पर उसमें कई सूचनाएं नहीं हैं .

Khari Khari – Episode 5: Patriots Forum – YouTube

 

अमेज़न व् फ्लिप्कार्ट पर मोबाइल टीवी की  फ़्लैश सेल पर रोक : टाँगे वालों के लिए बस बंद कर साधारण जनता पर नोट बैंक टैक्स न लगाएं

मैं, मीनू, पत्रियोट्स फोरम के पांचवे एपिसोड मैं आपका स्वागत करती हूँ .हमारे आज के अतिथि हैं श्री राजीव कुमार उपाध्याय जो रेलवे से जनरल मेनेजर के पद से रिटायर हो कर पिछले दस साल से पत्रिओत्स फोरम से जुड़े हुए हैं . आज हम चर्चा करेंगे कि क्या फ्लिप कार्ट व् अमेज़न पर मोबाइल व् टीवी की फ़्लैश सेल पर रोक एक टाँगे वालों के लिए बस पर रोक लगाने के समान है, जो वास्तव मैं सामान्य जनता पर परोक्ष सरकारी नोट बैंक टैक्स है .

आज के कार्य क्रम मैं आपका स्वागत है .

 

प्रश्न १ .   तो उपाध्याय जी पहले तो दर्शकों को यह बताएं कि हमारे भारतीय व्यापारियों के बजाय आप विदेशी बहु राष्ट्रीय कंपनियों का क्यों समर्थन कर रहे हैं ?

उत्तर : मीनू जी अमेज़न या फ्लिप्कार्ट भारत मैं उतनी ही विदेशी हैं जैसे इंग्लैंड मैं टाटा मोटर . टाटा की उन्नीस कंपनियां इंग्लैंड मैं १९ बिलियन डॉलर का निवेश कर चुकी हैं और ५०००० नौकरियों बचा चुकी हैं . इंग्लैंड मैं टाटा स्टील  को विदेशी कह कर भेदभाव करना गलत होगा . इसी तरह फ्लिप कार्ट व् अमेज़न भारत पर विश्वास कर भारी निवेश कर रही हैं. उनसे मात्र विदेशी कह भेदभाव करना गलत होगा .

भारत सरकार को राजनीती नहीं अपितु न्याय व् व्यापक जनहित के अनुसार काम करना चाहिए.

 

प्रश्न २ –  चलिये यदि व्यापक जनहित की बात की जाय तो क्या लाखों भारतीय व्यापारियों का हित जनहित है या मात्र दो विदेशी कंपनियों का हित जनहित है ?  

उत्तर : मीनू जी जनहित करोड़ों देश वासियों की सुविधा व् आवश्यकता पूरी करने मैं है .व्यापारी करोड़ों जनता की सुविधा के लिए होते हैं जनता व्यापारियों की सुविधा के लिए नहीं . सरकार को करोड़ों लोगों की सुविधा व् आवश्यकता को पूरी करने मैं सहायक होना चाहिए .अगर वोट या चंदे के लिए अमीर व्यापारियों को सिर्फ अधिक फायदा पहुंचाने के लिए मोबाइल या टीवी की कीमतें बढ़ाई जायेंगी तो यह तो गरीब जनता पर पर परोक्ष नोट बैंक टैक्स लगाने के सामान होगा .

प्रश्न ३ – उपाध्याय जी क्या यह सच नहीं कि यह दो अत्यंत धनवान विदेशी कंपनियां पहले सामान को सस्ता बेच भारतीयों को बाज़ार से निकाल देंगी और बाद मैं जब इनका एक छत्र राज्य हो जाएगा तो सामान के दाम बढ़ा देंगी .

उत्तर मीनू पहले तो याद रखें कि एक अमरीकी कंपनी ई बे भारत में इतनी सफल नहीं हो ई थी . फिर फ्लिप्कार्ट व् स्नाप्देअल भारतीय कंपनियां थीं जो सीमित व्यापार कर पायें थीं . ई कामेर्स मैं अनेक कमप्नियाँ भाग्य आजमा चुकी हैं . किसी को अमेज़न व् फ्लिप कार्ट जितनी सफलता नहीं मिली .इसलिए इर्ष्या भी एक उनकी भर्त्सना का कें हो सकती है .

फिर भी एकाधिकार एक व्यापक समस्या है . क्या रिलायंस जिओ ने छोटी सब टेलिकॉम कंपनियों को खत्म नहीं कर दिया जिसमें अनिल अम्बानी की रिलायंस कम्युनिकेशन , बिरला की आईडिया भी शामिल थीं . देश व जनता को एकाधिकार के दुरूपयोग से बचाना सरकार का दायित्व है और इसके लिए एक मोनोपाली कमीशन है . परन्तु अभी तो भारत मैं रिटेल सेक्टर मैं रिलायंस, टाटा,पे टी एम् ,स्नेप डील समेत अनेकों कम्पनी कार्यरत हैं . उनको भी कुछ सीख कर अमेज़न या फ्लिप्कार्ट को टक्कर देने दीजिये .अभी पे टी एम्  केश बेक पर ध्यान दे रही है . टाटा ने बिग बास्केट को खरीदा है . रिलायंस बिग बाज़ार को खरीदना चाह रही है पर इसमें अमेज़न रोड़ा है .भारतीय कंपनियां अभी तो हारती प्रतीत हो रही हैं क्योंकि उनका मार्किट शेयर घट रहा है . अमेज़न और फ्लिप कार्ट  लगभग तीस हज़ार करोड़ की वार्षिक बिक्री कर रही हैं .पर अगले पांच  सालों मैं इनकी बिक्री एक एक  लाख करोड़ तक पहुँच सकती है .

भविष्य मैं पूरे भारतीय बाज़ार पर दो विदेशी कंपनियों का एकाधिकार घातक होगा और सरकार को एकाधिकार को रोकना चाहिए. सिर्फ अमेज़न ही नहीं , गूगल , फेसबुक ,ट्विटर इत्यादि अनेकों विदेशी कंपनियां भारत पर  एकाधिकार पा चुकी हैं जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक है . इस लिये हर क्षेत्र मैं कम से कम दो बी एस एन एल जैसी बड़ी भारतीय कंपनी का होना आवश्यक है .पर यह पारदर्शी ,न्याय , तर्क संगत  व् व्यापक जनहित मैं होना चाहिए. विदेशी निवेश की पोलिसी को शुरू मैं ही बहुत दूरगामी सोच से बनाना चाहिए अपने राजनितिक वोट बैंक या नोट बैंक को बचाने के लिए नहीं.

यदि आप ग्राफ देखें तो अन दोनों कंपनी टियर टू शहरों को जीतने की होड़ में हैं . अभी समय है . दस लाख के नीचे की आबादी वाले शहर सिर्फ छोटी भारतीय कंपनियों के लिए रिज़र्व किये जा सकते हैं . विदेशी कंपनियों को किसानों से सीधे खरीदने पर रोक लगाई जा सकती है और कृषि क्षेत्र से उनको बाहर रखा जा सकता है .पर भारतीय कंपनियां छोटे मुनाफे पर काम करने की आदी नहीं हैं और भारत में ब्याज दर बहुत है. अब भारतीय कंपनियों को कीमतें कम करना सीखना होगा .

प्रश्न ४ – अच्छा उपाध्याय जी यह तो बताइये की आप भारतीय व्यापारियों को तांगेवाला  वाला व् अमेज़न व् फ्लिप्कार्ट को बस क्यों कह रहे हैं ?

 

उत्तर : मीनूजी अभी हाल मैं प्रसिद्ध  अभिनेता दिलीप कुमार जी की मृत्यु हुयी है . उनकी एक बहुत सफल फिल्म थी नया दौर . उसमें गाँव मैं बस आने से टाँगे वाले बहुत दुखी थे और अनेक बाधाएं खडी कर बस को रोकना चाह रहे थे . पर बस का सफ़र कम समय लेता है और आराम देह होता है . इसलिए अंत मैं जीत बस की होती है . इसी तरह जब बैंकों मैं कंप्यूटर आये थे तक सब बैंक यूनियन ने इसका विरोध किया था . आज क्या कोई बैंक बिना कंप्यूटर के काम कर सकता है .एक और उदाहरण लीजिये . आज सब हवाई जहाज का टिकट नेट से बुक कर लेते हैं . पहले इसके लिए ट्रेवल एजेंट को नौ प्रतिशत कमीशन मिलता था और टिकट उधार पर मिलते थे .अब कोई ट्रेवल एजेंट के पास नहीं जाता और निरी ट्रेवल एजेसियाँ बंद हो गयीं .टेक्नोलॉजी तो परिवर्तन लायेगी ही और सरकार का उसको रोकने का प्रयास करना मूर्खता होगी.

भारत मैं बिचौलिए व्यापारी किसान व्  कारखाने से सामान सस्ता खरीद कर जनता को बहुत मंहगे दामों पर बेचते हैं . इसी लिये पिछ्ले तीस वर्षों में व्यापारी वर्ग बहुत अमीर हुआ है पर बहुत कम आय कर देता है. पिछले वर्ष वेतन भोगी वर्ग ने औसतन ७६००० रूपये आय कर दिया जबकि बाकियों ने औसतन २६००० रूपये औसतन टैक्स दिया .इसलिए व्यापारियों को ज्यादा मुनाफ़ा देने के लिए मध्यम वर्ग को न पीसा जाय . इस मुनाफाखोरी को कम कराने के अनेकों प्रयास हुए . सुपर बाज़ार , सेना कैंटीन , केन्द्रीय भण्डार इसी तरह के प्रयास हैं . पर अब रिटेल मैं बड़ी कंपनियों के आने से जनता को कुछ राहत मिली है. वह टैक्स चोरी भी नहीं करती हैं . दीवाली पर अमेज़न व् फ्लिप कार्ट की सेल मैं टीवी व मोबाइल काफी सस्ते मिल जाते हैं . वह सब आयातित चीनी माल होता है जो छोटे व्यापारियों के बदले फ्लिप्कार्ट व् अमेज़न सस्ते दामों पर बड़ी मात्रा में चीन से खरीद लेती हैं और जनता को सस्ता बेच कर भी अपना फायदा कर  लेती हैं. यही तो व्यापार होता है .इस में कुछ भी अनैतिक नहीं है .परन्तु टाँगे वाले टांगों के लिए बने कुछ पुराने क़ानून जैसे सवारी खडी  मत करो या गाडी में घास रखना आवश्यक है इत्यादि को आड़ बना कर, बस खरीदने के बाद बस मालिकों को व्यर्थ  तंग कर रहे है . सरकार क्यों व्यापारियों की  आय व् मुनाफा बढाने के लिए जनता को महंगा मोबाइल या टीवी बेचे ?

यह तो जनहित नहीं है बल्कि सरकारी अधिकारों का दुरूपयोग है .

 

प्रश्न ५ : उपाध्याय जी तो अब दर्शकों को यह भी बताइये कि विदेशी अमेज़न व् फ्लिप कार्ट देश की किन आवश्यकताओं को पूरा कर रही हैं ? इनसे देश की जनता को क्या फायदा मिल रहा है ? क्यों चीन ने इन्हें नहीं घुसने दिया ?

उत्तर : मीनू जी आपने एक प्रश्न में अनेक प्रश्न पूछ लिए . इसलिए मैं एक एक कर उनके उत्तर दूंगा .

आपका पहला प्रश्न है देश की व्यापक आवश्यकताओं को पूरा करने का .

 

पहली बात तो यह है की पिछले आठ वर्षों से हमारा निर्यात नहीं बढ़ रहा है और आठ साल पहले ३१२ बिलयन डॉलर के रिकॉर्ड स्तर से नीचे ही रहता है .हमारा आयात अधिक है . विदेशी मुद्रा के लिए हर साल हम लगभग तीस से पचास बिलयन डॉलर के विदेशी पूंजी निवेश और टेक्नोलॉजी पर आश्रित हो गए हैं . इसलिए हम एक एक कर हर क्षेत्र विदेशी कंपनियों के लिए खोल रहे हैं . फ्लिप कार्ट ने १६ बिलियन डॉलर का भारत मैं निवेश किया है . इस मैं अधिकाँश छोटी छोटी कंपनियों को खरीदने मैं खर्च हुए हैं .इसी तरह अमेज़न भी दस बिलयन डॉलर के निवेश की योजना बना रही  है हालाँकि उसका अभी तक पूंजी निवेश काफी कम है .इसके अलावा अमेज़न व् फ्लिप्कार्ट भारतीय निर्यातकों को विदेशी बाज़ार मैं पहुँच दे रहे हैं .अभी तक अमेज़न ने तीन बिलियन डॉलर का निर्यात किया है जिसमें से एक बिलियन डॉलर पिछले साल था . अमेज़न इस निर्यात को २०२५ तक दस बिलीयन  डॉलर करने की योजना पर काम कर रहां है. तीसरे अमेज़न ने भारतीय व्यापार की संस्कृति को खुशनुमा बदल दिया है . माल पसंद नहीं आये तो अगले दिन वापिस कर दो . यह भारत मैं कहाँ होता था ? हम तो डरते रहे की लोग अंडरवियर पहन कर वापिस कर देंगे ? अब इस रिटर्न पालिसी के  चलते कंपनियां भी घटिया माल अमेज़न पर बेचने से डरती हैं .

तीसरा फायदा नयी नौकरियों का है . अमेज़न दीवाली पर एक लाख लोग डिलीवरी के लिए रखता है . २०२५ मैं दस लाख लोगों को नौकरी मिलने का अनुमान है .इसके भारत मैं ६५००० कर्मचारी हैं और सॉफ्टवेर पर बहुत रिसर्च कर रहे हैं . यही फ्लिप्कार्ट भी करेगा .

इस लिए बड़ी विदेशी कंपनियों से अभी तक तो देश को फायदा ही हुआ है .

 

अब आइये अपने दूसरे प्रश्न पर जनता को क्या लाभ मिला ?

पहला तो सुविधा का है . घर बैठे पूरे देश के बाजार को सर्च करो और अपनी पसंद का सामान बिना टूट फूट के आ जाएगा .नहीं तो पहले समय व् तेल फूँक कर पसंद का सामान ढूँढने के लिए चान्दिनी चौक या खारी बावली के चक्कर लगाओ. जिनके पास स्कूटर या कार नहीं है उनके लिए तो और भी सुविधाजनक है. छोटे शहरों मीं तो यह बहुत सुविधाजनक  है.

दूसरा फायदा है कि सामान सस्ता भी मिलता है . दूकानदार तो एम् आर पी पर देता था अब ग्राहक को एम् आर पी से सस्ता मिल जाता है .बड़े टीवी मोबाइल तो बहुत सस्ते हो गए .अब तो कंप्यूटर,वाशिंग मशीन भी सस्ते हो गए हैं . पूरे स्पेसिफिकेशन व् लोगों के अनुभव भी वेबसाइट पर मिल जाते हैं . चाहो तो सामान मिलने पर पैसा दो . तो जनता को तो अमेज़न फ्लिप्कार्ट से बहुत फायदा हुआ है .

व्यापारियों को भी बहुत बड़े बाज़ार तक पहुँच मिल जाती है . पिछली दीवाली पर ४१५२ व्यापारियों ने अमेज़न पर एक करोड़ रूपये से ज्यादा सामान बेचा . पचास हज़ार लोग निर्यातक बनने  की प्रक्रिया मैं हैं. लाखों व्यापारी अमेज़न पर विक्रेता बन रहे हैं .टेक्नोलॉजी नयी संभावनाओं को जन्म देगी . इसको सिर्फ चंदे व् नोट बैंक बचाने के लिए अवरुद्ध करना तो वास्तव में देश द्रोह होगा .मुश्किल यह है कि अब नए स्मार्ट मोबाइल के अस्सी प्रतिशत बिक्री पर इन कंपनियों का कब्ज़ा हो गया है जिस पर यह हाय हाय हो रही है .

 

अब आइये चीन पर . चीन हमसे बहुत आगे है और उसके फैसले हमसे ज्यादा सोच के लिए गए होते हैं . प्रजातांत्रिक सरकारें जनता व् चुनावों से डरती हैं और कठिन फैसले समय पर नहीं ले पाती हें .चीन ने फेसबुक , गूगल , अमेज़न इत्यादि के चीनी संस्करण तैयार कर लिए हैं .वहां अमेज़न के बदले चीनी अली बाबा है.चीनी टिक टोक तो विश्व में बहुत पसंद  भी किया जाने लगा था . भारत अभी इस क्षेत्र मैं बहुत पीछे है. न हमारी सरकार में और न ही टाटा व् आई टी को छोड़ कर हमारे उद्योगपतियों मैं अभी इतना साहस, चाहत व् अनुभव है कि विश्व विजय के सपने देखें . पहले हम रक्षा, अन्तरिक्ष, परमाणु ऊर्जा इत्यादी मैं स्वाबलंबी हो जाएँ तब अन्य सेक्टर का नम्बर आयेगा .

 

प्रश्न ६ : उपाध्यायजी आपने तो सारे फायदे ही गिना दिए . क्या इनके कुछ नुक्सान भी हैं ?

उत्तर : मीनूजी हर संभावित तकनीक का दुरूपयोग भी संभव है .अमेज़न पर फर्जी माल बहुत बिकने लगा है . मैंने खुद बजाज का गीज़र आर्डर किया और मुझे फर्जी गीज़र भेज दिया .इसे बाद मैं मैंने बदलवाया . सोनी के नकली हेड फ़ोन नेट पर ५०० रूपये मैं बेचे जा रहे हैं . रिजेक्टेड माल बार बार घुमाया जाता है जब तक कोई ग्राहक फंस न जाए .ग्राहक नेट से असली या नकली सामान की परख कैसे करे ? इसी तरह सुदूर सप्लायर की क्वालिटी के बारे मैं जानना संभव नहीं होता .जूतों मैं अक्सर खराब जूते आ जाते हैं जो बहुत जल्दी फट जाते हैं . बजट टीवी जल्दी खराब हो जाते हैं और उनकी रिपेयर बहुत कठिन है. एक बार बेचने के बाद इन्टरनेट से खरीदे माल का कोई माई बाप नहीं होता .

दुसरे भारतीय बाज़ार का  पूरा डेटा  इन कंपनियों की प्रॉपर्टी बन जाता है . इन्हें लोगों की पसंद नापसंद पूरी तरह मालूम हो जाती है जिसका उपयोग वह निवेश को लाभप्रद करने मैं करते हैं .नयी छोटी कंपनियां इनका मुकाबला नहीं कर पाएंगी और बड़ी कम्पनियाँ इसका दुरूपयोग भी कर सकती हैं .एकाधिकार का बहुत दुरूपयोग होगा . इसलिए कम्पटीशन के लिए देसी, टाटा , रिलायंस , चीनी पे टी एम् माल इत्यादि को बढ़ावा देना सार्वजानिक हित मैं  होगा .सरकार को खुल कर देसी कंपनियों को प्रोत्साहित करना चाहिए जैसे खादी को करते हैं . एक तरीका टाटा व् रिलायंस रिटेल के शेयर खरीदना हो सकता है जिसके बाद उनको सरकारी खरीद मैं प्राथमिकता दी जा सकती है .परन्तु इसे बिना भेदभाव के दो या तीन साल के नोटिस के बाद लागू किया जाना चाहिए .

 

प्रश्न ७  :     उपाध्याय जी अमेज़न या फ्लिप्कार्ट कोई कार या हवाई जहाज की  टेक्नोलॉजी की तरह देश को कुछ नयी टेक्नोलॉजी तो नहीं दे रही हैं .तो इनके बड़े मुनाफे जब अमरीका को भेजे जायेंगे तो देश को नुक्सान नहीं होगा ? और यह कभी नयी ईस्ट इंडिया कंपनी बन गयीं तो क्या होगा ?

उत्तर :        मीनू जी अभी तो फ्लिप्कार्ट को ३०००० करोड़ की बिक्री पर पिछले साल १९५० करोड़ का घाटा हुआ है .अमेज़न भी लगभग इतनी ही बिक्री व् इतने ही बड़े घाटे मैं चल रही है . यह छोटे शहरों व् गाँवों तक पहुँचने का इन्तिज़ार कर रही हैं और पैसा नए गोदाम खोलने व् सेवाओं के विस्तार मैं कर रही हैं . अगले पांच साल में इनकी बिक्री एक एक लाख करोड़ हो जायेगी .

तब यह अत्यंत शक्ति शाली भी हो जायेंगी . अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प व् माइक्रोसॉफ्ट के बिल गेट ने कोरोना संकट मैं वैक्सीन व् उसकी टेक्नोलॉजी को  न देकर गरीब देशों को उनकी औकात दिखा दी .भारत स्वदेशी  कोवैक्सीन  व् कोविशिएल्द के चलते बच गया . अगर हम सचेत न रहे तो यही हाल हमारा भविष्य में भी होगा .

 

प्रश्न ८  : तो अंत मैं यह बताएं कि आप सरकार को क्या सलाह देंगे .

 

उत्तर : सरकार को व्यापक राष्ट्रीय व् जनहित में फैसले लेने चाहिए. हमारी निर्यात न बढ़ा पाने की देश बड़ी कीमत चुका रहा है. विदेशी निवेश की  अगले बीस साल की एक दूरगामी  पालिसी बनानी होगी.विदेशी कम्पनी जो भारी निवेश के बाद अभी भी घाटे मैं चल रही हैं उनको फालतू कानूनों व्  कोई चीज़ बेचने से रोकना अनुपयुक्त होगा . इतना बड़ा खतरा लेने वालों को सरकार को उनको उचित लाभ कमाने देना चाहिए . परन्तु यह ईस्ट इंडिया कंपनी न बन जाएँ इसके लिए उनका एकाधिकार भी नहीं होने देना चाहिए . इस क्षेत्र मैं टाटा जैसी भारतीय कंपनियों को निवेश से सस्ती पूंजी व् ज़मीन  उपलब्ध करा कर अभी से उनको बचाना आवश्यक है . गाँवों व् छोटे शहरों को तथा कृषि व् किसानों से इन्हें दूर रखना होगा .परन्तु जनता की सुख सुविधाओं व् अधिकारों की रक्षा व् देश की सार्वभौमिकता की रक्षा सरकार का प्रथम दायित्व है जिसे वोट या नोट बैंक की राजनीती से परे रखना चाहिए .

 

अंत : इसी के साथ हम आज के कार्यक्रम के अंत पर आ जाते हैं .यदि आपको यह कार्यक्रम अच्छा लगा हो तो लाइक  व् सब्सक्राइब बटन दबा दें . इससे हमें भविष्य मैं आपकी पसंद के प्रोग्राम लाने मैं सुविधा होगी .

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