रक्षा मंत्री जी : रूस से सम्बन्ध बिगड़ना देश के लिए घातक होगा
राजीव उपाध्याय
हाल ही मैं रक्षा प्रदर्शनी मैं रक्षा मंत्रि निर्मला सीतारमण ने रूस के स्टाल पर न जा कर सारा समय भारत के नए दोस्त इजराइल व् अमरीकी कंपनियों के स्टालों पर लगा दिया . रूस मैं इसकी तीखी प्रतिक्रया हुई .
इसके विपरीत प्रधान मंत्रि मोदी ने मास्को मैं कहा था की एक पुराना परखा हुआ दोस्त दो नए दोस्तों से अच्छा होता है . भारत रूस के संबंधों ने कई सरकारों के उत्थान व् पतन को देखा है .ब्रेजनेव के इंदिरा गाँधी को खुला समर्थन देने से लेकर गोर्बाचोव व् येल्स्तिन की बेरुखी भी देखी है . गोर्बाचोव जब १९८६ में भारत यात्रा पर आये थे भारत ने उनके स्वागत मैं पलकें बिछा दी थीं . परन्तु उनके तबके विश्व दृष्टिकोण पर अमरीका छाया हुआ था . इसलिए उन्होंने भारत को स्वाबलंबन के लिए सचेत कर दिया था . परन्तु रूस हमें पहले बहुत वर्षों तक रुपयों मैं बाद में डॉलर वह सामग्री उपलब्ध कराता रहा जो पश्चिमी राष्ट्र हमें कभी न देते .
कश्मीर पर अमरीका व् इंग्लैंड के आपत्ति जनक प्रस्तावों से सिर्फ रूस ही बचाता रहा . जब अमरीका ने हम पर प्रतिबन्ध लगाए तो रूस ने हमें आणविक संयत्रों के लिए हैवी वाटर दिया . स्वंत्रता के बाद भारत की औद्योगिक प्रगति भी रूस द्वारा लगाए गए भारी उद्योगों से हुई . बँगला देश की लड़ाई यदि हम जीत सके तो उसके लिए सिर्फ रूस ही जिम्मेवार था अन्यथा निक्सन ने तो सातवें बड़े को भारत की तरफ भेज ही दिया था .
१९६५ की लड़ाई मैं पाकिस्तान की वायु सेना हम पर भारी पड़ी क्योंकि हमारे नेट व् हंटर हवाई जहाज बहुत पुराने थी . उसके बाद हमारी सारी सेनाएं रूस के हथियारों से लड़ कर जीती हैं . आधुनिक समय मैं भी भारत को रूस ने ही ब्रह्मोस मिसाइल व् परमाणु पनडुब्बी दे है जो कोई भी पश्चिमी राष्ट्र हैं नहीं दे सकता .
सोवियत यूनियन टूटने के बाद रूस एक छोटा देश बन गया है .आज कल उसके बुरे दिन चल रहे हैं . पश्चिम ने उसको धोखा दिया और उसको अब भी दुश्मन ही माना . दस साल के लिये रूस की आर्थिक व्यवस्था बैठ ही गयी थी . इन परिस्थितियों मैं रूस के व्यवहार मैं कुछ परिवर्तन अवश्य आया है .उसकी चीन पर आश्रितता बढ़ गयी है . उसको विदेशी मुद्रा की अत्यंत आवश्यकता है .उसकी राष्ट्रीय प्रगति सिर्फ तेल व् गैस के निर्यात पर आश्रित है . इसलिए उसके लिए भारत को हथियार बेचना आवश्यक है . उसकी प्रसिदध मिग फैक्ट्री बंद होने के कगार पद है . ऐसे मैं यदि उसे भारत की जरूरत है तो यदि संभव हो तो अपने हितों को सुरक्षित रख हमें उसकी मदद अवश्य करनी चाहिए .
कुछ गलतियां रूस ने भी की हैं . एडमिरल गोर्शकोव एयर क्राफ्ट कैरीएर को उसने दुगने दाम पर दुगने समय मैं दिया .सुखोई हवाई जहाज़ों के रख रखाव मैं बहुत पैसा लिया .परन्तु यह सब समस्याएं तो बातचीत से हल हो सकता है .रूसी रक्षा सामग्री सस्ती तो होती है परन्तु उच्च कवालीटी की नहीं होती है .परन्तु रूस इन्ही हथियारों से अमरीका व् नाटो से लड़ने की हिम्मत रखता है . इसलिए चीन व् पकिस्तान के लिए तो यह हथियार पूर्णतः सक्षम होंगे .रूस टेंडर मैं पश्चिम से मुकाबला नहीं कर सकता .इसलिए वह भारत को सरकारी समझौतों से रक्षा सामग्री बेचना चाहता है . कुछ हद तक उसकी बात ठीक है . जब हमारे पास डॉलर नहीं थे तो उसने भी तो हमें भारतीय रूपये मैं वर्षों सब चीज़ें दी थीं . इसे भूलना भी गलत होगा .
इसके विपरीत यह भी सच है की फ्रांस व् इजराइल ने कारगिल की लड़ाई मैं भारत की बहुत मदद की . फ्रांस के लेज़र बमों के बिना हम पहाड़ियों पर पाकिस्तानी बन्कर नहीं समाप्त कर सकते थे .फ्रांस ने यदि समय पर मदद नहीं की होती तो शायद हम नहीं जीत पाते .इजराइल ने भी सदा हमारी मदद की है . परन्तु इनमें से कोई भी अमरीका के विरुद्ध नहीं जा सकता . इतिहास गवाह है की पाकिस्तान समेत किसी देश को अमरीकी मित्रता से बहुत फायदा नहीं हुआ है .वह कभी भी धार्मिक उन्माद या मानवीय अधिकार की दुहाई दे कर हमारी दुम ऐंठ सकता है .जो सलूक उसने हमारी राजनयिक खोबद्गेगे से साथ किया उसे भूलना असम्भव है . मोदी जी को भी प्रतिन्धित व्यक्ति कह के वीसा नहीं दिया था . सद्दाम , गद्दाफी और अब बशर का क्या दोष था ?कब हमारा नंबर आ जाय कौन जनता है ? हमें महाभारत की द्रुपद की द्रोण दियी हुई शिक्षा याद रखनी चाहिए .मित्रता सिर्फ बराबर वालों मैं ही होती है . आज अमरीका द्रुपद है और हम द्रोण . हममें वास्तविक मित्रता संभव नहीं है .परन्तु यह भी सच है आज हमारी अर्थ व्यवस्था अमरीकी निवेश पर आश्रित है क्योंकि चीन की तरह हमारे निर्यात हमारी विदेशी मुद्रा की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकते .अमरीकी मदद के बिना चीन हमें ऑंखें दिखाता रहेगा .हमें अमरीका भी आवश्यकता है .परन्तु भारत तो गुट निरपेक्ष नीति का पुराना खिलाड़ी है और भारत अपने सम्बन्ध अमरीका व् रूस दोनों से मधुर रख सकता है .
२०५० के अमीर भारत को भारत को २०५० के रूस की बहुत आवश्यता होगी .
इसलिए रक्षा मंत्रि जी आप प्रखर देशभक्त है . इसलिए अपनी पश्चिमी शिक्षा व् नौकरी को भूल कर भारत के दूर गामी हितों को देख कर फैसले लें . याद रखें २०५० मैं कोई पश्चिमी देश भारत को बहुत शक्तिशाली नहीं देखना चाहेगा जैसा की आज चीन के साथ हो रहा है . हमें रूस की आवश्यकता तब भी रहेगी .
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