भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु की आज छवि धूमिल करने का जो प्रयास किया जा रहा है वह असंगत है .यद्यपि यह सच है की उन्होंने कश्मीर व् चीन के मामले मैं कुछ बहुत बड़ी गलतियाँ की थीं जिनके परिणाम स्वरुप देश को बहत दुष्परिणाम भुगतना पडा है . परन्तु इनका विश्लेषण भी ठीक से नहीं किया जा रहा ही .कश्मीर को ही लें .
कश्मीर के कुछ हिस्से के खो जाने के किस्से तो सुनाये जाते हैं परन्तु यह नहीं बताया जाता की कश्मीर के शेख अब्दुल्ला से भारत का समर्थन कराने मैं नेहरु जी की ही सफलता थी . महाराजा हरी सिंह का विरोध कर नेहरु जी ने शेख अब्दुल्ला से दोस्ती की जबकी अहंकारी जिन्ना ने उन्हें दुत्कार दिया . इस फलस्वरूप कश्मीर भारत को मिला . महराजा हरी सिंह तो कश्मीर को स्वतंत्र राज्य बनाना चाहते थे और उन्होंने विलय के कागजों पर कबालियों के हमले के बाद किये . कश्मीर की मुसलमान जनता शेख के साथ हमारे समर्थन मैं आयी थी . बाद में तो विद्रोह भी होने लगा था . गिलगित बल्तिस्तान तो हम बचा ही नहीं सकते थे इसलिए उसका प्रयास भी नहीं किया .इसलिए यद्यपि संयुक्त राष्ट्र के धोखे का देश को नुक्सान हुआ पर वह अंग्रेजों की चाल थी अन्यथा भारत का पक्ष बहुत न्यायसंगत था . पर नेहरु जी अंग्रेजों से धोखा खा गए . इसलिए खोये कश्मीर के दुःख से पहले यह भी सोच लें कि बिना नेहरु जी के कश्मीर हमको नहीं मिल सकता था .
चीन के मामले मैं नेहरु जी अवश्य दोषी हैं . उनको अपनी गुट निरपेक्ष समुदाय से बड़ी आशा थीं . जो पूरी नहीं हुयी . उनकी रक्षा मंत्री की पसंद खराब थी . सेना पर खर्चे को व्यर्थ मानने की प्रवृति घातक सिद्ध हुयी .परन्तु हर सरकार आज भी रक्षा के खर्चे को मजबूरी मानती है और फिर पछताती है . मुंबई के समय हमारे पास टैंक के गोले नहीं थे . बाबुओं की मुर्खता से अभिनन्दन का हवाई जहाज गिरा . रक्षा क्षेत्र मैं लालच व बाबुओं का बोलबाला आज भी घातक है .
यदि इन दो मुख्य भूलों को छोड़ दें तो देश को नेहरु जी का आज भी आभारी होना चाहिए . नेहरु जी ने अपने प्रजा तंत्र पर अटल विश्वास से देश को अधिनायक वाद से मुक्त रखा . भारतीय प्रजातंत्र की सफलता की मजबूत नींव डालना नेहरु जी का सबसे बड़ी उपलब्धि है . स्वतंत्रता के बाद देश की जो तकनीकी शिक्षा , वैज्ञानिक व औद्योगिक प्रगति हुयी है उसका आधार भी नेहरु जी की दूरदृष्टि ही है . उनकी विद्वानों को परखने की क्षमता व् उन पर विश्वास गजब का था जिससे देश को बहुत फायदा हुआ . आज की तरह सब पर हावी बाबु राज नहीं था.
मिश्रित अर्थ व्यवस्था जिसमें बड़े क्षेत्र के उद्यम सरकारी थे और छोटे उद्योग प्राइवेट निजी क्षेत्र के लिए थे , उस समय के लिए आदर्श पालिसी थी . कृषि व सिंचाई , विज्ञान , उद्योग हर क्षेत्र मैं भारत को आगे बढ़ने की आधार शिला नेहरु जी की देन है.
नेहरु जी का आज का रोज़ का दोषारोपण उनकी हिन्दू धर्म की अवहेलना के कारण हो रहा है जो कांग्रेस की लम्बे समय तक आधिकारिक नीति भी रही और इसी का उसे अब नुक्सान भी उठाना पडा .
नेहरु जी की धर्म की उपेक्षा के दो पहलु हैं . डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया पुस्तक में उन्होंने इसका कारण भी बताया था . नेहरु जी को हिन्दू दर्शन का पूर्ण ज्ञान था जो उनकी पुस्तक के पाठक जानते होंगे . उनको विश्व इतिहास व् पश्चिमी संस्कृति का भी पूर्ण ज्ञान था . उनके विवेक से शास्त्रों की पूजा पध्यति व् हिन्दू आत्म ज्ञान का नए युग की समस्यायों को सुलझाने मैं बहुत महत्त्व नहीं था . यही मत अल बिरूनी और अंग्रेजों का भी था . देश को विज्ञानं व् टेक्नोलॉजी का पिछडापन ही दूर करना प्रमुख समस्या थी . इसके अलावा वह अंग्रेजी सेकुलरिज्म , गलेलियो व् कोप्पेर्निकस की दुर्गति को समझते थे . इसलिए वह समाज को आधुनिक समाज बनाना चाहते थे जिसमें वह कुछ हद तक सफल हुए . धर्म के आधार पर विभाजित देश मैं सेकुलरिज्म उस समय एक अच्छा आदर्श था जिसका इंदिरा गाँधी व सोनिया गाँधी के काल में बहुत दुरुयोग हुआ . अंत में जनता आदर्शहीन विधर्मी सरकार से त्रस्त हो गयी और अब तो कांग्रेस की मात्र चिता जलना ही शेष है .
परन्तु जैसा ईरान के शाह , तुर्की के कमाल पाशा के साथ हुआ वही भारत मैं हुआ . धर्म व संस्कृति की जड़ें हमारे समाज मैं बहुत गहरी हैं और कोई नेहरु या इंदिरा, राजीव या सोनिया गाँधी उनको समाप्त नहीं कर सकती . इसी कारण से कांग्रेस समाप्त हो गयी .
परन्तु हिन्दू धर्म की इस जीत मैं भी भारत की हार है .अयोध्या , मथुरा , काशी को आजाद हर हिन्दू देखना चाहता है और इसे कोई नहीं रोक सकेगा . औरंगजेब सदा सदा के लिए भारत भाग्तीय विधाता नहीं बन सकता. तीर्थों का आधुनिकी करण बहुत पहले हो जाना चाहिए था . आज जो आधुनिकीकरण हो रहा है वह हर हिन्दू चाहता है . परन्तु इसके अलावा राजनितिक लाभ या मजबूरी मैं टीवी पर समाज मैं जो द्वेष फैलाया जा रहा है इससे भारत को भविष्य मैं बहुत नुक्सान उठाना पडेगा . जातीय आरक्षण ने पिछड़ेपन को एक उपलब्धि बना दिया है . इसका भी देश को बहुत नुक्सान होगा . आज गौशाला पर हजारों करोड़ रूपये खर्च करना अनावश्यक है . कर्म काँडी धर्म अध्यात्मिक धर्म की परिभाषा पर हावी हो कर देश की युवा पीढी को गुमराह कर रहा है .
हमारी प्रथम समस्या आज भी गरीबी है . दूसरी मुख्य समस्या हमारी विक्ष्पित अति नारीवाद से बिखरती पारिवारिक व्यवस्था है . पिछले साठ वर्षों की उपलब्धि को नकार कर धर्म , जाति व गरीबी की बढ़ती सामाजिक खाई को पाटना भी एक बड़ी सामाजिक समस्या है .
समाज को अपनी वास्तविक समस्यायों को सुलझना होगा . यह सच है की सरकार आर्थिक मोर्चे पर प्रयासरत है यद्यपि सुस्त है परन्तु अन्य विषयों पर पुनर्विचार आवश्यक है . और इसी पुनर्विचार से आज भी नेहरु जी की सार्थकता सिद्ध हो जायेगी .