Illusive Financial Reforms & Income Tax Relief : नए वित्त मंत्रि को बाबु फिर बहका रहे हैं – राजीव उपाध्याय
( युधिष्टिर के अर्ध सत्य ‘ अश्वत्थामा हतो नरो न कुंजरो’ जैसे बयानों की नयी भरमार )
देश की अर्थव्यवस्था के डूबने का एक कारण यह भी है कि सरकार जब कम विकास के बावजूद बेतहाशा मंहगाई पर पहले डेढ़ वर्षों में नियँत्रण कर लिया तो उसकी बहुत तारीफ़ हुई . उसके बाद् विकास के नारे पर आयी सरकार, वाजपेयी या मनमोहन सरकार के समान विकास दर बढ़ाने मैं असफल हो गयी .इसका कारण सरकार में वित्तीय प्रतिभा की कमी थी और बाबा रामदेव सरीखे नीम हकीम अर्थ शास्त्री देश को ज्ञान बाँटने लगे . तत्कालीन वित्त मंत्रि देश को अपनी इस असफलता के बारे में सच बताने के बजाय पहले झूठे आंकड़ों से बिना वास्तविक प्रगति के ऊंची विकास दर के झूठे सब्ज़ बाग़ देश को दिखाते रहे . सकल घरेलू उत्पाद्में में पहले टैक्स व् लाभ नहीं जुड़ता था . उनको जोड़ कर सरकार ने एक बार मैं झूठी उन्नति दिखा दी . कुछ आंकड़ों का बेस वर्ष बदलने से विकास दर झूठ मूठ ज्यादा दीखने लगी . तेल के घटे अंतर्राष्ट्रीय दामों ने सरकार को सीमा शुल्क से ज्यादा पैसे दे दिए और वह उन्हें खर्च कर वाह वाही बटोरती रही . परन्तु देश की औद्योगिक व् कृषि की प्रगति बहुत कम हो रही थी जिससे देश वाकिफ नहीं था. फिर बढे खर्च के लिए बजाय नए व्यापारियों, वकीलों इत्यादि , जो वास्तविक आय से बहुत कम आय कर देते थे, पकड़ने के , अधिक टैक्स लेने के लिए सरकार ने पुराने टैक्स देने वालों से ज्यादा जबरन उत्पीडन कर वसूली शुरू कर दी जिससे हज़ारों छोटे उद्योगपति व् अमीर लोग त्राही त्राही कर देश छोड़ कर विदेशों मैं बसने लगे जिससे देश को बहुत नुक्सान हुआ . पूर्व वित्त मंत्रि इस अभूतपूर्व उत्पीडन से बढ़ते टैक्स की आय को विकास का प्रमाण बताने लगे जो सरा सर झूठ था . इस झूठी तालियों की ललक ने देश की गिरती अर्थ व्यवस्था को तब तक छुपाये रखा जब तक पानी सर के ऊपर नहीं चढ़ गया . जब बिना बिके घर , कार , यहाँ तक की पाँच रूपये वाले बिस्कूट के पैकेट कीई बिक्री भी ऍम हो गयी तब सरकार इसे छुपा न सकी और हरकत में आयी .
परन्तु बिना मेहनत के वह वाही बटोरने व आंकड़ों की हेराफेरी व् चोरी की आदत बाबुओं को ऐसी लग चुकी थी की वह इतनी बुरी हालत मैं भी अपनी बुरी आदतों से निकल नहीं पाए . पहले तो अपने नए बजट मैं पंद्रह दिन पुरानी वित्त मंत्रि ने विदेशों से क़र्ज़ लेकर खर्च बढाने का प्रस्ताव रख दिया जिसे देश व्यापी आलोचना का सामना करना पडा और वित्त मंत्रि को वित्त सचिव को हटाना पडा . इसके बाद अवरुद्ध आर्थिक विकास की आग बुझाने के बड़े प्रयासों मैं अपनी प्रेस कांफ्रेंस मैं वित्त मंत्रि ने दो बैंकों के विलय को बड़ा आर्थिक कदम बोल दिया जो सरासर गलत था . नए वित्त मंत्रि की फिर भद्द उड़ गयी . इस वर्ष के बजट में उन्होंने जो आय कर कम करने की घोषणा की वह तो एक भद्दा मजाक थी . भारत की बचत दर पहले तीस प्रतिशत होती थी . पिछले कई वर्षों से गिरती वास्तविक आय , उधार मैं कार , घर इत्यादि खरीदने व् अन्य कारणों से यह घट कर अब लगभग सत्रह प्रतिशत हो गयी है . सरकार के आय कर के नए नियमों के अनुसार यह बचत दर और कम हो जायेगी जो मध्यम वर्ग के लिए आत्म घाती होगी . परन्तु वित्त सचिव ने पुरानी आदतों के अनुसार फिर देश को झूठे आंकड़ों में उलझा दिया . उनके उकसाने पर वित्त मंत्रि ने एक और युधिष्टिर के अर्ध सत्य ‘ अश्वत्थामा हतो नरो न कुंजरो ‘, जैसा बयान दे दिया की देश के ५.८ करोड़ टैक्स दाताओं में से सत्तर प्रतिशत नयी आय कर दर से लाभान्वित होंगे क्योंकि वह किसी पुरानी छूट का लाभ नहीं लेते .
यह फिर पुरानी झूठी बढी विकास दर सरीखा एक नया छलावा था जो सिर्फ देश की जनता को भ्रमित करने के लिए दिया गया था.इस सन्दर्भ मैं प्रवीण चक्रवर्ती का नीचे दिया लेख पढ़ें . हालाँकि श्री चक्रवर्ती कांग्रेस के पत्रकार हैं परन्तु लगातार झूठ बोलने से सरकार समर्थक भी अब चिदंबरम व् अन्य अर्थ्शस्त्रियों की तरफ सत्य जानने के लिए देखने लगे हैं .
इसके अनुसार ७५ प्रतिशत करदाता पाँच लाख रूपये से कम आय दिखाते हैं . उन पर इस छूट का कोई असर नहीं होगा .इसी तरह पंद्रह लाख से ज्यादा आय वाले पाँच प्रतिशत लोगों को तीस प्रतिशत टैक्स देना पडेगा और उनको भी कोई फायदा नहीं होगा . इसके बाद बचे बीस प्रतिशत लोगों ने छुट के बाद मात्र औसतन २३०००/- टैक्स दिया .इनको भी नयी टैक्स दरों से कोई विशेष फायदा नहीं होगा .
तो ऐसे में क्यों बाबुओं द्वारा नयी वित्त मंत्रि की साख को , युधिष्टिर जैसे अर्ध सत्य बुलवा कर , फिर से गिराया जा रहा है .
देश के त्वरित आर्थिक विकास की समस्या बहुत विकराल है और उनको सुलझाने के लिए मनमोहन सरीखे अर्थ शास्त्री व् नरसिम्हा राव जैसे साहस की आवश्यकता है . प्रधान मंत्रि का अर्थ शास्त्र का ज्ञान सीमित है परन्तु उनके साहस व् राजनितिक पटुता तो अविश्वसनीय है .अगर कोई अवरुद्ध विकास का सच्चा समाधान उनको बता दे तो उसे वह देश को बता सकते हैं .वित्त मंत्रि को देश को सच्चाई बता देनी चाहिए .
बाबुओं को वित्त मंत्रि से झूठ बुलवाने की सज़ा मिलनी चाहिए क्योंकि इतने अधिक झूठ बोलने से अब सरकारी आंकड़ों पर देश का विश्वास ध्वस्त हो चुका है .
The new IT structure won’t have an impact on the majority of taxpayers
A careful analysis of data disproves the claim that 70% taxpayers will benefit from the dual system
analysis Updated: Feb 14, 2020 18:49 IST
In the Union Budget, finance minister Nirmala Sitharaman, with great flourish, announced a new personal income tax structure. This was touted as yet another “significant reform” that would simplify the income tax regime.
Currently, there are three tax income tax rate slabs, there will be six in the new structure. There are exemptions for savings and home loans, there will be none in the new structure, in lieu of reduced income tax rates. There is one income tax framework now. Going forward, there will be an option between the old and the new structure. Sitharaman claimed that this ‘new and simplified’ personal income tax regime will bring ‘substantial benefit’ to a ‘vast number of middle-class Indians’.
Predictably, the media latched on to this as the most important announcement in the budget. After days of ceaseless commentary and analysis, questions were raised — is this new income tax structure actually beneficial to the working class, will it be possible to switch from one structure to another every year, does one need to forego all exemptions to avail of the lower tax rate, will this impact home ownership and so on.
Subsequently, the revenue secretary of the finance ministry, in an interview, sought to clarify. He claimed that “the Finance Ministry has analysed income tax data of 58 million people and that 70% of taxpayers will benefit from this new income tax structure”. Ms.Sitharaman has also touted publicly that a ‘vast number of taxpayers’ will benefit from this new tax structure. While the finance minister and her officials have greater access to better information and data than most others, the claim that 70% of people will benefit from the new income tax structure sounds suspect and misleading.
As per income tax data made publicly available for the assessment year 2018-19, there were 55 million (5.5 crores) individuals who filed an income tax return. The income tax department has made available aggregate data of gross income, different types of income, ‘returned income’ and actual income tax paid by these 55 million income tax filers in 2018-19. Returned income refers to the income that will be used for tax computation after availing tax exemptions. This data can be analysed to estimate how many income tax filers have taken benefits of the income tax exemptions and by how much. Using this, it is possible to infer how many people will be impacted by the new income tax structure.
Individuals that earn less than five lakh rupees a year will be exempt from income tax in both the old and the new regimes. Forty-one (75%) of the 55 million reported a returned income of less than five lakh rupees. In other words, 75% of income tax filers in 2018-19 were not required to pay any income tax, either with tax exemption benefits or without. Which then implies that 75% of income tax filers will not care about the ‘new and simplified’ income tax structure. It is then unclear how the finance minister and the revenue secretary made the startling claim that more than 70% will benefit from the new structure when data shows that 75% of them will not even be impacted by the new tax regime.
Next, for people earning more than Rs 15 lakh a year, there is no change in tax rates between the old and the new structure. Which means people in this income category will be ambivalent between the two structures since their tax rates do not change. As per the 2018-19 data, roughly 5% of all income tax filers reported gross income of more than Rs 15 lakhs a year and hence will not be bothered by the new tax structure.
So, in total 80% (75%+5%) of income tax filers of 2018-19 will not benefit from the new structure and will remain agnostic between the old and the new.
Of the remaining 20% of all income tax filers that could potentially be impacted by the new structure, nearly three-quarters of them paid an average amount of Rs 23,000 in income tax, after exemptions. For a person paying just Rs.23,000 annually in income tax, the new structure with a five or ten percentage point reduction in tax rates in lieu of foregoing exemptions will not generate any significant savings.
Hence, 80% of income tax filers will not be impacted by the new structure and another 15% will not see any significant savings benefits. That makes it 95% of all income tax filers of 2018-19. Which then means, as per this analysis, the new income tax structure will be of significant impact to just three million (5%) out of the total of fifty-five million income tax filers of 2018-19.
It is baffling that the finance minister and her Revenue Secretary claimed that more than 70% of income taxpayers will benefit from the new structure. Unless, they are indulging in word play between income tax “filers” and income tax “payers”. That is, they are perhaps referring only to the tiny fraction of people that pay substantial income tax, and claimed that 70% of this tiny fraction will benefit from the new structure. Which is obviously a misleading, mischievous and a hollow claim to grab headlines, a habitual practice of the current government.
Praveen Chakravarty is a political economist and a senior office bearer of the Congress
The views expressed are personal
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