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बीजेपी व् दिल्ली चुनाव : चाँद पर दाग लगा : अब आगे क्या सीखना चाहिए ?

बीजेपी व् दिल्ली चुनाव  : चाँद पर दाग लगा : अब आगे क्या सीखना चाहिए ?RKU

Rajiv Upadhyay

दिल्ली मैं बीजेपी की बुरी हार ने उसे झिझोड तो  दिया है . परन्तु डर यह है की जैसे कांग्रेस अपनी एक के बार एक हार से कुछ नहीं सीख रही ऐसे ही कहीं  बीजेपी भी चापलूसों से डूबी कोंग्रेस के पदचिन्हों पर न चल दे . चापलूस मोदी जी को बताएँगे के यह हार उनकी नहीं बल्कि दिल्ली बीजेपी की है . उनका जनाधार व् लोकप्रियता बरकरार है . वह आज भी चाँद की तरह दैदीप्यमान हैं .

परन्तु वास्तविकता यह है की चाँद में दिल्ली की पराजय के शाप का दाग लग गया है .

परन्तु मोदी जी व् राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ इससे सही सबक ले कर महाराणा प्रताप या शिवाजी बनेंगे या बहादुर परन्तु चापलूसों और सुन्दर नारियों से घिरे पृथ्वी राज चौहान, यह उनके विवेक  पर निर्भर है .

यह हार बीजेपी के लिए  उत्तर प्रदेश , बिहार व् बंगाल के द्वार खोलेगी या बंद करेगी यह इस पर निर्भर करता है की पार्टी इस हार पर लीपा पोती करेगी या सही विश्लेषण कर सही सीख लेगी . वोट विश्लेषण से प्रस्तीत होता है कि बीजेपी के वोट तो वाही ३२ % रहे पर कांग्रेस के वोट बैस प्रतिशत से घाट कर सात प्रतिशत रह गए और सब वोट आप को गए . इसी तरह मायावती के वोट ७.५% से घाट कर १.७% रह गए पर सब वोट आप को गए . यह तथ्य जिन का सही विश्लेषण होना चाहिए.

बिहार के उपचुनाव व् दिल्ली की हार से यह दीख गया है की बी जे पी इन राज्यों मैं संगठित विरोधियों से नहीं जीत पायेगी . महाराष्ट्र मैं भी अजीत पवार व् कांग्रेस के भ्रष्टाचार के विरोध मैं जन आक्रोश था और चार दलों मैं वोट बाँट गए थे . इस लिए  शिव सेना और बीजेपी जीत गयीं .कश्मीर मैं हिन्दू बाहुल्य जम्मू का वोट एक तरफ़ा बीजेपी को गया इस लिए वह जीत गयी . झारखंड मैं राजनितिक अस्थिरता व् भ्रष्टाचार से जनता दुखी थी इस लिए बीजेपी जीत गयी . दिल्ली मैं वह नहीं था .

इसलिए मोदी जी की छवि का जादू अब धीरे धीरे कम होगा . संगठित विरोधियों का मुकाबला बीजेपी के लिए इन तीनों राज्यों मैं बहुत कठिन होगा .

दूसरी बात की दिल्ली मैं बीजेपी का नेत्रित्व अत्यंत कमजोर व् प्रभाव हीन था . आप ने बिजली व् पानी के दाम कम करके व् मोबाइल से रिश्वतियों को पकड़ के जो काम किया जनता ने उसको सूद समेत वापिस कर दिया . दिल्ली मैं हर्ष वर्धन इमानदार परन्तु चमत्कारी व्यक्तित्व नहीं हैं . सतीश उपाध्याय बहु चर्चित नहीं हैं .किरन र्बेदी बहुत देर से आयीं . कोई भी केजरीवाल को टक्कर देने  मैं समर्थ नहीं था .

दूसरा सच यह भी है की कांग्रेस और बीजेपी की नितियों  मैं जनता को कोई फर्क नहीं नज़र आ रहा . बल्कि लगता है की इमानदारी के उपरान्त भी बीजेपी काले धन से चंदा देने वालों से ज्यादा दबी हुयी है . काले धन पर वित्त मंत्री जैटली जी की वकीली तर्क या बातें जनता को बेवकूफ नहीं बना सकती . जनता को बीजेपी काले धन को नहीं लाना चाहने वाली पार्टी दीख रही है .उनका बजट भी बेकार था . निति आयोग सिर्फ बाबुओं का ढकोंसला है .उनका कोई काम अब तक ऐसा नहीं हुआ जिससे जनता को कोई खुशी मिले. विकास भी नहीं हो रहा . सरकार खाद्यानों पर सटोरियों को बैंकों से उधार पर रोक भी नहीं लगा पा रही . इसलिए खाने  पीने की चीजों के दाम नहीं घट रहे . उद्योगों को न विकसित होने के लिए कांग्रेस ऐसे जाल बिछा गयी है की मोदी सरकार दस साल तक उसमें फंसी रहेगी . उससे निकलने के लिए जिस चरित्र ,साहस व् राजनितिक सूझ बूझ की आवश्यकता है वह जेटली जी मैं नहीं है . वह किस्सिंजर या मनमोहन सिंह नहीं हैं जो निक्सन या नरसिम्हा राव को को राह दिखा सकें . रिजर्व बैंक के गवर्नर अपनी अलग बिसात बिछा रहे हैं . सिर्फ समय बीतता जा रहा है पर कुछ होता  नहीं रहा दीख रहा है.

भला  हो तेल के दाम कम होने का जिससे भाग्यवश ही सही मोदी सरकार की इज्ज़त बचा रखी है .

वास्तव मैं इस मंत्रिमंडल मैं बुद्धिमत्ता की बहुत कमी है और ऊपर से जिस अपमान जनक तरीके तरह से डीआरडीओ के अध्यक्ष व् विदेश सचिव को जिस तरह से निकाला है उससे जो बाबु वर्ग जो पहले से सीबीआई और ऑडिट के डर से त्रस्त थे अब और साहस हीन हो जायेंगे . बेहद डरे हुए, साहसहीन बाबु यदि इमानदार भी हों तो असरहीन ही व् कांग्रेस काल से बदतर ही होंगे . डर से आपात काल की तरह दिल्ली के बाबु समय पर तो आने लगे हैं पर कुछ साहस वाला काम नहीं करेंगे .

अब तक मोदी जी ने सिर्फ वादे ही किये हैं कुछ बड़ा कर के नहीं दिखाया है . जनता को उनपर विश्वास है क्योंकि महंगाई पर अंकुश लगा है या थोड़ा संस्कृत को पाठ्य क्रम मैं वापिस लाना अच्छा लगा . पर इसके अलावा कोई आशा का संचार करने वाली उपलब्धि नहीं है . विदेशों से अभी कुछ मिला नहीं है .

यदि बीजेपी वास्तव मैं उत्तर प्रदेश , बिहार व् बंगाल को जीतना चाहती है तो जनता को बेवकूफ समझ कर आंकड़ों और बातों के भ्रमजाल मैं न फंसाने की कोशिश करे . वह इन राज्यों को शीघ्र विकसित करने वाला चमत्कारिक नेत्रित्व दे और जल्दी से आर्थिक व् सांस्कृतिक प्रगति  के लिए वास्तव मैं कुछ कर के दिखाए . कांग्रेस का मुसलामानों का वोट बैंक तो उसे कभी नहीं मिलेगा और उस धोके मैं भी उसे नहीं रहना चाहिए . पर गरीबों का वोट बैंक उसे उनके लिए कुछ करके हासिल करना होगा .

तो दिल्ली की यह हार राजा की उंगली काटने से बलि से बचने के सामान हो सकती है यदि बीजेपी इससे सही सबक ले और अब बोलने के बजाय कुछ करके दिखाए .

 

 

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