झूठे इलज़ाम लगाने वाली महिलाओं पर भी ह्त्या का मुकद्दमा चले : Did #Metoo’ take executive’s life – Genpact & गोपाल कांडा
Rajiv Upadhyay
न्याय के सामने सबकी बराबरी भारत के हर एक नागरिक का संवैधानिक न्यायिक अधिकार है . परन्तु वोट बैंक के जूनून ने पिछले कुछ दशकों मैं एक विशिष्ट वर्ग बन गया है , जो वोट बैंक के चलते अब समर्थ व् उपयोगी वर्ग से कहीं अधिक शक्तिशाली बन उसका दोहन कर रहा है . इस वर्ग मैं वह सबला नारियां आती हैं जो निर्बल नारी के लिए पास कानूनों का घोर दुरूपयोग कर समर्थ पुरुषों की दौलत व् अन्य सुविधाएं चूसती हैं . वह बोलीवूड की प्रीती जैन हो सकती हैं जो रोल न मिलने पर मधुर भंडारकर पर बलात्कार का झूठा आरोप लगा कर बलात्कार के कानूनों का घोर दुरूपयोग करती हैं . इसी तरह तलाक के लिए दहेज का झूटा आरोप लगा कर पति के पूरे परिवार को जेल दिलवाकर ऊंची रकम वसूलती हें. असहाय महिलाओं के लिए बनाए गए कानूनी प्रावधानों को समर्थ महिलाओं के ऊपर लागू नहीं होना चाहिए . इसी तरह लालच वश या द्वेष वश झूठे आरोप लगाने वाली या समर्थ पुरुषों को सेक्स जाल मैं फ़साने वाली महिलाओं के ऊपर वही दंड मिलना कहिये जो पुरुष को आरोप सिद्ध होने पर मिलता है . इसी श्रेणी में अब दफ्तरों में काम करने वाली वह महिलायें आती हें जो लेट आना व् जल्दी जाना अपना अधिकार मानने लगी हैं . फिर रोज़ रोज़ छोटी छोटी बात के लिए छुटी लेना जिनकी एक आदत हो गयी है . इन अकर्मण्य महिलाओं के पुरुष अधिकारी डर कर कुछ नहीं बोल पा रहे नहीं तो उन पर सेक्सुअल उत्पीडन का आरोप लगा कर फंसा देने की धमकी मिलती रहती है . अब तो पत्नियां भी पति को तलाक की धमकी देने लगी हैं. वैवाहिक औरतों के अब कोई कर्तव्य नहीं बचे सिर्फ अधिकार हें जिनसे वह पुरुषों का शोषण कर रही हें . यह स्थिति समाज के लिए अत्यंत दुखदायी सिद्ध होगी .
महिलायें पुरुषों जैसी ही मह्तावाकांशी होती हैं और उन मैं लालच , इर्ष्या , प्रतिस्पधा उतनी ही होती है जितनी पुरुष मैं . उनको पुरुष द्वारा देह पालन का अधिकार तभी तक होना चाहिए जब तक वह पुरुष के लिए उपयोगी हों . कर्तव्य पालन न करने पर उनको तलाक से कोई फायदा नहीं मिलना चाहिए . इसी तरह उनके लालच के लिए पुरुषों का सेक्स मैं फंसाने के दुरूपयोग पर भी दंड होना चाहिए . अब महिला मंत्रालय , कमीशन सब औरतों की ट्रेड यूनियन बन गए हें जन्में पुरुषों का उत्पीडन होता है .
प्राकृतिक न्याय के कानून के अनुसार आरोपी पुरुष को निर्दोष मन कर तब तक उसकी रक्षा करनी चाहिए जब तक आरोप सिद्ध न हो जाए . झूठे आरोपों से उसके सम्मान की रक्षा होनी चाहिए व् झूठे आरोप लगाने वाली महिलाओं को सख्त सज़ा मिलनी चाहिए .
उदाहरण के लिए दो बहु चर्चित केसों को लें . हरयाना के पूर्व गृह मंत्रि गोपाल कांडा ने अपनी एयरलाइन मैं जवान छोटी लड़कियों की भर्ती की . उन्हें जल्दी प्रमोशन दे कर ज्यादा तनख्वाह दी . उनमे से एक गीता ने संभवतः गर्भ के चलते आत्म ह्त्या कर ली . गोपाल कांडा जेल में सज़ा काट रहे हैं . परन्तु वह लडकियां जो बिना किसी ऊंची पढ़ाई के कंपनी में डायरेक्टर बन कर मर्सीडीज़ गाडी मैं आ रही थीं क्या वह दोषी नहीं हें . गोपाल कांडा ने कोई जबरदस्ती नहीं की थी . लालच वश स्त्रियों के देह समर्पण में सिर्फ पुरुष ही क्यों दोषी है ? यह उत्पीडन नहीं सौदा है जो अमरीका में सनी लयोनी जैसी पोर्न एक्ट्रेस करती हैं . रोज़मर्रा की जिंदगी में कितनी औरतें यह करती हें और पकडे जाने पर उसे उत्पीडन , बलात्कार इत्यादि घोषित कर देती हें . बलात्कार व् उत्पीडन व् सामान्य सेक्स के लगाव में फर्क करना जरूरी है . हर बिन ब्याही गर्भवती लड़की विवाह की हकदार नहीं है .
अब हाल के केस को लें .कानून में मृत्यु के समय दिया हुआ बयान साक्ष्य माना जाता है . जेन पैक कंपनी के एक अधिकारी स्वरुप राज ने हल ही मैं आत्महत्या कर ली . उनपर झूठे सेक्सुअल उत्पीडन के आरोप लगाये गए और वह यह अपमान नहीं बर्दाश्त कर सके . इस दुःख में उन्होंने आत्महत्या कर ली . झूटे आरोप लगाने वाली महिलाओं पर क्यों नहीं गैर इरादतन ह्त्या करने का मुकद्दमा चलाया जाता और कुछ वर्ष तो उन्हें भी जेल मैं रखा जाय जिससे यह झूठी आरोप लगाने की परम्परा टूट सके .नहीं तो कितने ही परिवार इस झूठ की बलिवेदी पर चढ़ जायेंगे .
वास्तव में अब सबला व् अबला नारी में अंतर करना आवश्यक हो गया है . महिला कर्मी एक सबला नारी है और सबला नारी को सामान्य न्याय की प्रक्रिया से गुजारना आवश्यक है . नारियों द्वारा पुरुषों का आर्थिक लाभ के लिए सेक्स जाल में फंसाना व् अन्य तरह से उत्पीडन भी दंडनीय अपराध होना चाहिए . विवाह मैं पुरुष को अपनी आवश्यकता अनुसार शादी की शर्त कॉन्ट्रैक्ट मैं लिखवाने को मान्यता मिलनी चाहिए जैसा की फेसबुक के मार्क जुकरबर्ग ने किया है या जैसे मुसलामानों में हक्के मेहर शादी पर तय किया जाता है . विवाह के नाम पर पुरुष को स्त्री का गुलाम बनाना सही नहीं है.
समाज की प्रगति व परिवार के संचालन में आज भी पुरुषों का महिलाओं से कहीं अधिक योगदान है . वैधव्य आज भी इसी लिये दुखद है .उनका आज कल हो रहा उत्पीडन घोर अन्याय के अतिरिक्त देश की सामाजिक प्रगति व् आर्थिक भलाई के लिए हानि कारक है .
Genpact assistant V-P Swaroop Raj commits suicide in Noida over accusations of sexual harassment
Swaroop Raj had been suspended from his company over the allegations till the case was being probed
HIGHLIGHTS
- Swaroop committed suicide at his Noida home early Tuesday morning
- He had been under psychological pressure after his company suspended him
- He was accused of sexual harassment by two employees at the firm
A senior executive of multinational professional services firm Genpact committed suicide this week. The executive, Swaroop Raj, was accused of sexual harassment by two employees at the firm.
Swaroop was the assistant vice-president of Genpact, a US-based professional services firm that has offices in Delhi-NCR. He had been suspended from his company over the allegations till the case was being probed.
Swaroop committed suicide at his Noida home early Tuesday morning (December 18).
Swaroop joined Genpact in 2007. He was from Ernakulam, Kerala; and stayed at Noida’s Paramount Society with his wife Kriti.
Kriti found Swaroop’s body after she returned home and informed the police after which his body was taken for postmortem.
Swaroop and Kriti married two years ago. Kriti worked in the same company.
The police recovered a suicide note from Swaroop’s house that he wrote to Kriti. In the suicide note, Swaroop said that his wife will now be less respected because of allegations against him and he will not be able to take it.
“Hi Kriti,
Today I want to let you know how much I love you. I have an allegation by two of the employees f sexual harassment and trust me I did not do anything. I know the world will understand it but you and our families should trust me. The allegations are baseless. But the entire Genpact will know about it, hence I do not have the courage to face anyone.
I want you to be strong and live life with whole respect as your husband has not done anything.
With Love,
Swaroop
I am going as everyone will look at me with that eye even if I come clean.”
Swaroop had been under psychological pressure after the company suspended him till the probe against him was completed.
“We are in receipt of an alleged complaint of sexual harassment against you from two female employees. You are hereby suspended pending investigation while the Company investigates the said matter.
During the said period you will not be required to report for duty and not expected to work from home. However, you cannot join any other employment all other terms of employment shall continue to strictly apply to you,” a suspension letter issued to Swaroop read.
गोपाल ‘कांड’: फर्श से अर्श और अर्श से फर्श तक की पूरी कहानी– कुछ अंश
———गुड़गांव की शक्ल बदलने का फैसला पहले ही हो चुका था. इस फैसले के साथ ही गुड़गांव की ज़मीन सोना हो गई थी और ज़मीन वालों की चांदी. हरियाणा अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी यानी हुडा गुड़गांव का सबसे बड़ा ज़मींदार बन चुका था और कांडा के करीबी वो आईएएस अफसर हुडा के बहुत बड़े अफसर बन चुके थे. कांडा की किस्मत का दरवाज़ा अब पूरी तरह से खुलने जा रहा था. लिहाज़ा सिरसा से उसने अपना स्कूटर उठाया और सीधे गुड़गांव पहुंच गया. अब दलाली उसका पेशा बन चुका था. ज़मीन सोना उगल रही थी और वो सोना निगल रहा था. धीरे-धीरे वक्त बीता और फिर साल 2007 में अचानक आई एक खबर ने पूरे सिरसा को चौंका दिया.
गोपाल कांडा ने अपने वकील पिता मुरलीधर लखराम के नाम पर एमडीएलआर नाम की एयरलाइंस कंपनी शुरू कर दी. पर एमडीएलआर एयरलांस के बही-खाते में सही-गलत के हिसाब इतने खराब थे कि कांडा के हवाई सपने हवा हो गए. मुश्किल से दो साल चलने के बाद हवाई जहाज़ ज़मीन पर था और खुद कांडा नई ज़मीन की तलाश में. ज़मीन पर आने के बाद कांडा ने होटल, कैसिनो, प्रापर्टी डीलिंग, स्कूल, कालेज और यहां तक कि लोकल न्यूज चैनल में भी हाथ आज़माया और खूब कमाया. पर इन सबके बीच सिरसा की राजनीति पर हमेशा उसकी नज़रें गड़ी रहीं.
वोट मे नोट इनवेस्ट करते-करते आखिरकार 2009 के विधासभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर ही मौदान में कूद पड़ा और चुनाव जीत भी गया. नसीब देखिए कि 90 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस को 40 सीटें ही मिलीं. निर्दलीय विधायकों ने अपनी-अपनी बोली लगाई और उसी बोली में गोपाल कांडा ने अपनी कीमत वसूली और हरियाणा का गृहराज्य मंत्री बन बैठा. अब कांडा को पुलिस सलाम ठोकती थी. खुद कभी नेताओं और उनके बेटों के गुर्गे रहे कांडा के गुर्गे भी अब शेर थे. सितंबर 2010 में कांडा की कार में सामूहिक बलात्कार हुआ. हालांकि गुर्गे अंदर हुए पर मंत्री जी पर कोई आंच नहीं आई. जुलाई 2011 में क्रिकेटर अतुल वासन की कार ने इनके काफिले को ओवरटेक करने की गुस्ताखी की तो वासन की धुनाई हो गई. मंत्री जी पर तब भी कोई आंच नहीं आई.
मंत्री बनने के बाद से ही कांडा सिरसा का सबसे बड़ा शेर हो चुका था. सिरसा के शू कैंप का नाम बदल कर अब उसने कैंप ऑफिस कर दिया. एमडीएलआर की सेवा बंद हो चुकी थी पर कंपनी चल रही थी और इसके साथ ही चल रही थी करीब 40 दूसरी कंपनियां. पैसा और पावर आया तो साथ में बहुत सी गंदगी भी लाया. कांडा ने अपनी ज्यादातर कंपनियों में लड़कियों को भर्ती करना शुरू कर दिया. छोटी उम्र में ही लड़कियों को बड़े-बड़े पद बांट दिए और इन्हीं में से एक लड़की थी दिल्ली की गीतिका.
2006 में हावई कंपनी में एयरहोस्टेस और केबिन क्रू की भर्ती के लिए गुड़गांव में इंटरव्यू था. उसी इंटरव्यू में कांडा पहली बार गीतिका से मिला और इंटरव्यू खत्म होते ही उसे ट्रेनी केबिन क्रू का लेटर थमा दिया. फिर छह महीने बाद जैसे ही गीतिका 18 साल की हुई उसे एयरहोस्टेस बना दिया. इसके बाद तो गीतिका की तरक्की और वक्त के बीच जैसे रेस लग गई. वक्त से भी तेज गीतिका तरक्की की सीढ़ियां चढ़ती गईं और फकत तीन साल के अंदर कंपनी में ट्रेनी से कंपनी की डायरेक्टर की कुर्सी तक पहुंच गई. ये सब मेहरबानी थी कांडा की. मेहरबानियां बरसती रहीं और गीतिका तरक्की करती गई.
पर फिर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि गीतिका, कांडा और उसकी कंपनी दोनों से दूर चली गई. उसने दुबई में नौकरी कर ली. पर कांडा ने उसे दिल्ली वापस आने पर मजबूर कर दिया. दिल्ली आने के बाद भी कांडा ने गीतिका का पीछा नहीं छोड़ा और इसी वजह से उसका दम कुछ इस कदर घुटने लगा कि उसने अपना गला ही घोंट लिया. पर मरने से पहले दो पन्नों में गीतिका वो सच लिख गई जिसने पहली बार कांडा को ज़मीन नापने पर मजबूर कर दिया.
हवाई जहाज़ से तो वो पहले ही उतर चुका था. पर उसे अपने जूते को आज़माने का मौका गीतिका के सुसाइड नोट ने ही दिया. 12 दिन तक पुलिस से भागने के बाद आखिरकार कांडा के पैर और जूते दोनों थक गए. और शायद इसी के साथ अब उसकी रफ्तार भी थम जाए. जिस शख्स को पकड़ने के लिए दिल्ली पुलिस ने 12 दिनों से अपने सारे घोड़े खोल रखे थे, जिसकी गिरफ्तारी को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे थे, उस कांडा को पुलिस उस वक्त भी नहीं पकड़ पाई जब वो एलानिया खुद अपने पैरों पर चल कर थाने की दहलीज़ तक पहुंच चुका था. सच यही है कि कांडा ने भागने से लेकर सरेंडर करने तक सब कुछ ठीक वैसे ही किया जैसा उसने सोचा था.
One Response to “झूठे इलज़ाम लगाने वाली महिलाओं पर भी ह्त्या का मुकद्दमा चले : Did #Me Too take executive life ? – Genpact & गोपाल कांडा”