रक्षा सौदों मैं विलम्ब : ज़मीन पर रही धूल उड़ती ही वैसी गगन मैं चमन खिल लिया तो हुआ क्या ?
मुंबई के हमले के समय हमने पाया की हमारे पास टैंक व् तोप तो थीं पर उनके गोले नहीं थी। तिस पर सबसे सस्ते के चक्क्र मैं बोफ़ोर के लिए रूसी गोले खरीद लिए जो फूस हो गए। हम चाह कर भी पाकिस्तान को मुंबई काण्ड का कोई जबाब नहीं दे सके। भारत के रक्षा सौदे चीटीं से भी कहीं धीरे चलने के लिए बदनाम हें। पहले तो हमें पूर्व रक्षा मंत्री अंटोनी की अपनी ईमानदार छवि पर दाग बचाने के लिए कोई भी निर्णय न ले पाने की आदत अखरती थी।राफेल हवाई जहाज़ों का सौदा इसकी एक जीती जगती मिसाल था। १२६ लड़ाकू हवाई जहाज़ों के खरीदने का फैसला वायु सेना ने २००१ मैं लिया था. सन २००८ मैं हवाई जहाज़ों के परीक्षण शुरू हुएजो एक वर्ष में पूरे हो गए। श्री अंटोनी अपने पांच साल के कार्य काल मैं जहाज़ नहीं खरीद सके न ही किसी कंपनी को आर्डर दे सके। सन २०१४ मैं मोदी सरकार आ गयी। मोदी जी ने १२६ के बजाय ३६ राफेल का आर्डर फ्रांस की कंपनी को दे दिया। परन्तु इसका कॉन्ट्रैक्ट सन २०१६ मैं ही साइन हो पाया और पहला हवाई जहाज़ प्रक्रिया के प्रारम्भ होने के बीस साल बाद २०२० मैं भारत आएगा। इतने मैं बालाकोट हो गया जिसमें हमारे सुखोई अपनी जान तो बचा पाए परन्तु पाकिस्तान के हवाई जहाज़ों का बाल बांका नहीं कर पाए क्योंकि उनकी मिसाइल मात्र ६० किलोमीटर की थी जबकी पाकिस्तानी मिसाइल १०० किलोमीटर की थी और उसने दूर से ही सुखोई जहाज़ों पर ताबड़ तोड़ मसाइल दाग दिए। पाकिस्तान ने हमारी संचार व्यवस्था भी ध्वस्त कर दी क्योंकि हम समय रहते सिक्योर लिंक नहीं खरीद पाए। इसके फलस्वरूप हमारा पायलट अभिनन्दन पाकिस्तान मैं पकड़ा गया. हमारी वायु सेना प्रमुख यही कहते रह गए की यदि राफेल होता तो युद्ध का परिणाम कुछ और होता ! किसी ने नहीं पूछा की इस सौदे की देरी जिसने हमें लगभग हरवा दिया होता उसका जिम्मेवार कौन था? क्यों उसके विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही नहीं की जाए ?
कॉग्रेस की सरकार के तत्कालीन प्रधान मंत्री को तो पॉलिसी पैरालिसिस से ग्रसित घोषित कर दिया पर देश को आशा थी की अब तो शीघ्र निर्णय ले सकने वाली सरकार आ गयी है और अब देश की रक्षा मजबूत हाथों मैं है।
परन्तु यदि हम पिछले छह वर्षों के सौदों को देखें तो यह आशा भी अन्य औद्योगिक विकास व् नौकरियों की आशाओं की तरह धुल धूसरित हुई लगती है. नए हथियार खरीदने के लिए रक्षा बजट भी आवश्यकता अनुसार नहीं बढा है। सबसे निराशाजनक समस्या रक्षा सौदों मैं बेहद मंदी गति व् देरी बरकरार रहने की है. इसके विपरीत हमारे दोनों दुश्मन देश चीन व् पाकिस्तान रक्षा सम्बन्धी फैसले तुरंत ले लेते हैं। हमें बीस साल मैं हवाई जहाज देने वाली अपनी प्रजातांत्रिक रक्षा सामग्री खरीदने वाली व्यवस्था पर अभिमान करने के बजाय शर्म आनी चाहिए। हमारी बाबुओं की व्यवस्था पूरी बदलने की बहुत आवश्यकता है क्योंकि इस पुरानी व्यवस्था के चलते बदलाव की आशा करना व्यर्थ है। । उदाहरणतः इस सरकार के द्वारा घोषित रक्षा सौदों मैं लगने वाले समय का अवलोकन करें।
नया ११४ लड़ाकू हवाई जहाज खरीद का पिछले चार वर्षों की उठापटक के बावजूद अभी तो टेंडर भी नहीं निकला। टेंडर के बाद कॉन्ट्रैक्ट मैं खरीदने मैं तो तीन साल और लग जायेंगे और पूरे हवाई जहाज आते आते फिर पंद्रह वर्ष ही लगेंगे। इस दौरान हमारी वायु सेना भगवान् भरोसे ही रहेगी। इसके अलावा एच ए ल के ३६ और सुखोई जहाज सस्ते मैं बनाने का प्रस्ताव भी अधर मैं है. रूस से २९ पुराने मिग २९ जहाज खरीदने थे उनका भी कोई निर्णय नहीं हुआ.गत वर्ष एच ए ल के वास्तविक नए आर्डर सबसे कम थे. उसको बिल न पास कर और क़र्ज़ मैं डुबोया जा रहा है। तेजस एम् के २ , ऐमका जहाज भी अधर मैं हैं। बिचारे वायु सेनाप्रमुख बेआबरू हो कर अपना ऐ मका पर बयान बदलने को मजबूर हो गए हैं। अब उसे छठी पीढ़ी का जहाज़ ,जिसको अभी कोई नहीं बना पाया , जैसा बनाने की बात करने लगे.स्वदेशी कावेरी इंजिन के बारे मैं अभी भी अनिश्चितता ही है।चीन ने फ्रांस की बांह मरोड़ कर तकनीक ले ली हम नहीं कर सके।
एक और उदहारण लें। 2016 मैं भारतीय प्रधान मंत्री व् राष्ट्रपति प्युटीन के बीच भारत में कामोव हेलीकाप्टर बनाए जाने के प्रस्ताव पर सहमती हुई थी। अभी तक इस पर कोई ठोस कॉन्ट्रैक्ट या फैसला नहीं हुआ। कब उनका उत्पादन देश मैं शुरू होगा पता नहीं ! इस बीच एच ए ल अपना लाइट कॉम्बैट हेलीकाप्टर बना कर बैठा हुआ यही पर अभी तक कोई आर्डर नहीं दिया गया है .
निरे मिसाइल टेस्ट सफल हो रहे हैं पर अभी तक सिर्फ पृथ्वी – २ व् आकाश के आर्डर ही दिए गए हैं।अन्य अग्नि व् पिनाका के आर्डर देने मैं देर होने से उनके दाम भी बढ़ेंगे और रक्षा व्यवस्था पर बुरा असर होगा। हालमें कुछ ब्रह्मोस के आर्डर दिए जाने की बात है पर ठीक पता नहीं की सेना ने आर्डर दिए हैं या नहीं।
हेलीकाप्टर से उठायी जाने वाली हलकी १४५ बीईए अमरीकी तोपों को खरीदने मैं सात वर्ष लग गए।
The DRDO’s indigenously developed Advanced Towed Array Gun Systems (ATAGS), a 155×52 mm towed howitzer developed with the private sector, saw one of its prototypes shoot a shell out to 48 km at the Pokharan test ranges on September 15, a world record for a gun of its class. But this gun, too, is still years away from mass production.
यदि मेक इन इंडिया को सफल बनाना है तो भारतीय कंपनियों को दस साल के आर्डर तो देने होंगे। बाबू यह फैसला नहीं ले पा रहे। हर तीन साल मैं बाबू बदल जाते हैं और नया बाबू नयी सोच व् नए दोस्त लेकर आता है. विदेशी लोब्बी की ताकत तो जनरल वीकेसिंह प्रकरण मैं देख ही चुके हैं। इसलिए मेक इन इंडिया पूर्णतः असफल हो गया.
रक्षा बजट भी बहुत कम है। सारा पैसा तो वेतन , गोला बारूद मैं ही खर्च हो जाता है। पुराने हथियारों के बदले नए हथियार खरीदने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है। परन्तु हमारे दुश्मन जी खोल कर रक्षा पर खर्च कर रहे हैं। पाकिस्तान हमसे पहले मिसाइल व् ड्रोन बना चुका है। हम व्यर्थ मैं मिथ्याभिमान से ग्रसित हैं। चीन से तो प्रतिस्पर्धा हमारे बस मैं ही नहीं है.
देश को नयी रक्षा व्यवस्था चाहिए। बजट के बाद रक्षा सौदों मैं वित्त विभाग का कोई दखल नहीं होना चाहिए। सेनाप्रमुखों को दोनों ओर २२ दिन की लड़ाई जीतने के लिए आवश्यक सामग्री खरीदने की छूट होनी चाहिए। नए सीडीएस को सेना प्रमुखों के ऊपर बिठा दिया परन्तु रक्षा मंत्रालय के बाबुओं ने अपनी जमीन पर नहीं आने दिया। बाबुओं को रक्षा के बारे मैं क्या आता है जो सीडीएस को नहीं आता ? सिर्फ नए रक्षा मंत्री से उनकी पुरानी जान पहचान होती है और इसलिए उनके विश्वास पात्र होते हैं।
समय आगया है की बाबुओं या तो एक साल मैं रक्षा सामग्री खरीदने की प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया जाय या अब बिना वित्त व् रक्षा विभाग के बाबुओं के , रक्षा मंत्रालय चलाने का प्रयोग किया जाय।
हज़ारों वर्षों से युद्ध की पराजय की विभीषिका भोगा हुआ देश, सुरक्षा मैं बाबूशाही का गुलाम नहीं हो सकता। जो व्यवस्था अगले संभव युद्ध मैं जीत दिलाये वही अपनाना उपयुक्त है .
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