करवा चौथ : गर्व से कहो मैं विशुद्ध पारंपरिक भारतीय गृहणी हूँ – राजीव उपाध्याय

 

करवा चौथ : गर्व से कहो मैं विशुद्ध पारंपरिक भारतीय गृहणी हूँ – राजीव उपाध्याय

गर्व से कहो मैं विशुद्ध पारंपरिक भारतीय गृहणी हूँ
राजीव उपाध्याय
मैं भारतीय नारी हूँ .मेरा नाम सीता, गीता , नेहा , मेनका इत्यादि कुछ भी हो सकता है परन्तु मेरी पहचान मेरे माथे की बिंदी , मांग का सिन्दूर व् गले का मंगल सूत्र है. मैं सावित्री की तरह यमराज से पति के प्राण तो वापिस नहीं ला सकती परन्तु उसकी लम्बी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत अवश्य पूर्ण श्रद्धा से रखती हूँ . मेरा बूढ़े सास ससुर मेरे साथ रहते हैं . इससे समस्याएं भी आती हें परन्तु मैं इसे अपना दायित्व मान निभाती हूँ . सेवा व् सहन शक्ति से हर कलह को दूर रखती हूँ और अंततः सबको अपनी गलती का भान हो जाता है और मेरा आदर और बढ़ जाता है. मैं अपनी भाभी के लिए आदर्श प्रस्तुत करना चाहती हूँ कि वह मेरे माता पिता की भी इसी तरह देख भाल करे. मैं अपने मायके से सम्पत्ती नहीं सिर्फ प्रेम , आदर व् कुसमय में सुरक्षा चाहती हूँ . मुझे जीन पहन कर जिम जाने या पुरुषों से बराबरी करने का कोई शौक नहीं है . मैं साड़ी, बिंदी वाले सौन्दर्य प्रधान स्त्री जीवन से संतुष्ट हूँ . मेरा सुखी परिवार मेरे संतोष का स्रोत है . मुझे व् मेरे पति को अपने वैवाहिक दायित्व का पालन, आर्थिक व् बच्चों की प्रगति अत्यंत आह्लादित करती है . जीवन में इश्वर पर विश्वास व् माँ बाप की शिक्षा ने हर कठिनाई का हिम्मत से सामना करने की शक्ति दी है . मेरे त्याग व् निस्स्वार्थ सेवा ने परिवार में सबको मेरा प्रशंसक बना दिया है जो मेरी अनमोल पूंजी है.
क्या मैं कोई अनपढ़ औरत हूँ जो समय की दस्तक नहीं सुन पा रही हूँ या जो विश्व मैं चल रहे नारी मुक्ती आन्दोलन व् उसकी उपलब्धियों से अनिभिग्य हूँ. ऐसा नहीं है .मैं टीवी समाचार व् अखबार रोज़ पढ़ती हूँ. दोपहर व् रात को कुछ सीरियल व् फ़िल्में देख कर मनोरंजन भी कर लेती हूँ .पर हर तरह के अनाचार से मुझे सख्त नफरत है और न ही में उसे टीवी पर देखना चाहती हूँ. मुझे टीवी के निकृष्ट लोगों से बेह्तर होने के एहसास से कोई खुशी नहीं मिलती है. मेरी खुशी मेरे संस्कारों से आती है क्योंकि मैं जीवन को एक कर्तव्य की तरह जीती हूँ और उसमें सुख का अनुभव करती हूँ. मेरे पिता ने मेरी शिक्षा व् माँ ने नारी दायित्व व् गृह कार्य में दक्षता सुनिश्चित की जो आज मेरे सफल जीवन का आधार हें .मैं भी अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने का सदा प्रयत्न करती हूँ .
मैंने भी दिल्ली के मिरांडा हाउस से बी ए व् इकोनॉमिक्स में एम् ए किया है और बी एड पूरी की है. शादी से पहले कुछ वर्ष तक व् उसके बाद भी बच्चे होने तक नौकरी की है. परन्तु नवजात शिशु को छोड़ कर मात्र कुछ रुपयों के लिए दिन भर बाहर जाना मुझे स्वीकार नहीं था.फिर रोज़ दो घंटे लोकल मैं जाने से मुझे कोई खुशी भी नहीं मिलती थी हाँ छुट्टियों मैं घूमने फिरने , सहेलियों से गप मरने का रसस्वादन अवश्य करती हूँ. आज के कम्पटीशन के युग मैं अपनी शिक्षा का उपयोग को बच्चों को पढ़ाने में करती हूँ और बच्चों का अच्छा रिजल्ट मुझे मेरी शिक्षा का प्रसाद दे देता है.वैसे भी मेरे पति उच्च पद पर हैं और व्यस्त रहते हैं . उनकी आय में घर में हमारी मध्यम वर्ग की सब इच्छाओं को पूरी करने की पूर्ण क्षमता है . इच्छाओं का तो कोई अंत नहीं होता पर वास्तविक आवश्यकताएं सीमित होती हें. मैं अतृप्त इच्छाओं को प्रगति की शक्ति बना कर पूर्ण हुई इच्छाओं को इश्वर की कृपा मानती हूँ.
अक्सर मेरी कुछ आधुनिकाएं सहेलियां मुझे प्रारंभ में डाईनासोर युग की महिला बताने की कोशिश करती थीं पर मेरे तर्कों ने उनको ही बदल दिया है .मैंने उनको समझा दिया है कि मैं समय से सौ साल पीछे नहीं बल्कि सौ साल आगे हूँ . मुझे पुरुषों से कोई वैर नहीं है . मैं पुरुष की शक्ति को बढ़ा कर उसके कल्याणकारी उपयोग करने मैं विश्वास रखती हूँ उसकी शक्ति को क्षीण करने मैं नहीं. मैं जानती हूँ की समस्त बाधाओं को झेल कर एवरेस्ट पर चढ़ने वाले पुरुषों की मानव समाज को आज भी बहुत आवश्यकता है.
पुरुष को मैं नारी उत्पीडन का जिम्मेवार नहीं मानती बल्कि नारी जीवन को सरल व् सुलभ करने वाली सारी विज्ञान की देन पुरुषों की ही बनाई हुई तो हें तो वैर कैसा ? हमारा पुराना समाज पुरुष प्रधान नहीं बल्कि शारीरिक शक्ति प्रधान था . अब विज्ञान ने उसे बुद्धि प्रधान बना दिया तो नारी हर क्षेत्र मैं स्वयं आगे बढ़ रही है. मैं गृह कार्य को हीन मानने वाली आलसी महिलाओं को दिग्भ्रमित व् मुर्ख समझती हूँ. भारत का भविष्य मेरे जैसी महिलायें बनाएंगी आधुनिक आलसी व अहंकारी तितलियाँ नहीं क्योंकि भारतीय नारी का आदर्श आज भी सीता, सावित्री व उर्मिला ही हें ट्रॉय की हेलेन या कन्नौज की संयोगितायें नहीं .
कुछ प्रथाएं अति निंदनीय हैं जैसे सती प्रथा , कन्या भ्रूण ह्त्या , दहेज़ की लिए जोर जबरदस्ती इत्यादि इत्यादि . पर यह तो अब अपराध घोषित की जा चुकी हैं . परन्तु सबला नारी द्वारा अबला नारी के लिए बने हुए प्रावधानों का दुरूपयोग भी दंडनीय अपराध होना चाहिए. महिला आयोग को ट्रेड यूनियन नहीं बनाना चाहिए. झूट मूठ के दहेज़ , झूठे बलात्कार के आरोप व् पुरुषों को लालच वश झूठे प्रेम जाल मैं फांसना भी दंडनीय होना चाहिए. महिलाओं की शालीनता भी पुरुष के संयम के जैसी आवश्यक है. अगर पोर्न व् नारी अंग प्रदर्शन बुरा है तो सनी लेओनी यहाँ क्यों हेरोइन की तरह रह रही है ?
परन्तु मुख्य अंतर यह है की पश्चिमी सभ्यता असीम व्यक्तिगत आजादी की थी जब की हमारी संस्कृति व्यक्तिगत संयम व् सामाजिक आदर्श जीवन को प्रोत्साहित करती थी . पश्चिम की अंतहीन स्वतंत्रता पहले उच्अ्छिन्र्कलता बनी और अब लब उसके विनाश का कारण बन गयी है . रूस , स्पेन फ्रांस जर्मनी सिंगापूर मैं महिलायें प्रसव नहीं करना चाह रहीं हैं . कभी इसाइयत को बचाने के लिए क्रूसेड लड़ने वाले देशों में रिफुजियों की विशेषतः इस्लामिक संस्कृति छाई जा रही है. नारी मुक्ति आन्दोलन ने पश्चिम को ध्वस्त कर दिया है. रूस मैं अब दस बच्चों को जन्म देने वाली महिलाओं को पुरुस्कृत किया जा रहा है. जर्मनी मैं भी इस तरह के प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं. इंग्लैंड के पूर्व प्रधान मंत्री टोनी ब्लेयर के चार बच्चे हैं .पर अब बहुत देर हो चुकी है और इस समाज को बचा पाना कठिन है.
अगर नारी मुक्ति आन्दोलन का निष्पक्ष मूल्यांकन किया जाये तो परिणाम यही आयेगा कि इस ने पश्चिमी परिवार, समाज व् संस्कृति का विनाश कर उसे ध्वस्त कर दिया है . अमरीका में आधे बच्चों के बड़े होने तक माँ बाप मैं सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है.नारी मुक्ति आन्दोलन की शुरुआत प्रथम व् द्वितीय विश्व महा युद्ध मैं तब हुयी थी जब हर बालिग पुरुष को सेना मैं जबरदस्ती भरती कर लिया गया था . फक्ट्रियों के लिए मजदूर नहीं बचे थे तो महिलाओं को ट्रेनिंग दे कर फक्ट्रियों मैं काम दिया गया. जब युद्ध की समाप्ती पर पुरुष लौटे तो महिलाओं ने नौकरी छोड़ने से इनकार कर दिया .इसी समय मैं परिवार नियोजन की तकनीकें विकसित हो गयीं .इसलिए कम बच्चे होने से महिलाओं के पास समय बचने लगा . औद्योगीकरण ने नौकरियां बढ़ा दीं . वहां महिलाओं का काम करना राष्ट्रीय आवश्यकता बन गया .
भारत में परिस्थिति इसके ठीक विपरीत है. यहाँ भयंकर बेरोजगारी है और सेना जैसी संस्थाओं में या बॉक्सिंग जैसे खेलों में महिलाओं की भागीदारी की कोई आवश्यकता नहीं है. न ही समलैंगिकता को सामान्य जीवन बताने की जरूरत है. पश्चिम सरीखे नारी मुक्ती आन्दोलन का भारत में कोई औचित्य नहीं है.
इसलिए गर्व से कहें :
गर्व से कहो मैं विशुद्ध पारंपरिक भारतीय गृहणी हूँ
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