इस वीडियो को लेकर सरकार की आलोचना के साथ सेना में जवानों की स्थिति पर काफ़ी विवाद हुआ था.

हालांकि बीएसएफ़ अर्ध-सैनिक बल है लेकिन इस विवाद ने भारतीय जवानों के मसलों पर नई बहस छेड़ी.

वहीं दूसरी तरफ़ भारत की रक्षा तैयारियों पर सीएजी की रिपोर्ट पिछले साल 21 जुलाई को संसद में पेश की गई थी.

इस रिपोर्ट में भारतीय सेना और सुरक्षा तैयारियों पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई थी.

दिलचस्प है कि जब भूटान में डोकलाम सीमा पर भारत और चीन के सैनिक आमने-सामने थे तभी सीएजी ने भारतीय सेना की क्षमता पर गंभीर सवाल उठाए थे.

सीएजी की तरफ़ से आईएल-76 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ़्ट के रख-रखाव में खामियों के साथ पुराने पड़ते लड़ाकू विमान और भारतीय मिसाइल सिस्टम की विश्वसनीयता पर चिंता जताई गई थी.

वॉल स्ट्रीट जनरल की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारतीय सेना ने चीन और पाकिस्तान से सामना करने के लिए 42 जहाजों का बेड़ा और क़रीब 750 एयरक्राफ्ट की मांग की है. लेकिन मिग-21 जैसे पुराने जेट से ही भारतीय सेना काम चला रही है.

मिग-21 का उपयोग पहली बार 1960 के दशक में किया गया था. भारतीय सेना को जल्द ही मिग-21 से मुक्ति मिल सकती है लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 2032 तक केवल 22 जहाजों का बेड़ा ही मिल पाएगा.

चीन ने बढ़ाई सैन्य ताकत, भारत हुआ और पीछे

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भारतीय सेना के पास कितने कारगर हथियार?

भारत के पास पुराने सैन्य जहाज हैं जो अक्सर दुर्घटना के शिकार होते रहते हैं. पिछले साल फ़रवरी में जारी डेटा के अनुसार उससे पहले के चार सालों में 39 प्लेन क्रैश हुए हैं.

पिछले साल सितंबर महीने में दो मिग-21 दुर्घटनाग्रस्त हुए थे.

सीएजी रिपोर्ट के अनुसार भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड से 80 मिसाइल सिस्टम मिले जिनमें से 30 फ़ीसदी आकाश मिसाइल सिस्टम बुनियादी परीक्षण में ही नाकाम रहे.

रिपोर्ट में कहा गया है कि मिसाइल लक्ष्य तक पहुंचने में नाकाम रही और उसकी गति भी कम थी. दो मिसाइल तो बूस्टर नोज़ल के कारण जहां थीं वहीं पड़ी रहीं.

मार्च 2017 की सीएजी की इस रिपोर्ट पर भारतीय वायु सेना ने कहा था कि असफ़ल मिसाइलों को बदलने का काम जारी है.

सीएजी ने इस बात को भी रेखांकित किया था कि भारत सरकार ने 2016 में आकाश मिसाइल को भारत-चीन सीमा पर तैनात करने की घोषणा की थी, लेकिन एक जगह भी इसे स्थापित करने में कामयाबी नहीं मिली.

इस रिपोर्ट के अनुसार इन मिसाइलों की नाकामी अंतरराष्ट्रीय मानकों से कहीं ज़्यादा है.

‘भारत एक साथ चीन और पाकिस्तान से मोर्चा नहीं खोल सकता’

तो अंजाम के लिए तैयार रहे भारत: पाकिस्तान

‘ढाई मोर्चों पर लड़ने के लिए तैयार सेना’

भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने और हथियारों के आयात कम करने की दिशा में प्रधानमंत्री मोदी की मेक इन इंडिया योजना के लिए सीएजी रिपोर्ट किसी झटके से कम नहीं थी.

इतना कुछ होने के बावजूद भारत के आर्मी प्रमुख बिपिन रावत कई बार कह चुके हैं भारतीय सेना ढाई मोर्चों पर एक साथ लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार है.

सेना प्रमुख के इस बयान पर देश के भीतर ही मखौल उड़ाया गया कि वो किस आधार पर ढाई मोर्चों पर एक साथ युद्ध के लिए तैयार होने की बात कर रहे हैं.

सीएजी ने यहां तक कहा था कि भारतीय सेना के पास 10 दिनों तक लड़ने के लिए ही गोला-बारूद है. शायद चीन ने भी सीएजी की रिपोर्ट का अध्ययन किया ही होगा.

डोकलाम गतिरोध के दौरान चीन लगातार कहता रहा कि भारतीय सेना पीछे हट जाए नहीं तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.

जेएनयू में साउथ एशियन स्टडी सेंटर की प्रोफ़ेसर सबिता पांडे कहती हैं कि किसी भी देश के लिए दो मोर्चे पर युद्ध लड़ना इतना आसान नहीं होता है.

उन्होंने कहा, “एक ताक़तवर देश के लिए दो मोर्चों पर एक साथ युद्ध लड़ना मुश्किल होता है.”

एक तरफ़ भारतीय आर्मी प्रमुख का यह कहना और दूसरी तरफ़ युद्ध तैयारियों में भारी कमी के बीच रक्षा बजट में आवंटित राशि पर भी बहस हो रही है कि भारत इस बजट के साथ चीन और पाकिस्तान से एक साथ मुक़ाबला कैसे कर पाएगा?

पिछले वित्तीय वर्ष में कुल बजट की 12.22 फ़ीसदी राशि रक्षा क्षेत्र पर आवंटित की गई जो कि बीते दो दशकों में कुल बजट का सबसे कम हिस्सा था.

1988 में रक्षा क्षेत्र पर जीडीपी का 3.18 फ़ीसदी राशि आवंटित की गई, लेकिन उसके बाद से लगातार गिरावट देखने को मिली है.

पिछले बजट में भारत की कुल जीडीपी का 1.6 फ़ीसदी हिस्सा रक्षा पर खर्च करने के लिए आवंटित किया गया था जबकि वैश्विक स्तर यह मानक दो से 2.25 फ़ीसदी है.

भारत की तुलना में चीन ने अपनी जीडीपी का 2.1 फ़ीसदी हिस्सा रक्षा पर खर्च करने के लिए आवंटित किया तो पाकिस्तान ने 2.36 फ़ीसदी.

चीन के मुक़ाबले कहां है भारतीय सेना?

इंस्टिट्यूट फोर डिफेंस स्टडीज एंड एनलिसिस के लक्ष्मण कुमार बेहरा ने अपने कई इंटरव्यू में कहा है कि आर्मी के आधुनिकीकरण के लिए आवंटन राशि में 0.9 प्रतिशत की कमी आई है. वहीं नेवी और एयर फ़ोर्स में यह कमी 12 फ़ीसदी और 6.4 फ़ीसदी है.

ऐसा तब देखने को मिल रहा है जब भारतीय सेना लड़ाकू विमान, राइफल्स, हथियार, बुलेट-प्रूफ जैकेट्स, होवित्जर, मिसाइल्स, हेलिकॉप्टर्स और युद्धपोतों की कमी की गहरी समस्या से जूझ रही है.

द डिप्लोमैट की रिपोर्ट कहती है, “सैन्य ताक़त के मामले में चीन भारत से काफ़ी आगे है. चीन की सैन्य क्षमता के सामने भारत कहीं नहीं टिकता है. चीन के पास भारत की तुलना में दस लाख ज़्यादा सैनिक हैं. पांच गुना ज़्यादा पनडुब्बियां और टैंक्स हैं.”

“लड़ाकू विमान भी भारत से दोगुने से अधिक हैं और युद्धपोत भी लगभग दोगुने हैं. भारत के मुक़ाबले चीन के पास तीन गुना से ज़्यादा परमाणु हथियार हैं. वहीं चीन का रक्षा बजट 152 अरब डॉलर है तो भारत का महज 51 अरब डॉलर ही है.”

इस बार के बजट को लेकर भी कहा जा रहा है कि अर्थव्यवस्था की सेहत ठीक नहीं होने की वजह से सरकार रक्षा बजट पर ज़्यादा खर्च करने की स्थिति में नहीं है.

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत रक्षा बजट पर जितनी रक़म आवंटित करता है उसका 80 फ़ीसदी से ज़्यादा हिस्सा रक्षा कर्मियों के वेतन और अन्य भत्तों पर खर्च हो जाता है.

ऐसे में आधुनिकीकरण के लिए बहुत कम फंड बचता है. इसके बावजूद पिछले साल रक्षा बजट की 6,886 करोड़ रक़म आर्मी इस्तेमाल नहीं कर पाई थी.

हथियार आयात करने में सबसे ऊपर भारत

मोदी सरकार में रक्षा मंत्री रहे मनोहर पर्रिकर ने आर्मी में सुधारों को अंजाम देने के लिए लेफ्टिनेंट जनरल शेकटकर की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी.

इस समिति की 99 सिफ़ारिशों में से सरकार ने 65 को 2019 तक लागू करने के लिए कहा है.

इस कमिटी ने सेना में संख्या बल घटाने और खर्चों में कटौती करने की सिफारिश की है. अभी भारतीय सेना में क़रीब 14 लाख संख्या बल है.

मोदी सरकार ने रक्षा क्षेत्र में एफडीआई को अब 100 फ़ीसदी कर दिया है.

वॉल स्ट्रीट जनरल की रिपोर्ट के अनुसार भारत के रक्षा उद्योग में पिछले 14 सालों में महज 50 लाख डॉलर एफडीआई आया जबकि इसी अवधि में टेलिकम्युनिकेशन और ऑटोमोबाइल उद्योग में 10-10 अरब डॉलर का एफडीआई आया.

भारत अब भी दुनिया के अग्रणी हथियार आयातक देशों में से एक है.

इंडियन डिफेंस इंडस्ट्री एन एजेंडा फोर मेकिंग इन इंडिया के लेखक लक्ष्मण कुमार बेहरा ने अपनी किताब में लिखा है कि भारत अब भी अपनी ज़रूरत के 60 फ़ीसदी हथियारों का आयात करता है.

विश्व हथियार आयात

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (SIPRI) की रिपोर्ट के अनुसार 2010 से 2014 के दौरान विश्व हथियार आयात में भारत का हिस्सा 15 फ़ीसदी था.

इसके साथ ही भारत हथियार आयात के मामले में पहले नंबर पर था.

दूसरी तरफ़ चीन फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन को पीछे छोड़ विश्व का तीसरा सबसे बड़ा हथियार निर्यातक देश के रूप में सामने आया है.

2005 में भारत ने अपनी ज़रूरत के हथियारों का 70 फ़ीसदी हिस्सा देश में बनाने का लक्ष्य तय किया था जो अब भी 35 से 40 फ़ीसदी तक ही पहुंच पाया है.

द स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में सैन्य खर्चों में हर साल 1.2 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हो रही है.

इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर के सैन्य खर्चों में अमरीका अकेले 43 फ़ीसदी हिस्से के साथ सबसे आगे है.

इसके बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के चार स्थाई सदस्य आते हैं. हालांकि बाक़ी के सदस्य अमरीका के आसपास भी नहीं फटकते हैं.

चीन सात फ़ीसदी के साथ दूसरे नंबर पर है. इसके बाद ब्रिटेन, फ़्रांस और रूस क़रीब चार फ़ीसदी के आसपास हैं.

इस रिपोर्ट के मुताबिक़ चीन की सैन्य संख्या क़रीब 23 लाख है. हालांकि इतनी बड़ी संख्या के बावजूद चीन का सेना पर खर्च अमरीका के सामने कहीं नहीं टिकता है.

अमरीका और चीन के सैन्य खर्च में इस बड़े अंतर को समझना इतना मुश्किल नहीं है.

अमरीका की तरह चीन कई अंतरराष्ट्रीय मिशनों या सैन्य हस्तक्षेप में अपने सैनिकों को नहीं लगाता है.

इसके साथ ही अमरीका की तरह दुनिया भर में उसके सैकड़ों सैन्य ठिकाने नहीं हैं. चीन ने ख़ुद को राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सैन्य अभियानों तक ही अब तक सीमित रखा है.

कई विश्लेषकों का कहना है कि भारत अभी कश्मीर और चीन के साथ पारंपरिक सीमा विवाद में ही उलझा हुआ है, लेकिन चीन हिन्द महासागर, दक्षिण चीन सागर से लेकर आर्कटिक तक अपना पांव पसार चुका है.

मोदी सरकार जब एक फ़रवरी को बजट पेश करेगी तो वो इन चुनौतियों को नज़अंदाज़ नहीं कर पाएगी.