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2015 : एक वर्ष जिसमें हिंदुत्व व् भारतीयता पानीपत का चौथा युद्ध फिर हार गये

2015 : एक वर्ष जिसमें हिंदुत्व व् भारतीयता पानीपत का चौथा युद्ध फिर हार गयेRKU
राजीव उपाध्याय
वर्ष २०१५ को कैसे याद करा जाएगा ?
विश्व की बात तो हम नहीं जानते परन्तु भारत मैं भारतीयता व् हिंदुत्व पानीपत की चौथी लड़ाई इस वर्ष मैं फिर बुरी तरह से हार गए.

पानीपत की हर युद्ध की तरह हिन्दुओं या भारतीयों की सेना मराठों , इब्राहीम लोदी ,पृथ्वी राज चौहान की ही तरह विपक्षी सेना से कहीं बड़ी थी और हमें बहुत झूटा आत्मविश्वास था .हो भी क्यों ना ! साठ साल की चिर प्रतीक्षा के बाद बाद एक हिन्दू सरकार बनी थी जिससे भारतीय संस्कृति के पुनर्स्थापन की जो प्रबल आशा थी वह वर्ष २०१५ पूरी तरह धुल धूसरित हो गयी.

प्रश्न धर्मनिरपेक्षता का तो कभी था ही नहीं . इस देश को धर्मनिरपेक्ष संविधान हिन्दुओं ने ही तो दिया था .सर्व धर्म सम भाव तो हमारी आस्था का मूल्स्तम्भ है .परन्तु पिछले चालीस वर्षों मैं जब से कांग्रेस विभाजित हुयी थी तब से उसने वोट बैंक की खातिर हिन्दुओं के साथ जो गहन भेद भाव किया था उसने धर्मनिरपेक्षता नहीं बल्कि वोट बैंक की खातिर हिन्दुओं को वास्तव मैं द्वितीय श्रेणी का नागरिक बना दिया था. संविधान मैं साफ़ लिखा है की धर्म के आधार पर किसी के साथ भेद भाव नहीं कर सकते फिर भी अनेकों राज्य सरकारों ने व् केंद्र सरकारों ने धार्मिक आधार पर मुसलामानों को नौकरियों मैं , शिक्षा मैं यहाँ तक की लड़कियों की शादियों मैं और स्कूल जाने के लिए साइकिलों मैं विशेष आर्थिक सुविधाएं दे दीं . देश की हिन्दू सरकार सिर्फ देखती रही .२०१५ मैं यह सिद्ध हो गए की इस सरकार मैं भी गरीब हिन्दुओं के साथ न्याय करने की क्षमता नहीं है .जिन सपनों को हम वर्षों से आँखों मैं बदाये हुए थे वे यथार्थ के धरातल पर टूट के रह गए.

एक पिक्चर आयी “पी के “. इसमें शिवजी को बाथरूम मैं छिप कर बचते देखा .इसकी एक दृश्य मैं जो शूट किया गया बता पर बाद मैं दिखाया नहीं गया उसमें शिवजी रिक्शा खींच रहे थे . देश की धर्मनिरपेक्ष जनता हिन्दू आस्था के इस अपमान मैं कला की दुहाई देती रही .हिन्दू देवी देवताओं की नंगी तस्वीरों को बनाने वाले एम् ऍफ़ हुसैन की तस्वीरों प्रदर्शनी भी लग गयी परन्तु राजस्थान मैं साहित्य के समारोह मैं सलमान रश्दी को नहीं भाग लेने दिया गया . फिर सिनेमा जगत मैं ज़रा सी हिन्दू संवेदनाओं को ध्यान देने वाले अध्यक्ष के विरुद्ध सेंसर बोर्ड को बदलने की मुहीम चालू हो गयी जिसमें अंत मैं मार्क्स वादी पिक्चर बम्नाने वाले श्याम बेनेगल को एक समिति का अध्यक्ष बना दिया गया .

इतिहास के अंग्रेज़ी पाठ्यक्रम मैं बदलने की हिम्मत तो किसी मैं दीखती ही नहीं .पुस्तकों मैं जो ग से गणेश की जगह ग से गधा किया गया उसे तो कोई बदल ही नहीं सकता . क्या जब जवाहर लाल नेहरु के ज़माने तक जो हमारी पुस्तकों मैं होली दीवाली व् तुलसी के पाठ थे वे अचानक धर्मनिरपेक्ष नहीं रहे .अब तो हद हो गयी जब बच्चों को भगत सिंह व् चन्द्र शेखर आजाद को उनकी पाठ्य पुस्तकों मैं आतंकवादी बता दिया गया .देश की जनता इसी आशा मैं थी की यह सब बदलेगा क्योंकि अब साथ साल बाद भारतीय सरकार जो आई थी .एक संस्कृत को पुनर्स्थापित करने का काम अवश्य हुआ पर टीवी चेनलों मैं हिंदी प्रदूषित हो गयी. योग को अंतर राष्ट्रीय मान्यता का काम भी अच्छा था..पर कुल मिला कर २०१५ ने दिखा दिया की हम पानीपत का चौथा युद्ध पुनः हार चुके हैं ,देश के छद्म धर्मनिरपेक्षी व् विदेशी विधर्मी ताकतों से .

भारतीय उद्योगों का भी यही हाल है .जिसे भगवान् की तरह पूजा वह तो आम आदमी ही निकले .पता नहीं ब्याहता भारतीय पत्नी को छोड़ किस विदेशी पूंजी की सौत के पीछे देश विदेश मैं ढूंढ रहे हैं ठीक कस्तुरी मृग की तरह .भारतीय उद्योग सिर्फ अच्छे दिन का इन्तिज़ार कर रहे हैं.

साल का अंत हुआ असहनशीलता की विदेशियों शक्तियों के द्वारा प्रायोजित बहस से .सब टीवी चैनलों ने खूब बढ़ बढ़ कर झूठ बोला ठीक जैसे कभी गुजरात के दंगों के बारों मैं बोलते थे .अचानक देश विदेश मैं भारत की नाक कटवा दी .न देश बदला था न किसी के साथ कुछ हुआ था .छोटी छोटी बातों को बढ़ा चढ़ा कर तिल का ताड़ बना कर प्रस्तुत किया गया . परन्तु पञ्चतंत्र की कहानी के ब्राह्मण से तीन चोरों द्वारा बकरी को कुत्ता कह कह कर फिकवा दिया .

परन्तु आखिर हम यह पानीपत की यह चौथी लड़ाई क्यों हार गए ?

इस लिए कि हमने कभी यह नहीं सोचा था की प्रजातंत्र मैं जन भावनाओं को मीडिया इतना भड़का सकता है की बड़ी से बड़ी सरकार भी उसके सामने मजबूर हो जाती है. हमने भारतीय मीडिया को विदेशियों के हाथ बेच दिया और अब उसका परिणाम भोग रहा हैं.जो लोग भारतीयता को आधुनिक परिपेक्ष मैं समझा सकते थे जैसे सुब्रमनियन स्वामी , अरुण शौरी इत्यादि वह सरकार के विश्वास पात्र नहीं थे और जो सरकार मैं थे जैसे साक्षी महाराज और साध्वी उनमें आधुनिकता की लड़ाई मैं भारतीयता को जिताना संभव नहीं था .एक और मुख्य बात की साठ सालों ने हिन्दुओं को और अधिक मानसिक गुलाम बना दिया है . उनकी समझ को बदलना इतनी जल्दी संभव नहीं हैं इसलिए हिंदुत्व को अभी वोट नहीं मिल रहा है जैसे बिहार मैं हुआ जबकि मुसलमान पूरी तरह एकजुट हैं .इस यथार्थ से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता और इसका काट निकालना होगा.

इसलिए देश के वोट गणित से इस बेहद मजबूर सरकार से कैसे भारतीयता को जिताया जाय यह एक बहुत गंभीर चिंतन का विषय है.

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