गीता को क्यों राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित किया जाना चाहिए : शंका समाधान – भाग २
इस लेख के पहले भाग मैं हमने गीता के हर अध्याय का सारांश व् उसकी शिक्षा दी थी जिसे पाठक एक बार पुनः पढ़ लें . इस पर हम लेख के अंत मैं फिर चर्चा करेंगे .
प्रश्न है की राष्ट्रीय प्रतीक क्यों चुने जाते हैं . राष्ट्रीय प्रतीक हमारी संस्कृति व् इतिहास के गौरव का प्रतीक होते हैं . इसके पहले चुने गए प्रतीकों का इतिहास इस पर अधिक प्रकाश डालेगा .हमारे देश के झंडे मैं जो चक्र है व् हमारी सरकार का प्रतीक चिन्ह शेर की जो तीन शेर वाली लाट है वह सम्राट अशोक के स्तूप से लिया गया है . इस स्तूप का शेर वाला हिस्सा अभी भी सारनाथ के संग्रहालय मैं सुरक्षित है . लगभग एक ऐसा ही शेर थाईलैंड मैं भी है . किव्दंतियोंके अनुसार हालाँकि यह लाट सम्राट अशोक ने अपनी बौद्ध रानी विदिशा देवी के कहने पर बनवाई थी . इस लाट पर साँची मैं उल्लेख भी गौतम बुद्ध की बुराई करने वाले भिक्षुओं को सफ़ेद कपडे पहना कर संघ से बाहर करने का आदेश भी है . परन्तु देश सम्राट अशोक को महान मानता है व् गौतम बुद्ध को भारतीय संस्कृति व् सभ्यता का अभिन्न अंग मानता है . सम्राट अशोक व् उनके दादा व् मौर्य वंश के संस्थापक सम्राट चन्द्रगुप्त को देश का सर्वोच्च गौरव मानता है . इसलिए इस राष्ट्रीय चिन्ह को सबने स्वीकार किया .
हमारा राष्ट्रीय पक्षी मोर है . मोर देव सेनापति कार्तिकेय का वाहन है . भगवान् कृष्ण के सिर पर मोर पंख सुशोभित होता है . इसकी कहानी भी है की श्री कृष्ण की बंसी से जंगल मैं मोर नाच उठते थे . कहते हैं कि एक मोर श्री कृष्ण को पहली बार राधा रानी के घर तक ले गया था . मोर बरसात के बादलों को देख नाचने लगता है . वही बादल किसान को हर्षित करते थे . मोर जब पंख फैला कर नाचता है तो अत्यधिक सुन्दर व् आकर्षित लगता है .इस लिए मोर को राष्ट्रीय पक्षी चुना गया .
राष्ट्रीय पशु हाथी है . देव दानवों के सागर मंथन मैं ऐरावत हाथी भी निकला था . ऐरावत हाथी देवराज इंद्र का वाहन है . हाथियों का हमारी संस्कृति मैं विशेष स्थान है. हर शुभ कार्य के आरम्भ मैं पूजे जाने वाले श्री गणेश का सिर भी हाथी का है . महाभारत मैं अश्वत्थामा हाथी का वर्णन आता है हाथी शक्ति का प्रतीक था . तोपों के बनने से पहले हाथी ही युद्ध का अमोघ अस्त्र थे . दक्षिण के मंदिरों मैं भी हाथी पालने का प्रचलन है क्योंकि उन्हें शुभ माना जाता है .
तो इस प्रकार हम देखते हैं की हमारे राष्ट्रीय प्रतीक हमारी संस्कृति पर आधारित थे व् हमारे गौरव का प्रतीक बनने के सर्वथा उपयुक्त थे .
इसी श्रंखला मैं गीता का भी राष्ट्रीय ग्रन्थ के रूप मैं चयन भी एक अत्यधिक उपयुक्त चयन होगा .
गीता निस्सद्न्देह भारतीय संस्कृति की मात्र एक गौरव शाली पुस्तक ही नहीं है पर वास्तव मैं यह भारतीय संस्कृति का सार है. यह मात्र हमारी आस्था का प्रतीक ही नहीं बल्कि हमारे जीवन जीने की शैली का का एक मूल स्तम्भ है. इसका बिना फल की आशा के निष्काम कर्म करने का सिद्धांत का समस्त विश्व के कल्याण का बीज है . यह आज के भौतिक युग मैं तीव्र फलेच्छा से जो तनाव उत्पन्न होता है यह सिद्धांत उसका निराकरण है. यह पाश्चात्य भौतिकवाद को चुनौती देता हुआ उसके समानांतर एक सिद्धांत है जो मनुष्य को सर्वोत्तम प्रयास के लिए प्रेरित करता है परन्तु विफलता से तनाव नहीं होने देता . इसी प्रकार गीता के स्थिरर्प्रग्य पुरुष की परिभाषा असफलता से विषाद व् सफलता से अभिमान नहीं होने देती . गीता का कहना की अर्जुन योद्धाओं की मृत्यु का मात्र निमित्त है मृत्यु तो उनकी पहले से ही सुनिश्चित है मनुष्य को कठिन से कठिन निर्णय लेने का सक्षम बनाती है . गीता किसी धर्म पर आक्षेप नहीं करती बल्कि मनुष्य को कर्तव्य को सर्वोपरी रखने की शिक्षा देती है . युग युग मैं परिपेक्ष बदलते रहते हैं परन्तु गीता का संदेश हर युग के लिए परम उपयोगी है .
गीता के संदेश समस्त मानव जाति की चिरस्थायी धरोहर है .
इसलिए हम गीता को भारत का राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित कर वास्तव में भारत को गौरवान्वित करेंगे .