भारतीय तेजस विमान , अर्जुन टैंक व् नाग मिसाइल का क्या होगा ? : विदेशी हथियार ही खरीदे जा रहे हैं .
भारतीय हथियारों की अंतर्राष्ट्रीय खरीददारी सदा ही विवादास्पद क्यों बन जाती है . पहले पनडुब्बियों व् बोफोर तोप की खरीद विवादस्पद थी अब राफेल हवाई जहाज़ की खरीद विवादस्पद हो गयी है .
यह भी माना जाय की भारतीय तेजस विमान , अर्जुन टैंक व् नाग मिसाइल बनने मैं पूरे देश के सीमित तकनीकी ज्ञान , सेनाओं व् बाबुओं की गलती से बहुत विलम्ब हुआ फिर भी अब तो यह विकसित हो चुके हें. इसी तरह फरवरी २०१८ मैं नाग मिसाइल को परिक्षण के बाद सफल बताया गया था . अर्जुन टैंक का रक्षा मंत्रि के सामने टी – ९० से मुकाबला हुआ और वह हर तरह से टी – ९० के बराबर सिद्ध हुआ . तेजस विमान भी सफल बताया गया . अब हम ५००० स्पाइक व् ५००० मिलन टैंक विरोधी मिसाइल खरीद रहे हैं. तो हमारे नाग मिसाइल सिर्फ ड्राइंग बोर्ड पर ही रहेंगे . नहीं तो अर्जुन टैंक की तरह ५०० मिसाइल बना कर उसकी छुट्टी कर दी जाएगी . यदि ऐसा हुआ तो इसमें फिर भ्रष्टाचार की भयंकर बदबू आने लगेगी .हम मिसाइल रक्षा प्रणाली भी विकसित कर रहे हैं पर अगर वह उपयोग ही नहीं होगी तो फायदा क्या ?
इस बात को समझना होगा की हमारा इन नयी तकनीकों का ज्ञान बहुत कम कम है और उसे विकसित करने में बहुत समय लगता है .उनके लिए सामान खरीदने की सरकारी प्रक्रिया बहुत धीमी है . सेनायें भी बीच बीच मैं अपनी जरूरतें बदलती रहती हैं .इस लिए नए हथियारों के विकास में देर के लिए सारा देश जिम्मेवार होता है सिर्फ डी आर डी ओ नहीं . सिर्फ फाइलों पर कलम घसीटने वाले और गाल बजाने वाले नादान बाबु तो देश की रक्षा के लिए कुछ भी कर नहीं सकते पर तब भी सत्ता के गुरूर व् दलाली के लालच में मंत्रियों को बहकाते रहते हैं .रहते हैं . हथियारों की खरीद को विदेशी दलाल किस तरह प्रभाव् डालते हैं इस की मिसाल तो जनरल वी के सिंह व् सुंदरजी दे चुके हैं . इसलिए हमें सदा सचेत रहना होगा कि देश में विकसित हथियारों को कोसने वाले देश द्रोही भी हो सकते हैं . फ़ाइल पर तो रिश्वतखोर बाबुओं से कुछ भी लिखाया जा सकता है . उसका विश्वास करना कठिन है .
इसलिए सामान्य ज्ञान यह कहता है कि अब कम से कम आधे हवाई जहाज , मिसाइल , तोपें व् टैंक देश मैं बने होने चाहिए . बाकि आधे हथियार आधुनिकतम हों और मित्र राष्ट्रों से खरीदे जाएँ . इससे देश मैं विकसित तकनीक को आगे विकसित करने के लिए भावनात्मक परिस्थितियाँ बनेंगी . किसी दिन तो हमें स्वाबलंबी बनाना होगा .चीन भी तो अपने हथियारों के पुरानी तकनीक के होने के बावजूद आगे बढ़ता जा रहा है क्योंकि वह रक्षा मैं स्वाबलंबन का महत्त्व जानता है .एक हम ही हैं जो अपनी हज़ार साल की गुलामी से कुछ नहीं सीखे हैं .
इस लिए यह जानते हुए की हमारे द्वारा विकसित हथियार कभी भी पश्चिम के आधुनिकतम हथियारों के बराबर नहीं हो सकते रक्षा मंत्रि को परिक्षण में सफल हुए २००० नाग मिसाइल व् ५०० अर्जुन मार्क – २ टैंक को तुरंत खरीदने का निर्देश देना चाहिए चाहे रक्षा मंत्रालय के बाबु कुछ भी कहते या लिखते रहें.
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