राजनीती , बाबुशाही व् कमीशन खोरी की चौखट पर दम तोड़ती भारतीय रक्षा की आत्मनिर्भरता : कोरे नारे आत्मघाती होंगे
पिछले वर्ष मई के अभिभाषण मैं प्रधान मंत्री जी ने बड़ी धूम धाम से देश को आत्म निर्भरता का नारा दिया था . चीन की सीमा पर आक्रामकता व् भारतीय भूमि पर कब्ज़ा करने के बाद देश मैं रोष था . प्रधान मंत्री व् अन्य लोगों ने देर से ही समझा कि भारत को अपनी सुरक्षा के लिए रक्षा क्षेत्र मैं आत्मनिर्भर बनना होगा जिससे युद्ध के समय वह रक्षा सामग्री के लिए किसी दुसरे देश का मुंह न देखे . सारे देश मैं इस फैसले का व्यापक स्वागत हुआ . आनन् फानन मं रक्षा मंत्रालय ने एक सूची जारी कर दी जिसमें तोपें इत्यादी थीं जिनके आयात पर पूर्ण रूप से पाबंदी लग गयी . पिछले वर्ष के एयर शो मैं तेजस के मार्क 1A के ८३ हवाई जहाज का आर्डर दिया जाना था . इसी तरह स्वदेशी एल सी एच हेलिकोपटर , होवित्ज़ेर तोपों ,अर्जुम मार्क – १ टैंक , AK 203 rifle , स्वदेशी missile, रडार का आर्डर भी दिया जाना था . प्रधान मंत्री की घोषणा से भारतीय उद्योगपतियों व् रिसर्च करने वाले उपक्रमों को एक आशा की नयी किरण दीखी . पर एक साल बीतते यह समझ आ गया की प्रधान मंत्री का नारा नोट्बंदी की तरह ही बिना पूर्णतः सोचे समझे लिया गया फैसला था . वास्तव मैं देश मैं स्वदेशी रक्षा उद्योगों विकास करने की न हम मैं इच्छा शक्ति है न ही इतना पैसा है और न ही इतना इन्जीनीरिंग का ज्ञान है .चीन के पास इच्छा शक्ति व् पैसा है तब भी वह पश्चिमी देशों से तकनीक मैं मुकाबला नहीं कर पा रहा है . देश को इतना बड़ा नारा देने से पहले प्रधान मंत्री को वास्तविकताओं से परिचित होना चाहिए था . बड़े बाबुओं ने फिर एक बार प्रधान मंत्री को चने के झाड पर चढ़ा दिया जिससे उतरना अब दूभर हो रहा है .
भारत मैं इन्जीनीरिंग ज्ञान औद्योगिक क्षमता सीमित है और डिजाइन का बहुत पुराना अनुभव भी नहीं है . इस लिए चीन की तरह हमारे स्वदेशी हथियार भी अनेक वर्षों तक गुणवत्ता मैं विकसित देशों से पीछे ही होंगे और मंहगे भी होंगे . परन्तु लगातार प्रयास करने से धीरे धीरे प्रारम्भिक असफलताओं के बावजूद इस क्षेत्र मैं भी हम अंतरिक्ष की तरह सक्षम हो जायेंगे . तब तक हमको असफलताओं से निराश हुए बिना प्रयासों को जारी रखना होगा क्योंकि कोई आश्रित देश स्वयं की रक्षा नहीं कर सकता . इस तरह के लम्बे खर्चीले अनुसंधान व विकास के लिए के लिए सार्वजानिक क्षेत्र के उपक्रम ही उचित हैं . भारतीय निजी क्षेत्र इतने छोटे बाज़ार मैं रक्षा मैं अनुसन्धान मैं बड़ा खर्च नहीं कर सकता . इससे कई गुने बड़े कार के बाज़ार मैं भारतीय कंपनियों इतने वर्षों मैं कुछ नहीं कर पायीं हैं . इसके विपरीत रेलवे , अन्तरिक्ष , मिसाइल क्षेत्र मैं हम कहीं ज्यादा आगे बढ़ गए हैं . प्रधान मंत्री व् उनके सलाहकारों को देश की वास्तविकताओं को समझना होगा और खोखले नारों से बचना होगा .
.इसके अलावा बाबुओं समेत सत्ता मैं सबको बड़े रक्षा सौदों मैं कमीशन खोरी की जो आदत पड़ गयी है वह कैसे जायेगी ? चुनाव इतने खर्चीले हो गए हैं की हर सरकार को हज़ारों करोड़ रूपये चुनाव के लिए चाहिए . पिछले चुनाव का खर्च साठ हज़ार करोड़ बताया जा रहा है .इसके कारण देश का कोई बड़ा रक्षा समझौता बिना कमीशन के आरोपों के नहीं हुआ है ? रक्षा क्षेत्र मैं पारदर्शिता कम होती है . इस लिए रिश्वतखोर बाबू या नेता जब चाहें किसी भी स्वदेशी सामान को मंहगा या घटिया सिद्ध कह कर स्वदेशी प्रयासों को बदनाम कर कर रोक सकते हैं . वर्षों से अनुसंधान मैं जी जान से लगे किसी भी सार्वजनिक उपक्रम को सुस्त सिद्ध कर सकते हैं . अंत मैं जब पाकिस्तान य चीन जैसा हमला हो जाए तो पराजय के बाद आनन् फानन मैं दुगने दामों पर हथियार खरीद लेंगे . यही सदा से हो रहा है और और होता रहेगा . अन्यथा जर्मनी की मदद से मरुत जहाज के बाद आज हम अपने तेजस जैसे अनेकों जहाज बना चुके होते और सिर्फ तीस प्रतिशत हवाई जहाज आधुनिकतम तकनीक के आयात करते . परन्तु कौन सा दो साल की बची सर्विस वाला बड़ा बाबू वर्षों के लगन व समर्पित प्रयास मांगने वाले वाले स्वदेशी हथियार विकसित कर अपने पैरों कुल्हाड़ी मरेगा ? हर कोई अपने समय मैं खीर खाना चाहता है .हमारे रक्षा वैज्ञानिकों की षड्यन्त्र्कारी परिस्थितियों मैं मौतें , पनडुब्बियों की रहस्यमय आग ,अंतरराष्ट्रीय जासूसी संस्थाओं की भारत मै गहरी पहुँच का द्योतक है .
इसलिए रक्षा क्षेत्र के विकास मैं भारतीय सरकार व वैज्ञानिकों को अक्षमता व लालच के अलावा को इस खतरे का भी सामना करना पड़ सकता है .इन विकट परिस्थितियों मैं बहुत दृढ इच्छा वाला नेता ही देश को रक्षा क्षेत्र मैं सफल व् समर्थ बना सकता है . मोदी जी मैं हनुमान सरीखी क्षमता तो है पर कोई जटायु व् जामवंत नहीं मिल रहा इस लिए वह अपने सभी बड़े आर्थिक प्रयासों मैं विफल हो रहे हैं . आत्मनिर्भरता भी शीघ्र अस्ताचल की और जाती प्रतीत हो रही है .
पिछले दस वर्षों मैं हमें ऐसी इच्छा शक्ति का कोई विशेष उदाहरण नहीं देखा है . बल्कि घमंडी व्अज्ञानी बाबुओं एच ए एल सरीखे संस्थानों की जो बर्बादी की है वह अक्षम्य है . एल सी एच व तेजस को जो भी देर लगी पर अब वह उड़ने को तैयार है . एच ए एल अब इससे बेहतर हवाई जहाज व हेलिकॉप्टर भी बना सकता है . उन्नत जहाज़ों के डिजाइन भी तैयार हैं .परन्तु वर्षों से उसे आर्डर नहीं दिए जा रहे . उसको आर्थिक रूप से अपंगु बनाया जा रहा है . बल्कि ट्रांसपोर्ट जहाज़ों व हेलीकॉप्टरों मैं भी निजी क्षेत्र को जबरदस्ती घुसाया जा रहा है जब की एच ए एल के पास देश की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्टाफ , मशीनें व तकनीक मौजूद है . यदि अधिक पैसा हो तो निजी क्षेत्रा को आर्डर दिए जा सकते हैं .परन्तु बिना पर्याप्त पैसे के निजी क्षेत्र को आर्डर देने के लिए एच ए एल का गला घोटा जा रहा है . अंततः परिणामस्वरूप भारत हमेशा विदेशी लाइसेंस वाले हवाई जहाज या हेलीकाप्टर बना सकेगा . पिछली सरकार के एयर इंडिया की बर्बादी के सरीखी , अब एच ए एल जैसी समर्थ संस्था को बर्बाद कर बिना ज्ञान व् अनुभव वाले निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना भयंकर देश द्रोह है . इसी तरह रूस द्वारा भारत मैं स्थापित राइफल फेक्टरी को अभी तक आर्डर नहीं दिए गए जब की विदेशी आयातित राइफलें खरीदी जा रही हें . खरीद फरोख्नत के नियम पहले तय किये जाने चाहिए थे . ऐसे ही उन्नत अर्जुन टैंक कम से कम पचास ही बना लें जिससे अनुभव से अगले डिजाईन को सफलता पूर्वक विकसित किया जा सके .
इसी तरह वर्षों की तपस्या के बाद टाटा व भारत फोर्ज की तोपों के परीक्षण मैं पास होने के बाद इस्राइल की तोपों को आयात के लिए सस्ता बताया जा रहा है . जब की सब वर्षों से जानते हैं कि देसी सुखोई से आयातित सुखोई सस्ता होता है . यही हाल हर उपकरण का है . तो या तो स्वदेशी की लिस्ट जारी कर उस पर पालन करें अन्यथा कोई भारतीय कंपनी अब दुबारा टाटा या कल्याणी जैसी हिम्मत नहीं करेगी .
मोदी जी ने इस कठिन पुरानी समस्या मैं एक और समस्या जोड़ दी . देश वासियों ने देखा होगा की मोदी जी की आने के बाद अचानक भारत का अंतर्राष्ट्रीय सम्मान बहुत बढ़ गया है . इस अवधी मैं न तो भारत का आयात बढ़ा है न ही निर्यात बढ़ सका है न ही भारत की ताकत बड़ी है . भारत के इस बढे हुए सम्मान का प्रमुख कारण मोदीजी द्वारा चीन ही की तरह भारतीय क्रय शक्ति विशेषतः हथियार ख्र्रीदने की क्षमता का राष्ट्र हित मैं एक हथियार की तरह उपयोग करना है . यह कुछ समय व सीमा तक तो उपयोगी है . अगर अर्थ व्यवस्था ठीक होती तो हथियारों का आयात बढाया जा सकता था क्योंकि यह आवश्यक भी है . पर अर्थ व्यवस्था तो वैसे ही डूबी हुयी है . अब यह भारत के स्वाबलंबन मैं बाधा बन रहा है जैसे हेलीकाप्टर , हवाई जहाज व् तोपों के आर्डर के साथ हो रहा है . आयात को स्वाबलंबन के ऊपर प्राथमिकता दी जा रही है . भारतीय उपक्रमों की क्षमता के बावजूद विदेशी हथियारों को खरीदा जा रहा है . दूसरे अब रूस को आर्डर दो तो अमरीका रूठ जाता है अन्यथा रूस रूठ जाता है . देर सवेर हमें टेंडर सिस्टम पर वापिस आना होगा . इसके लिए अभी से तैयारी करने की आवश्यकता है क्योंकि हमारे राफेल की तरह हथियारों के अंतर राष्ट्रीय टेंडर पंद्रह साल मैं अंडे देते हैं और तब भी उनसे चूजे नहीं निकलते . त्वरित फैसले के लिए बड़े बाबुओं व् वित्त मंत्रालय को इस प्रक्रिया से बाहर करना पडेगा .
अंत मैं मोदी जी को देश को आत्मनिर्भरता का बड़ा नारा देने से पहले इन सब बातों से अवगत किया जाना चाहिए था . एक तरफ जहाँ खोखले नारे प्रधान मंत्री पर देश की जनता का विश्वास खो देंगे और दूसरी तरफ नोट बंदी की तरह बिना पूरी तरह सोचे फैसले देश के लिए घातक सिद्ध होंगे . प्राइवेट सेक्टर के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है . रक्षा क्षेत्र मैं आत्मनिर्भरता डी आर डी ओ , एच ए एल जैसी संस्थाएं ही दी पाएंगी . लालच वश इनकी ह्त्या देश द्रोह होगा .
प्रधान मंत्री जी को एक सक्षम व् प्रभावी नेत्रित्व से देश को आत्मनिर्भर बनाना होगा .