स्वास्थ्य सेवाएँ : अमरीकी इंश्युरेंस के मॉडल य यूरोप का सरकारी मॉडल : भारत के लिए कौन अधिक उपयोगी है

स्वास्थ्य सेवाएँ : अमरीकी इंश्युरेंस के मॉडल य यूरोप  का  सरकारी मॉडल :  भारत के लिए कौन अधिक उपयोगी है : The Invasion of Indian Health Care ( Bloomberg )

राजीव उपाध्याय rku

 

इस समय संसार में दो तरह की स्वास्थ्य सेवाएँ चल रही हें . यूरोप , चीन , रूस इत्यादि में स्वास्थ्य सेवाएँ सरकार की जिम्मेवारी है . यूरोप में सब नागरिकों को जन्म से मृत्यु तक मुफ्त स्वास्थ्य व् शिक्षा सेवाएँ उपलब्ध हें. इन देशों में स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत खर्च किया जाता है .comparison of increase in health expenditure oecd

अमरीका में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए अपने पैसे से इंश्युरेंस  लेना पड़ता है . अस्पतालों को इंश्युरेंस  से पैसा मिल जाता है और आपकी पालिसी के अनुसार आपको स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध हो जाती हें. दोनों मॉडल के अपने लाभ व् हानियाँ हैं . यूरोप मैं सब नागरिकों को मंहगी से मंहगी सेवा , अंग प्रत्यारोपण इत्यादि सब मुफ्त है . बढ़ती आयु के चलते इसलिए वहां पर बड़े ऑपरेशन व् इलाज़ के लिए लम्बी लम्बी लाइनें  होती हैं और छोटे छोटे ऑपरेशन के लिए वर्षों की प्रतीक्षा करनी पढ़  जाती है  . उसके विरुद्ध अमरीकी मॉडल वकीलों का स्वर्ग है . हर एम्बुलेंस के पीछे लालची वकील भागते फिरते हैं.छोटी चोटी बातों  पर करोड़ों का केस कर दिया जाता है . डॉक्टर कोर्ट केस की दहशत मैं रहते हैं . सरकार के बेहद खर्चे के बावजूद गरीब  नागरिकों को बहुत कम इलाज़ की median-waiting-times-hospital-treatmentसुविधा मिल  पाती है और सारा पैसा वकीलों की जेब में चला जाता है .

भारत में गावों में अब  भी छोटे मोटे प्राइवेट  डॉक्टर होते हैं पर बड़े शहरों  में अब तक सोवियत मॉडल पर आल इंडिया इंस्टिट्यूट जैसे शीर्ष अस्पतालों में भी मुफ्त इलाज़ हो जाता था . विगत कुछ वर्षों में इस मैं सम्पन्न वर्ग को अब पैसा देना पड़ता है . पर राज्यों में अंग्रेजों के ज़माने के जो डिस्ट्रिक्ट अस्पताल थे अब बुरी हालत में हें. वहां डॉक्टर नहीं जाते और दवाओं को ब्लैक में बेच दिया जाता है . इसलिए पिछले कुछ वर्षों में देश मैं अप्पोलो की तरह महंगे प्राइवेट अस्पताल बहुत खुल गए हैं . इनमें बहुत उच्च  स्तर की सुविधाएं भारत मैं उपलब्ध हैं और इनके डॉक्टर भी बहुत अच्छे हैं . पर यहाँ मरीज़ को इलाज़ के नाम पर चूसा जता है . बिना आवश्यकता के टेस्ट और स्पेशलिस्ट का विजिट बनाया जाता है . कुछ केस मैं मरे मरीज़ का भी पैसा वसूलने लिए इलाज़ होता रहता है .एक बार मरीज़ घुस जाय तो लाखों का बिल बनाए बिना नहीं छोड़ा जाता .

इसलिए बेईमान भारत के लिए कौन सी व्यवस्था उपयुक्त होगी यह बहुत कठिन सवाल है . परन्तु इसको बहुत विचार कर चुनना चाहिए .us analysis of increase in health expenditure Cutler 1995

वर्तमान भारत सरकार  देश मैं स्वास्थ्य सेवाओं में जो अमरीकी इंश्युरेंस  के आधार पर जो मॉडल बना रही है उसमें भारतीय परिपेक्ष में सुधार की आवश्यकता है . यदि लालची भारत मैं इसे सिर्फ प्राइवेट हाथों में छोड़ दिया तो बहुत नुक्सान हो जाएगा . पहले से ही हमारे वर्षों में मिलने वाली न्याय प्रणाली किसी को न्याय नहीं दे पायेगी और भारत भी अमरीका की तरह वकीलों का स्वर्ग बन कर रह जाएगा .

इंग्लैंड मैं हर इलाके में नामंकित प्राइवेट  डॉक्टर होते हैं . आप उन पर समय लेकर जा सकते हें. उनको इलाज़ के लिए सरकार से पैसे  मिल जाते हैं. बड़े अस्पतालों में आप उनकी सहमती से ही जा सकते हैं .

भारत मैं इसी  तरह का कुछ तरीका ढूंढना होगा . पहले लेवल पर बहुत सरे डोक्टरों को नामांकित करना होगा जिससे उनमें कम्पटीशन हो सके . इंश्युरांस की राशि मैं इलाज़ पूरा करने का कम्पटीशन होना आवश्यक है . इससे उनकी फीस और झूठे टेस्टों पर भी नियंत्रण  होगा .अस्पतालों को वकीलों के कुचक्रों से दूर रखना होगा . अन्यथा स्वास्थ्य सेवा का पैसा सब बजाय इलाज़ के वकीलों की जेब मैं चला जाएगा . झूठे बिल , झूठा इलाज , दवाएं सब इस देश का दुखद सच है . उधर बड़े अस्पतालों को एम्स जैसे सरकारी अस्पतालों से मुकाबला  करना आवश्यक होना चाहिए . इस लिए हर राज्य में एम्स जैसे सरकारी अस्पताल खुलने चाहिए . जिला अस्पतालों को भी सुदृढ़ करना होगा जो  प्राइवेट अस्पतालों को क्म्पेटीशन दे सकें . गाँव के डॉक्टर जिला अस्पतालों को मरीज़ को रेफेर कर सकने का अधिकार होना चाहिए.

अंत में प्राइवेट सेक्टर सिर्फ कम्पेतिशन से अच्छी सुविधाएं देता है  . अन्यथा जब तक भारत में सिर्फ फियट  व् अम्बसडर कार  होती थीं उनकी क्वालिटी बहुत निम्न थी . इसलिए स्वास्थ्य सेवाओं में कम से कम हर राज्य मैं दस कंपनियों को कॉन्ट्रैक्ट देना चाहिए . इनमें पहले अन्तराष्ट्रीय अति विशिष्ट अस्पतालों की संख्या भी बड़े राज्यों में दस से अधिक होनी चाहिए . वकीलों की लूट से बचने से लिए गलत इलाज़ के हर्जाने की राशि इंश्युरांस से पाँच गुना तक सीमित होनी चाहिए . कंजूमर  कोर्ट की तर्ज़ पर बिना वकीलों वाले जल्दी फैसला देने वाले मेडिकल कोर्ट हर जिले मैं खुलने चाहिए जिसमें कुछ डॉक्टर भी जज हों जिससे डाक्टरों  की धांधली पर भी रोक लगे .

हर मॉडल मैं कुछ इच्छाई व् कुछ बुराई होगी . परन्तु वर्तमान व्यवस्था भारतीय स्वस्थ सेवा को अमरीका की तरह वकीलों का स्वर्ग बना देगी . इसको गहन चिंतन के बाद कार्यान्वित  करना चाहिए . यह भी याद रहे की भारत में भी औसत आयु बढ़ेगी आर बूढों पर स्वास्थ्य सेवाओं का बहुत खर्चा होगा .

 

The  Invasion  of  Indian  Healthcare

https://www.bloombergquint.com/business/radiant-life-to-merge-with-max-healthcare-to-become-no-3-hospital-chain#gs.HHY393c

The  FII  takeovers  of  Indian  Healthcare  chains  seems  to  have  started  in  right  earnest. The  Fortis  shares  sale  to  IHH  Healthcare  Behrard, Max  shares  sale  to  KKR – Radiant  Combine, Manipal – Temasak- TPG  Capital  combine  takeover  of  Medanta  all  seem  to  be  happening  at  a  feverish  pace. Is  there  a  pattern  to  be seen  here ? Is  healthcare  sector being  bought  over  by  the  foreign  institutional  investor  and  is  this  good  for  the  nation ?

Our nation  was  dependent  on  small  hospitals  and  nursing  homes  run  by  doctors across  India  for  its  needs.  Policy  makers  sitting  in  their  ivory  towers  decimated  the  small  and  medium  healthcare  sector  step  by  quixotic  step. Professionals  owned  and  operated  nursing  homes  across  the  country have  already  closed  down  or  are downgrading  and  closing  down  having  lost  out  to  the  corporate  lobby  who  cajoled  the  Government  to  make  policies  which  suited  them. In  the  name  of  quality , standards  were  laid  which  an  individual  doctor  cannot  fulfill.  Now  with  the  same  corporates  exiting  the  healthcare  business  by selling  their  stakes  to  offshore  companies it  does  raise  my  hackles  and  makes  me  apprehensive  of  the  way  healthcare  will  be  provided  in  India  in  the  next decade.

Are  these  transitions and  coming  of    international  chains good  for  the  healthcare  of  this  nation. Is  there  an  altruistic  streak  whereby  an  underdeveloped  country  is  being  helped  with  influx  of  foreign  funds  or  is  this  the  second colonization whereby  revenue  will  be  squeezed  out  of  the  country  as  has  happened  in  the  past. We  have  been  so  busy  fighting  our  petty  battles  that  I  am  afraid  we  may  be missing  a  major  invasion  till  it  is  too  late. Will  these  financial  conglomerates  keep  the  nations  need  in  mind  or  will  it  be  focussing  purely  on  its  bottom line  and  investor  appeasement. Can  someone  else  also  see  a  pattern  or  I  am  hallucinating ?

Dr  Neeraj  Nagpal
Convenor,Medicos  Legal  Action  Group,  Managing Director MLAG  Indemnity,
Ex  President  IMA  Chandigarh
Director Hope Gastrointestinal Diagnostic Clinic,
1184, Sector 21 B Chandigarh
09316517176  , 9814013735
0172; 4633735, 2707935, 2706024, 5087794
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