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अभिमन्यु को लॉक डाउन के चक्रव्यूह से निकलना नहीं आता : Clueless Babus Don’t Know How To Get Down From The Lockdown Tiger For Saving The Economy

अभिमन्यु को लौक्डाउन  के चक्रव्यूह से निकलना नहीं आता : Clueless Babus Don’t Know How To Get Down From The Lockdown Tiger For Saving The Economy

राजीव उपाध्याय rp_RKU-263x300.jpg

corona pictureचीन रूपी गुरु द्रोण ने कोरोना का चक्रव्यूह रच कर पांडवों की भारतीय  सरकार को दुविधा मैं डाल दिया है . भारत मैं  किसी को इस चक्रव्यूह को भेद कर जीतना नहीं आता था . हम न तो चीन हैं न ही दक्षिण कोरिया जो अपने विशाल देशों  को विज्ञान , धन व् जनता के अनुशासन के बल पर चक्रव्यूह से निकाल गए . हमारे तबलीगी तो खुले आम पुलिस की बात न मानने का आवाहन  कर रहे थे . लाखों गरीब बिहारी मजदूर बिना काम के दो  सौ मील पैदल चल घर जाने को मजबूर थे . ले दे कर जब पांडव सरकार कोइ समाधान नहीं ढूंढ सकी  तो किसी अभिमन्यु ने पश्चिमी देशों व् चीन से पाए पूर्व ज्ञान के आधार पर कोरोना व्यूह मैं लॉक डाउन के प्रयोग से  व्यूह मैं घुसने का मार्ग  सुझा कर युद्ध के प्रारंभ की समस्या तो हल कर दी पर् बीस दिन के बाद भी जब बीमारी की  स्थिति उतनी ही खतरनाक  रही तब समस्या आई की लॉक डाउन से निकलें कैसे ? हमारी अर्थ व्यवस्था जो पहले से ही डर , सरकारी प्रतारण , नोट बंदी व् जीएसटी से रसातल मैं जा चुकी थी , वह इस महामारी से तो  पूरी तरह मर जायेगी .  हमारा सहमा हुआ नेत्रित्व किन्कर्त्व्यविमूढ़  था  , विपक्षी सरकारें वोट बैंक व् डरपोक बाबु बहुत मौतों से उपजने वाले  जन आक्रोश से अधिक डरे हुए थे . हमारी जनता कोई बंधन नहीं मानती .इसलिए तर्क निकला की देश अगर एक वर्ष आर्थिक विकास नहीं कर पाया तो क्या ? पहले भी तो भीषण अकाल व् महामारियां आती थीं . ऐसे मैं आर्थिक विकास तो थम ही जाता है . जनता को दैविक प्रकोप को जिम्मेवार बता कर सांत्वना  दी जा सकती थी पर अगर अमरीका की तरह भारत मैं भी एक या दो लाख लोग मर जाते तो सरकार की  स्थिति बहुत दयनीय हो जाती  .corona italy

इस लिए भारत सरकार ने जान की कीमत को जहान खो कर चुकाना ही श्रेष्ठ समझा और उस में काफी हद तक सफल भी हो गयी . प्रधान मंत्रि के आगे आ कर देश को अनेक बार सम्बोधित कर जनता आश्वस्त  हो गयी . विश्व के सबसे कठिन व् अभूतपूर्व लॉक डाउन के कारण इतने बड़े देश मैं कोरोना अभी तक बहुत नहीं फैला है और इतने दिनों मैं इलाज़ की भी काफी व्यवस्था भी कर ली गयी है . कुछ हमारे बचपन के बीसीजी के टीकों से रोग प्रतिरोधकता व् गर्मी ने भी मदद की और हम कोरोना से इस लड़ाई मैं जीत ही जायेगे और जान माल का नुक्सान भी बहुत कम होगा . सरकार अपनी नीतिओं की सफलता पर ताली भी बजवा सकती है . रूस जैसे कुछ पश्चिमी देश जो  भारतीय लॉक डाउन को बहुत जल्दी बता रहे थे अब स्वयं अपने देश को नहीं बचा पा रहे हैं . सर्व शक्तिमान अमरीका भी मजबूर है क्योंकि वहां की तो एक तिहाई आबादी के पास तो इलाज़ खाने के लिए बैंक मैं एक हज़ार डॉलर भी नहीं हैं .वहां लाखों मौत होना निश्चित है .

corona indiaपरन्तु व्यापक परिपेक्ष में  हम अभी भी गुलामी की मानसिकता से ग्रस्त हैं . हम अपना मुकाबला पाकिस्तान य अन्य निम्न देशों से कर खुश हो जाते हैं . चीन , कोरिया या जापान की तरह हम विश्व विजय का सपना भी नहीं देख सकते . हमारे पारम्परिक डरपोक व् अज्ञानी  बाबु और उनपर पूरी तरह आश्रित अनाड़ी सरकार, कभी भी बड़ा नहीं  सोच पाती . इसलिए हम  ‘रूखी सूखी खाय कर ठंडा पानी पी ‘ को ही अपनी नियति मान संतुष्ट हो जाते हैं . अन्यथा जनवरी से हमें कोरोना के बारे में मालूम था परन्तु इसके बावजूद भी लॉक डाउन के बीस दिन बाद भी हम आर्थिक व् औद्योगिक स्थिति सामान्य नहीं कर सके यह क्षोभनीय है . इस रफ़्तार से तीन मई को भो हम बहुत कुछ बंद रखने को मजबूर हो जायेंगे .

प्रश्न है की अगर बाबुओं की सरकार के बदले अधिक ज्ञानी व् साहसी लोगों की सरकार होती तो क्या उद्योगों को बचाने  मैं इससे बेहतर किया जा सकता था ?

इसका दुखद उत्तर हाँ मैं ही है !

हमारे बड़े बाबु अपने सीमित ज्ञान व् जीवनोपरांत पारम्परिक अनुभवों से आज भी राज्य , जिला व् थाने  को ही आर्थिक इकाई  मानते हैं और उसके आधार पर नीतियाँ बनाते हैं जो अब अपर्याप्त व् गलत है . भारतीय सेना , रक्षा कारखाने , रेलवे , स्टील , एच ए एल , बिजली घर समेत सब बड़ी औद्योगिक इकाइयों व् अन्य आर्थिक संस्थानों की अपनी बहुत बड़ी ताकत है . उदाहरण के लिए  रेलवे के बड़े कारखानों मैं अपने अस्पताल हैं . वहां खुला इलाका है . यदि रेलवे य स्टील प्लांट य मेगा बिजली घर को बढ़ावा व् आर्थिक मदद दी जाय तो किसी निजी लैब को ठेका दे कर दक्षिण कोरिया की तरह , हर कर्मचारी की जांच रोज हाजिरी के समय करवा सकते हैं . इसी तरह कर्मचारियों को शहर के केंद्र से लेन व् ले जाने की व्यवस्था भी कर सकते हैं . अगर सब प्रयासों के बाद किसी को रोग हो गया तो प्रारंभ मैं ही पकडे जाने पर उसका इलाज़ संभव है . यही हाल टाटा , बिरला जैसे कई बड़े औद्योगिक घरानों के कारखानों का है . अगर इनको प्रोत्साहित किया जाता तो पंद्रह अप्रैल से यहाँ काम शुरू हो सकता था . बहुत कारखाने तो शायद बंद भी न होते . परन्तु हर समय दंड देने को उतारू सरकार का अब इतना डर बैठ गया है की कोई भी नया सुझाव देकर फंसना नहीं चाहता . ‘ जो बोले जो कुंडी खोले ‘ और फंसने पर कोई बचाने वाला नहीं है .घमंडी  बाबुओ , सीबीआई , सीवीसी , ईडी , इनकम टैक्स ने जो गत  वर्षों मैं दहशत का माहौल बना दिया है , देश अब उससे अनेक वर्षों तक मुक्ति नहीं  पा सकता . देश का त्वरित आर्थिक विकास इन नीतियों से अब संभव ही नहीं है . सब हाँ मैं हाँ मिला कर नौकरी बचाने के चक्कर मैं रहते हैं . अन्यथा हज़ारों रेलवे कोच को खराब कर आइसोलेशन वार्ड क्यों बनायें जब की  इतने स्कूल व् कॉलेज बिल्डिंग्स को बिना तोड़े यह काम किया जा सकता है . दो महीने बाद ट्रेन चलने के लिए कोच कम नहीं पड़ जायेंगे . हमारे न्यायलय भी आर्थिक मामलों मैं व्यर्थ रोक लगा देते हैं . अब मकान बनाने पर रोक लगाना फैशन हो गया है . इसके पहले कोयले व् खदानों की दुर्गति कर दी थी . आज टेलिकॉम की बर्बादी मैं न्यायायिक हस्तक्षेप की भी जिम्मेवारी है . हरीश साल्वे के इस बारे मैं दिए गए बयान को गंभीरता से लेने की जरूरत है .निजी लेब  को कोरोना टेस्ट करने के दाम देना सर्वोच्च न्यायालय का मामला नहीं है . देश मैं आज हर कोई व्यापारियों व् उद्योगपतियों को सता कर देश भक्त दीखना  चाहता है .राहुल बजाज के बयान को भी गंभीरता से लेना ज़रूरी है . उन्होंने व् हरीश साल्वे ने सच बोलने का साहस किया जिसे बढ़ावा देना चाहिए .

इन सब कमजोरियों का खमियाजा देश भुगतेगा . कोरोना से  तो देश अगले तीन या चार  महीने मैं ठीक हो जाएगा . पर लॉक डाउन की पैदा की  आर्थिक बदहाली , बेरोजगारी , बंद व्यापारिक प्रतिष्ठान व् कारखाने , नोट बंदी की तरह दस साल तक अपना देश पर दुष्प्रभाव  छोड़ेंगे . इसलिए अपनी अर्थ व्यवस्था को बचाना भी हमारी प्राथमिकता होने चाहिए .

लॉक डाउन से निकलने के लिए जो साहस चाहिए वह मोदी जी मैं पर्याप्त है . हमारे बाबुओं को डर कर ‘ super safe ‘  नीतियाँ बनाने के बजाय व्यवहारिक व् साहसिक नीतियाँ  बना कर पहले से ही बदहाल अर्थ व्यवस्था को अब पटरी पर लाना चाहिये . इसके लिए  अपने बाबु गिरी के घमंड व् अनुभवों से बाहर  निकल सारे देश के औद्योगिक , आर्थिक व् तकनीकी अनुभवों का लाभ  लेना चाहिए .

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