वेतन भोगी मध्यम वर्ग की बजटों मैं पूर्ण अवहेलना : क्या वित्त विभाग का मंद्बुद्धित्व जिम्मेवार है?

 

वेतन भोगी मध्यम वर्ग की बजटों मैं पूर्ण अवहेलना : क्या  वित्त विभाग का मंद्बुद्धित्व जिम्मेवार है?

                                                                                                           राजीव उपाध्याय  rp_RKU-150x150.jpg

सन २०1४ मैं वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मधयम वर्ग को थोड़ी सी राहत देते हुए संसद मैं वचन दिया था की जब मेरे पास धन होगा तब मैं और राहत दूंगा . अब जब सरकार संभवतः अपना अंतिम बजट पेश कर रही है तो मध्यम वर्ग की निराशा अपने चरम स्तर पर है .वित्त मंत्री अपने वायदे को भूल चुके हैं . सरकार की प्राथमिकता सिर्फ चुनाव जीतनी हो गयी है . आर्थिक विकास के झूठे आंकड़ों से सरकार अखबार और टीवी को घेरे  हुए है. सच को जानना भी मुश्किल हो गया है .वाजपेयी व् मनमोहन काल से वास्तविक आर्थिक विकास दर आधी ही है.इसलिए नयी नौकरियां नहीं आ रहीं .

आज भी छोटे से  छोटा अधिकारी वकीलों , डोक्टरों ,दूकानदारों इत्यादि से कहीं अधिक आय कर देता है और इसके अलावा वह सब अप्रत्यक्ष कर तो देता ही . तिस पर टैक्स पर ‘सेस ‘विभिन्न नामों से लगती रहती है . बिजली , रेल गाडी के टिकेट , सिनेमा , रेस्टोरेंट का खाना इत्यादि पर जो जी  एस टी सब देते हैं वह भी देता है . विदेशों मैं इतने कर मैं मुफ्त स्वास्थ्य , शिक्षा इत्यादि मिलती है . बुढापा भी सुरक्षित होता है .भारत मैं सिर्फ टैक्स लिया जाता है .टैक्स देने वालों को कोई सुविधा नहीं मिलती . वेतन भोगी वर्ग के इस दर्द को क्यों नहीं कोई समझता ?

आय कर की वर्तमान स्लैब १९९६ मैं तत्कालीन वित्त मंत्री चिदंबरम के स्वप्नों के बजट मैं तय की गयी थीं. यह सरकार की दूरदर्शिता ही थी की टैक्स को बहुत कम करने के बावजूद १९९६ से २०१३ तक टैक्स का धन १८४०० करोड़ से बढ़ कर दो लाख करोड़ तक पहुँच गया . इसको बुद्धिमत्ता कहते हैं . ऐसे ही छः मैं दो यानी यदि आपके पास घर , कार , टेलीफोन इत्यादि है तो टैक्स देना होगा , स्कीम ने आय कर देने वालों की संख्या बढ़ा दी थी .

तब से महंगाई के चलते वेतन की बढ़ोतरीपर अब सरकार लगभग बीस से तीस प्रतिशत टैक्स ले लेती है . इसलिए मह्गाये बढ़ने से वेतन भोगी वर्ग की क्रय शक्ति घटती जा रही है. पिछले तीन वर्षों मैं माध्यम वर्ग के जीवन स्तर मैं काफी गिरावट आयी है . उसका जो थोड़ा बहुत खर्च मनोरंजन पर होता था वह बहुत कम हो गया है. अब रेस्टोरेंट व् सिनेमा जाना काफी कम हो गया है . तिस पर अगर बच्चों की पढ़ाई पर क़र्ज़ लिया था तो उसका भुगतान कठिन हो गया है. अच्छे वेतन वाली नौकरियां तो गायब हो गयीं हैं . औद्योगिक विकास के अभाव मैं इंजीनियर १५००० के वेतन पर काम करने को मजबूर हैं . मध्यम वर्ग के तो मानों सारे सपने स्वाहा हो गए हैं .  निर्यात व् कृषि  की भी दुर्दशा है . यह वर्ग संख्या मैं कम होते हुए भी विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है जिसका पूर्ण उपयोग वाजपेयी जी ने किया था जब परमाणु बम के विस्फोट के बावजूद भी भारत की आर्थिक प्रगति होती गयी ..

अब कोई नेताओं के भाषणों को सुनना नहीं चाहता न  २०२२ के विकास के वायदों को सुनने को कोई तैयार है.झूठे विकास के दावों ने सरकार के वायदों से विश्वास हटा दिया है. पहले विकास दीखता था . देश मैं उन्नति सब तरफ दृष्टिगोचर होती थी . नए मोबाइल कारें ,उद्योग, कारखाने आ रहे थे . अब सिर्फ आंकड़े आ रहे हैं दीखता कुछ नहीं है.पहले नोट बंदी से आशाएं थी फिर जी एस टी आया और आ के चला गया  .जनता अब भी मुंह बाए विकास के आगमन की अंतहीन प्रतीक्षा कर रही है.

ऐसा नहीं है है की वेतन भोगी  मध्यम वर्ग के हितों को सुरक्षित नहीं किया जा सकता था . परन्तु सरकार ‘ धंधा ‘ करने वालों की है. इसमें शिक्षा पर आश्रित बुद्धि जीवी वर्ग  न कोई सशक्त प्रवक्ता है न इस वर्ग के इतने वोट हैं स्वतः राजनीतिग्य इसकी फ़िक्र करें .

सरकार मन १९९६ के समान या वाजपेई युग के समान दूर दृष्टि वाले नेताओं व् बाबुओं का अभाव है  . चमचे अंततः हर संस्था को बर्बाद कर देते हैं . देश को आर्थिक विकास को चौपट करने मैं वित्त विभाग के अज्ञान व् संवेदनहीनता का बहुत बड़ा हाथ है .अहंकार व् अज्ञान से देश नहीं आगे बढ़ते हैं .

भारत के वास्तविक  उज्जवल भविष्य के लिए वित्त विभाग मैं सक्षम नेत्रित्व का सृजन आवश्यक है .

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