ट्रम्प व् भारत अमरीका सम्बन्ध : मोगाम्बो खुश हुआ मगर कब तक ; बहुत कठिन है डगर पनघट की , सहज पके सो मीठा होय — Rajiv Upadhyay
राष्ट्रपति ट्रम्प की भारत यात्रा तूफ़ान की तरह आई और चली गयी . दो दिन तक हम टीवी पर ट्रम्प परिवार को हर रूप में देखते रहे . अमरीकी शहंशाह का स्वागत मोदी जी के बाकी कामों की तरह भव्य व् शाही थे . इसके परिणाम अच्छे ही होंगे.अमरीका मैं भी ट्रम्प अपना ऐसा स्वागत नहीं करवा सकते थे इस लिए अहमदाबाद की सुखद यात्रा बहुत दिनों तक गुदगुदायेगी .ताज महल जैसी तो कोई भव्य इमारत विश्व भर मैं नहीं है . कंस्ट्रक्शन के काम में संलग्न ट्रम्प उससे विशेष प्रभावित हुए होंगे . पारिवारिक यात्रा के ज्यादा दिनों तक यद् रखे जाने की संभावना अधिक होती है . इसलिए विश्व के कई देश आज मोदी जी की सफलता से जल भी रहे होंगे . क्योंकि परम्पराओं व् सधे नेताओं की तरह गोल मोल बात करने के घोर विरोधी ट्रम्प विश्व के हर बड़े नेता के लिए पहेली हैं . रूस,कनाडा , फ्रांस , चीन , मेक्सिको , ईरान इत्यादि सब ट्रम्प के गुस्से व् तुनक मिजाजी को झेल चुके हैं . सिर्फ मोदी जी व् जापान को कुछ सफलता मिली है . पर वह भी सीमित है . ट्रम्प गुस्से में तो काट ही लेते हैं परन्तु खुशी में भी काटने की क़ाबलियत रखते हें . राजा कभी भी चापलूसी को एहसान नहीं मानता है और अगली गलती पर प्राण दंड दे सकता है .भारत को यह जान कर चलना होगा .
प्रथम दृष्टि से तो भारत को ट्रम्प से आज तक दुःख ही मिले हें . एच -१बी वीसा मैं भारतीयों को बहुत कठिनाई हो रही है . जीएसपी से निकाल देने से भारत के निर्यात को बहुत नुक्सान हो रहा है .चीन के सामान भारत को संपन्न देश मानना भारत के लिए उपयुक्त नहीं है . दुनिया हमारे कृषि क्षेत्र मैं घुसना चाहती है जहां हमारी पचास फीसद आबादी अपनी जीविका चलाती है . यहाँ छोटी सी भी गलती प्राणलेवा होगी . दूसरी ओर भारत ने अमरीका के दबाब मैं ईरान व् वेंज़ुएला को तो छोड़ दिया परन्तु रूस का साथ भारत नहीं छोड़ेगा .अफगानिस्तान मैं अमरीका के निकलने से वहां भारत की हालत दयनीय हो जायेगी क्योंकि तालिबान तो पाकिस्तान के अति ऋणी हैं .ट्रम्प बहुत कठोर सौदेबाज़ हैं और इनमें कोई भी ढील बिना पैसा वसूले नहीं देंगे . कम से कम भारत को बड़ी मात्रा मैं अमरीकी सिक्यूरिटी खरीदने के लिए मजबूर करेंगे जो मात्र एक कागज़ का टुकडा होते हैं . उनको खरीद के चीन भी फंसा हुआ है . भारत उससे जितना भी बच सके उतना ही अच्छा होत्गा . अमरीका के बजाय जापान , यूरो इत्यादि में विदेशी मुद्रा रखना अधिक उपयुक्त होगा क्योंकि यह देश भारत पर बहुत दबाब नहीं डाल सकते हैं . राष्ट्रपति ट्रम्प को अमरीका को आदर्शों के स्थापना करने वाले देश के रूप में दिखाने की कोई इच्छा नहीं है . आदर्शवादी कैनेडी के ठीक विपरीत राष्ट्रपति का सत्ता रूढ़ होना अपनी घटती अर्थव्यवस्था वाले अमरीका की मजबूरी है . परन्तु विश्व में ट्रम्प के इकतरफा व्यवहार के चलते अमरीका का डर अधिक है पर सम्मान कम हुआ है जो अच्छी बात नहीं है .यदि चुनाव जीत कर ट्रम्प अमरीका के घटते सम्मान को भी सुधारें तो अच्छा होगा . भारत इसमें अफगानिस्तान मॉडल में बहुत उपयोगी होगा .
रक्षा क्षेत्र मैं अमरीका की मित्रता जरूर लाभदायक है . अमरीका हमें रक्षा के लिए कोई आर्थिक मदद नहीं देगा न ही सस्ते हथियार देगा . वह हमसे अधिक रक्षा खर्च भी करवाएगा . परन्तु चीन के चलते यह हमारी मजबूरी है . चीन हमें डोकलाम में सबक सिखाने ही आया था परन्तु अमरीका व् जापान के प्रत्यक्ष समर्थन से वह वापिस मुड़ गया . विएतनाम में उसने हमें तेल निकालने से रोक दिया था .कालांतर मैं चीन को रोकने के लिए जापान , आसियान व् खाडी के देशों को एक साथ होना होगा क्योंकि सीपेक के बाद यह सब देश चीन से खतरा महसूस कर रहे हें .परन्तु चीन भी इनको एक एक कर अपनी पैसे की ताकत से तोड़ रहा है . हाल ही में उसने पाकिस्तान की ही तर्ज़ पर बर्मा (म्यन्मार ) को खरीद लिया और हम देखते रह गए . श्री लंका से भी कोई देश सबक नहीं ले रहा है . अमरीका उन्नत तकनीक के हथियार दे कर हमें चीन पर तकनीक मैं बढ़त दिलाये हुए है. यदि पोस्सिदों हवाई जहाज़ों मैं पनडुब्बी ध्वस्त करने वाले मिसाईल दे दे तब ही उनका पूरा उपयोग होगा . वह अभी इस के लिए तैयार नहीं हुआ है . मुश्किल तब आयेगी जब भारत हाइड्रोजन बम , एंटी सतेलाईट मिसाइल , व् १५००० किलोमीटर की मिसाईल टेस्ट करेगा .तब तक अमरीका हमें हथियार तो देगा पर उनकी तकनीक नहीं . इससे भारत को स्वाबलंबन मैं नुक्सान होगा . इसलिए अपने आधे हथियार ही हमको आयात करने चाहिए शेष भारत मैं बनाने चाहिए च्चाहे वह टैंक हों या हवाई जहाज या मिसाइल .भारत को रक्षा रिसर्च पर अधिक खर्च करना चाहिए क्योंकि देर सबेर हम पर आर्थिक प्रतिबन्ध तो लगेंगे ही.
परन्तु इन सब के बावजूद भी बढ़ते हुए भारत अमरीकी संबंधों से दोनों देशों को बहुत फायदा हुआ है .इसे क्लिंटन से ट्रम्प तक अमरीकी राष्ट्रपतियों की दूर दृष्टि की उपलब्धी माना जाना चाहिए . भारत में वाजपेयी जी ने इसकी नींव डाली जिसे मनमोहन सिंह जी नी पूरा किया और अब मोदी जी अपना योगदान दे रहे हैं . भारत अमरीका का बढ़ता व्यापार इसकी सफलता का प्रत्यक्ष प्रमाण है . अमरीका के सन १९९५ तक तक भारत अमरीका का वार्षिक व्यापार व्यापार मात्र ११.२ बिलियन डॉलर था जिसमें आयात ६.६ और निर्यात ४.६ था. सन २००० मैं यह बढ़ कर १९.१ बिलियन डॉलर हो गया जिसमें आयात १२.६ और निर्यात ६.५ था . भारत के सॉफ्टवेर के बाद स्थिती बदल गयी . सन २००८ मैं कुल व्यापार ६१ बिलियन डॉलर हो गया जिसमें निर्यात अब ३८.४ व् आयात २७.७ था . आज भारत अमरीका का सम्पूर्ण व्यापार १४२ बिलयन डॉलर है और इसमें निर्यात ८३.९ व् आयात ५८.३ है . राष्ट्रपति ट्रम्प के आने के समय २०१६ व्यापार ११४ बिलियन डॉलर था जिसमें निर्यात ७२.२ और आयात ४२.२ था . जाहिर है ट्रम्प की विलक्षण नीतियों के उपरांत भी अमरीका भारत के सम्बन्ध से दोनों को लगातार फायदा हो रहा है .भारतीय कंपनियों ने अमरीका मैं १८ बिलयन डॉलर का निवेश किया है जिससे वहां ११३००० नौकरियों का सृजन हुआ है . ५०० बिलयन डॉलर व्यापार का जो लक्ष्य दोनों देशों ने रखा है वह अगले दस सालों मैं पा लिया जाएगा . पर राष्ट्रपति ट्रम्प अगले चार साल भी सर्प की तरह अमरीकी हितों की रक्षा करते रहेंगे . परन्तु मोदीजी भी कुछ कम नहीं हैं . परन्तु अमरीकी अर्थशास्त्रियों की बुद्धि व् लगन की दाद देनी होगी . भारत की अर्थव्यवस्था क्यों नहीं उन्नति कर पा रही इसके लिए अमरीकी आधिकारिक रूप से मदद लेने मैं भी कोई बुराई नहीं है .
इसलिए अंततः अगले दस वर्षों मैं ड्रामे बाज़ी के बाद भी हमारा अमरीका के साथ विश्व की प्रगति मैं योगदान बढेगा .
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