क्या हथियार बेचने वाले देश भारत को स्वाबलंबी होने देने से रोक रहे हैं ? सुखोई , रफाल व् अमरीकी ड्रोन

rp_RKU-263x300.jpgsukhoiक्या  हथियार बेचने वाले  देश दब्बू भारत को स्वाबलंबी  होने देने से रोक रहे हैं ? सुखोई , रफाल व् अमरीकी ड्रोन

Rajiv Upadhyay

भारत के बड़े ११४ लड़ाकू हवाई जहाज के टेंडर ने व् अन्य आधुनिक हथियारों की हाल ही की खरीदारी ने भारतीय मजबूरी व् शोषण को जम कर उजागर कर दिया है . सबसे बड़ी डील एस – ४०० मिसाइल डिफेन्स सिस्टम को ही लें . अमरीका दबाब बना रहा है कि भारत रूस से यह मिसाइल न खरीदे जब की चीन ने यह खरीद लिए हें . अमरीकी पेट्रियट सिस्टम तो बहुत पुराना व् बेकार है . उसका थाड सिस्टम भी रूस के एस ४०० से कहीं ज्यादा महँगा है और उसके मुकाबले घटिया है . तुर्की ने साफ़ कह दिया की वह अमरीकी सिस्टम नहीं खरीदेगा . सऊदी अरबिया भी एस ४०० खरीदने की सोच रहा है .तब भी भारत पर अमरीका रूस विरोधी कानून CATSAA के तहत प्रतिबन्ध लगाने की धमकी दे रहा है . उसने प्रिडेटर ड्रोन , इत्यादि तभी दिए जब भारत ने उसके COMCASA सिस्टम को मान लिया जिसके अंतर्गत अमरीकी हथियारों मैं भारत के अपने सॉफ्टवेर का उपयोग नहीं होगा .हमारे एक मिसाइल की टेस्टिंग के दौरान अमरीका ने अपना जीपीएस सिस्टम कुछ क्षणों के लिए बंद कर दिया जिससे हमारा मिसाइल समुन्द्र  मैं गिर गया .अमरीका ने रूस को करार के बावजूद भी भारत को क्र्योजनिक इंजन नहीं बेचने दिया . हमने अपना क्र्योजनिक इंजन बनानने मैं लगभग पंद्रह वर्ष गुजार दिए .हमारे अपने प्लूटोनियम के उपयोग की विधि बनाने वाले वैज्ञानिकों की रहस्यमय मौतें हो रही हैं . इसरो मैं भी Nanbi Narayan भारतीय वैज्ञानिकों को झूठे  जैसे केसों मैं फंसाया गया जिस मैं विदेशियों का हाथ होने का शक था .nambi_narayanan_750_1

हमारा मित्र रूस भी भारत का जम कर आर्थिक  शोषण करता है . आज जब मात्र ११४ हवाई जहाज के लिए ग्रिपेन अपनी पूरी टेक्नोलॉजी देने को तैयार है रूस ने २७२ सुखोई हवाई जहाज़ों के खरीदने पर भी हमें उसकी टेक्नोलॉजी नहीं दी . जो हवाई जहाज भारत मैं बन रहे हैं उनमें आधे पुर्जे  रूस से ही आते हैं . इसके चलते भारत मैं बनने वाले सुखोई जहाज आयातित जहाज़ों से सौ करोड़ रूपये मंहगे होते हैं .सुखोई  के एयर फ्रेम मैं छोटे से बदलाव के बहुत पैसे मांगने लगा है जिसे भारतीय इन्जीनरों ने स्वयं बहुत कम कीमत पर कर लिया . सुखोई डील मैं भारत को बुरी तरह  लूटा गया है  . एच ए  एल के  थोड़े से स्वाबलंबन की भी भारत बहुत बड़ी कीमत अदा कर रहा है . और तो और अब रूस भारतीय अस्त्र व् इस्रेली डर्बी मिसाइल को भी सुखोई मैं नहीं लगाने दे रहा जब की बालाकोट ने रूसी मिसाइलों  की कम रेंज व् अक्षमता को बुरी तरह से उजागर कर दिया था . हमें ब्रम्होस मिसाइल विएतनाम को नहीं बेचने दिए पर बदले में रूसी मसाइल बेच दिए .रूस हमें अच्छे आधुनिक  हथियार तो देता है पर उनकी बेहद कीमत वसूलता है और अस्त्र  मिसाइल के मामले ने दिखा दिया की वह हमारे स्वाबलंबन के खिलाफ है . भारत को एस ४०० की टेक्नोलॉजी नहीं दे रहा परन्तु हम से कम कीमत पर खरीदने वाले टर्की को रूस पूरी एस ४०० की टेक्नोलॉजी  दे रहा है .माना तुर्की अमरीका से दूर हो रहा है परन्तु भारत भी तो रूस का कितना पुराना मित्र है. एक बार तुर्की को एस ४०० की टेक्नोलॉजी मिल गयी तो वह उसे पाकिस्तान को बेच देगा .चीन के पास तो पहले से ही यह सिस्टम है .भारत के दोनों दुश्मनों के पास भी एस ४०० हो आयेगा और तब तक एस ५०० बाज़ार मैं आ जाएगा . अब पाठक ही फैसला करें की कौन किसका कितना मित्र है . रूस ने भारत के साथ संयुक्त रूप से विकसित होने वाले ऍफ़ जी ऍफ़ इ हवाई जहाज को भी बाद मैं टेक्नोलॉजी ट्रान्सफर के लिए मना कर दिया जिससे गुस्से मैं भारत उससे अलग हो गया .s 400

अब फ्रांस को लें . जो रफेल हमें इतने मंहगे दामों पर बेचें हैं वह जब तक भारत आयेंगे तब तक फ्रांस मैं उनका उन्नत F 4 मॉडल आ जाएगा . भारत को इते महगे दामों पर पुरानी टेक्नोलॉजी बेचीं जा रही है . इसी तरह कांग्रेस के ज़माने मैं राफेल के टेक्नोलॉजी ट्रान्सफर की मांग को मान लिया गया था पर बाद मैं फ्रांस ने मना कर दिया .इसी तरह चीन ने फ्रांस को एयरबस का आर्डर कैंसिल करने की धमकी दे कर टरबाइन मैं उपयोग होने वाले सेरामिक की टेक्नोलॉजी हासिल करली . हमें इतने एयरबस खरीदने पर भी फ्रांस वह टेक्नोलॉजी देने को तैयार नहीं है .परन्तु कारगिल युद्ध मैं फ्रांस व् इजराइल ने लेज़र बम दे कर हमें जितवा  दिया था  . बालाकोट मैं भी हमने इस्राइल के स्पाइक बमों का उपयोग किया था .उनकी इस मदद के बिना हमारा जीतना संभव नहीं था .परन्तु इसराइल  ने भी अमरीकी दबाब मैं आ कर हमें आधुनिक  हेरॉन ड्रोन देने  से मना कर दिया .

एक तरफ विदेशियों द्वारा  भारत का शोषण जग विदित है दूसरी तरफ हमारी सेनायें भारतीय टैंक अर्जुन का उपयोग नहीं करना चाहतीं . चीन का जे २० एक दम आधुनिकतम नहीं है पर चीन उसे बना रहा है . भारत मैं तेजस व् एमका के दुश्मन उनकी धज्जी उड़ाने मैं व्यस्त हैं .पाकिस्तान अपने सस्ते व् पुराने जे ऍफ़ १७ से लड़ कर हमें से लोहा लेने को तैयार है . बालाकोट के बाद उसने हमें करारा जबाब तो दे ही दिया .

इसलिए भारत को किसी ही हालत मैं अपने मिसाइल , हवाई जहाज , टैंक , तोप व् पनडुब्बी विकसित करनी चाहिए .इसी तरह अंतरिक्ष की पहल को आगे बढ़ाना चाहिए . सुरक्षा मैं स्वाबलंबन अब अति आवश्यक हो गया है . इस कीमत  को कम आंकना भी मुर्खता होगी . भारत किसी भी कंधे पर सवार हो कर सुपर पॉवर नहीं बन सकता . उसे अपने ही दम पर अपनी रक्षा व्यवस्था सशक्त करनी होगी .

 

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