चीन की दो दिन मैं दिल्ली पहुँचने की धमकी : क्या अगला पानीपत का युद्ध व् पाकिस्तान व् चीन के साथ होगा ?
पिछले दिनों चीन के एक अखबार ने भारत को धमकी दी की चीन की सेना दो दिन में दिल्ली पहुँच सकती है . अब तक तो चीन से हम हिमालय की पहाड़ियों मैं ही लड़ने की सोचते थे . परन्तु चीन की इस गर्वोक्ति की विश्लेषण आवश्यक है . मंगोल लोग अल्ल्लुद्दीन खिलजी के समय से भारत पर हमला करने की कोशिश करते रहे हैं . दिल्ली का सीरी किला इस लिए सिरी कहा जाता है की अलाउद्दीन ने आठ हज़ार मंगोलों के सर इस की नींव मैं दफना दिए थे . परन्तु विशेष बात यह है की पाकिस्तान के चीन को ग्वादर तक रास्ता दे देने से भारत की सुरक्षा के लिए एक नया खतरा बन गया है . चीन के समुद्री नौसेनिक जहाज़ों व् पनडुब्बियों के अतिरिक्त नया ख़तरा यह भी है की की चीन इस रस्ते का उपयोग कर अपनी सेना को कशगार से लाहौर या सिंध ला सकता है . १९६२ मैं चीन ने पकिस्तान को कश्मीर पर हमला करने के लिए बहुत उकसाया था . परन्तु अमरीका व् इंग्लैंड के कहने पर अयूब खान ने ऐसा नहीं किया . परन्तु यदि चीन भारत को सबक सिखाना चाहे तो पूर्वोत्तर के अतिरिक्त पाकिस्तान के साथ मिल कर लाहौर की तरफ से भी हमला कर सकता है या कश्मीर को पाकिस्तान को दिलाने का प्रयास कर सकता है .
उधर हमारा तवांग, जिसे चीन भारत से मांग रहा है, बहुत सुरक्षित नहीं है . भारत ने जो एक माउंटेन डिवीज़न बनाने का फैसला लिया है वह बहुत कम है . भारत को एक नहीं बल्कि तीन माउंटेन डिवीज़न बनानी चाहिए . एक लद्दाख दूसरी नाथुला व् तीसरी अरुणांचल मैं रहनी चाहिए . इन पर बहुत खर्चा अवश्य आयेगा पर यह आवश्यक है . इंडो तिबेतन सीमा बल को सेना का अंग बनाना ही उपयुक्त होगा .उसकी जगह सी आइ एसेफ़ को सीमा बल बना उसका काम सेवा निवृत सैनिओं को दे देना चाहिए .इससे सेना की संख्या नहीं बढ़ेगी .चीन ने तिब्बत मैं रेल बना ली है .अब वह नेपाल तक रेल बनाना चाह रहा है . उसका सीमा की सड़कों का जाल हमसे कहीं अधिक है . सड़कों की कमी के चलते क्योंकि हम चीन से अरुनाचल प्रदेश मैं नहीं जीत सकते इस लिए हमें वहां युद्ध को इतना कठिन बना देना चाहिए की चीन के लिए वह इतना कष्टकारी बन जाए की चीन व्यर्थ मैं लड़ने की न सोचे .इस के लिए हमें तवांग को कश्मीर की तरह एक छावनी ही बनाना होगा .१९६२ मैं तो हम पहाड़ियां को पार कर बोम्दिला तक जमीन हार चुके थे .यहाँ तक की डरी हुयी जनता तेजपुर से भागने लगी थी .परन्तु इसके बाद १९९० तक हम अपनी रक्षा के लिए काफी तैयार हो गए थे . पिछले दिनों मैं चीन फिर से हमसे बहुत ताकतवर हो गया है . हमने सीमा क्षेत्र मैं सड़कों व् यातायात के साधनों का समुचित विकास नहीं किया है .हाल मैं कुछ हवाई अड्डे चालू अवश्य किये हैं परन्तु आज के मिसाइल के युग मैं हवाईजहाजों को मार गिराना या हवाई अड्डों को नष्ट कर देना बहुत कठिन नहीं है . इसलिए युद्ध प्रारंभ होने के बाद हवाई जहाज से रसद पहुंचना बहुत आसन नहीं होगा . युद्ध के दौरान रसद पहुँचाने के लिए सड़कें ज्यादा उपयोगी होंगी .इसमें भारत बहुत पीछे है. इस कमी को दूर करना भी बहुत आवश्यक है .
चीन की इस गर्वोक्ति को मात्र बन्दर घुडकी समझना भूल होगी . भात को इसे गंभीरता से लेकर इसका निदान सोचना चाहिए जिसके लिए एक और माउंटेन डिवीज़न की प्लानिंग तो हमें तत्काल शुरू कर देनी चाहिए . इसके अलावा हमको यह भी सोचना होगा की पाकिस्तानी सीपेक का दुरूपयोग भारत के रक्षा के विरुद्ध न हो .
http://theindianvoice.com/china-and-delhi/
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