मानव जीवन की लघुता पर अनेक मनीषियो ने अपने विचार व्यक्त किये हैं आज हम आपकी सेवा में कुछ
उर्दू शायरों द्वारा इस विषय पर जो कहा गया उसका एक छोटा सा नमूना पेश कर रहे हैं
अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुरशाह ज़फर का यह शेर तो आपने अवश्य सुना होगा
“उम्रे दराज़ मांग कर लाये थे चार दिन
दो आरजू में कट गए दो इंतज़ार में ”
उस्ताद जौक ने लम्बी उमर की लालसा पर ही कटाक्ष किया
” हो उमरे खिज्र भी तो कहेंगे बवक्ते मर्ग
हम क्या रहे यहाँ अभी आये अभी चले ”
हास्य कवि अकबर इलाहाबादी ने मशविरा दिया
“चार दिन की ज़िन्दगी है कोफ़्त से क्या फायदा
कर किलर्की खा डबल रोटी ख़ुशी से फूल जा ”
फैज़ साहेब ने इस समस्या का एक और ही पहलू उजागर किया
“इक फुर्सते गुनाह मिली वह भी चार दिन
देखे हैं हमने हौसले परवरदिगार के ”
लेकिन मुझे जो शेर सब से ज्यादा पसंद आया वह
फिराक गोरखपुरी का कहा है
” यह माना ज़िन्दगी है चार दिन की
बहुत होते हैं यारो चार दिन भी ”
—————————————————————————–
खिज्र =उर्दू परंपरा के अनुसार एक अत्यंत वयोवृध्ध मार्गदर्शक
फ़ुर्सते गुनाह = पाप करने की मोहलत
परवरदिगार = अल्लाह ,ईश्वर