चंद्रयान – २ : आज अपना हो न हो पर कल हमारा है , परन्तु इसकी राह को भी सुनिश्चित करो

चंद्रयान – २ : आज अपना हो न हो पर कल हमारा है , परन्तु इसकी राह को भी सुनिश्चित करो

chandrayan 2आज भारत ने सफलता पूर्वक चंद्रयान -२ के राकेट का प्रक्षेपण कर दिया . यह लगभग डेढ़  महीने बाद सितम्बर 7  को चंद्रमा पर उतरेगा . यह अच्छा ही हुआ की वैज्ञानिकों ने १५ तारीख को ऐन  मौके पर हीलियम के रिसाव का पता लगा लिया . ऐसे महत्वपूर्ण मिशन में थोडी सी देरी से सफलता अधिक महत्वपूर्ण है .इस को प्रक्षेपित करने वाला राकेट GSLV Mark 3 rocket भारत मैं ही निर्मित है . इसी तरह चाँद पर उतरने वाली २७ किलो ग्राम की बग्घी व् राकेट से अलग होकर चाँद परिक्र्मा करने वाला  तीन स्टेज का राकेट भारतीय होगा . इसकी लांच  कीमत लगभग ३७५  व् सेटेलाईट  की कीमत ६०३ करोड़ रूपये होगी और भार ३.८ टन होगा. पहले यान चंद्रमा की परिक्रमा करेगा और बाद मैं सदा अँधेरे मैं रहने वाले चाँद के पिछ्ले हिस्से पर एक बग्घी को उतारेगा . यदि सफल हुए तो विश्व मैं हम चाँद के अँधेरे हिस्से मैं दक्षिण पोल पर उतरने वाले पहले राष्ट्र बन जायेंगे . अब तक चीन रूस व् अमरीका चाँद पर अपना यान उतार पाए  हैं . चीन भी चाँद की अँधेरी साइड पर उतरा था .इजराइल का कुछ महीने पहले किया गया निजी सेक्टर का प्रयास विफल हो गया परन्तु भारतीय वैज्ञानिक अपनी सफलता पर आश्वस्त हैं . सारा देश उनकी सफलता की कामना कर रहा है .

हम चाहे सफल हों य असफल,  इस मिशन की कल्पना और उसे  मूर्त रूप देने का सफ़र स्वयं अपने आप मैं बहुत बड़ी उपलब्धि है . पृथ्वी से ३८४००० किलोमीटर दूर चद्रमा पर गिरते हुए लैंडर के स्पीड को नियंत्रित करना कितना कठिन कार्य है इसे सोचा भी नहीं जा सकता . चंद्रमा पर वायु मंडल न होने से पेराशूत का उपयोग नहीं किया जा सकता .इजराइल जैसा देश भी अभी हाल में इसमें असफल हो गया था .सफलता तो सदा हिम्मत करने वालों को ही मिलती है . गिरते हैं शह  सवार ही launching of record satelitesमैदाने जंग मैं , वह तिफ्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चले !हम तो भारतीय वैज्ञानिकों को शुभ कामनाएं ही दे सकते हैं . एक बार ८० के दशक में जब देश में हर महीने एक रंगीन टीवी का टावर खुल रहा था तो बीबीसी ने श्रीमती इंदिरागांधी से सवाल किया की क्या भारत सरीखे एक गरीब देश के लिए क्या रंगीन टीवी इतनी बड़ी प्राथमिकता सही है ? श्रीमती गाँधी ने बेहद सटीक उत्तर दिया की हम पहली औद्योगिक क्रांति का हिस्सा नहीं बन सके और आज भी उसकी कीमत चुका रहे हैं . मैं भारत को दूसरी औद्योगिक क्रांति जो संचार व् कम्युनिकेशन की होगी भारत से दूर नहीं होने देना चाहती . यह परम सत्य सिद्ध हुआ है .आज भारत का छोटा  शहरी भी रंगीन टीवी पर सौ चेनल देख सकता है जो पश्चिम के बराबर ही है .इसी तरह भारतीय मोबाइल या इन्टरनेट का पश्चिम से कम उपयोग नहीं कर रहे हैं . यही देन  कभी अन्तरिक्ष भी देगा विशेषतः यदि अगले दस सालों में भारतीय वैज्ञानिक चाँद से हीलियम ३ ला सके . हीलियम ३ परमाणु घर मैं बिजली बनाने की प्रक्रिया को एक दम बदल देगी .  वर्तमान सरकार भी श्रीमती गांधी व् पंडित नेहरु की तरह अत्यंत साधुवाद का पात्र है की उसने भारत को इतने बड़े अभियान का सक्षम बनाया  .

आज भारत का  चाँद , मंगल या  शुक्र  पर जाना अमरीका व् यूरोप के अभिमानी निवासियों को एक गरीब देश का महँगा शौक लग रहा हो परन्तु भविष्य मैं यह बहुत उपयोगी होगा . कभी लोगों ने रेल और हवाई जहाज को भी बहुत महंगा और बेकार कहा गया था पर आज उनके बिना जीवन अधूरा लगता है . भारत के अन्तरिक्ष प्रोग्राम की शुरुआत  भारत के तत्कालीन  प्रधान मंत्रि जवाहर लाल नेहरु ने  1962 में की थी . १९७५ में भारत ने  अपना पहला सेटिलाईट आर्य भट्ट  रूस से छोड़ा था . १९८० में भारत के राकेट रोहिणी ने पहली बार भारत के सेटेलाईट को अन्तरिक्ष में स्थापित किया था . २०१७ में भारत के PSLV राकेट ने एक साथ १०४ सटेलाईट स्थापित कर एक विश्व  रिकॉर्ड बनाया . इसी तरह प्रथम प्रयास मैं हम मंगल गृह की कक्षा में पहुँच गए . यह उपलब्धियां  भारत के आने वाले सुन्दर भविष्य का द्योतक हैं . २०५० में जब हम अपने गणतंत्र की सौंवी वर्षगाँठ मना रहे होंगे तो हम एक हज़ार साल के  गुलाम देश की सब यादों को भुलाकर विश्व में अपना उपयुक्त स्थान बना चुके होंगे .

स्वतंत्र भारत के लिए दिए गए अनगिनत बलिदानों को भारत के स्वर्णिम युग की वापसी ही सच्ची श्रद्धांजली होगी .

इन उपलब्धियों के साथ में यह भी खेद का विषय है की अब भारत में  डॉक्टरी  विज्ञान व् इंजीनियरिंग प्रतिभाशाली छात्रों की पहली पसंद नहीं रहे . भारत की अंतरिक्ष ,आणविक, टेक्नोलॉजी ,सॉफ्टवेर व् विज्ञान की प्रगति १९६० – ९०  के दशकों में भारत के प्रतिभा शाली छात्रों की विज्ञानिक विषयों को पढने की चाहत का परिणाम है . घटते सम्मान व् ज्यादा वेतन के कारण अब छात्र प्रशासनिक सेवाएँ ,कॉमर्स , अर्थशास्त्र जैसे विषय चुन रहे हें . परन्तु याद रहे की भारत को कोई देश भी भी नयी महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी नहीं देगा . टेक्नोलॉजी में स्वाबलंबन का कोई विकल्प नहीं है . उदाहरणतः  हमारे मित्र रूस  भी इस चंद्रयान के लिए लैंडर  देने पर वादा कर मुकर गया  था और हमारा स्वदेशी लैंडर वर्षों की रिसर्च के बाद बना . अमरीका ने तो हमारे मिसाइल टेस्ट के दौरान अपना सेटेलाईट जीपीएस सिग्नल कुछ क्षणों के लिए बंद कर टेस्ट फेल कर दिया था .इसे दुश्मनी न कहें तो क्या कहें? अंतरिक्ष मैं भी हमारे राकेट विदेशी रोकेटों  के मुकाबले बहुत ज्यादा इंधन खर्च करते हें . इजराइल ने तो गूगल प्रतियोगिता जीतने के लिए व् बच्चों मैं विज्ञान मैं रूचि बढाने के लिए चाँद पर जाने की मुहीम चलाई थी जिस मैं वह लगभग सफल भी हो गए थे . सिर्फ चाँद की सतह से सिर्फ १४९ मीटर पर पहुँच कर उनका कंप्यूटर से लिंक टूट गया अन्यथा वह सफल हो जाते . इसलिए विज्ञान में हम हमारी टाटा मोटर की तरह  विदेशी प्राइवेट सेक्टर से रेस मैं हैं और इसमें जीतना इतना सरल नहीं है . उदाहरण के लिए आज हम चाँद पर ४८ दिन मैं पहुंचेंगे परन्तु शक्तिशाली राकेट से सिर्फ तीन दिन मैं भी चाँद पर पहुंचा जा सकता है . अमरीका कभी यह संभव कर हमें फिस्सडी साबित करना कहेगा .इसी तरह हमारे वैज्ञानिकों की सुरक्षा भी महत्वपूर्ण है . हमरे अनेकों परमाणु वैज्ञानिकों की ह्त्या हो चुकी है . इसरो के वैज्ञानिकों पर झूठे जासूसी के केस किये जा चुके हैं . इसलिए अब जब हम अंतरिक्ष मैं सफलता की और चल पड़े हैं तो अब आने वाले खतरों से भी सावधान रहना होगा .

इसलिए राष्ट्र हित  में हमें ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करनी चाहिए की हमारे शीर्ष वैज्ञानिक , डॉक्टर , इंजिनियर सिर्फ वेतन व् सम्मान के लिए विदेश पलायन न कर जाएँ और मेधावी छात्र विज्ञान व् इंजीनियरिंग  में रूचि बनाये रखें . किसान व् विज्ञान का स्वदेशी होना अपरिहार्य है.

सरकार को इन अमूल्य उपलब्धियों को संभव बनाने वाले वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करने के लिए उपयुक्त कदम उठाने चाहिए और इस अपूर्व वैज्ञानिक सफलता के क्रम को बनाए रखने के लिए राह सुनिश्चित करनी चाहिए .

अब हम धैर्य व् आशापूर्वक ६ सितम्बर का इंतज़ार करेंगे और आशा करेंगे की हमारा चंद्रयान २ मिशन भी सफल हो कर हर भारतीय को गौरान्वित करे .

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