Wailing Librandus : चुनाव २०१९ : देसी व् विदेशी लिब्रान्डूओं का मंदोदरी विलाप
देश के २०१९ के चुनाव में मोदी जी की प्रचंड विजय से उन देशी व् विदेशी शक्तियों में बहुत उथल पुथल मच गयी है जो कि देश में मिली जुली सरकार से होने वाली अस्थिरता की उम्मीद कर रहे थे . उनकी उम्मीदों को साकार करने के लिए विदेशी पत्रिकाएं जैसे टाइम , वाशिंगटन पोस्ट व् गार्जियन इत्यादि भी जी जान से मोदी विरोधी लेख छाप कर सोचने लगीं की भारत की जनता आज भी अंग्रेजों को राजा मानती है और मूर्ख है और इसलिए उनका विश्वास कर लेगी . देश में भी सदा से , विशेषतः गोधरा से आज तक पत्रकारों का देश एक विशेष वर्ग सदा ही भारतीयता व् हिन्दू विरोधी रहा है . इन सब के दुष्प्रचार से सुश्री मायावती से श्री देवगौड़ा तक सब पार्टियों के प्रमुख प्रधान मंत्रि बनने का सपना संजोये हुए थे .उधर तेलंगाना के मुख्य मंत्रि उप प्रधान मंत्रि बनने की सोचने लगे थे . चंद्रबाबू नायडू आन्ध्र में अपनी ज़मीन तो बचा नहीं पाए पर सरे विपक्ष में एकता के लिए दौड़ भाग कर रहे थे . लेकिन भारत की जनता साधुवाद की पात्र है की उसने अत्यंत बुद्धिमत्ता से एक बार फिर से सोनिया गाँधी की यूपीए – २ जैसी मिली जुली , बेईमान व् हिन्दू विरोधी सरकार से देश को फिर बचा लिया और एक सशक्त इमानदार सरकार देश को दी . देश की जनता ने माना की यद्यपि सरकार की उपलब्धियां अपेक्षा से कम थीं परन्तु सरकार इमानदार व् भारतीयता को समर्पित थी और राष्ट्र भक्तों की थी .
परन्तु भारत का एक विशेष अंग्रेजी पढ़ा वर्ग है जो अपने को लिबरल कहलवाना चाहता है पर वास्तव मैं उसका नाम लिब्रान्डू होना चाहिए क्योंकि यह वर्ग वास्तव में देश द्रोहियों का है .प्रखर राष्ट्रवादी , भारतीय संस्कृति को पूर्णतः समर्पित व् गजब के इमानदार मोदी जी की इस जीत से बहुत दुःखी है . यह वही वर्ग है जिसने १९६२ में चीन को हमलावर नहीं माना और उसका दामन नहीं छोड़ा . इस वर्ग ने स्वतंत्रता के बाद विभाजन समर्थक मुसलिम लीगियों को अपने साथ जोड़ लिया . जे एन यु को इन्होने देश द्रोह का अड्डा बना लिया जहाँ दंतेवाडा मैं शहीद हुए सत्तर जवानों की मृत्यु पर ख़ुशी जताई गयी . कश्मीर पर ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह ‘ जैसे नारे खुली आम लगाए गए . इनके साथ वह मिल गए जो ओसामा बिन लादेन को सम्मान पूर्वक ओसामा जी कहते थे और दिल्ली के बटाला हाउस में अपनी जान का बलिदान करने वाले अशोक चक्र से सम्मानित इंस्पेक्टर शर्मा को अपमानित कर सड़कों पर प्रदर्शन करते थे . इन्ही लोगों ने हिन्दू संस्कृति से घृणा पूर्वक स्कूलों में त्रि भाषी फोर्मुले से संस्कृत को निकाल कर जर्मन भाषा पढ़ाना शुरू कर दी थी .अपनी अँगरेज़ परस्ती , अंग्रेजी शिक्षा व् संस्कृति के बलबूते पर यह देश पर आज तक राज करते आये थे . इनको गोधरा कोच के जलने से मरे हिन्दू तीर्थ यात्री नहीं दीखते थे और न ही अपनी जमीन से निष्कासित कश्मीरी पंडित . इन्हें कैराना मैं हिन्दुओं के घर खाली करने पर कोई आपत्ति नहीं हुयी . पर पाँच साल तक एक बिना पक्षपात के चलने वाली सरकार में सदा मुलिम विद्वेष दीखता रहा . इस बार भी इन्होने खुले आम मुस्लिमों को एक जुट हो कर वोट देने को कहा . मोदी जी को देश को बांटने वाला मुसलिम व् अल्पसंख्यक विरोधी कह कर जनता को बरगलाने का प्रयास किया . और अब भी चुनाव परिणाम आने के बाद भी देश मैं साम्प्रदायिक अराजकता फैलाने का प्रयास कर रहे हैं .
परन्तु भारत की बुद्धिमान जनता ने इनके देश द्रोही स्वरुप को पहचान लिया .पहले तीन बार गोधरा व् गुजरात में फिर २०१४ के चुनाव ने जनता के. भारी बहुमत के सही फैसले ने इनको इनकी औकात दिखा दी . परन्तु स्वप्न लोक में विचरण के आदि यह वर्ग हार नहीं मानने को तैयार है . अब यह भविष्य मैं होने वाले काल्पनिक दंगों व् भेदभाव का दर फैला रहा है . यदि पाकिस्तान में ऐसी हरकात की गयी होती तो आज शायद आज जीवित भी नहीं होते . परन्तु प्रजातांत्रिक भारत मैं इनको बोलने की पूरी आजादी है . इनका विष बोल कर निकल जाए तो ही अच्छा है . देश की जनता इनकी बातों को सुनती ही नहीं है .
वास्तव में इनका रुदन रावण वध के उपरान्त मंदोदरी के विलाप सा है . देश इनकी मजबूरी व् दुःख जानता है और इनके विलाप पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगा रहा है . परन्तु अंत मैं मंदोदरी ने वास्तविकता को पहचान कर विभीषण से विवाह कर लिया था . इनको भी अब समझ लेना चाहिए की इस देश में भारतीयता व् हिन्दू विरोधी रावण मर चुका है . अब इनको अर्थींहीन प्रलाप छोड़ मंदोदरी की तरह ही राष्ट्र की सनातन व् सदियों पुरानी मुख्य धारा से जुड़ जाना चाहिए क्योंकि जनता अधर्म के प्रतीक रावण वध से दुःखी नहीं है और रावण के गुणगान करने से अपने विचार नहीं बदलेगी .
परन्तु शायद अभी कुछ दिन प्रलाप व् विलाप चलेगा . हर्ष मंधार का नीचे उद्धृत आधारहीन व् दुराग्रहपूर्ण लेख इसका द्योतक है
https://indianexpress.com/article/opinion/columns/muslim-marginalisation-bjp-rule-narendra-modi-5709640/
—— “After a long, harrowing drought, you wait with aching, desperate hope for the monsoon rains. You expect it will quench your parched arid fields, it will heal your land, feed your starving cattle, your skinny children, and restore them all to life. But when its time comes, you stare at the sky and find that there are no rain clouds, only a pitiless burning sun.. You slowly realise with foreboding that there will be no life-giving rain, that you need to brace and fortify yourself, to endure an even longer, more savage summer, and a merciless drought.
This is how I felt when in numb disbelief I watched the television screens as excited anchors announced the results of the general elections on May 23. My initial disbelief gave way to a sombre realisation that nothing is going to change for the better: it will instead get much worse. There will be no escape from the scorching sun, no oasis, no shade, no pools of cool water.
A much larger number of voters than even in the watershed 2014 elections have placed the country’s destiny in the hands of Narendra Modi. There could be many reasons that led voters to choose Modi, and the party which he so energetically led. The uninspiring opposition – fragmented, divided, and above all lacking in the courage of their convictions – may have pushed many voters into the arms of the Modi-led Bharatiya Janata Party, which by contrast displayed coherence, decisiveness, a clear and consistent ideology, and an appetite for power.
A massive and expensive public relations campaign, backed by big corporate money further helped pave the way for Modi’s stunning success. But the intensely shrill and divisive midsummer election campaign of the Bharatiya Janata Party should leave little doubt that the verdict of 2019 will be interpreted by the leadership of the BJP, and indeed its ideological lodestar, the Rashtriya Swayamsevak Sangh, as an overwhelming mandate for the triumph of the politics of hate and fear. They will believe that the people of India have opted unambiguously for a political and social order which condemns the country’s religious minorities – Muslims and Christians – and disadvantaged castes to a life of settled second-class citizenship; and one which regards progressive thought and resistance as treason.
6 & 9pm Nationalist watch how the Mind has been hacked in last 5 years,I am sure this is not radicalisation for Modi voters but a Natural treatment for Muslims ,this will be watched by Muslim youths will increase alienation & marginalisation -well done Hackers https://t.co/cr6gNOEZdP
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) May 24, 2019
I therefore write this open letter to my Indian Muslim brothers and sisters, to my Christian and Dalit brothers and sisters; to my left and liberal comrades – human rights and peace workers, thinkers, writers, artists. And also to those Modi voters who do not endorse ideologies of hate, and only sought a “strong” and cohesive “nationalist” government.
I am anguished by those among us who indeed voted for hate and fear, or those who are indifferent to what hate speech, lynching and majoritarian rhetoric have done to pulverise so many of our countrywomen and men. I regret that all efforts in civil society to resist and fight the rise and rise of majoritarian politics, and to build a kind and just society, have not prevailed.
These profound breakdowns are the outcome both of clamorous majoritarian aggression and the — “
One Response to “Wailing Librandus : चुनाव २०१९ : देसी व् विदेशी लिब्रान्डूओं का मंदोदरी विलाप”