Slow Down Of Indian Economy : जब सड़क , बिजली ,कोयला व् विदेश नीति इतनी सफल हुईं तो औद्योगिक , कृषि व् आर्थिक विकास क्यों पिछड़ गया :The Mistakes The Next Government Should Avoid Repeating
Rajiv Upadhyay
इंडिया टुडे के विश्लेषण के अनुसार कई मामलों मैं भारत ने पिछले पाँच वर्षों मैं अभूतपूर्व प्रगति की है . इनमें सबसे प्रमुख है सड़कों का विस्तार . पिछले वर्ष नयी सड़कों का निर्माण २६-२९ किलोमीटर प्रति दिन हुआ जब की २०१३-१४ मैं यह मात्र ११.३ किलोमीटर प्रति दिन था .आज भारत मैं पचास लाख किलोमीटर सड़कें हैं जिनमें १३०००० कि मी राष्ट्रीय राजमार्ग हैं .ऊर्जा के क्षेत्र मैं भी बहुत प्रगति हुयी है . सौर ऊर्जा २.१ गीवाट से बढ कर २६ गीगा वाट हो गयी है .बिजली सस्ती बनने लगी है . २०१४ मैं ६.९ रूपये किलोवाट की बिजली अब २.५ रूपये पर आ गयी है .देश मैं आज ३४४००० में मेगा वाट बिजली बनती है जबकि २१०४ मैं यह मात्र २६८ ००० में वाट थी .इसीप्रकार कोयले का उत्पादन भी बहुत बढ़ा है हालांकि आज भी भारत पहले से कहीं अधिक कोयला आयात करता है .पिछले छः महीनों मैं ११९ मि टन कोयला आयत किया गया जो पिछले वर्ष की इसी अवधि मैं ११४ मी टन था . कोयले के उत्पादन मैं वृद्धी आवश्यकता से कम हुयी है . २०१८-१९ मैं कोयले का उत्पादन लगभग ६०० मि टन होने की आशा है जो गत वर्ष से सात प्रतिशत अधिक होगा .
विदेश नीति की भी कई अविस्मरनीय उपलब्धियां रहीं . भारत को अब सब एक समर्थ देश मानने लगे हैं . चीन को डोकलाम व् पाकिस्तान को बालाकोट मैं मुन्ह्की कहानी पडी . जब सड़क , बिजली कोयला व् विदेश नीति इतनी सफल हुईं तो औद्योगिक , कृषि व् आर्थिक विकास क्यों पिछड़ गया .तब भी आर्थिक क्षेत्र मैं मंहगाई पर जो पहले वर्ष मैं रोक लगी वह भी सराहनीय थी .कभी दस प्रतिशत की सालाना महंगाई अब मात्र ३.८ % है.
इन सब के विपरीत भारत का औद्योगिक विकास , कृषि विकास व् समस्त आर्थिक विकास हमारी जरूरतों के मुकाबले बहुत खराब रहा .कहने को हम ७ प्रतिशत की आर्थिक विकास की बात करते हैं पर यह सब आंकड़ों की बाजीगरी है. यूपीए -१ व् अटल बिहारी सरका के दो अन्तिम वर्षों के मुकाबले आर्थिक विकास की वास्तविक दर उन्हीं मापदंडों से लगभग १.५ % कम हुयी है . भारत का औद्योगिक विकास लगभग मात्र २-३ % की दर से हुआ है . इसके परिणाम स्वरुप नयी नौकरियों का अकाल पड गया है . कृषि विकास दर भी २-३ % ही रही है जिससे गावों मैं आर्थिक प्रगति नहीं हुयी है . इंजिनियर व् एमबीए शिक्षित लोगों को बहुत कम तनख्वाह वाली नौकरियां मिल रही हैं . जो नयी नौकरियां बनी हैं वह डिलीवरी बॉय सरीखी कम तनख्वाह वाली हैं . सरकार की पकोड़े बेचने की दूकान लगाने की सलाह एक मजबूरी थी . निर्यात अभी भी ३०० बिलियन डॉलर का है जो सर्वोच्च ३१२ मिलियन डॉलर ( यु पी ए ) से आज भी कम है जब की रूपये की कीमत मैं बहुत गिरावट हुयी है .
प्रश्न है कि क्यों वित्त विभाग सड़क परिवाहन , ऊर्जा विभाग सरीखी वास्तविक आर्तिक विकास दर नहीं प्राप्त कर सका और राजनीती वश आंकड़ों की हेराफेरी के लिए मजबूर हुआ . उसने क्या ऐसी गलतियां कीं जो नयी सरकार को नहीं करनी चाहिए साथ ही वह क्या कदम हैं जिनसे नयी सरकार यूपीए – १ या वाजपयी सरीखी काल अप्रत्याशित आर्थिक वृद्धि दे सके .
इसका उत्तर बहुत सरल है . पिछले पांच वर्ष सरकार की प्राथमिकता विकास नहीं था . वित्त विभाग अकर्मण्य हाथों मैं था और कोई ख़तरा न लेनेवाली अहंकारी व् अज्ञानी बाबु शाही सब पर हावी थी .यदि सरकार सचमुच मैं विकास चाहती तो ८.५ % ( मोदी सरकार के फोर्मुले से ) विकास दर संभव थी और भविष्य मैं भी हो सकती है .
हम पिछले पांच वर्षों मैं हम आर्थिक विकास के बजाय काले धन , पारदर्शिता इत्यादि की मृग मरीचिका के पीछे भागते रहे और बाबुओं ने उद्योगपतियों , व् कारोबारिओं को चोर या कर चोर घोषित कर थानेदार सरीखा व्यवहार किया . देश मैं भेड़ें कम रखवाले ज्यादा होगये . इस इंस्पेक्टर राज मैं हर तरफ , कभी न कुछ विकास कर सकने वाली संस्थाएं , जैसे सी बी आई , सी वी सी , ई डी , विजिलेंस , ऑडिट इत्यादि राजा बन गयीं और उन्होंने सब बाबुओं को भी डरा कर सिर्फ फाइल बढाने वाला बना दिया . जो काम ही नहीं करेगा उससे गलती भी नहीं होगी . इसलिए समर्थ बाबु भी डर कर काम छोड़ कर बैठ गए . सारा बाबु वर्ग व् सरकार निष्क्रीय हो गयी . बाबा रामदेव सरीखे आर्थिक विशेषज्ञों ने हमें काले धन की ट्रक की बत्ती के पीछे ऐसा लगाया की हम नोबेल पुरस्कार पाने वाले गुनार मैरडल जिन्होंने एशियाई ड्रामा किताब मैं बहुत अध्ययन के बाद लिखा की एशिया में भ्रष्टाचार से अधिक सरकार में सुस्ती अकर्मण्यता को दोषी पाया गया . सड़क विभाग ने वास्तविक प्रगति पर ध्यान दिया और उसे पा लिया . उस विभाग ने पारदर्शिता व् इमानदारी को अपनाया पर उसे राजा नहीं बनने दिया . काम करने वालों की इज्ज़त थी और उन्हें संरक्षण प्राप्त था . अगर यही वित्त विभाग मैं होता तो आज अर्थ व्यवस्था की जैसी दुर्दशा नहीं होती. शेष आथिक विभाग भी सुरक्षा व् पारदर्शिता के मायाजाल मैं ऐसे फंसे की काम करना भूल गए .
जब मंहगाई काबू आ गयी थी तो मांग बढ़ाना आवश्यक था. उसके लिए वित्तीय घाटा बढ़ाना लाभदायक था. मंहगाई रोकने के लिए आवश्यक वस्तुओं का आयात संभव था. उद्योगों को सिर्फ दुधारू गाय न समझ एक प्रगति का आवश्यक हिस्सा मानना चाहिए था व् उनकी समस्यायों को गंभीरता से सुलझाना चाहिए था. पर यह सब नहीं हुआ और सब उन्हीं चाँद लोगों से ज्यादा टैक्स वसूली मैं लग गये . चुनावी खर्चों की आवश्यकताएं भ्रष्टाचार कम नहीं होने देतीं. इसलिए उद्योगों पर चहूँ ओर से मार पडी . नोत्बंदी व् जीएसटी सराहनीय कदम होते हुए भी अर्थ व्यवस्था उद्योगों की कमर तोड़ गए और काले धन पर भी कोई विशेष प्रभाव नहीं पडा .निर्यात की कमी को हमने विदेशी निवेश से पूरा किया और इसके चलते हम बजट घाटे को नहीं बढ़ा पाए . यदि हम विदेशियों को लाभ दे दें तो वित्ते घटे के बावजूद सब यहाँ आयेंगे . वकीली बुद्धि का दुरूपयोग व् आंकड़ों की जादूगिरी सब समझते हैं.
कृषि मैं उत्पादकता नहीं बढ़ रही है और उसके बिना गावों मैं आय बढ़ाना कठिन है . महाराष्ट्र जैसे राज्यों मैं सिचाई की फर्जी योजनाओं पर धन व्यर्थ कर दिया गया . सिचाई बढाने के लिए बहुत धन की आवश्यकता है जिसको इमानदारी से निवेश करना अब आवश्यक है .नए बीज व् तकनीक की भी आवश्यकता है जो अब भारत के वैज्ञानिक नहीं दे पा रहे . प्रश्न अब चापलूसों व् भाषणों के बजाय काम करने वालों को प्राथमिकता देने की है और उन्हें व्यर्थ की सीबीआई विजिलेंस से बचाने की है जो मनमोहन सरकार चाहे स्वार्थ ही सही पर करती थी . न्यायालयों ने भी जनता व् मीडिया के दबाब में विकास विरोधी रुख अपना लिया . जहाँ तहां खनिज उत्पान इत्यादि पर रोक लगा दी. वोदाफोन के पीछे से लगने वाले टैक्स ने बहुत जग हंसाई की.
सब मिला कर अगली सरकार को विकास को फिर से सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी जैसे मोदी जी ने टाटा की नैनो को गुजरात बुला कर दी थी .. आर्थिक विभागों को बाबुओं और वकीलों को हटा कर उनलोगों को दिए जाय जो इसके माहिर हैं जैसे नरसिम्हा राव ने मनमोहन , मुशर्रफ ने शौकत अज़ीज़ व् मनमोहन ने मोंटेक को दी थी . इन लोगों को पूरी जिम्मेवारी व् बाबुओं से मुक्त रखा जाय तो देश का चीन सरीखा विकास संभव है .
Indian hopes of real rapid economic development after one party government have proved elusive . The hinduwadi government should have learnt from amongst the the first few stories of Mahabharat in which Arjun in Guru Dronacharya ashram only sees and focuses the eye of the bird with his bow and arrow while all others were distracted by view of the full bird ,foliage, tree etc . If like Arjun , the government had focussed only on rapid economic growth it could have achieved the genuine seven or eight percent industrial and economic growth . It faltered due to poor financial understanding and leadership and in desperation ended up with revising job and growth data to show phoney growth but stagnating industrial production and rising unemployment revealed the truth . It is widely believed that by the Vajpayee Manmohan era methodology of measuring economic growth our economic growth in the last four years has only been around 5.5 % per annum . The cumulative agriculture and industrial growth has been even slower . The tragedy is that this economic slow down and missing the great opportunity of catching up with China was totally avoidable .
So what really went wrong and should be avoided by the next government ?
In few words it was just the vanity , ignorance and inaptitude of the leaders and top bureaucracy handling the finance ministry that stymied the growth .
The story of how a sincere and well proven PM got derailed and failed to kickstart the floundering Indian economy of 2014 needs to be studied and understood in detail so that the next government does not repeat the same mistakes and the nation does not lose another five valuable years.
The first serious economic problem the new government successfully faced was runaway inflation . The food prices including dal , vegetable etc had hit the roof and the retail inflation was almost 10 % per annum in 2012 and 2013 . To government’s credit both Pungaria at Niti Ayog and Raghuram Rajan in Reserve Bank and banks under the finance ministry followed the tight money policies by raising the RBI interest rates to 8 % and controlling the fiscal deficit . By March 2015 the retail inflation rate had came down to 5 % .The fear of inflation staging a come back haunted the government and it continued its tight money and the high interest rate policy even in2015-16. Inflation hit lowest figure of 3.6% in 2017 but government continued its version of responsible fiscal management policy ! It was really an irresponsible policy of restraint in spite of decreasing demand which could not stimulate the industrial growth.
Persecution of Wealth and Job Creators :
The nation chose a new government as it was sick of monthly Scam bulletins with 1.76 lakh crore coal scam at top followed by other mining , 3G bandwidth allotment scam etc . The current government did give a respite from the monthly scam bulletins .However opposition derided the new government with jibes like Suitboot Ki Sarkar or Ambani ki Sarkar etc.. The defeat in Delhi and Bihar elections made politics the top priority of the government .To prove opposition wrong wrong and for raising the tax revenues government started vigorous persecution of the industrialist and other wealth and job creators . It set a panic wave and led to exodus of rich men from India . The massive investment made in increasing capacity based on UPA 1 growth started failing as the economy nose dived after MNREGA etc and GDP GROWTH FELL FROM 10% II 2010 TO 4 % 2012 . The electricity ,coal and gas shortage and lack of demand halted the private investment in India totally . Taxing foreign investors like Vodafone from backdate ( retrospectively) did not increase our reputation abroad . Since new Industries were not opening old industries or tax paying individuals were asked to pay more taxes to meet tax collection targets which got nicknamed as Tax Terrorism . Private sector just stopped investing in India . Capital formation declined from peak of 17.5% in 2004-5 to 4.5% in 2012-16. While the government investment in infrastructure improved but it was not sufficient to spur demand or growth. But it was too little and industrial growth declined expectedly .
Persecution of The ‘Doers’ in Bureaucracy :
Rapid development needs experienced expert risk takers . The government chased the mirage of transparency and Black money . Audit ,CBI /CVC/ED/ IT Raj have never achieved growth anywhere in world . Roosvelt threatened to pack Supreme court with his judges to implement New Deal. These bodies ruled the bureaucracy , sucked the existing industries and killed private investment . Without industrial development new job creation stopped and instead government advised youth to sell Pakodas !
We need to restore confidence amongst industrialists , increase demand byconsiderably increasing the productive expenditure even if by deficit financing . Inflation needs to be controlled by increasing supply if necessary by imports . We have to increase our industrial competitiveness as in free trade regime we are not able to control imports or increase exports.
In all government has to be a partner in growth with industry a task Babus are just not capable of doing . Their role in economy and defence needs to be reduced .
At the end Chinese aggressiveness cannot be controlled unless atleast we do not let the gap increase any further . An 8.5 %
growth rate ( by new formula or 7 % old formula ) is the bare minimum requirement .
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