आज दस बीस साल बाद जोर जोर से दैहिक शोषण पर चिल्लाने वाली औरतों से कोई पूछे की यदि संजय दत्त अपनी २०६ रातों को रंगीन करने वाली औरतों के नाम जग जाहिर करे तो माधुरी री दीक्षित जैसी प्रतिष्ठित व् सुखी पारिवारिक जीवन व्यतीत करने वाली औरतों का क्या होगा ?
शोषण की एक सर्वमान्य परिभाषा बनाना भी उचित होगा ?
पैसे या प्रसिद्धि के लिए लालच मैं किया गया कृत्य शोषण नहीं सौदा होता है .
एक बार औरतों से अलग सोचें .
क्या अल्लाउदीन खिलजी ने गुलाम मालिक काफूर का यौन शोषण किया था या रज़िया सुल्ताना ने याकूब का यौन शोषण किया था ? क्या राज कपूर ने नर्गिस का या अमिताभ ने रेखा का यौन शोषण किया था ? मालिक काफूर गुलाम से सेनापति बन गया और यहाँ तक की उसने अल्लाउद्दीन की ह्त्या कर अपने को सुलतान घोषित कर दिया . उसने अल्लाउद्दीन का शोषण किया या अल्लाउद्दीन ने उसका ?
राज कपूर से जब सिम्मी ग्रेवाल से सीधा पुछा की क्या उन्होंने नारी देह का प्रदर्शन कर शोषण नहीं किया तो राज कपूर ने सीधा कहा की सेक्स कलात्मक सृजन की एक आवश्यकता है उसका उपयोग शोषण नहीं पोषण होता है. मनो वैज्ञानिक भी इसकी पुष्टि करेंगे की वीर व् कलात्मक पुरुष व् स्त्रियों की सेक्स की आवश्यकता सामान्य लोगों से कहीं अधिक होती है . फिल्म उद्योग ऐसे ही कलात्मक लोगों से भरा हुआ है .
पुरुष सदा से अपने पैसे व् सत्ता का सेक्स के लिए उपयोग करता आया है और औरत सदा से देह का पैसे के लिए उपयोग करती आयी हैं . राजाओं के बहु विवाह या हरम व् रूस कैथरीन जैसी रानी के व्यापक सेक्स सम्बन्ध इसका प्रमाण हैं . खुला सेक्स प्राकृतिक है . विवाह एक सामाजिक बंधन है जो मध्यम वर्ग की परिवार के हित में पवित्र आवश्यकता है, उच्च या नीच वर्ग की नहीं . फिल्म चक्र के चौल के दृश्य एक अन्य जीवन को दिखाते हैं . पैसे के लिए वैश्या भी काम करती है . मेरिलिन मुनरो भी पहले ब्लू फिम की एक्ट्रेस थी .
राष्ट्रपति कैनेडी के साथ उसके चर्चे जग विदित हैं . पकिस्तान की नूर जहाँ के राष्ट्रपति याहया खान से सम्बन्ध जग विदित हैं . उसे जनरल रानी भी कहते हे .पहले वेश्याएं ही फिल्म उद्योग मैं आती थीं . अच्छे घर की औरतें कहाँ फिल्मों मैं आती थीं . मॉडलिंग को करियर मानने वालियों को राज कपूर की उस बात को समझना होगा की यह उद्योग अधिक सेक्सी लोगों का है जिसमें कला सिर्फ अनेकों में से एक जरूरत है . इस उद्योग में मीना कुमारी ने धर्मेंद्र का शोषण नहीं किया था न ही इमरान खान ने विलायत मैं अनेकों स्त्रियों का शोषण किया था .
यदि शर्मिला टैगोर स्वयं चालीस साल पहले बिकनी शॉट दे तो कला है यदि प्रोडूसर उसे कपड़े उतरने को कहे तो शोषण है , यह कैसी दोहरी मानसिकता है . क्या चंडीगढ़ की एक वकील ने डेबोनियर पत्रिका मैं नग्न तस्वीर नहीं छपवाई थी जिसके लिए उसे बार कौंसिल से निकाला गया था . उसने पैसे के लिए देह प्रदर्शन नहीं किया .
पुरुष एक नग्न स्त्री को देख एक क्षणिक सुख पाता है और औरत पुरुष पर अपनी दैहिक नग्नता से एक शक्ति पाती है . यह नारी का ईश्वरीय सशक्तिकरण है जो आज के मानव निर्मित सशक्तिकरण से कहीं ज्यादा कारगार है .
इस लिए देह प्रदर्शन करने और करवाने मैं क्या अंतर है ?
वास्तव में ‘ Mee Too ‘ कमजोर महिलाओं की ट्रेड यूनियनी हथकंडों से पुरुषों पर सत्ता पाने की लड़ाई है . इसका कोई मानवीय या आदर्श पहलु नहीं है .
यदि सेक्स का उपयोग बुरा है तो अब पैसे व् प्रसिद्धि के लिए सेक्स का उपयोग करने वाली सनी ल्योनी या प्रीती जैन को क्यों नहीं जेल या देश निकाला देते . उनमें और वैश्यायों मैं क्या अंतर है दोनों ने ही अपनी देह का उपयोग अपनी अन्य इच्छाओं की पूर्ति के लिए किया था .आपको हेरोइन का रोल चाहिए जिससे आपको प्रसिद्धि व् पैसा मिले , पैसे वाले प्रोडूसर को सुन्दर स्त्रियों का संसर्ग चाहिए . उनके सम्बन्ध देने लेने का सौदा हैं जिसमें कोई किसी का शोषण नहीं कर रहा . आप क्यों हेरोइन बनना चाहती हैं क्लर्क क्यों नहीं बन जातीं ? क्या आपने कल्की या विनीता की शक्ल देखी है . किस तरफ से यह हेरोइन बनने लायक थीं ? यदि उन्होंने देह के सौदे से रोल लिया तो किसने किसका शोषण किया ?
फिल्म उद्योग देवी देवताओं के लिए नहीं है . यह स्वप्न लोक है . इसकी वास्तविकता को जानें तब घुसें .
अब फिल्म जगत को छोड़ और नौकरियों को लें .
मेरे एक विदेश सेवा के परिचित ने मुझे विदेश की एक कहानी सुनायी . एक अकेली जवान महिला डॉक्टर मध्य पूर्व में एक मुसलिम राष्ट्र में नौकरी करने गयी . थोड़े दिनों बाद अरब ने उसे घर आने के लिए कहा और अंत मैं सेक्स की मांग कर डाली . मेरे परिचित ने औरत की गाथा सुन कर उसे तुरंत वीसा दे कर भारत भेजने की पेशकश की . परन्तु औरत ने स्थिति से समझौते मैं अपना हित समझा . पुरुषों का शोषण भी दैहिक ही होता है परन्तु वह अत्यधिक काम ले कर होता है . पुरुष मजबूरी मैं नारकीय परिस्थितियों मैं रह कर घर पैसा भेजता रहता है . औरतें सेक्स के दैहिक शोषण का शिकार हो जाती हैं . सब मजबूरी के मारे होते हैं . इसमें शोषण एक गरीबों का व्यापक आर्थिक शोषण है और इसे स्त्री या पुरुष के पहलू से नहीं देखा जाना चाहिए . यदि विदेशी डॉक्टर जैसी नारी मना कर दे तो कौन उसका शोषण कर सकता है ? परन्तु नारियों की रक्षा आवश्यक अवश्य है परन्तु अब इस हेतु बहुत कानून बन चुके हैं जिनका अब दुरूपयोग हो रहा है . अब और नए इकतरफा कानूनों की जरूरत नहीं है .
भारत मैं अभी माध्यम वर्गीय स्त्रियाँ नयी नयी बाहर आयी हैं . थोड़े दिनों में सब इसके अभ्यस्त हो जायेंगे . इसमें ज्यादा हो हल्ला करने की जरूरत नहीं है . यदि माध्यम वर्गीय स्त्रियाँ बाहर कामोत्त्जक पोशाक पहनती हें या कमोत्तोजक आचरण करती हें तो उन्हें निर्दोष नहीं कहा जा सकता . उनका कानूनी संरक्षण उतना आवश्यक नहीं है .पुरुषों को सार्वजानिक जीवन में कामोत्त्जित करना भी अपराध होना चाहिए. पुरुषों का बातचीत का लहजा अलग होता है . यदि वह आदतन य शराब पी कर गालियाँ देते हैं , अश्लील जोक्स भी सुनाते हैं तो आप उनसे दूर रहें . वह थोड़ी देर के लिए वह बदल सकते हैं पर ज्यादा परिवर्तन की अपेक्षा अनुचित है . महिलाओं की क्षणिक सुविधा के लिए समर्थ व् सृजनात्मक व् वीर पुरुषों को जनाना बनाना सामाजिक हित में नहीं होगा .
एम् जे अकबर और प्रिय रमणी की क़ाबलियत मैं क्या मुकाबला है ?
इस लिए दस या बीस साल बाद स्त्रियों का ट्रेड यूनियन बना कर पुरुषों को जलील करना पुरुषों के साथ अन्याय है .
One Response to “‘Me Too’ व् पुरुषों का शोषण : अब स्वार्थी व् बेशर्म औरतों से फिल्म उद्योग को बचाने की आवश्यकता”