भारतीय सेनाओं की बढ़ती हुयी खतरनाक कमजोरी : जो सुख मैं सुमिरन करें तो दुःख काहे को होय

भारतीय सेनाओं की बढ़ती हुयी खतरनाक कमजोरी : जो सुख मैं सुमिरन करें तो दुःख काहे को होय

Rajiv Upadhyay  rp_RKU-263x300.jpg

२६  फरवरी को जब भारत के जांबाज़ पायलट अभिनन्दन ने अपने पुराने मिग २१ हवाई जहाज से पाकिस्तान के आधुनिक जहाज ऍफ़ १६ को मार गिराया तो सारा देश उनकी उपलब्धि से खुश हो गया . परन्तु इसमें वह और उनका जहाज़ भी पाकिस्तानी सीमा मैं गिर गया जिससे देश की खुशी काफूर हो गयी . भाग्य से पाकिस्तानी प्रधान मंत्रि इमरान खान  की  सद्बुद्धि व् अंतर्राष्ट्रीय दबाब से पाकिस्तान ने दो दिन मैं उन्हें वापिस कर दिया जिससे देश ने राहत महसूस की .

परन्तु अब देश को पूछना चाहिए की क्यों भारत की वायु सेना आज भी पचास  साल पुराने मिग हवाई जहाज़ों से पाकिस्तानी के आधुनिक जहाजों से लड़ने को मजबूर है . कहने को हमारे मिग का आधुनिकीकरण किया गया था व् वह बाई सन श्रेणी का था . उसमें रूसी मिसाइल लगा था . इस मिसाइल ने ही पाकिस्तानी ऍफ़ १६ को गिराया था . परन्तु उनका पुराना हवाई जहाज ऍफ़ १६ से अपनी रक्षा करने मैं असमर्थ था.इस असमर्थता की कीमत हमारे पायलट की जान होती है .

सन १९६५ की लड़ाई मैं भारत के पास 700   हवाई जहाज थे और पाकिस्तान के पास 280 . आज हमारे पास   900 लड़ाकू  व् अन्य जहाज बचे हैं और पाकिस्तान के पास आज ५०० लड़ाकू जहाज हें. ( कुल  रेश्यो २.५ सेघाट कर  १.७६ ) . चीन के पास ४१८०   हवाई जहाज़ हैं . हमारे जहाज़ों मैं उड़न ताबूत कहे जाने वाले लगभग 200 मिग २१ भी हैं जिन को हम मजबूरी मैं उड़ा रहे हैं . पाकिस्तान के पास हम से अधिक परमाणु बम हैं . उनके मिसाइल व् ड्रोन भी  हमसे पहले से उनकी सेना मैं प्रयोग किये जा रहे हैं . हमारे अधिकाँश मिसाइल व् ड्रोन अभी विकसित हो रहे हें.पिछले पंद्रह वर्षों मैं हमने मात्र ३६ राफेल हवाई जहाज खरीदे हैं जो आज तक हमें नहीं मिले हें.इस के अलावा आठ तेजस विमान बने हैं.

इसलिए यह साफ़ है की भारत पिछले बीस वर्षों मैं लगातार कमजोर होती हुई भारतीय वायु सेना पाकिस्तान के विरुद्ध अब युद्ध निर्णायक तरीके से जीतने काबिल नहीं रही है . लगभग यही हाल स्थल सेना का है. इसी लिए संसद व् मुंबई पर आक्रमण के समय भी सारे देश के गुस्से के बावजूद  हमारे पास युद्ध कर जीतने की क्षमता नहीं थी . हथियार तो छोड़ें मुंबई के समय तो हमारे पास लड़ाई के लायक गोला बारूद भी नहीं था . पहले लगा था की नयी सरकार कुछ बदलाव लायेगी परन्तु अब भी सेना पर बाबु राज इस तरह हावी है की दो साल पहले भी हमारी गोला बारूद की कमी पूरी नहीं हुयी थी . जब खंडूरी जी की अध्यक्षता मैं संसदीय समिति ने सैन्य सामग्री व् हथियारों की कमी की बात की तो अध्यक्ष खंडूरी जी को निकाल दिया गया . बाबुओं की सेनाध्यक्षों को नीचा दिखाने की प्रवृति   देश के लिए घातक  है .परन्तु जनरल वी के सिंह की झूठी  क्रांति की  खबर उड़ाने वाले बाबु को सचिव से उठा कर बड़े संवैधानिक पद पर बिठा दिया गया .एक  रैंक एक पेंशन भी भूतपूर्व सैनिकों के आन्दोलन के बाद ही मंज़ूर हुई .डी  आर डी  ओ के प्रमुख का भी बाबुओं ने अवमूल्यन कर दिया . जोर्ज  फर्नाडीस को रक्षा मंत्रालय के सब बाबुओं को सिअचीन भेजना पडा क्योंकि वह बर्फ पर चलने वाले स्कूटर की मांग को समझ ही नहीं पा रहे थे और उसे साधरण स्कूटर समझ कर ठुकरा रहे  थे  .

यहाँ तक की पिछले  रक्षा मंत्रि मनोहर पर्रीकर भी अंत में दुःखी हो गए क्योंकि एक हज़ार करोड़ के खर्चे के ऊपर वित्त मंत्रि व् वहां के बाबू रक्षा मंत्रि से बड़े हो जाते हैं . वह अपने को कुछ भी कर पाने मैं असमर्थ महसूस करने लगे थे . उनके गोआ  वापिस जाने के फैसले में उनका यह असमर्थता का दर्द भी कारण  था . अन्यथा क्यों लड़ाकू हवाई जहाज  जहाज का टेंडर तेरह वर्ष ले गया .इसके विपरीत हमारे दुश्मन देशों जैसे चीन व् पाकिस्तान में रक्षा सम्बन्धी फैसले तुरंत लिए जाते हैं और इसी लिए युद्ध मैं वह सोते हुए नहीं पकडे जाते .

हमारी रक्षा सम्बन्धी निर्णय प्रक्रिया उनसे खराब नहीं होनी चाहिए क्योंकि भविष्य में भी वही हमारे दुश्मन रहेंगे और उनसे ही हमें लड़ना होगा  . इसलिए सेनाध्यक्षों को एक महीने के दोनों सीमाओं पर युद्ध की सामग्री किसी भी आवश्यक कमी को खरीदने की पूर्ण स्वत्न्र्ता व् सक्षमता होनी चाहिए .किसी भी बाबु , ऑडिट , सीवीसी , सीबीआई को इस में दखल देने की  इजाजत नहीं होनी चाहिए . बल्कि यदि सेना युद्ध के समय अक्षम पाई जाय तो जिम्मेवार बाबुओं  को दण्डित किया जाना चाहिए .यदि सैनिक बाबुओं की गलती से प्राण गवाएं तो बाबुओं को भी जेल होनी चाहिए . अभी बाबु सैनिकों की जान से खेल कर खुद बच  जाते हैं जैसा की सियाचिन के समय  रक्षा मंत्रि फेर्नान्देस को पता लगा था .

भारत का २०१८ का रक्षा  बजट आज जी डी  पी का  मात्र १.५८  प्रतिशत है जो १९६२ के बाद सबसे  कम है . इसलिए जब भी कोई मुंबई या कारगिल  काण्ड होता है हम सैनिक रूप से बदला लेने में सक्षम नहीं होते हैं .इसके मुकाबले  पाकिस्तान का ३.५४ प्रतिशत है . चीन का रक्षा बजट हमसे चार – पाँच गुना है . हम जो मर्जी कहें युद्ध तो हमारा उनके साथ ही होना है . इसलिए रक्षा के खर्च को उनसे अलग कर नहीं देखा जा सकता .

रक्षा बजट हमारे जी डी  पी के दो प्रतिशत तक वित्त मंत्रालय या वार्षिक  बजट  से मुक्त होना चाहिए . न ही इस राशि  के अन्दर खर्च का कोई प्रस्ताव वित्त मंत्रालय अनुमोदन के लिए जाना चाहिए . रक्षा मंत्रालय का अपना बजट होना चाहिए . वित्त मंत्रालय सिर्फ दो प्रतिशत से ऊपर खर्चे के लिए प्रश्न करने के लिए सक्षम होना चाहिए .अन्यथा संसद व् नेता सदा मंनरेगा जैसी व्यर्थ की स्कीमों को रक्षा के ऊपर प्राथमिकता देते रहेंगे और युद्ध मैं हार को किसी जनरल  कॉल की जिम्मेवारी बता कर पल्ला झाड लेंगे जैसे १९६२ मैं हुआ था . मूर्ख रक्षा मंत्रि कृष्णा मेनन व् रक्षा मंत्रालय के बाबुओं  को इस पराजय के लिए  क्यों नहीं जेल हुयी ?

साधारणतः हज़ारों साल की गुलामी के इतिहास को पढ़ कर आये हुए बाबु देश की रक्षा के लिए सजग होने चाहिए परन्तु पिछले पचास वर्ष उन्होंने सेनाओं को अपने  एकछत्र वर्चस्व मैं रखने में गंवा दिए .

चीन की १९६२ की हार ने भी इन्हें कोई सबक नहीं सिखाया . वास्तव मैं स्वतंत्र भारत की किसी भी बराबर के युद्ध मैं निर्णायक विजय नहीं हुयी है . बंगलादेश का युद्ध एक अलग तरह का युद्ध था और उस विजय को भारतीय रक्षा की उपलब्धि नहीं माना जा सकता .इसके विपरीत हर जरूरी मौके पर हमने सैन्य रूप से अपने को अक्षम पाया जैसे संसद व् मुंबई पर हमले के समय .

जो लोग भविष्य के किसी भी थोपे गए युद्ध मैं भारत की पराजय न चाहती हों उन्हें कबीर के इस दोहे का गूढ़ अर्थ समझना चाहिए :

‘जो सुख में सुमिरन करें तो दुःख काहे को होय ‘

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