आप द्वापर युग की श्री कृष्ण कथा पूरा जानते ही नहीं, इसलिए कह रहे हैं की द्वापर में भगवान् श्री राम की पूजा नहीं थी. आप श्री मद भगवत को देख लें, जहाँ पर स्वयं भगवान् श्री कृष्ण ने त्रेता युग के भगवान् श्री राम के सेना के वानर मयंद नामक वानर को दंड देने के लिए हनुमान जी को भेजा था. यह महाभारत में वर्णित है/
भगवान् श्री राम त्रेता युग से ही नहीं बलिक उनके आगमन से पहले से लोग श्री राम नाम का जाप करते थे. (आप वाल्मीकि रामायण पढ़ लें और देख लें) वाल्मीकि मुनि को श्री नारद मुनि ने भगवान् श्री राम का ही नाम राम जपने को कहा था, उस समय वाल्मीकि मुनि एक डाकू थे और तब उनके मुँह से राम नहीं निकला था. उन्होंने राम नाम उच्चारण नहीं कर सके तो नारद मुनि ने उन्हें मरा जाप यानी उल्टा राम नाम का जाप करने को कहा और इस प्रकार श्री राम नाम की महत्व आप इसी से लगा सकते है की उल्टा नाम जपे जग जाना, वाल्मीकि भये ब्रह्म सामान.
इस प्रकार द्वापर युग में भगवान् श्री राम की कथा घर घर में प्रचलित हो चूका था और स्वयं भगवान् श्री कृष्ण-बलराम जी को श्री राम कथा उनके घर में नन्द बाबा, यसोदा जी ने सुनाया था. ऐसा एक बार नहीं हुआ बलिक अनेको प्रसंग है जब स्वयं श्री कृष्ण जब कान्हा कहे जाते थे, तब वो श्री राम के रूप में हो गए/ उन्होंने बलराम जी को कई बार लक्ष्मण जी कहकर पुकारा.
सांदीपनि मुनि के आश्रम में जब भगवान् श्री कृष्ण शिक्षा ग्रहण करने गए तो वहां भी उन्हें भगवान् के सारे अवतारों के बारे में गुरु जी ने बताया और फिर सभी अवतारों में प्रमुख स्वयं भगवान् श्री राम हैं, इनके कथा श्री कृष्ण कैसे नहीं सुनते, जबकि वो दोनों एक ही हैं.
श्री राम, लक्ष्मण और माता सीता के मंदिर भी कई जगह थे, और स्वयं व्यास जी ने और मार्कण्डेय मुनि ने युधिष्ठिर को कहा की यदि अपने जीवन में कल्याण चाहते हो और राज्य बैभव इत्यादि चिरकाल तक चाहते हो तो भगवान् श्री राम की शरण हो और राम नाम जपने को कहा था- यह महाभारत में वर्णित है.
श्री राम कोई साधारण अवतार नहीं हैं जो आम लोग समझते हैं. भगवान् के प्रमुख रूप श्री राम स्वयं भगवान् हैं. इनका नाम वेद, पुराण और हिन्दू धर्म में ऐसा कोई ग्रन्थ नहीं जहाँ इनकी चर्चा न हो, चाहे वो संछिप्त कथा हो, पर भगवान् श्री राम का महत्त्व आप समझ सकते हैं.
एक द्वापर युग में श्री कृष्ण के समकालीन एक व्यक्ति था पौंड्रक, उसने अपने को श्री राम- कृष्ण के रूप में स्वयं को घोसित कर रखा था. उसने दो हाँथ कृतिम लगा रखे थे और एक चक्र नकली लगा रखा था और ठीक भगवान् विष्णु के तरह चतुर्भुज रूप में रहता था. उसके पैर के पास जैसे श्री राम के चरण में हनुमान जी रहते हैं, उसी तरह मयधः नमक एक बड़ा कपि जो भगवान् श्री राम की सेना का ही था, उसे अपना सेवक बना लिया था. स्वयं को उसने ओरिजिनल वासुदेव श्री कृष्ण घोषित कर रखा था.
इस पौंड्रक ने भगवान् विष्णु, भगवान् श्री राम सीता लक्ष्मण की कई मंदिरो में पूजा को पूर्णतः रोकवा दिया था. जब भगवान् श्री कृष्ण को यह पता चला तो प्रभु ने पहले तो सन्देश दिया की ऐसा न करें, पर उत्तर में उसने भगवान् श्री कृष्ण को ही युद्ध की चेतावनी दिया.
इस प्रकार पहले तो हनुमान जी भगवन श्री कृष्ण के आदेशानुसार, इसके मयंद नमक वानर को मार दिया और फिर इस पौंड्रक के चक्र, शंख और गदा को पूर्णतः निगल लिए. हनुमान जी ने पौंड्रक को साबधान किया की अपनी मौत क्यों चाहते हो? श्री कृष्ण ने उन्हें आदेश नहीं दिया अन्यथा तुम्हे तो मैं ऐसे ही पुरे राज्य सहित मारकर समुंदर में डुबो सकता हूँ.
अंत में भगवान् श्री कृष्ण के द्वारा युद्ध में यह छलिया पौंड्रक मारा गया और फिर, भगवान् विष्णु,
भगवन श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी की पूजा मदिरो में पर्वत प्रारम्भ हो गया. इसलिए, यह कहना गलत है की भगवान् श्री राम की पूजा द्वापर युग में नहीं था. संभव है कम हो पर प्रारम्भ हो गया था.
जय सिया राम, हरे राम हरे कृष्ण/
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