बजट : सब का साथ सब का विकास : वेतन भोगी वर्ग की बहुत देर से बहुत थोड़ी ही सही ,कुछ तो खबर ली
आखिर चुनाव के पहले का बजट भी आ गया . जैसा की उम्मीद थी इसमें सब वर्गों के लिए कुछ न कुछ था . पांच एकड़ से कम ज़मीन के मालिक गरीब किसानों को जो दिया गया उसपर सारे देश वासी एकमत हैं . छोटे किसान को खेती छोड़ने से बचाने के लिए यह सहायता बहुत आवश्यक थी . पिछले कुछ वर्षों से खेती छोटे किसानों के लिए घाटे का सौदा होती जा रही थी .यदि छोटा किसान नौकरी ढूँढने लगे तो देश में अराजकता फ़ैल जायेगी . इसलिए इस वर्ग को दी हुई रहत बहुत आवश्यक थी .
परन्तु विगत चार वर्षों से वैसे तो वेतन भोगी मध्यम वर्ग बहुत नाराज़ था . अरुण जेटली ने जो पहले बजट मैं जो कर कम करने का वायदा किया था उसे वह पूरी तरह से भूल गए थे . जब से वर्तमान टैक्स स्लैब बनी थी मंहगाई कितनी बढी , परोक्ष कर जैसे सर्विस टैक्स सब चीज़ों पर लग गया . उसकी वास्तविक आय कम हो रही थी . यहाँ तक की बिजली के बिल पर भी टैक्स लग गया था . इसके चलते वेतन भोगी वर्ग को दोहरी टैक्स की मार झेलने पढनी रही थी . वकील , डॉक्टर या व्यापारी वर्ग वेतन भोगी वर्ग से आधा से भी कम टैक्स देता है .सातवें वेतन आयोग ने पहले सब वेतन आयोगों से सब से कम वृद्धि की गयी . इसलिए वेतन भोगीवर्ग का यह विश्वास हो गया था की अरुण जेटली सिर्फ व्यपारियों व् वकीलों के शुभ चिन्तक थे . यह वेतन भोगी वर्ग का सौभाग्य था की वह इस बजट मैं नहीं दीखे . जिसके चलते पाँच लाख तक की आय को कर मुक्त कर दिया जिससे कुछ राहत तो मिली पर इसको हर टैक्स स्लैब पर लागू होना चाहिए था . अभी यदि आपकी वर्तमान टैक्स की आय पाँच लाख से ज्यादा है तो कोई फायदा नहीं मिलेगा . इसलिए सरकार मैं क्लर्क तक की नौकरी करने वाले को टैक्स नहीं देना पडेगा . बाकि सब तो अब भी ‘ आस लगाय बेठे हैं वह वादा करके भूल गए ‘ . तब भी देर से ठीक रास्ते पर आये पर आये तो सही .
सरकार के हाल के वर्षों के आंकड़े युधिष्ठिर के ‘ अश्वत्थामा हतो नरो न कुंजरो’ जैसे होते हैं जो सच को बखुबी छुपा जाते हें. आयकर रिटर्न बढ़ने के आंकड़े यह नहीं बताते की पाँच करोड़ रिटर्न में से ४.७ करोड़ सिर्फ ढाई लाख की आय दिखाते हैं.१.२७ % ५-१० लाख की आय के होते हैं. सिर्फ एक प्रतिशत रिटर्न १० लाख से ऊपर की आय दिखाते हें जिनमें अधिकाँश वेतन भोगी ही होते हें.व्यापारी जीरो टैक्स आय कर वाला रिटर्न भर रहा है और उसे जेटली जी व् सरकार का संरक्षण प्राप्त है .बड़े वकील , डॉक्टर , चार्टर्ड अकाउंटेंट कितना टैक्स देते हैं? अनाथ वेतन भोगी वर्ग ही टैक्स वाली आय दिखाता है और कोल्हू मैं पेला जाता है . बिना वेतन वाला वर्ग वेतन भोगी से एक तिहाई टैक्स देता है . सरकार उसकी धर पकड़ क्यों नहीं कर रही .
परन्तु मध्यम वर्ग की एक और बड़ी चिंता बच्चों की पढाई व् नौकरी होती है . इसलिए यदि नौकरी बढ़ जाएँ तो भी वह खुश हो जाता है . यदि नौकरी मिलने की संभावना हो तो गरीब भी उधार ले कर मेधावी बच्चे को पढ़ा लेता है .पिछले पाँच वर्षों मैं इंजिनियर व् एमबीए पास लोगों को मिलने वाली नौकरी बहुत कम हो गयीं हैं . इस वर्ग को व्यापार का कोई अनुभव नहीं है न ही उसके पास व्यापार के लिए आवश्यक पूंजी नहीं होती है . वह बुद्धिमान है पर सिर्फ नौकरी पर आश्रित है .उनको पकोड़े बेचने का सुझाव देना गाली सा लगता है .जब तक नयी फक्ट्रियाँ नहीं लगेंगी तब तक यह स्थिति नहीं सुधरेंगी . इसी तरह खेती के उत्पादकता तीस साल की हरित क्रांति के बाद अब घट रही है या स्थिर है . जब तक नयी हरित क्रांति नहीं आती तब तक किसान गरीब ही रहेगा .
रक्षा बजट की भी ऐसी ही कहानी है . उसमें लगभग सात प्रतिशत की वृद्धि की गयी है . रक्षा का एक चौथाई बजट पेंशन पर खर्च हो जाता है . ऐसे ही इससे अधिक वेतन में खर्च हो जाता होगा ( 67 % staff pension ) . नए हथियार का भुगतान डॉलर में होता है जिसका भाव पंद्रह रूपये प्रति डॉलर बढ़ गया है . इसलिए विशद्ध डॉलर मैं नए अस्त्रों को खरीदने के लिए बहुत अधिक पैसा नहीं बढ़ा है . जनता को सच के बजाय अब सिर्फ सपने बेचे जा रहे हैं . हमारे हवाई जहाज स्क्वाड्रन ४२ से घट कर ३२ रह गए. रक्षा पर हम बहुत कम खर्च कर रहे हैं . जीडीपी का प्रतिशत अब सिर्फ १.५ % रह गया है जो बहुत कम है.
विकास के जेटली जी के सारे झूठे आंकड़े इन वर्गों के लिए बेकार हैं . यह देश का दुर्भाग्य है की सरकार अभी भी इस विषय में कोई नया चिंतन नहीं कर पा रही है. जो कमी प्रबुद्ध वर्ग को इस सरकार में खल रही है वह यह है की यह सरकार विकास के लिए सिर्फ छोटे छोटे कूएँ खोद रही है . बड़ी क्रांतिकारी सोच लायक इसमें बुद्धिमत्ता की कमी साफ़ दीखती है . अगला बड़ा विकास किस् रास्ते पर चलने से होगा इसे कोई नहीं जानता .
बजट की बाकि घोषणाएं सार गर्भित हैं पर गरीब या मध्यम वर्ग के लिए बहुत महत्त्व नहीं रखती . सरकार ने पेंशन मैं कुछ ज्यादा योगदान देने की घोषणा की है . मजदूरों के भी कुछ नयी सुविधाएं दी गयी हैं . परन्तु तीन हजार रूपये की पेंशन बीस साल बाद कितनी उपयोगी होगी इसे अभी बता पाना कठिन है . तब भी यह भी एक स्वागत योग्य कदम है.
तो सब का साथ सब का विकास के रास्ते पर यह एक छोटा कदम है जो जरूरत से बहुत कम है . सरकार को नए ग्यानी सलाहकारों की आवश्यकता है जीको बाबुओं से मुक्त रखा जाय जैसा नरसिम्हा राव व् पाकिस्तान मैं मुशर्रफ़ ने किया था . पुराने बाबुओं से क्रांति की उम्मीद करना मुर्खता है .
आशा है मोदी जी अगली पारी मैं तो कम से कम बाबु मुक्त इमानदारी से प्रगतिशील सरकार देंगे .
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