अयोध्या, राम की नगरी से सीता की अग्नि परिक्षा कराने वाले धोबियों की नगरी बनी ; निवासियों की कृतघ्नता , लोलुपता ,स्वार्थ परायणता या सरकारी तंत्र के अन्याय का विरोध : क्या हिन्दू भविष्य अन्धकार मय है ?
राजीव उपाध्याय
अयोध्या की मैं बीजेपी की हार से देश शर्मिंदा है.यह सिर्फ कोई साधारण चुनावी हार नहीं है परन्तु हिन्दू समाज के कुत्सित चेहरे का प्रतिबिम्ब है. इस सदमे को समझने के लिए बहुत आत्ममंथन की आवश्यकता है. इस के देश और हिन्दू समाज के लिए बहुत अशुभ दूरगामी परिणाम होंगे .
पिछले पांच वर्षों से देश का ध्यान राम मंदिर के बनने पर था . राम मंदिर का महत्व तो देश के हर कोने से एक करोड़ लोगों के कुछ ही महीनों मैं दर्शन के लिए जाने से साफ़ हो जाता है. जितना विकास अयोध्या का हुआ उतना कहीं नहीं हुआ . सिर्फ पर्यटन से ही इतनी नये रोज़गार के अवसर बने हें कि जनता कोई शिकायत नहीं कर सकती .
कुछ शिकायतें बहुत जायज़ थीं जैसे लोगों को समय पर पर्याप्त मुआवजा नहीं दिया. सरकार के तंत्र ने बहुत बेरहमी से काम किया . यह शिकायत बनारस मैं भी थी जहाँ के निवासी भी रोज़ी रोटी व घर बार छिन न जाने से ठगे से महसूस कर रहे थे.
बनारस व राम मंदिर की सफलता ने जिनकी ज़मीन या दूकान ली उनके लिए न्याय व करुणा के द्वार बंद कर दिए. इतने बड़े यग्य मैं आहुती देने वालों की कुछ तो पूछ होनी चाहिए थी. यह बीजेपी सरकार की बहुत बड़ी कमजोरी है जिसे सुधारना आवश्यक है. पार्टी सदा अपने राष्ट्रवादी चोले मैं सरकार जनता से दूर हो जाती है और सत्ता मैं आते ही समर्थकों व कार्यकर्ताओं को स्कूल मास्टर की तरह हांकने लगती है.
परन्तु ऐसे लोग तो गिनती मैं बहुत कम थे . बाकि लोगों को क्या हो गया था ? वह किस प्रलोभन मैं मंदिर के लिए सब कुछ न्योछावर करने वालों को जीता नहीं सकी. देश के अधिकाँश नागरिक अयोध्या की इस गलती से शर्मसार है और विदेशी व विधर्मी हंस रहे हें . जिन लोगों ने किसी सीट या किसी पद के या पैसे के लिए ऐसा किया या जिन्होंने असहनीय ठाकुरवाद के चलते यह किया उनको बड़े परिपेक्ष मैं सोचना चाहिए था. जात पांत तो उत्तर प्रदेश की विडंबना है . पिछले बीस साल मैं प्रदेश तमिलनाडु व कर्णाटक जैसे राज्यों से पिछड़ता ही चला गया . प्रदेश मैं गुंडों का आतंक था . पहली बार प्रदेश को गुंडा भय मुक्त समय मिला . प्रदेश की आर्थिक उन्नति भी हुई. इन सब परिस्थितियों मैं छोटे छोटे मतभेदों को भुला कर एक बृहत् दृष्टिकोण से देखना चाहिए था .
यदि हिन्दुओं को बांटना इतना ही सरल है तो फिर तो कल कोई अँगरेज़ या अब्दाली या गौरी या गजिनी फिर आ धमकेगा . पश्चिम तो हमारा विभाजन चाहता ही है. आशा थी कि अब कोई मीर ज़फर नहीं बनेगा . आक्रमणकारी विधर्मियों का अब कारगर विरोध होगा .कश्मीर से लाखों लोग भाग लिए पर किसी ने प्रतिकार नहीं किया कोई बन्दूक से मुकाबला करने का साहस नहीं कर पाया .उत्तर प्रदेश मैं भी पहले भी कैराना के अपने घरों से हिन्दू निकाले गए पर सब चुप रहे. आज़म खान के समय लौटते जाटों पर ए के – ४७ से गोलियां चली थीं . पर उन सब को भुला कर उन्होंने जात पांत पर वोट दे दिया था. फिर यही अब अयोध्या मैं हो गया. जातियों मैं बंटे व्यर्थ का घमंड पाले हम इतिहास से कुछ सीखने लायक ही नहीं हें .
देश को इस विभीषिका से उबारने के लिए गंभीर चिंतन करना होगा .