अन्तरराष्ट्रीय तनावों व् बदलते परिपेक्षों की शंकाओं की काली छाया से भारत रूस के रिश्तों को बचाना आवश्यक है :

अन्तरराष्ट्रीय तनावों व् बदलते परिपेक्षों की शंकाओं की काली छाया से भारत रूस के रिश्तों को बचाना आवश्यक है : West Cannot Substitute Russia as a Genuine Friend

राजीव उपाध्याय rp_RKU-263x300.jpg

भारत रूस के सत्तर साल के सुदृढ़ सम्बन्ध आज काल की काली छाया में आ गए हैं . हाल ही मैं  रूस के विदेश मंत्री द्वारा भारत को अमरीका के दुष्प्रचार से बहकने की सार्वजनिक चेतावनी और रूस भारत की वार्षिक शीर्ष वार्ता का टालना इस कड़ी का निम्नतम स्तर है .

सन २०२० मैं चीन की आक्रमकता ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन के वर्षों के विश्व्  को पुनः बहु ध्रुवी बनाने के प्रयासों  को धुल धूसरित कर दिया .यदि चीन जापान की तरह सिर्फ आर्थिक प्रगति को लक्ष्य बनाए रखता तो उस का लम्बे समय तक आविरल विकास संभव था और बीस वर्षों में चीन गरीबी समाप्त कर एक विकसित देश बन जाता . परन्तु नकली द्वीप  बना कर  दक्षिण चीन सागर को पूरा लील जाने के उसके प्रयासों ने विश्व को आशंकित कर दिया . मलयेशिया , विएतनाम , फिलिपींस इत्यादी देश चीन के इस प्रयास से घबरा गए . श्री लंका के हम्बनतोता  व पकिस्तान के ग्वादर के बंदरगाह को हथिया कर  सीपेक द्वारा मध्य एशिया तक हमला करने की gwadar karachi indiaसम्भावनाओं  ने इस्लामिक राष्ट्रों को भी सचेत कर दिया . भारत से पहले दोक्लाम और फिर  सब पुराने समझौते तोड़ कर  लद्दाख मैं पेंगोंग झील पर कुछ चोटियाँ हथिया कर उसने एक सोते शेर को छेड़ दिया .भारत कोई फिलिपींस या मलयेशिया नहीं था और उसने तुरंत इसका प्रत्युत्तर  दे दिया .  उधर जापान के सैन्काकू द्वीप पर विवाद को फिर उठा

कर जापान के कान उमेठ दिए . ताइवान तो पहले से ही चीन का दुश्मन है और Taiwan presidentचीन ने उसे धमकाना शुरू कर दिया . बची खुची कसर चीन के वुहान की प्रयोगशाला से  उत्पन्न कोरोना को  छुपाने से सारे विश्व को कोरोना की महामारी की चपेट मैं डालने से सारा विश्व चीन विरोधी हो गया.modi jing

राष्ट्रपति पुतिन ने वर्षों से सम्झौतों  एक जाल बुना था . इसमें पहले ब्रिक्स था जिसमें भारत चीन , ब्राज़ील , दक्षिण अफ्रीका व् चीन सदस्य थे . भारत चीन को छोड़  बाक़ी अर्थ व्यवस्थाओं के गिरने से यह संगठन प्रभावी नहीं रहा . फिर चीन व् रूस ने मिलकर शंघाई ग्रुप बनाया जिसे  आई एम् ऍफ़ सरीखी वैश्विक संस्थाओं का पर्याय बनना था. भारत  ने न केवल इसको भी अपनाया बल्कि इसमें प्रचुर  धन राशि भी दी . भारत चीन व्यापार को बहुत बढ़ने दिया  गया जबकी इससे चीन को ही ज्यादा फायदा हो रहा था . रूस ने  एक उत्तर दक्षिण अंतर्राष्ट्रीय रास्ता  बनाने का प्रयास किया जिससे भारत ईरान व् रूस का रास्ता आधा रह जाता .भारत ने इसमें भी रूस का साथ  दिया .  सब कुछ ठीक चल रहा था जब तक चीन ने लद्दाख मैं भारत की जमीन नहीं हथियाई . इसके बाद लड़ाई में भारत व् चीन के अनेकों सैनिक मारे गए . भारत चीन के अम्बन्ध अब कभी पुराने जैसे नहीं होंगे न ही भारत अब चीन पर विश्वास करेगा . रूस को इसे समझने की आवश्यकता है.

क्रिमीआ को लेने से व् उक्रेन के मामले से पश्चिमी देश रूस के विरुद्ध हो गए हैं .रूस का पक्ष भी तार्किक था . उसे क्रिमीआ के बंदरगाह की बहुत आवश्यकता थी . इसी तरह वह रूस के पुराने हिस्से वाले देशों को नाटो से जुड़ कर अपनी सुरक्षा को खतरे मैं नहीं डाल सकता था . अमरीका ने रूस पर कड़े प्रतिबन्ध लगा दिये जिस से रूस की अर्थ व्यवस्था खतरे  मैं आ गयी . उसने चीन से प्राकृतिक गैस बेचने का बड़ा अनुबंध कर लिया . पश्चिमी देशों ने रूस को धोखा देकर तोड़ तो दिया पर उसके बाद उसको दिल से अपनाया नहीं . इस धोखे के चलते धीरे धीरे रूस की चीन पर आश्रिता  बढ़ने लगी और रूस व् चीन एक अंतराष्ट्रीय  ब्लाक बन गए .

इन परिस्थितियों मैं  भारत सरीखे देश बिना किसी द्वेष के सिर्फ चीन से अपनी सुरक्षा के लिए रूस के विकल्प को खोजने लगे . अमरीका व् पश्चिमी देशों ने मौक़ा लपक लिया और धीरे धीरे भारत व् अमरीका चीन के विरुद्ध पास आते गए . इस समूह को चीन से डरे जापान व् ऑस्ट्रेलिया  ने भी अपना लिया और भविष्य मैं ताइवान भी  इससे जुड़ जाएगा .  दुसरे भारत को अपने आर्थिक विकास के लिए जितने पूंजी निवेश की आवश्यकता थी वह रूस नहीं पूरी कर सकता था . चीन ने मोदी  जी के लाख प्रयासों के बावजूद भारत मैं बड़ा निवेश नहीं  किया . .रूस चीन को दबाने मैं असमर्थ था . विश्व के अन्य  देश अमरीका के झूठे बहानों से इराक , लिबिया  व् सीरिया को बर्बाद करने से खुश नहीं थे . अफ़ग़ानिस्तान व इस्लामिक  आतंकवाद ने अमरीका को और आवश्यक  बना दिया . यूरोप ने अमरीका का विकल्प बन ने के स्वप्न को त्याग दिया .मिस्र  मैं भी प्रजातांत्रिक सरकार की बर्खास्तगी किसी को पसंद नहीं आयी  पर इस्लामिक आतंकवाद ने उसे क्रिमीया व उक्रेन  की तरह  अन्तराष्ट्रीय  मुद्बदा नहीं  बनने  दिया .फिर भी अपनी विकट  आर्थिक परिस्थिति  मैं भी  रूस के साहसिक सामरिक हस्तक्षेप ने सीरिया मैं अमरीका को रोक दिया जिसके लिए विश्व को उसका आभारी होना पडा और क्रिमीआ व् उक्रेन को विश्व भूल गया .

चीन का अब तक का व्यवहार अत्यंत स्वार्थी व् आदर्श हीन रहा है .इसलिए  आज पकिस्तान को छोड़ कर चीन का कोई वास्तविक मित्र  नहीं है . पर वह आर्थिक महा शक्ति बनने की तरफ अग्रसर रहेगा . उसकी आर्थिक व्  सामरिक शक्ति भारत व्   जापान जैसे पड़ोसी देशों के लिए खतरा रहेगी . रूस भी चीन को मित्र नहीं मानता . उससे उसका सीमा विवाद है . रूस भारत को मित्र के रूप मैं बढ़ाना  चाहेगा पर भारत आर्थिक रूप से बहुत पिछड़ा हुआ है और अमरीका व् यूरोप पर आश्रित है . इसलिए आज वह रूस के लिए बहुत उपयोगी नहीं है .परन्तु अमरीका दस से पंद्रह साल मैं विकसित भारत पर आर्थिक व् सामरिक  प्रतिबन्ध अवश्य  लगाएगा . उसने हमें लम्बी दूरी की सूर्या मिसाइल , परमाणु परिक्षण , जासूसी सैटेलाईट , पूरा नाविक सिस्टम नहीं बनाने दिया है जबकी चीन के पास यह सब हैं . कोई भी पश्चिमी देश भारत के रूप मैं एक और चीन नहीं  देखना चाहेगा . वह या तो भारत को एक उपनिवेश बनाना चाहेंगे या जापान सरीखा शांतिपूर्ण देश . बीस साल तक तो भारत को दब कर ही रहना पडेगा और अपना सारा ध्यान आर्थिक विकास पर केन्द्रित करना होगा . परन्तु रूस को हमें अपना मित्र ही रखना पडेगा . रूस के आज के प्रयास भविष्य मैं हमारे भी काम आयेंगे .

भारत को पश्चिमी प्रचार से बाहर निकल रूस की मित्रता का वास्तविक मूल्य समझना होगा . कभी जब हमारे पास विदेशी मुद्रा  नहीं थी तब रूस ने हमसे दशकों तक रूपये मैं बड़े सौदे किये थे . हमारी औद्योगिक क्षमता बढाने मैं रूस का बहुत योगदान है. बांग्लादेश के समय जो उसने हमारी मदद के लिए किया वह हम आज भी किसी और आर्मेनिया या साइप्रस जैसे देश के लिए नहीं करेंगे चाहे उनका पक्ष कितना ही न्याय पूर्ण हो .रक्षा क्षेत्र मैं भी जो तकनिकी रूस ने हमें दी है वह कोई अन्य  देश नहीं दे सकता .

हमें अंतर्राष्ट्रीय संबंधों मैं स्वार्थ  के अतिरिक्त  न्याय व  मित्रता के नए उपयोग व्आधार खोजने होंगे . भारत रूस की भविष्य की मित्रता के नए समकक्षता के आधार पर रास्ते  खोजने होंगे . रूस को अपनी एस यु – ५७ या ग्राशिन्कोव जहाज या टी यू – ९० टैंकों की गलती समझ आ गयी होगी . इन बातों को सौहार्द्यापूर्ण  तरीकों से सुलझाया जा सकता है . आज कठिनाई  मैं पड़े रूस को ठुकराना भारत के लिए मूर्खता होगी . रूस से हाइपर सोनिक मिसाइलों से लेस ३६ एस यु – ५७ जहाज  व् अमूर पनडुब्बी पुराने विश्वास को वापिस लाने  के लिए  खरीदा जा सकता है .

पश्चिमी हथियारों के एजेंटों के बहकावे मैं आना दुखदाई  होगा  . यदि हम आज अमरीका के पूर्व सहयोगी देशों को देखें तो समझ जायेंगे की चीन की तरह ही ‘ ऐसा कोई सगा नहीं जिसे अमरीका ने ठगा नहीं ‘. आज की स्थिति सदा नहीं रहेगी . हर देश की तरह रूस भी अपने स्वार्थ को प्राथमिकता देगा परन्तु कभी हमारी मजबूरी के समय  उसने कई घाटे  के सौदे भी किये थे . हमको अपनी मित्रता को लगन व विश्वास से  आज की परिस्थितियों मैं दुबारा परिभाषित करना होगा और भविष्पय के हितों को सुरक्षित करना होगा . इसको खोना एक भयंकर भूल होगी .

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