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खेवन हारे अवतार की प्रतीक्षा करती डूबती भारतीय अर्थ व्यवस्था : सरकार जब मान ही नहीं रही तो उबारेगी कैसे

rp_RKU-150x150.jpgखेवन हारे  अवतार की प्रतीक्षा करती डूबती भारतीय अर्थ व्यवस्था : सरकार जब मान ही नहीं रही तो उबारेगी कैसे

राजीव उपाध्याय

डूबती हुयी भारतीय अर्थवयवस्था से पीड़ित देश को ढाढस बंधाने के लिए   गीता का यह उपदेश कभी कभी बहुत उपयोग  मैं आ जाता है . तुलसी दास जी ने संस्कृत के श्लोक का हिंदी रूपांतरण राम चरित मानस मैं किया है जो नीचे वर्णित है .

जब जब होई धरम कै हानी।
बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥3॥
करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी।
सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥
तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा।
हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥4॥

जब की सारा देश जानता है की हमारी अर्थ व्यवस्था चरमरा गयी है . वाजपेयी जी की आठ प्रतिशत ( आज के हिसाब से साड़े नौ प्रतिशत ) से घट कर ४.५ प्रतिशत प्रति वर्ष की आर्थिक बढ़ोतरी भी अपने आप में इतनी दुखदायी नहीं होती यदि यह भी सच होती और सरकार इसके कारण जान कर उसे सुधारने के कारगर उपाय कर रही होती . परन्तु सरकार तो आर्थिक पतन को  मान ही नहीं रही . अरुण जेटली जी के कार्यकाल मैं सारा सरकारी तंत्र गिरती अर्थ व्यवस्था को झूठे आंकड़ों के माया  जाल मैं छुपाने मैं लगा रहा . निरे अर्थ शास्त्रियों ने इतना झूठ न बोल बाने के कारण सरकार से इस्तीफे दे दिए .सरकार से दम्भी व् अज्ञानी बाबुओं ने अर्थशास्त्रियों को निकाल कर पूरी अर्थ व्यवस्था पर कब्ज़ा कर लिया . योजना योग को समाप्त कर विशेषज्ञों को निष्प्रभावी कर दिया और बाबु उस पर काबिज़ हो गए .फिर रिज़र्व बैंक पर कब्ज़ा किया .प्रधान मंत्रि की  आर्थिक सलाहकार समिति मैं भी बाबु छा गए . अर्थ शास्त्रियों को लगभग सरकार ने देश निकाला दे दिया .आज भी वित्त मंत्रि स्वयं अपने विभाग द्वारा जरी आर्थिक सर्वे को नहीं मानती.

बाबुओं द्वारा लिखी, वित्त मंत्रि की आज तक की सबसे घटिया बजट स्पीच , ढाई घंटे में न तो आर्थिक पतन की  सम्स्या समझा पाई न ही उसका समाधान बता पाई . पिछले वर्ष भी बजट स्पीच की इतनी खतरनाक अज्ञान भरी थी की उससे देश मैं विद्रोह हो गया . विदेशी मुद्रा के कर्जों से सड़क बनाना इतना मुर्खता भरा सुझाव था की वित्त सचिव को तुरंत निकालना पडा . जब भारत का निर्यात पिछले पाँच वर्षों से बढ़ नहीं पा रहा और आयात निर्यात से कहीं ज्यादा है तो और यह विदेशी भारी कर्जे लेकर भारत को पाकिस्तान बनाने के समान था . यह बजट का एक अकेला मुर्खता पूर्ण सुझाव नहीं था . बड़े बैंकों के साथ छोटे बैंकों के विलय को बहुत बड़ा आर्थिक सुधार बताना एक और बाबु अल्प बुद्धि का प्रमाण था . जब पाँच लाख बिन बिकी कारें व् पाँच लाख बिन बिके घरों का धमाका हुआ तो वित्त मंत्रि को साल के बीच मैं कॉर्पोरेट टैक्स घटाने व् अन्य उपायों की घोषणा करनी पडी . पर क्या सरकार पिछले बजट के समय यह सर्व विदित बात जानती नहीं थी . दम्भी किन्तु अल्पज्ञानी बाबु इस समस्या समाधान नहीं जानते थे इसलिए इसे उजागर कर अपनी असमर्थता नहीं प्रकट करना चाहते थे . क्योंकि वह अवरुद्ध विकास को  सुल्झाना नहीं जानते थे इसलिए शतुरमुर्ग की तरह उन्होंने आँखें बंद कर समस्या को नकारना ही उचित समझा . अपने साथ उन्होंने स्वर्गीय अरुण जेटली जी को भी बेवकूफ बना लिया जो विकास के झूठे आंकड़ों को समस्या का निदान मानने लगे . बढ़ते सरकारी खर्च के लिए जोर जबरदस्ती से इतना टैक्स वसूला की उद्योगपति देश छोड़ के भागने लगे . देसी उद्योगपति बैंकों के उधार के बोझ तले इतना  दबे थे इसलिए कुछ बोल नहीं पा रहे थे .इसी तरह पिछले पाँच वर्षों से लगातार गिरती अर्थ व्यवस्था , बढ़ती बेरोजगारी , अवरुद्ध कृषि व् औद्योगिक विकास सारे देश को पता है . सरकारी आंकड़ों की साख इतनी गिर चुकी है की जो लोग चिदंबरम जी के हिन्दू आतंक वाद व् भ्रष्टाचार से असहमत हैं वह भी उनको पिछले दो बजट भाषण को सरकार से ज्यादा सच्चा मानते हैं .

निर्माला सीता रमण जी अरुण जेटली जी वाली गलती नहीं दोहरा रही हैं और आंकड़ों की पार दर्शिता थोड़ा बढ़ा रही हैं . पर वह भी अवरुद्ध विकास , सर्व व्यापी बेरोजगारी , गिरती बिजली की खपत , कृषि व् उद्योग की जड़ता को नकार रही हैं क्योंकि उससे प्रधान मंत्रि व् सरकार की बहुत बदनामी होगी .चिदंबरम जी ने सच कहा की अब तो गाँव मैं खाद्यान्नों की खपत भी कम हो रही है . इसके पहले जब पारले जी ने पाँच रूपये के बिस्कुट के पाकेटों की मांग की कमी की बात की थी तो सरकार को नहीं समझ आया था . वेतन भोगी वर्ग ने तो अब अपनी तकलीफों के बारे में  बोलना ही बंद कर दिया है क्योंकि वोटों को गिन  कर मदद देने वाली दुकानदारों की सरकार से उन्होंने अपने  वोट विहीन होने के कारण उम्मीद करना ही छोड़ दिया . इस वर्ष की झूठी  टैक्स रिबेट सरकार की पेंशन व् वेतन भोगी वर्ग की प्रति दूषित व् असंवेदनशील मानसिकता का प्रतीक है. यह वर्ग अपना दुःख तो सह लेता पर बिना नौकरी वाले बच्चों का क्या करे !

प्रश्न यह है की इस आर्थिक पतन की शुरुआत तो कांग्रेस के अंतिम दो वर्षों मैं ही हो गयी थी . तब की सरकार ने अपने भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए जो लोक लुभावन नीतियों की शुरुआत की वह देश को अब भी डुबो रही है  क्योंकि कोई सरकार अब मंनरेगा जैसी स्कीमों को रोक नहीं सकती . दिल्ली मैं आप की जीत का कारण  बिजली पानी  मुफ्त कर देना ही था और अब यह गुरुमंत्र और भी सीख लेंगे. परन्तु मोदी जी के कार्यकाल मैं विकास दर और कम हुयी है जिसका कारण सरकार की गलत आर्थिक नीतियाँ ही हैं . समस्या बहुत गंभीर है और इसका कोई सरल समाधान भी नहीं है . इस समस्या के लिए नए समाधान खोजने होंगे जैसे अमरीकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने खोजे थे .इसलिए बजट की बुराई बांचने वाले भी कभी समाधान नहीं बता सके हैं .इसके लिए पूरी विपक्षी पार्टियों का सहयोग भी चाहिएगा .मोदी जी अर्थ शास्त्री  नहीं हैं और वह इस समस्या का निदान कतई  नहीं जानते . उनको घेरे हुए अहंकारी बाबु तो स्वयं समस्या की जड़ हैं और उनको तो दूर रखना ही श्रेष्ठ होगा. पहले अर्थशास्त्री रघु राम राजन या पंगारिया इत्यादि  मन्ह्गाई कम करना तो जानते थे इस लिए मंहगाई कम हो गयी पर अब बिना मंहगाई के विकास कैसे करें कोई नहीं जानता .एक डा स्वामी हैं जो यह जानते  हैं पर उनसे सरकार में सब डरते हैं . अभिमान वश सरकार यह स्वीकारना भी नहीं चाहती.वित्त मंत्रि भगवान राम की तरह बिना रथ के और अपने मंत्रालय की वानर सेना को लेकर रावण से युद्ध करने तो निकल पडीं हैं पर कोई अगस्त ऋषि तो उन्हें भी चाहिए जो उन्हें आदित्य ह्रदय श्लोक व् इंद्र का रथ दे सके .

इसलिए सर्वथा हारी हुई  भीष्म की तरह असहाय सरकार द्रौपदी के चीर हरण की तरह अर्थ व्यवस्था के चीर हरण को देखने के लिए मजबूर है और अब सब किसी कृष्ण के अवतरित होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं क्योंकि किसी मैं दुर्योधन को रोकने का साहस नहीं है .

देश को कौन बताये की खेवन हारे भगवान  कब अवतरित होंगे !

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