Dangerous UCC : उत्तराखंड का नया कानून सारी पारंपरिक भारतीय पारिवारिक व्यवस्था को ध्वस्त कर देगा : इसे तुरंत निरस्त होना चाहिए

Dangerous UCC : उत्तराखंड का नया कानून सारी पारंपरिक भारतीय पारिवारिक व्यवस्था को ध्वस्त कर देगा : इसे तुरंत निरस्त होना चाहिए

राजीव उपाध्याय

अभी हाल मैं अपनी सुरंग के लिए चर्चित उत्तराखंड राज्य ने एक नया कानून बनाया है जिसे Uniform Civil Code भी कहा जा रहा है . परन्तु यह कानून एक बारूदी सुरंग है जो समस्त भारतीय सामाजिक व्यवस्था को ध्वस्त कर देगी चाहे वह हिन्दू हों या मुस्लिम या इसाई या सिख . इसके कुछ नमूने देखिये

१. अब उत्तराखंड मैं homosexual या  lesbian तो साथ साथ एक घर मैं रह सकते हें किन्तु सामान्य लड़का लड़की नहीं ! उनको live in के लिए रजिस्ट्रार को बताना होगा और पुलिस उनकी आयु २१ वर्ष से कम होने पर उनके माँ बाप को सूचित करेगी . रजिस्ट्रार को बिना बताये एक महीने से अधिक साथ रहना एक दंडनीय अपराध जिसके लिए जेल भी हो सकती है . परन्तु अगर आप समलैंगिक तो मजे से साथ रहिये ! रजिस्ट्रार के नोटिस का जबाब न देने पर जेल ! यानी अब पुलिस हर घर मैं घुस सकती है ! हमारी व्यक्तिगत स्वतंत्रता तो  गयी तेल लेने अब सिर्फ पोलिस राज होगा !

२.Live in के समाप्त होने को भी सूचित करना होगा अन्यथा दंड मिलेगा . लड़की बिना शादी के भी maintenance मांग सकती है . फिर वही कोर्ट व वकीलों के चक्कर जिनसे बचने के लिए ही तो लाइव इन गुजरात मैं मैत्री करार के नाम से शुरू हुआ था , अब फिर शुरू हो जाएगा . अंततः जल्दी न्याय   दिलाने के लिए नए दवूद आ जायेंगे . न्यायालयों  के अब तक के फैसलों मैं व्स्यक   लड़की व लड़का अपनी मर्जी से साथ रह सकते थे . अब वह व्यक्तिगत अधिकार भी छीन गया . यह मानव स्वतंत्रता का उपहास है .

३. बिना शादी के उत्पन्न संतानों को अब संपत्ति मैं बराबर का अधिकार होगा . शायद ND Tiwari के बहु चर्चित केस से इसकी प्रेरणा मिली है . Live In के प्रचलन मैं इससे बहुत बढ़ोतरी होगी . परन्तु यदि तीन चार साल के अनेक लिव  इन हुए तो दोनों स्त्री व पुरुष की अनेकों अवैध संतानों की गिनती करते कोई प्रॉपर्टी वारिसों को दशकों तक नहीं मिलेगी . फिर विवाह का क्या महत्व रह जाएगा . यह विवाह की संस्था को  इस तरह बेकार बनाने कि शुरुआत है जिसके दूरगामी परिणाम बहुत खराब होंगे .कुछ के लिए सब को दंड देना अनुचित होगा . इतने मुकद्दमे झेलेगा कौन ? इस पर विज्ञानं की नयी समस्याएं हें . क्या क्या वीर्य या अंडे दान करने वाले लड़के लड़कियां उनसे उनसे उत्पन्न सब   बच्चों के लिए जिम्मेवार होंगे या उन सबका प्रॉपर्टी पर  बराबर का अधिकार होगा ?

४. शायद मुसलमानों के बहु विवाह , तलाक , हलाला को रोकने के लिए अब सब पर एक विवाह का कानून लागू होगा . परन्तु HUF ,आदिवासियों व पुराने पारंपरिक रिवाजों को इससे दूर रखा गया है . तो मुसलामानों की प्रथा भी एक हजार  साल पुरानी  है .उनका भी इसको अपने ऊपर न लागू होने कि मांग भी तर्क संगत है . सिर्फ हलाला और जबरन बहु विवाह जैसी विसंगतियों को दूर कर उन पर क्यों व्यर्थ  नया कानून लादा जाय .

५. आज इस बात का भी मूल्यांकन होना चाहिए कि हर किसी के द्वारा पश्चिम की अंधा धुंध  नक़ल मैं नेताओं और जजों द्वारा सिर्फ पुरुषों पर क्यों अत्याचार किये जा रहे हें . इन ऊट पटांग कानूनों से उसका जीवन नरक बनता जा रहा है .हर जानवर मैं नर व मादा दोनों अपना पेट खुद भरते हें . पाशाण युग मैं यह मानवों पर भी लागू था . खेती से पारिवारिक व्यवस्था उत्पन्न् हुयी  . बहुत बच्चों के ज़िंदा बच  जाने से घर का काम बढ़ा और  काम का बँटवारा हुआ . एक स्त्री घर मैं रहने लगी और पुरुष  कमाता था और सब की सुख सुविधा का ख्याल रखता था . यह लड़ाई कृषि युग के मूल्यों के औद्योगिक समाज पर लागू होने की है जिस पर गंभीर चिंतन की आवश्यकता है . महाभारत व रामायण काल से मानव प्रकृति नहीं बदली है .

जब तक यह व्यवस्था थी तब  तक maintenance का औचित्य था . अब जब दोनों बराबर शिक्षित हें और काम भी करते हें तो पुरुष क्यों स्त्री व बच्चों  का बोझ अकेले ढोए ? दोनों की बराबर जिम्मेवारी होनी चाहिए . हिन्दू विवाह पद्धति  को न्यायालयों ने दखल दे दे कर बिलकुल पलट दिया है . आज क्यों तलाकशुदा पत्नी क्यों पति कि जिम्मेवारी हो जब कि आज माँ बाप कि दो ही संतानें होती है और आज बूढ़े माँ बाप तलाक शुदा लड़की को घर रखने से कोई बहुत घाटे मैं नहीं रहते . उनकी इस तत्परता से  लड्कियों  मैं आलस्य व असहिष्णुता  बढ़ रही है . वह छोटी सी नौकरी के नाम पर पारिवारिक काम से बचना चाह रही है और फैशन व मोबाइल पर लगी रहती हें . टीवी और मोबाइल ने उसकी ऐसो आराम की चाहत बहुत बढ़ा दी है .क्यों न  बच्चों को पिता  को  दे कर स्त्री  व पुरुष दोनों को तलाक के बाद भविष्य के लिए बिना किसी शर्त पूर्णतः मुक्त कर दिया जाय .

इस पूरी वैवाहिक व्यवस्था का औचित्य  दुबारा परखने की आवश्यकता है .सबसे अच्छा होगा कि बाकी सब छोड़ सिर्फ एक ‘ Contract Marriage ‘ भी मान्यता दे दी जाय जिसमें २१ साल से अधिक आयु के लड़के व लड़की को अपने शर्तों के अनुसार जीवन व्यतीत करने दिया जाय . सरकार एक वैकल्पिक स्टैण्डर्ड कॉन्ट्रैक्ट बना दे जो पसंद करे उसे अपना ले . जो हिन्दू , सिख , इसाई या मुसलमान पद्धति से जीवन व्यतीत करना चाहें उनको कोर्ट व सरकार व्यर्थ मैं तंग  न करें .

मैं यह भी कहूंगा कि आज शिक्षित मध्यम  वर्गीय मुस्लिम  समाज की पारिवारिक व्यवस्था हिन्दुओं से बेहतर है . हलाला और तीन तलाक  तो बहुत कम होते हें .बात बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की है . उनमें बूढ़े माँ बाप की वह दुर्गति नहीं हुयी हें जो हिन्दू समाज ने तथाकथित आधुनिकी करण,महिला वोट बैंक राजनीती व पश्चिम की अंधी नक़ल  के चलते अपनी हालत कर ली है . बूढा तो सबको होना है . यदि सर्वस्व  निछावर कर बच्चों को बड़ा करने वाले माँ बाप का बुढापा कौन संवारेगा ? हिन्दुओं  को फिर से अपनी पुरानी  पारंपरिक वैवाहिक पद्धति को अपनाने कि आवश्यकता है .जिसे अपने अधिक अधिकार जरूर चाहिए वह अपने जैसे से कॉन्ट्रैक्ट शादी कर ले बस ! भारत कि विविधता मैं एक नागरिक संहिता नहीं बन सकती न ही इसकी आवश्यकता है.

समाज की संरचना नेताओं य जजों से नहीं हो सकती . हमारे मूल्य हमारी ऋषियों की युग युगांतर की धरोहर है उनको कोई गाँधी ,दयानंद सरस्वती या राम मोहन रॉय सरीखा महापुरुष हिलाए तो कुछ सफल हो सकता  है . सामान्य लोगों को समाज बदलने कि अखबारों मैं फोटो खींचाने व  तुरंत वाह वाही लूटने कि ललक छोड़ देनी चाहिए !

पर उत्तराखंड सरकार ने कुछ भी नहीं सोचा और बिना दूरगामी परिणाम सोचे वोट राजनीती के लिए क़ानून बना दिया जो हर भारत वासी के लिए ज़हर की पुडिया है .

इस कानून को तुरंत निरस्त करना चाहिए .

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