Post Gulshan Kumar Murder : बैजू बावरा के मन तडपत हरि दर्शन से उल्लू का पट्ठा तक हिंदी फिल्म संगीत के पतन का इतिहास : क्या फिल्मों में अच्छे भजनों व गीतों का पुनर्जन्म संभव है ?

Post Gulshan Kumar Murder : बैजू बावरा के ‘ मन तडपत हरी दर्शन’  से फिल्म जग्गा जासूस के  गीत ‘उल्लू का  पट्ठा ‘ तक हिंदी फिल्म संगीत के पतन का इतिहास :क्या फिल्मों में अच्छे भजनों व गीतों का पुनर्जन्म संभव है?

राजीव उपाध्याय 

अभी हाल ही में घोषित फिल्म फेयर अवार्ड में ३०० करोड़ रूपये कमाने वाली फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’  को न कोई पुरस्कार दिया गया न ही उसके कलाकारों को प्रोग्राम में आमंत्रित किया गया . यह दर्शाता है कि बॉलीवुड अब भी  दावूद इब्राहीम गैंग  के शिकंजे मैं पूरी तरह से  जकड़ा हुआ है. इसलिए उस से किसी तरह की बेहतरी की उम्मीद करना बेकार है .

कैसे हुई थी गुलशन कुमार की हत्या? | Why Underworld killed Gulshan Kumar? - YouTubeइस पतन की कहानी तो १९९८ में गुलशन कुमार की ह्त्या से शुरू हुई थी . उनके हत्यारा  नदीम अब भी दुबई में छुट्टा घूम रहा है . इसलिए दावूद का डर हमारे फिल्म कारों पर हावी है . गुलशन कुमार की ह्त्या के बाद फिल्मों से अच्छे भजन तो तुरंत गायब हो गए .फिर हिन्दू देवी देवताओं का अपमान और फिल्मों का इस्लामीकरण शुरू हुआ जिसकी पराकाष्ठा फिल्म ‘ पी के ‘ के शिवजी वाले फूहड़ दृश्य के चित्रांकन से हुयी . सिर्फ भजन ही नहीं फिल्मों को  भारतीय संस्कृति परिवार व्यवस्था को तोड़ने का माध्यम बना लिया गया .बाजी राव मस्तानी फिल्म में भी महिमा मंडन मस्तानी व् इस्लामी परम्पराओं का ही किया गया .

जैसे अँगरेज़ ज़मींदारों के माध्यम से शासन करते थे ऐसे ही दावूद गैंग भी अपने चुनिन्दा एक्टरों व् प्रोड्यूसरों  व् उनके बच्चों को आगे बढ़ा कर बाकि बॉलीवुड पर राज कर रहा है .खान गैंग व उसके चुनिन्दा मित्रों की  तूती  बोलती है और सुशांत राजपूत , दिव्या भारती जैसे कलाकारों की ह्त्या हो

जाती है . राकेश रोशन , हृतिक रोशन जैसे लोग हाशिये पर जीवित हैं .इनके क्लब में कथित रूप से ड्रग व पोर्न के बिना प्रवेश असंभव है .

अंततः हर कोई स्वार्थ वश व डर से समझौता कर लेता है जैसे १९४२ लव स्टोरी बनाने वाले विधु विनोद चोप्डा भी पी के मैं शिव जी को रिक्शा खींचते हुए दृश्य की शूटिंग तो कर लेते हैं या लूडो फिल्म मैं काली देवी का फूहड़ चित्रण किया जाता है .

इस से सबसे अधिक प्रभावित हिंदी शास्त्रीय रागों पर आधारित सुन्दर भावों को दर्शाने वाले गीतों को गायब कर कर किया गया .अजान के ऊंचे स्वरों मैं अधिकाँश गीत बनने लगे जिनके लिए पाकिस्तानी राहत फतह अली खान या अतीक असलम जैसे गायकों की आवश्यकता पड़ने लगी .बची खुची कसर अति निम्न कोटी के गीतों को पुरस्कृत कर पूरी कर दी जिससे फूहड़ गीतों की परम्परा बन सके . ऐसी ही एक फिल्म जग्गा  जासूस के गीत ‘ उल्लू का पट्ठा ‘ के बोल नीचे दिए गए हैं . इस गीत को व् इसके संगीत कार को २०१७ मैं सर्व श्रेष्ठ गीत व् संगीत कार का फिल्म फेयर  पुरस्कार दिया गया  था . इसके बाद १९५४  के ‘ बैजू बावरा’ फिल्म के लिए पुरस्कृत संगीत कार नौशाद व गीत कार शकील बदायुनी की  आत्मा दुबारा  आत्महत्या कर लेंगी .( Ullu Ka Pattha Full Video Song | Jagga Jasoos | Ranbir Katrina | Pritam Amitabh B Arijit Singh – YouTube)

”जाना ना हो जहाँ वहीं जाता है
दिल उल्लू का पट्ठा है (उल्लू-ले, उल्लू-ले)
फूटी तक़दीर क्यूँ आज़माता है?
दिल उल्लू का पट्ठा है (उल्लू-ले, उल्लू-ले)
जाना ना हो जहाँ वहीं जाता है
दिल उल्लू का पट्ठा है (उल्लू-ले, उल्लू-ले)
फूटी तक़दीर क्यूँ आज़माता है?
दिल उल्लू का पट्ठा है (उल्लू-ले, उल्लू-ले)
बेसर-पैर की हैं इसकी आदतें
आफत को जान के देता है दावतें

जैसे आता है, चुटकी में जाता है
दिल १००-१०० का छुट्टा है (उल्लू-ले, उल्लू-ले)
ओ, जाना ना हो जहाँ वहीं जाता है
दिल उल्लू का पट्ठा है’

ऐसे गाने तो सदा लिखे व सुने जाते थे और वेश्याएं तो हर युग मैं होती थीं पर उनको समाज मैं सार्वजनिक रूप से पुरुस्कृत कर संस्कृति  व  संस्कारों की   ह्त्या नहीं की जाती थी . इस सुनुयोजित षड्यंत्र को कोई अकेला नहीं तोड़ सकता है .अगर गुलशन कुमार की ह्त्या हो गयी और राकेश रोशन पर गोली चल गयी तो अब कौन साहस करेगा .

बॉलीवुड को इस शिकंजे से निकालना आवश्यक है .देश मैं सिर्फ उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री  योगी आदित्य नाथ ही यह कार्य कर सकते हैं .

इसका प्रारंभ अयोध्या में राम मंदिर के उदघाटन पर या रामनवमी पर देश व्यापी वार्षिक भजन लेखन व गायन की प्रतियोगिता करा कर की जा सकती है जिसका पुरस्कार नोबल पुरूस्कार की तरह एक करोड़ रूपये का हो और अन्य पुरूस्कार भी ऐसे ही हों . देश की संकृति को दावूद गैंग से बचाने के लिए यह धन राशि अधिक नहीं है .बाद में अन्य  गीतों को भी इसमें जोड़ा जा सकता है .

अंत मैं उत्तर प्रदेश के नोइडा फिल्म सिटी को स्वच्छ फिल्मों का केंद्र बनाया जा सकता है .

Filed in: Articles, Entertainment, संस्कृति

No comments yet.

Leave a Reply