Jobless , Stagnant Economy : क्यों भारत में न राजशाही , न प्रजातंत्र न ही अधिनायक वादी सरकार चीन जैसा आर्थिक विकास नहीं करवा पातीं
भारत में एक विचित्र विरोधाभास है . चाहे किसी की ,कैसी ही सरकार हो , देश की आर्थिक विकास दर इतनी कम रहती है की कभी जो भारत चीन से आगे होता था अब उसकी बराबरी का सपना भी नहीं देख सकता .कभी अफीम के नशे मैं डूबा रहने वाला चीन आज विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति और भारत से उसकी प्रतिव्यक्ति आय तीन गुनी , रक्षा बजट पांच गुना और जी डी पी छः गुना ज्यादा हो गया है . अब तो भारत ने चीन की बराबरी का सपना देखना भी बंद कर दिया है .
यह एक वर्ष की बात नहीं है . मुस्लिम शासन तो दमन कारी व् क्रूर था पर जब भारत मैं अनेक राज्यों में हिन्दू राजा महराजा थे तब भी कोई विशेष वैज्ञानिक खोज या उपलब्धी नहीं थी . दक्षिण भारत मैं तो हिन्दू शासन बहुत दिन रहा वहां भी कोई विशेष औद्योगिक विकास नहीं हुआ . कलाओं मैं भी ग्रीक और रोमन हम से आगे ही रहे . इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति आयी और अँगरेज़ व् स्पैन के लोग संसार भर में फैल गए .विश्व भर मैं पश्चिम संस्कृति और उद्योग फ़ैल गए .
चीन ने पिछले दो दशकों में विश्व के बाज़ार पर कब्जा कर लिया है .हम आज भी विदेशी मुद्रा के लिए FDI & remittance पर आश्रित हैं और चाह कर भी अपना निर्यात आयात से ज्यादा नहीं कर पा रहे .
हमारा भ्रष्टाचार भी कुछ विशेष है . चीन हमसे कम भ्रष्ट नहीं है पर वहां भ्रष्टाचार क्यों विकास मैं अवरोध नहीं बनता . साम्यवादी Dictatorship वाला सोवियत रूस प्रजातांत्रिक पश्चिमी देशों से अंततः इतना पिछड़ गया कि वह टूट गया . हमारा प्रजा तंत्र मुफ्त चावल , इडली व बिजली बाँटने तक सीमित क्यों रह गया ? प्रजातंत्र में व्यक्तिगत स्वतंत्रता से अन्वेषण बहुत होते हैं हमारे यहाँ वह भी नहीं हुए बल्कि व्यक्तिगत आजादी ‘ भारत तेरे टुकड़े होंगे , इंशा अल्लाह ‘ के नारे राजधानी दिल्ली मैं लगा लेने तक सीमित रह गयी .
संजय गांधी ने इमरजेंसी मैं हरिद्वार की सड़क चौड़ी करने के लिए एक दिन मैं किनारे के घर तोड़ने का आदेश दे दिया , तुर्कमान गेट का इलाका साफ़ करवा दिया पर अर्थ व्यवस्था के सुधारने का कोई विशेष सफल प्रयास नहीं हुआ .दो साल में ऐमर्जैन्सी खुद थक गयी और देश फिर पुराने ढर्रे पर आ गया .
मोदी जी के पास किसी पश्चिमी राष्ट्राध्यक्ष से अधिक शक्ति है और उन्होंने कोरोना व् नोटबंदी में उसका उपयोग भी किया पर पिछले आठ साल में मनमोहन काल से आधी वास्वितविक कास दर ही रही . उसी छुपाने के लिए आर्थिक आँकड़ों मैं हेर फेर और शुरू हो गयी जो पहले नहीं होती थी और नेता बेरोजगारी से त्रस्त मध्यम वर्ग की जनता को डूबते पाकिस्तान व बीस साल बाद के विकास के सब्ज़ बागों मैं घुमा रहे हैं .
तो एक स्वाभिक प्रश्न उठता है कि क्यों तो हमारे यहाँ महरानी एलिज़ाबेथ – १ ( १५६० ई ) की राजशाही सफल होती न चीनी अधीनायक वाद न पश्चिमी प्रजा तंत्र सफल होता . विश्व के सबसे अधिक इंजिनियर व् वैज्ञानिक पैदा करने वाला देश अन्वेषण मैं फिसड्डी ही है . हमारे बड़े उद्योगपति भी सफल विदेशी तकनीक ला सकते हैं पर नए खतरों से जीत कर आर्थिक साम्राज्य बनाने वाले एलोन मस्क , स्टीव जॉब या बिल गेट नहीं बन सकते .
हमारे खून या संस्कृति मैं क्या कमी है जो हमें विश्व विजेता नहीं बनने दे रही .उससे भी बड़ा सवाल है की हम क्या करें की इन कमियों को दूर कर सकें ?
इसके उत्तर के लिए इस लेख का अगला भाग पढ़ें ?