from e mail of sri Sachin Gupta
STOP Conversion(धर्मान्तरण रोको)
विवेकानंद ने सच ही कहा था यदि एक हिंदू धर्मान्तरण करता है तो देश के दो दुश्मन पैदा हो जाते है. परिणाम हमारे सामने है. गैर हिंदू बहुल क्षेत्र अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगलादेश आदि पहले ही भारत से अलग हो चुके है वर्तमान भारत की स्थिति इस लिहाज से और भी गम्भीर है. नगालैंड जहाँ ९२% से उपर ईसाई बन चुके है वरसों से भारत से अलग होने का प्रयास कर रहे है और इसके लिए आतंक का रास्ता भी अपनाये हुए है. मेघालय और मणिपुर भी ऐसे ही राज्य है. केरल में भी हिंदुओं के अल्पसंख्यक होने के साथ ही समस्याएं उभरनी शुरू हो गयी है. जम्मू-कश्मीर की स्थिति से तो हर कोई वाकिफ है जहाँ ७८% मुस्लिम जनता होने के कारन अलगाववादियों आतंकवादियों को बोलबाला है और वे येन केन प्रकारेण जम्मू-कश्मीर से भारत को अलग कर इस्लामी राज्य स्थापित करना चाहते है. वास्तविकता ये है की भारत में धर्मान्तरण ईसायत के विश्व व्यापी षड़यंत्र का हिस्सा है. इटालियन कैथोलिक गैंग जो देश की सबसे बड़ा लूटेरा गैंग है और देश की दुर्भाग्य और जनता की अज्ञानता और भ्रष्टाचार के कारन देश का करता-धर्ता बन बैठा है का न केवल सत्ता में बने रहने हेतु षड़यंत्र है बल्कि यह उस यूरोपीय राजनितिक धार्मिक परम्परा को प्रश्रय देता है जहाँ शासक का धर्म जनता का धर्म बनाया जाता था ताकि परिवर्तित लोगो की राष्ट्रीयता हिन्दुस्थान से विचलित हो जाये और वे भारत पर वैचारिक धार्मिक गुलामी और भ्रष्ट शासन थोपने में आसानी से सफल हो सके. इस विश्वाश के साथ की विश्व पर यूरोपिय शासन आज केवल धर्म की घुटी पिलाकर ही हो सकती है; नए परिवेश में वैचारिक शक्ति से गैर यूरोपीय राज्यों को उपनिवेश बनाना इनका एजेंडा है ताकि यूरोप की संतृप्त हो चुकी अर्थव्यवस्था को संजीवनी गैर यूरोपीय बाजारों से प्राप्त होता रहे. दूसरी ओर सत्तासीन कैथोलिक इटालियन गैंग भारत की संपत्ति को लूटकर यूरोप में डंप (Dump) कर रही है जिससे यूरोप को उर्जा मिल रही है. अतः भारत में धर्मान्तरण से तीन गैंग को लाभ है: १.भारत में ईसाइयत का प्रसार इसके विश्वव्यापी षड़यंत्र विश्व पर शासन हेतु वैचारिक उपनिवेश तैयार करना और उन्हें वैचारिक धार्मिक स्तर पर यूरोपीय बनाना ताकि उनके संतृप्त अर्थव्यवस्था के लिए बाज़ार बन सके २. भारत में इटालियन कैथोलिक गैंग के पॉवर में रहने से भारत की संपत्ति को आसानी से लूट कर वे यूरोप भेज सकते है. ३.धर्मान्तरित लोगो की धर्म और वैचारिक परिवर्तन के साथ उनकी राष्ट्रीयता विचलित होती है और वे इटालियन कैथोलिक गैंग के नेतृत्व वाली भ्रष्ट कांग्रेसियों को वोट देने लगते है जिससे इनके वोट बैंक में अभूतपूर्व वृद्धि हो रही है. जनगणना २०११ के आंकड़े बताते है की ईसाईयों की जनसँख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है. कई क्षेत्रो में तो ये मुस्लिमों को भी पीछे छोड़ चुके है. न केवल उत्तर-पूर्व के अधिकांश राज्य बल्कि केरल भी गैर-हिंदू बहुल राज्य बन चूका है. आश्चर्य होता है जहाँ हम भारत के लोग ईसाईयों को भारत और अपने समाज का हिस्सा मानते है और उनके त्यौहार विशेषकर क्रिसमस में पूर्णरूपेण भागीदारी निभाकर धार्मिक सहिष्णुता और सांप्रदायिक सौहार्द का परिचय देते है वही ये ईसा के नाजायज़ औलाद हम हिंदुओं को महज अपना शिकार समझते है. ये उन ड्राकुला की तरह है जो समाज को धीरे धीरे अपने गिरफ्त में लेकर अपनी फौज में वृद्धि करते है. पहले एक ड्राकुला एक कमजोर दिलवाले मजबूर लोग का शिकार करते है और फिर वो इन्फेक्टेड ड्राकुला खुद शिकार पर गली गली घुमने लगता है. ये कभी धर्म के नाम पर कभी पैसा, नौकरी, पढाई, इलाज आदि का लालच देकर लोगो का धर्मान्तरण कर अपना राजनितिक एजेंडा और विश्वव्यापी षड़यंत्र को अंजाम देने में लगे है. ये सेवा को अपना मुखौटा बनाकर रखते है जबकि उसके पीछे वास्तविक घिनौना चेहरा छिपा होता है जिसे नजदीक से आसानी से देखा जा सकता है. इतिहास गवाह है ईसाईयों की सेवा शिक्षा सहयोग आदि के एकमात्र लक्ष्य धर्मान्तरण होता है. इनकी सेवा का सच इस बात से भी उजागर होता है की ये प्राथना करते है की आपदा आये और उन्हें सेवा का मौका मिले और इसकी आड में अपने धर्मान्तरण के षड़यंत्र को पूरा कर सके. मदर टेरेसा को जाननेवाले बताते है की वो भी अपने चैरिटी अस्पताल में गम्भीर लोगो का इलाज तभी करती थी जब वो धर्मान्तरण के लिए तैयार हो जाता था या फिर उनकी ही सेवा और इलाज होता था जिनके धर्मान्तरण करने की संभावना होती थी. परन्तु, सेवा और सुविधा के नाम पर धर्मान्तरण उन क्षेत्रो के लिए है जहाँ ये अल्पसंख्यक होते है, जहाँ ये बहुसंख्यक या शक्तिशाली होते है वहां ये क्रूरता और अत्याचार को धर्मान्तरण का हथियार बनाते है. भारत में गोवा के ईसाई, अमेरिकन महाद्वीप पर मूलनिवासियों का सर्वनाश, अफ्रीकन देशों में धर्मान्तरण आदि केवल क्रूरता और अत्याचार की कहानी है. यही नही यूरोप में भी न केवल कैथोलिक-प्रोतेस्तंत बल्कि ईसाई-मुस्लिम संघर्ष और अत्याचार का इतिहास भी यही कहता है की ये वास्तव में भेड की खाल में छुपे भेडिये होते है और परिस्थिति देखकर गिरगिट की तरह रंग बदलते है. तथाकथित आज के ये सभ्य १७वि १८वि सदी से पूर्व सिर्फ लुटेरे, जलदस्यु, लुच्चे होते थे और लुटना मारना इनका मुख्य पेशा होता था और गैर यूरोपीय देशो की लूट की बदौलत ये कंगाल लोग आज धनि और सभ्य बने फिरते है.
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